Nivesh Manthan
Menu
  • Home
  • About Us
  • ई-पत्रिका
  • Blog
  • Home/
  • Niveshmanthan
Follow @niveshmanthan

आरकॉम : सातवीं कमजोर तिमाही

Details
Category: अगस्त 2011

बाजार में शायद ही कोई व्यक्ति कंपनी के नतीजे अच्छे रहने की उम्मीद कर रहा हो। लेकिन इसके नतीजों ने नाउम्मीद बाजार को भी झटका दे दिया। इसका 2010-11 की चौथी तिमाही का मुनाफा सीधे 86% घट कर 168.6 करोड़ रुपये रह गया।

Read more...

टीसीएस : बाजार का बढ़ता भरोसा

Details
Category: अगस्त 2011

इन तिमाही नतीजों में इन्फोसिस से बाजार जितना निराश हुआ, टीसीएस से उसे उतना ही भरोसा मिला। सूचना तकनीक (आईटी) क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कंपनी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) का कंसोलिडेटेड मुनाफा तिमाही-दर-तिमाही आधार पर 2370 करोड़ रुपये से 10.7% बढ़ कर 2623 करोड़ रुपये हो गया।

Read more...

आईसीआईसीआई बैंक : हर कसौटी पर खरे नतीजे

Details
Category: अगस्त 2011

कारोबारी साल 2010-11 की चौथी तिमाही में बैंक का कंसोलिडेटेड मुनाफा 1,568 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 1,342 करोड़ रुपये था। इस तरह मुनाफे में 16.8% की बढ़ोतरी हुई।

Read more...

कैर्न इंडिया : अच्छे नतीजों पर भारी पड़ा रॉयल्टी का मुद्दा

Details
Category: अगस्त 2011

कारोबारी साल 2010-11 की चौथी तिमाही में कैर्न इंडिया का कंसोलिडेटेड मुनाफा 902% बढ़ा, मतलब सीधे लगभग दस गुना हो गया। जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में कंपनी का मुनाफा 2457.79 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 245.19 करोड़ रुपये रहा था।

Read more...

एचडीएफसी : मोटा मार्जिन

Details
Category: अगस्त 2011

हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचडीएफसी) का चौथी तिमाही का साल-दर-साल 23.3% बढ़ा।

Read more...

कोल इंडिया : काले हीरे की चमक

Details
Category: अगस्त 2011

यह भारत नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है और इसके तिमाही नतीजे बाजार की उम्मीदों से काफी आगे रहे।

Read more...

अभी आकर्षक है भारतीय बाजार - अभी और गिरने का बुनियादी कारण नहीं

Details
Category: अगस्त 2011

पी एन विजय

बाजार में इस समय काफी घबराहट है, लोग किसी बड़ी गिरावट की आशंका से सहमे हुए हैं। क्या आप ऐसी किसी बड़ी गिरावट का अंदेशा महसूस कर रहे हैं?
—मैं बाजार के इस डर से सहमत हूँ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने इस समय कई बड़े मुद्दे हैं। लेकिन मैं इस डर से सहमत नहीं हूँ कि बाजार यहाँ से काफी
ज्यादा गिर सकता है।

Read more...

निफ्टी 9000 तक छलांग या 3800 का गोता?

Details
Category: अगस्त 2011

राजीव रंजन झा

भारतीय बाजार इस समय कुछ निराश और कुछ डरा-डरा सा है और लोग ऊपर के लक्ष्यों के बदले नीचे के समर्थन स्तरों की ही बातें ज्यादा कर रहे हैं। ऐसे में अगर निफ्टी के 9000 के लक्ष्य की बात की जाये तो कुछ अटपटा ही लगेगा ना! लेकिन शेयर बाजार तो संभावनाओं का ही नाम है। इसलिए जरा इस चार्ट पर नजर डालें, फिर देखते हैं कि 9000 की बात एक संभावना है या खयाली पुलाव।

Read more...

धंधा कुछ मंदा है

Details
Category: अगस्त 2011

शेयर ब्रोकिंग

तकरीबन सभी क्षेत्रों पर पिछले कारोबारी चौथी तिमाही में कम या ज्यादा दबाव दिखा है, लेकिन शेयर ब्रोकिंग कंपनियों पर इस समय दोहरा दबाव दिख रहा है। जो शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियाँ हैं, उनका दबाव तो उनके तिमाही नतीजों में झलक ही रहा है। बाजार के बाकी खिलाड़ी भी बातचीत में उस दबाव का आभास दे देते हैं। हाल में कई ब्रोकिंग फर्मों ने काफी छँटनियाँ भी की हैं। लागत घटाने के लिए उन्होंने अपनी कई शाखाओं को बंद भी किया है। हालाँकि ग्राहकों से बातचीत में उन्हें यही कहा गया कि उनकी शाखा को एक अन्य शाखा के साथ मिला दिया गया है। मगर कुल मिला कर शाखाओं की संख्या में कमी ही इसका मुख्य मकसद रहा है। इस साल फरवरी के बाद से इंडियाबुल्स ने अपनी कई शाखाओं का विलय किया।

Read more...

