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- Category: मई 2013
अंबरीश बालिगा, मैनेजिंग पार्टनर (ग्लोबल वेल्थ), इडेलवाइज :
फिलहाल चुनावी नतीजे आने तक बाजार में सकारात्मक चाल जारी रहेगी, जिसमें निफ्टी 7,000 के ऊपर जा सकता है।
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- Category: मई 2013
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
पश्चिम बंगाल के शारदा घोटाले से उपजे आक्रोश और असंतोष से तृणमूल कांग्रेस की राज्य सरकार और देश की नियामक संस्थाओं की नींद उड़ गयी है।
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- Category: मई 2013
कारोबारी साल 2012-13 के दौरान जीवन बीमा के प्रीमियम वसूली में 6% की गिरावट दर्ज की गयी है।
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- Category: मई 2013
कारवाँ फिर लुट गया और देश के नियंता और नीति-निर्माता असहाय देखते रह गये।
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- Category: मई 2013
राजीव रंजन झा:
कहते हैं कि 12 वर्षों का एक युग होता है। इस हिसाब से करीब एक युग से सोने की कीमतों में केवल एक ही रुझान दिख रहा था और वह रुझान था ऊपर का।
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- Category: मई 2013
सूचना तकनीक (आईटी) क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कंपनी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज के कारोबारी साल 2012-13 की चौथी तिमाही के नतीजे बाजार के अनुमान के मुताबिक रहे हैं।
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- Category: मई 2013
राजीव रंजन झा :
फरवरी 2013 के बाद निफ्टी दो मई को पहली बार 6000 के ऊपर नजर आया है, लेकिन इस स्तर के ऊपर निफ्टी के टिक पाने पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा है।
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- Category: मई 2013
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी नयी सालाना मौद्रिक नीति (2013-14) में उद्योग जगत और बाजार की उम्मीदों को आधे-अधूरे ढंग से पूरा किया।
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- Category: मई 2013
पीके अग्रवाल, निदेशक, पर्पललाइन इन्वेस्टमेंट :
बाजार में एक मई को जो उछाल दिखी, वह दरअसल टैक्स रेजिडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) के मुद्दे पर संसद में वित्त मंत्री के बयान और आरबीआई की नयी मौद्रिक नीति से जुड़ी उम्मीदों का नतीजा था।
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- Category: मई 2013
सुशांत शेखर :
सबसे बड़ी भारतीय दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल को दोहा की कतर फाउंडेशन एंडॉवमेंट यानी क्यूएफई का सहारा मिल गया है।
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- Category: मई 2013
सेबी ने माना भेदिया कारोबार का दोषी
भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए 11 करोड़ रुपये की रकम शायद चुटकी भर हो, लेकिन अगर यह रकम सेबी की ओर से भेदिया कारोबार (इनसाइडर ट्रेडिंग) के दोष में लगे जुर्माने की हो तो इसका दाग बड़ा हो जाता है। मसला इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईपीसीएल) से जुड़ा है, जिसे रिलायंस ने सरकार की विनिवेश प्रक्रिया के तहत मई 2002 में प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये खरीदा था। रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस पेट्रो इन्वेस्टमेंट्स (आरपीआईएल) ने 27 फरवरी 2007 से दो मार्च 2007 के दौरान आईपीसीएल के 21.33 लाख शेयर 55.51 करोड़ रुपये में 259.42 रुपये के औसत भाव पर खरीदे। आरोप लगा कि आरपीआईएल ने आईपीसीएल की दो महत्वपूर्ण घोषणाओं से पहले यह खरीदारी की, लिहाजा यह भेदिया कारोबार था। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने दो मई 2013 को अपने फैसले में आरपीआईएल को इस भेदिया कारोबार के जरिये अनुचित लाभ कमाने का दोषी ठहराया है और इसके लिए उस पर 11 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।
