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कम, मगर दाम ज्यादा

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Category: मई 2013

रीतू तोमर :

एक तरफ ऐसी खबरें आ रही हैं कि देश के बड़े महानगरों में बड़ी संख्या में लाखों अनबिके मकान हैं, जिनके लिए रियल एस्टेट कंपनियों को खरीदार नहीं मिल रहे।

लेकिन इसके साथ ही खबर यह भी है कि मकानों के दाम बढ़ते जा रहे हैं। जानकार बता रहे हैं कि असली खरीदार अभी बाजार में बहुत कम हैं। इस माहौल में कीमतों का बढऩा भारत में जमीन-जायदाद के बाजार का ऐसा विरोधाभास है, जो विचित्र लेकिन सत्य है।
सलाहकार फर्म नाइट फ्रैंक की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-एनसीआर में कुल 5.20 लाख आवासीय इकाइयाँ निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से 27% यानी 1.40 लाख अनबिके अपार्टमेंट हैं, यानी इन्हें अभी तक कोई खरीदार नहीं मिल सका है। लेकिन दूसरी ओर अगर कीमतों पर नजर डालें तो जनवरी-मार्च 2013 की तिमाही में दिल्ली-एनसीआर में मकानों के दाम साल भर पहले यानी जनवरी-मार्च 2012 की तुलना में 20% बढ़े हुए हैं।
कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से माँग कम होती जा रही है, जिससे अनबिके अपार्टमेंट की सँख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। हालाँकि इस बाजार पर नजर रखने वाले जानकारों का अनुमान इससे उल्टा था। उनकी धारणा थी कि मांग कम होने की वजह से कीमतों में कटौती होनी चाहिए, लेकिन अभी समीकरण उल्टा ही चल रहा है। सलाहकार फर्म क्यूबरेक्स के एमडी संजय शर्मा कहते हैं कि अपनी निजी जरूरत के लिए मकान लेने वाले खरीदार इतनी ऊँची कीमतों पर लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पा रहे हैं।
संजय शर्मा कहते हैं कि कुछ समय से आईटी क्षेत्र में अनिश्चितता के चलते भी असली खरीदार कम हो गये हैं। इस क्षेत्र की कंपनियों में वरिष्ठ लोगों को निकाला जाये और उनके बदले कम अनुभवी लोगों को रखा जाये जिससे वेतन पर उनका खर्च घटे। जिन लोगों को निकाला जा रहा है, उन्हें नयी नौकरियाँ नहीं मिल पा रही हैं। जिस श्रेणी के लोगों को निकाला जा रहा है, उसी श्रेणी के लोगों का ज्यादा ध्यान मकान खरीदने की ओर होता है। घर खरीदने वाले लोग आम तौर पर 35-45 की उम्र के ही होते हैं। लेकिन अब इसी उम्र के दौरान अनिश्चितता शुरू हो गयी है, जिसके चलते लोगों के मन में डर बैठ गया है।
दिल्ली-एनसीआर में 2012-13 की दूसरी छमाही के दौरान नयी आवासीय इकाइयों की शुरुआत पिछले कारोबारी साल की तुलना में 31% घट गयी। इस दौरान केवल 33,500 इकाइयों के निर्माण का काम शुरू हुआ। इस दौरान बिक्री भी 12% घट कर 33,200 इकाइयों की रही। इस बिक्री में लगभग 65% हिस्सेदारी सस्ते और मध्यम श्रेणी के मकानों की रही। आगे भी ऐसा ही हाल जारी रहने के अनुमान हैं। नयी परियोजनाओं की शुरुआत और मकानों की बिक्री, दोनों में धीमापन दिखने की संभावना है। दरअसल माँग में कमी को भांप कर ही निर्माण कंपनियाँ नयी परियोजनाओं की शुरुआत करने में सुस्त चल रही हैं।