बोनस शेयर बचा सकते हैं कैपिटल गेन टैक्स से

Details
Category: अगस्त 2011

कर बचत

पूँजीगत लाभ पर कर देनदारी बचाने का एक खास तरीका बता रहे हैं चार्टर्ड एकाउंटेंट महेश गुप्ता।
जब भी आप कोई संपत्ति, जैसे जमीन-जायदाद, सोना-चांदी, पेंटिंग जैसी कला-सामग्री वगैरह बेचते हैं, तो उस पर आपको पूँजीगत लाभ का कर (कैपिटल गेन टैक्स) चुकाना पड़ सकता है। इसी तरह से शेयरों पर 1 साल से कम अवधि में फायदा होने पर छोटी अवधि का पूँजीगत लाभ कर (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैस) देना पड़ता है। लेकिन ऐसे पूँजीगत लाभ की देनदारी से बचा जा सकता है। पर हाँ, उसके लिए आपको शेयर बाजार का सहारा लेना होगा, और यह ध्यान रहे कि शेयर बाजार में किसी भी निवेश पर एक जोखिम तो रहता ही है।
पूँजीगत लाभ के कर से बचने के लिए आप बोनस शेयर का रास्ता चुन सकते हैं। बोनस शेयर किसी कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त मिलता है। अक्सर कंपनियाँ अपने मौजूदा शेयरधारकों को लाभ पहुँचाने और उन्हें खुश करने के लिए बोनस शेयर जारी करती हैं। यह शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों की संख्या के एक तय अनुपात में दिया जाता है। अगर कोई कंपनी 1:1 का अनुपात तय करती है, तो उसका मतलब है कि मौजूदा शेयरधारकों को हर 1 पुराने शेयर पर 1 नया बोनस शेयर मुफ्त मिलेगा। बोनस शेयर जारी करने के लिए एक बुक क्लोजर या रिकॉर्ड तिथि तय की जाती है। मतलब यह कि उस तिथि को जिन शेयरधारकों के पास जितने शेयर होंगे, उसके मुताबिक ही बोनस शेयर दिये जायेंगे।

क्या है बोनस शेयर से
कर बचत का रास्ता?
ऐसे शेयर खरीदें, जिन पर बोनस शेयर जारी होने की घोषणा कर दी गयी है, लेकिन बोनस शेयर देने की रिकॉर्ड तिथि अभी बाकी है।
बोनस शेयर की रिकॉर्ड तिथि बीत जाने पर आपके पास मौजूद शेयरों की संख्या बढ़ जायेगी।
आपको जो नये बोनस शेयर मिले हैं, उनकी लागत शून्य मानी जायेगी।
जो पुराने शेयर हैं, उनकी लागत वही रहेगी, जिस पर आपने उन शेयरों को खरीदा था।
लेकिन बोनस शेयर जारी होने के बाद उस शेयर का बाजार भाव आम तौर पर घट जाता है। यह कमी लगभग उसी अनुपात में होती है, जिस अनुपात में बोनस शेयर जारी होते हैं। मतलब अगर किसी शेयर बाजार भाव बोनस से पहले 100 रुपये था और 1:1 के अनुपात में बोनस जारी किये गये, तो उसका बाजार भाव बोनस के बाद घट कर लगभग 50 रुपये पर आ जायेगा।
इस कमी के चलते आप अपने पुराने शेयरों को बेच कर उन पर घाटा दिखा सकते हैं।
इस घाटे को छोटी अवधि का पूँजीगत घाटा (शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस) माना जायेगा।
इस घाटे से आप दूसरी संपत्ती में हुए पूँजीगत लाभ को काट सकते हैं।
अब आपको जो बोनस शेयर मिले हैं, उन्हें आप कम-से-कम 1 साल तक रखे रहें। इन्हें 1 साल के बाद बेचने पर जो भी रकम मिलेगी, वह आपके लिए लंबी अवधि का पूँजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) होगा, जो पूरी तरह करमुक्त है।

पंकज शर्मा के बच गये 3 लाख रुपये
पंकज शर्मा ने 2 साल पहले 20 लाख रुपये का घर खरीदा और हाल में उसे 30 लाख रुपये में बेचा।
घर बेचने से मिले : 30 लाख रु.
घर की लागत : 20 लाख रु.
पूँजीगत लाभ : 10 लाख रु.
30% कर देनदारी : 3 लाख रु.
देखते हैं कि पंकज ने किस तरह बचाये पूँजीगत लाभ कर के ये 3 लाख रुपये। क ख ग नाम की कंपनी ने 1:1 अनुपात से बोनस शेयर देने का फैसला किया, जिसकी रिकॉर्ड तिथि 20 अप्रैल थी। पंकज ने इसके शेयर रिकॉर्ड तिथि से कुछ पहले ही 15 अप्रैल को खरीद लिये। इसकी खरीद-बिक्री का हिसाब-किताब इस तरह रहा:
बोनस से पहले
खरीदे शेयरों की संख्या : 10,000
बाजार भाव : 200 रु.
कुल लागत : 20 लाख रु.