आईपीसीएल ने दो मार्च 2007 को अंतरिम लाभांश (डिविडेंड) पर निदेशक बोर्ड में विचार किये जाने की घोषणा की थी। इसके बाद सात मार्च 2007 को इसने ऐलान किया कि बोर्ड की बैठक में कंपनी का विलय रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में किये जाने पर भी विचार होगा।
रिलायंस इंडस्ट्रीज, आरपीआईएल और आईपीसीएल का आपसी संबंध जगजाहिर था। लेकिन सेबी ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो उसके सामने सबसे पहला कानूनी प्रश्न यह था कि क्या आरपीआईएल को इनसाइडर यानी अंदर की जानकारी रखने वाले के तौर पर देखा जाये? आईपीसीएल और आरपीआईएल का संबंध कई ढंग से जोड़ा गया। रिलायंस इंडस्ट्रीज के भी सीएमडी मुकेश अंबानी आईपीसीएल के भी चेयरमैन थे। आरपीआईएल के पास आईपीसीएल के एक तिहाई से ज्यादा शेयर थे। आरपीआईएल का पूरा स्वामित्व होल्डिंग कंपनियों के जरिये रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास था। लिहाजा आईपीसीएल और आरपीआईएल को सेबी ने एक ही प्रबंधन के अधीन माना।
आरपीआईएल ने नवंबर 2011 में सेबी के सामने सहमति आवेदन (कंसेंट ऐप्लिकेशन) दाखिल किया। सहमति आदेश में सेबी की ओर से एक शुल्क तो लगाया जाता है, लेकिन उस शुल्क को जुर्माना नहीं कहा जाता और दोषी भी नहीं ठहराया जाता है। सेबी ने नवंबर 2012 में सहमति आवेदन को खारिज कर दिया।
सुनवाई के दौरान आरपीआईएल ने सेबी के सामने दलील रखी कि भले ही आरआईएल ने विनिवेश के समय आईपीसीएल को खरीदने के उद्देश्य से आरपीआईएल का गठन किया था, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि अंतरिम लाभांश और विलय की घोषणाएँ सार्वजनिक होने से पहले उसे इनकी जानकारी थी। कहा गया कि जब आरआईएल ने उसके जरिये आईपीसीएल का अधिग्रहण किया तो यह स्वाभाविक ही है कि आगे भी आईपीसीएल के शेयरों के क्रमिक अधिग्रहण (क्रीपिंग एक्विजिशन) के लिए पूँजी आरआईएल ही उपलब्ध करायेगी। इससे साबित नहीं होता कि उसे लाभांश और विलय के बारे में अंदरुनी जानकारी थी। दावा किया गया कि आईपीसीएल के शेयर खरीदने के ऑर्डर देने वाले रिलायंस कर्मचारी अशोक सी जैन को घोषणाओं की पहले से जानकारी नहीं थी।
सेबी ने इस तथ्य पर गौर किया कि आरपीआईएल की पूरी हिस्सेदारी आरआईएल के स्वामित्व में थी। साल 2005-06 के लिए आरआईएल की सालाना रिपोर्ट में भी आरपीआईएल को सहयोगी कंपनियों और साझेदारियों की सूची में रखा गया था। आईपीसीएल के शेयरों को खरीदने के लिए जिस आरवीएल से पूँजी मिली थी, वही आरवीएल दरअसल आरपीआईएल के 50त्न शेयरों की स्वामी भी थी। आरपीआईएल के पास आईपीसीएल के 45.78त्न शेयर थे और वह इसकी सबसे बड़ी शेयरधारक थी। इन सब तथ्यों के मद्देनजर सेबी ने माना कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास आरपीआईएल का नियंत्रण था और आरपीआईएल के जरिये उसका आईपीसीएल पर भी नियंत्रण था। लिहाजा आईपीसीएल और आरपीआईएल एक ही प्रबंधन के अधीन थीं।
सेबी के मुताबिक आईपीसीएल के शेयरों के इस भेदिया कारोबार से आरपीआईएल ने लगभग 3.83 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। इस बात के मद्देनजर सेबी ने इसे 11 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया।
सेबी के फैसले के बाद रिलायंस ने इस बारे में न तो मीडिया में कोई टिप्पणी की है और न ही स्टॉक एक्सचेंजों को कोई बयान भेजा है। निवेश मंथन ने भी रिलायंस से उसकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, लेकिन ये पंक्तियाँ लिखे जाने तक कंपनी का जवाब नहीं मिला है।
(निवेश मंथन, मई 2013)
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रीतू तोमर :
एक तरफ ऐसी खबरें आ रही हैं कि देश के बड़े महानगरों में बड़ी संख्या में लाखों अनबिके मकान हैं, जिनके लिए रियल एस्टेट कंपनियों को खरीदार नहीं मिल रहे।
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