फिर ऐसे माहौल में दाम कैसे बढ़े? नाइट फ्रैंक रिपोर्ट कहती है कि निर्माण की लागत बढऩे और निवेशकों की ओर से माँग में बढ़ोतरी से कीमतें बढ़ी हैं। जमीन-जायदाद के कारोबार में वे लोग निवेशक कहे जाते हैं, जो खुद रहने के लिए या खरीदने के बाद किराये पर चढ़ाने के लिए मकान नहीं खरीदते, बल्कि कुछ समय बाद बेच कर मुनाफा कमाने के इरादे से पैसा लगाते हैं। संजय शर्मा समझाते हैं कि यह दरअसल निवेशकों को आकर्षित करने का खेल है, क्योंकि खुद अपनी जरूरत के लिए मकान लेने वाले असली खरीदार बाजार में काफी कम हो चुके हैं। निवेशकों को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि देने के लिए ही निर्माण कंपनियाँ दाम बढ़ाये जा रही हैं और माँग घटने के बावजूद दाम नहीं घटा रही हैं। इसीलिए कीमतों में बढ़ोतरी आम तौर पर नयी परियोजनाओं या निर्माणाधीन संपत्तियों में ही दिख रही है, जहाँ पूरी कीमत का एक छोटा हिस्सा ही पहले देना पड़ता है। दूसरी ओर जो संपत्तियाँ पूरी तरह बन चुकी हैं, या पूरी होने के करीब हैं और जिनमें सारा या अधिकतम पैसा शुरुआत में ही देना पड़ता है, उनकी कीमतें नहीं बढ़ रही हैं। ऐसा इसलिए है कि ऐसी संपत्तियों के खरीदार निवेशक नहीं, बल्कि अपनी जरूरतों के लिए खरीदने वाले लोग हैं। ऐसे लोग बढ़ी हुई कीमत पर खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं।
नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट में जिन 1.4 लाख अनबिके घरों की संख्या दी गयी है, उनमें से लगभग 66% अनबिके अपार्टमेंट नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं। इस तरह नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अनबिके घरों की संख्या 92000 से ऊपर बैठती है। यह संख्या बड़ी है, लेकिन साल भर पहले की तुलना में बेहतर है। साल भर पहले तो दिल्ली-एनसीआर में कुल अनबिके घरों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा की हिस्सेदारी लगभग 78% तक थी। लेकिन तब नोएडा एक्सटेंशन नाम से विकसित हुए क्षेत्र पर कानूनी विवादों के चलते वहाँ सब कुछ थम सा गया था। अभी इस क्षेत्र को ग्रेटर नोएडा वेस्ट कहा जा रहा है। कानूनी विवाद निपटने के बाद इस इलाके में फिर से लोगों की रुचि बढ़ी है। अनबिके घरों की संख्या में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का योगदान घटने का यह एक बड़ा कारण है।
दिल्ली-एनसीआर के समूचे क्षेत्र में केवल ग्रेटर नोएडा में ही बिक्री कुछ अच्छी दिख रही है, जहाँ सस्ते मकान उपलब्ध होने के चलते ग्राहक नजर आ रहे हैं। कारोबारी साल 2012-13 की दूसरी छमाही में ग्रेटर नोएडा में शुरू होने वाली आवासीय परियोजनाओं में 40% की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान दिल्ली-एनसीआर में शुरू होने वाली कुल आवासीय परियोजनाओं में आधी हिस्सेदारी ग्रेटर नोएडा की ही रही। यहाँ की ज्यादातर परियोजनाएँ 2,900-3,500 रुपये प्रति वर्गफुट की कीमतों के दायरे में है।
