Nivesh Manthan
Menu
  • Home
  • About Us
  • ई-पत्रिका
  • Blog
  • Home/
  • 2016/
  • जुलाई 2016/
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
Follow @niveshmanthan

रिलायंस : लागा चुनरी में दाग

Details
Category: मई 2013

सेबी ने माना भेदिया कारोबार का दोषी

भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए 11 करोड़ रुपये की रकम शायद चुटकी भर हो, लेकिन अगर यह रकम सेबी की ओर से भेदिया कारोबार (इनसाइडर ट्रेडिंग) के दोष में लगे जुर्माने की हो तो इसका दाग बड़ा हो जाता है। मसला इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईपीसीएल) से जुड़ा है, जिसे रिलायंस ने सरकार की विनिवेश प्रक्रिया के तहत मई 2002 में प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये खरीदा था। रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस पेट्रो इन्वेस्टमेंट्स (आरपीआईएल) ने 27 फरवरी 2007 से दो मार्च 2007 के दौरान आईपीसीएल के 21.33 लाख शेयर 55.51 करोड़ रुपये में 259.42 रुपये के औसत भाव पर खरीदे। आरोप लगा कि आरपीआईएल ने आईपीसीएल की दो महत्वपूर्ण घोषणाओं से पहले यह खरीदारी की, लिहाजा यह भेदिया कारोबार था। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने दो मई 2013 को अपने फैसले में आरपीआईएल को इस भेदिया कारोबार के जरिये अनुचित लाभ कमाने का दोषी ठहराया है और इसके लिए उस पर 11 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।
आईपीसीएल ने दो मार्च 2007 को अंतरिम लाभांश (डिविडेंड) पर निदेशक बोर्ड में विचार किये जाने की घोषणा की थी। इसके बाद सात मार्च 2007 को इसने ऐलान किया कि बोर्ड की बैठक में कंपनी का विलय रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में किये जाने पर भी विचार होगा।
रिलायंस इंडस्ट्रीज, आरपीआईएल और आईपीसीएल का आपसी संबंध जगजाहिर था। लेकिन सेबी ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो उसके सामने सबसे पहला कानूनी प्रश्न यह था कि क्या आरपीआईएल को इनसाइडर यानी अंदर की जानकारी रखने वाले के तौर पर देखा जाये? आईपीसीएल और आरपीआईएल का संबंध कई ढंग से जोड़ा गया। रिलायंस इंडस्ट्रीज के भी सीएमडी मुकेश अंबानी आईपीसीएल के भी चेयरमैन थे। आरपीआईएल के पास आईपीसीएल के एक तिहाई से ज्यादा शेयर थे। आरपीआईएल का पूरा स्वामित्व होल्डिंग कंपनियों के जरिये रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास था। लिहाजा आईपीसीएल और आरपीआईएल को सेबी ने एक ही प्रबंधन के अधीन माना।
आरपीआईएल ने नवंबर 2011 में सेबी के सामने सहमति आवेदन (कंसेंट ऐप्लिकेशन) दाखिल किया। सहमति आदेश में सेबी की ओर से एक शुल्क तो लगाया जाता है, लेकिन उस शुल्क को जुर्माना नहीं कहा जाता और दोषी भी नहीं ठहराया जाता है। सेबी ने नवंबर 2012 में सहमति आवेदन को खारिज कर दिया।
सुनवाई के दौरान आरपीआईएल ने सेबी के सामने दलील रखी कि भले ही आरआईएल ने विनिवेश के समय आईपीसीएल को खरीदने के उद्देश्य से आरपीआईएल का गठन किया था, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि अंतरिम लाभांश और विलय की घोषणाएँ सार्वजनिक होने से पहले उसे इनकी जानकारी थी। कहा गया कि जब आरआईएल ने उसके जरिये आईपीसीएल का अधिग्रहण किया तो यह स्वाभाविक ही है कि आगे भी आईपीसीएल के शेयरों के क्रमिक अधिग्रहण (क्रीपिंग एक्विजिशन) के लिए पूँजी आरआईएल ही उपलब्ध करायेगी। इससे साबित नहीं होता कि उसे लाभांश और विलय के बारे में अंदरुनी जानकारी थी। दावा किया गया कि आईपीसीएल के शेयर खरीदने के ऑर्डर देने वाले रिलायंस कर्मचारी अशोक सी जैन को घोषणाओं की पहले से जानकारी नहीं थी।
सेबी ने इस तथ्य पर गौर किया कि आरपीआईएल की पूरी हिस्सेदारी आरआईएल के स्वामित्व में थी। साल 2005-06 के लिए आरआईएल की सालाना रिपोर्ट में भी आरपीआईएल को सहयोगी कंपनियों और साझेदारियों की सूची में रखा गया था। आईपीसीएल के शेयरों को खरीदने के लिए जिस आरवीएल से पूँजी मिली थी, वही आरवीएल दरअसल आरपीआईएल के 50त्न शेयरों की स्वामी भी थी। आरपीआईएल के पास आईपीसीएल के 45.78त्न शेयर थे और वह इसकी सबसे बड़ी शेयरधारक थी। इन सब तथ्यों के मद्देनजर सेबी ने माना कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास आरपीआईएल का नियंत्रण था और आरपीआईएल के जरिये उसका आईपीसीएल पर भी नियंत्रण था। लिहाजा आईपीसीएल और आरपीआईएल एक ही प्रबंधन के अधीन थीं।
सेबी के मुताबिक आईपीसीएल के शेयरों के इस भेदिया कारोबार से आरपीआईएल ने लगभग 3.83 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। इस बात के मद्देनजर सेबी ने इसे 11 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया।
सेबी के फैसले के बाद रिलायंस ने इस बारे में न तो मीडिया में कोई टिप्पणी की है और न ही स्टॉक एक्सचेंजों को कोई बयान भेजा है। निवेश मंथन ने भी रिलायंस से उसकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, लेकिन ये पंक्तियाँ लिखे जाने तक कंपनी का जवाब नहीं मिला है।
(निवेश मंथन, मई 2013)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
  • निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
  • निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
  • साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
  • भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
  • सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
  • भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
  • बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
  • ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
  • 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
  • रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
  • साल भर में नया शिखर
7 Empire

अर्थव्यवस्था

  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) : भविष्य के अनुमान
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीती तिमाहियों में
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीते वर्षों में

बाजार के जानकारों से पूछें अपने सवाल

सोशल मीडिया पर

Additionaly, you are welcome to connect with us on the following Social Media sites.

  • Like us on Facebook
  • Follow us on Twitter
  • YouTube Channel
  • Connect on Linkedin

Download Magzine

    Overview
  • 2023
  • 2016
    • July 2016
    • February 2016
  • 2014
    • January

बातचीत

© 2025 Nivesh Manthan

  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
Go Top