गौरतलब है कि इस रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ अनबिके मकानों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा की हिस्सेदारी 66% है, वहीं निर्माणाधीन मकानों में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 58% है। इससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि इस क्षेत्र में एक अच्छी संख्या में ऐसे अनबिके मकान हैं, जिनका निर्माण पूरा हो चुका है। दूसरी ओर बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-एनसीआर में गुडग़ाँव में अनबिके मकानों की संख्या सबसे कम है।
हालाँकि अनबिके घरों की इस संख्या पर निर्माण कंपनियाँ कुछ आश्चर्य जता रही हैं। आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल कुमार शर्मा ने निवेश मंथन से बातचीत में कहा कि %अनबिके घरों की संख्या के बारे में यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत में बहुत से स्थान ऐसे हैं, जहाँ लोगों ने घर ले लिया है, लेकिन रहते नहीं हैं। ऐसे में अगर कोई सर्वे करने जायेगा तो उसे यही दिखेगा कि भवन बना हुआ है, लेकिन खाली है। वह गार्ड से पूछेगा कि इसमें कितने घर हैं। पूछ कर अपने सर्वे में लिख लेगा कि 350 घर बने हुए हैं और खाली हैं। लेकिन वास्तव में वे सब बिके हुए हैं। इसके अलावा कारोबारी जिन घरों को निवेश के लिए खरीद कर रखे रहते हैं, वे तो खाली ही मिलेंगे, क्योंकि कारोबारी तो वह अंतिम उपभोक्ता नहीं है जो उसमें रहने जायेगा। बाजार में करीब 15-20% हिस्सा तो कारोबारियों का है और वही हिस्सा अनबिके मकानों के रूप में दिखता है। मैं आपसे एक बात पूछता हूँ कि अगर मुझे नोएडा में एकदम तैयार घर चाहिए, मेरे सामने फोन करिए डेवलपरों को और देखिए कितनों के पास ऐसा घर बिक्री के लिए है।’
अनिल शर्मा मानते हैं कि जो फ्लैट बन कर तैयार हैं और अब भी निर्माता कंपनी के पास हैं, उन्हें ही अनबिका मकान कहना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर जानकार कहते हैं कि जो भी मकान बिक्री के लिए उपलब्ध हो, चाहे वह निर्माण के किसी भी चरण पर हो, उनकी गिनती की जा सकती है। नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट भी इसी आधार पर है, क्योंकि इसमें निर्माण के विभिन्न चरणों के मकानों की बात कही गयी है। वहीं संजय शर्मा कहते हैं कि आम तौर पर किसी परियोजना के जिन अगले चरणों को निर्माता कंपनियाँ अभी बिक्री के लिए नहीं खोलती हैं, उन्हें वे अपने नक्शे पर अलग ढंग से दिखाती हैं। इसलिए यह पहचाना जा सकता है कि अभी किसी परियोजना में वास्तव में कितने फ्लैट उपलब्ध हैं।
दिल्ली-एनसीआर के निर्माणाधीन मकानों में से लगभग आधे का निर्माण वर्ष 2014 के अंत या 2015 के आरंभ में पूरा होने की उम्मीद है। दरअसल 2010 में शुरू होने वाली काफी परियोजनाएँ देरी से चल रही हैं। बढ़ती निर्माण लागत और पूँजी की कमी से निर्माण कंपनियों पर दबाव बना हुआ है। परियोजनाओं में देरी से उन्हें नकदी के संकट से जूझना पड़ रहा है। वहीं कीमतों मे लगातार वृद्धि और वर्तमान आर्थिक परिदृश्य की वजह से इनकी माँग में कमी आयी है। खरीदारों ने इनसे दूरी बनानी शुरू कर दी है।
ब्याज दरों में कमी की उम्मीद भी इस बाजार पर अपना असर डाल रही है। इसका असर एक तरफ ग्राहकों पर इस रूप में है कि वे मकान खरीदने के लिए दरें घटने का इंतजार करना चाहते हैं। दूसरी ओर निर्माण कंपनियाँ इस आस में बैठी हैं कि ब्याज दरें घटने पर माँग बढऩी शुरू हो जायेगी। इसीलिए माँग में मौजूदा सुस्ती के बावजूद कीमतें घटा कर माँग बढ़ाने की रणनीति पर ध्यान नहीं दे रही हैं। लेकिन कई शेयर ब्रोकिंग फर्मों के रियल एस्टेट विश्लेषक मानते हैं कि कीमतें जब तक 20-25% घटेंगी नहीं, तब तक खरीदारों की रुचि नहीं लौटेगी।
किस जगह कितने बढ़े दाम
कमजोर विकास दर और प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों के बावजूद वर्ष 2013 की पहली तिमाही में भारतीय में जमीन-जायदाद की कीमतों में बढ़ोतरी का रुझान जारी है। कीमतों के इस रुझान पर 99एकर्स ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत के प्रमुख सात शहरों में से दिल्ली-एनसीआर और कोलकाता में पूँजीगत मूल्य यानी मकान की कीमत में वृद्धि की दर सबसे अधिक रही है। जनवरी-मार्च 2012 तिमाही के मुकाबले जनवरी-मार्च 2013 में दिल्ली-एनसीआर में 20% और कोलकाता में 17% की मूल्यवृद्धि हुई है। दिल्ली-एनसीआर के बाजार में कुछ समय से मजबूती बनी रही है।
अन्य विश्लेषणों के विपरीत 99एकर्स की रिपोर्ट बढ़ती माँग को भी कीमतें बढऩे का एक कारण बताती है। इसका कहना है कि कम आपूर्ति और बढ़ती माँग की वजह से कीमतों में तेजी का रुझान जारी रहने की उम्मीद है। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 की पहली तिमाही की तुलना में 2013 की पहली तिमाही के दौरान मुंबई, बेंगलूरु, पुणे और हैदराबाद में भी मकानों की कीमतें 12% से 15% तक बढ़ी हैं।
दिल्ली-एनसीआर: गुडग़ाँव का बाजार ज्यादा गर्म
यह रिपोर्ट बताती है कि साल भर पहले की तुलना में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के ज्यादातर इलाकों में कीमतें बढ़ी हैं, जिनमें सबसे ज्यादा वृद्धि गुडग़ाँव के सेक्टर-112 में हुई है। पिछले साल की पहली तिमाही से इस साल की पहली तिमाही में सेक्टर 112 में दाम 73% बढ़ गये।
दिल्ली : दिल्ली के अंदर वसुंधरा एन्क्लेव और द्वारका के सेक्टर-13 में सबसे ज्यादा कीमतें बढ़ी हैं। वसुंधरा एन्क्लेव में लगभग 28% और द्वारका सेक्टर-13 में 25% की मूल्यवृद्धि हुई। इसी दौरान रोहिणी, पटपडग़ंज और द्वारका सेक्टर-14 में कीमतें लगभग 22% बढ़ी हैं, जबकि अधिकांश अन्य इलाकों में कीमतों में 4% से 19% के दायरे में इजाफा हुआ है। दूसरी तरफ दक्षिणी दिल्ली के कुछ इलाकों में कीमतें 6% से 8% तक घटी भी हैं। साकेत, वसंत विहार और ग्रेटर कैलाश इस तरह के इलाके हैं।
गुडग़ाँव : गुडग़ाँव का सेक्टर 112 में पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सबसे ज्यादा मूल्यवृद्धि वाला क्षेत्र रहा, जहाँ इस वर्ष की पहली तिमाही में करीब 73% की मूल्यवृद्धि देखी। गुडग़ाँव में सेक्टर 62, सेक्टर 47 और सेक्टर 85 ऐसे क्षेत्र रहे, जहाँ कीमतें 40% से अधिक बढ़ी हैं।
नोएडा : यातायात संपर्क सुधरने से इस क्षेत्र में कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले एक साल में नोएडा के सेक्टर 104 में कीमतें 40% से अधिक बढ़ी हैं। नोएडा के ज्यादातर अन्य इलाकों में भी कीमते बढ़ी हैं।
ग्रेटर नोएडा : इसके सेक्टर 1 में सबसे अधिक लगभग 25% कीमतें बढ़ी हैं। राजनैतिक परिदृश्य में बदलाव से ग्रेटर नोएडा के विभिन्न इलाकों में वृद्धि दर सुस्त रही है।
गाजियाबाद : क्रॉसिंग रिपब्लिक, एनएच-58 और अंकुर विहार में 40% से अधिक कीमतें बढ़ी हैं। इसी दौरान राजनगर एक्सटेंशन, शालीमार गार्डन और वसुंधरा में कीमतों में 30% से अधिक का इजाफा हुआ है।
फरीदाबाद : पिछले साल भर में फरीदाबाद के लगभग सभी प्रमुख इलाकों में 30% से अघिक कीमतें बढ़ी हैं, जिनमें सेक्टर-76 में सबसे अधिक लगभग 47% तक दाम बढ़ गये।
मुंबई : उपनगरों में ज्यादा बढ़े दाम
मुंबई के वर्ली और बांद्रा जैसे इलाकों में संपत्ति की प्रति वर्गफुट कीमतें देश में सबसे अधिक हैं। लेकिन साल भर में इस महानगर में औसतन पूँजीगत मूल्यवृद्धि लगभग 15% रही है। लेकिन इसके उपनगरों का बाजार ज्यादा गर्म है। नवी मुंबई के न्यू पनवेल में कीमतें सबसे अधिक लगभग 44% बढ़ी हैं।
दक्षिण और दक्षिण पश्चिम मुंबई : यहाँ साल भर से खार में सबसे अधिक लगभग 27% कीमते बढ़ी हैं। सातांक्रूज (पूर्व) और जूहू में जनवरी-मार्च 2012 की तुलना में जनवरी-मार्च 2013 में लगभग 22% कीमते बढ़ी हैं।
मीरा रोड और उसके आसपास : जनवरी-मार्च 2013 के मुकाबले जनवरी-मार्च 2013 में इस क्षेत्र के ज्यादातर इलाकों में कीमतें 10% से अधिक बढ़ी हैं। भयंदर (पूर्व) और बेवरली पार्क में कीमत में 20% से अधिक इजाफा हुआ है।
नवी मुंबई : मुंबई में सबसे अधिक कीमतों में मूल्यवृद्धि नवी मुंबई क्षेत्र में हुई है। पिछले साल भर में न्यू पनवेल में कीमतों में लगभग 44% की वृद्धि हुई। पाम बीच में 28% और पनवेल में करीब 23% वृद्धि हुई। नवी मुंबई के लगभग सभी स्थानों में कीमतें 10% से ज्यादा ही बढ़ी हैं।
ठाणे और आसपास : इस क्षेत्र में हीरानंदानी मेडोज, ठाणे (पश्चिम), डोंबिली (पूर्व) और वाघबिल में कीमतों में 25% से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
अंधेरी दहीसर : कांदिवली (पूर्व) लोखंडवाला, बोरीवली (पूर्व) और अंधेरी (पश्चिम) में कीमतें 15% से अधिक बढ़ी हैं।
मध्य मुंबई उपनगर : यहाँ पिछले साल मुलुंड (पूर्व) में कीमतों में सबसे अधिक लगभग 28% का इजाफा हुआ है।
बाजार में 15-20% हिस्सा तो कारोबारियों का है। अगर मुझे नोएडा में एकदम तैयार घर चाहिए, मेरे सामने फोन करिए डेवलपरों को और देखिए कितनों के पास ऐसा घर बिक्री के लिए है।
- डॉ. अनिल कुमार शर्मा, सीएमडी, आम्रपाली समूह
असली खरीदार बाजार में काफी कम हो चुके हैं। निवेशकों को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि देने के लिए ही निर्माण कंपनियाँ दाम बढ़ाये जा रही हैं और माँग घटने के बावजूद दाम नहीं घटा रही हैं।
- संजय शर्मा, एमडी, क्यूबरेक्स
(निवेश मंथन, मई 2013)

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