बोनस के बाद
पुराने शेयरों की संख्या : 10,000
पुराने शेयरों का बाजार भाव : 100 रु.
बेचने पर मिली राशि : 10 लाख रु.
पुराने शेयरों पर घाटा : 10 लाख रु.
घर बेचने से हुए पूँजीगत लाभ और पुराने शेयरों पर पूँजीगत घाटे का अंतर शून्य है। इसलिए कोई कर देनदारी नहीं बनेगी। बोनस के रूप में जो 10,000 शेयर मिले, उन्हें पंकज कम-से-कम 1 साल तक अपने पास रखेंगे। उसके बाद बेचने पर उस समय के बाजार भाव के हिसाब से उन्हें चाहे जितनी भी रकम मिलेगी, वह लंबी अवधि का पूँजीगत लाभ मानी जायेगी, जिस पर कोई कर देनदारी नहीं बनेगी। लेकिन इन बोनस शेयरों पर उन्हें शेयर बाजार का जोखिम जरूर उठाना पड़ेगा, क्योंकि शेयर बाजार में भाव आगे चल कर बढ़ भी सकते हैं और घट भी सकते हैं।
(निवेश मंथन, अगस्त 2016)

इस साल आमदनी 25% से ज्यादा बढऩे की उम्मीद

Details
Category: अगस्त 2011

गोविंद श्रीखंडे

आपके कंसोलिडेटेड तिमाही नतीजों में आमदनी काफी बढ़ी है, लेकिन मुनाफे पर दबाव दिखा है। ऐसा किस वजह से हुआ?
—आपको हमारे नतीजे दो हिस्सों में देखने चाहिए - एक तो शॉपर्स स्टॉप के स्टैंडअलोन नतीजे जिनसे शॉपर्स स्टॉप के डिपार्टमेंट स्टोर का प्रदर्शन पता चलता है, और दूसरे हमारे कंसोलिडेटेड नतीजे जिनमें हाइपर सिटी के आँकड़े पहली बार जुडऩे का असर दिखता है। पिछले साल की पहली तिमाही तक हाइपर सिटी के आँकड़े हमारे नतीजों में नहीं जुड़े थे। दूसरी तिमाही से हाइपर सिटी के आँकड़े भी जुडऩे लगे, जिससे कंसोलिडेटेड नतीजों में कुल आमदनी में उछाल दिखती है। लेकिन हाइपर सिटी अभी घाटे में ही चल रही है, इसलिए कंसोलिडेटेड मुनाफे पर उसका असर तिमाही और सालाना दोनों नतीजों में दिखा है।

आगे आप शॉपर्स स्टॉप के डिपार्टमेंट स्टोर और हाइपर सिटी में किस पर कितना जोर देंगे?
—हाइपर सिटी स्टोर के स्तर पर बीती तिमाही में घाटे से उबरती दिख रही है। लेकिन कंपनी के स्तर पर यह अब भी घाटे में है। हमारा लक्ष्य है कि अगले 24 महीनों में कंपनी के स्तर पर भी हाइपर सिटी का एबिटा यानी कामकाजी लाभ सकारात्मक हो सके। अभी कामकाजी घाटा (एबिटा लॉस) करीब 30 करोड़ रुपये का है, उसे हम 24 महीनों में शून्य पर ले जाना चाहते हैं। अगर शुद्ध लाभ की बात करें तो हम इसे 30 महीनों में मुनाफे में लाने का लक्ष्य रख रहे हैं।
इसके लिए सबसे पहले तो हम इसका मार्जिन मौजूदा 20.2% से बढ़ा कर 22% के स्तर पर ले जायेंगे। दूसरे, हम इसके स्टोर की संख्या बढ़ायेंगे, जिससे लागत में कमी आये। अभी हाइपर सिटी के 10 स्टोर हैं। हर साल 3 नये स्टोर खोल कर हम इसकी संख्या 19 पर ले जायेंगे। तीसरे हम हर स्टोर की उत्पादकता में सुधार लाने की कोशिश करेंगे।
शॉपर्स स्टॉप अच्छे मुनाफे में चल रही है। इस साल मार्च से मई तक हमने तीन नये स्टोर शुरू किये। अभी हमारे 41 स्टोर हैं और हमारा लक्ष्य इस साल इसके 10 नये स्टोर खोलने का है। अगले 36 महीनों में इसके स्टोर की संख्या लगभग 70 हो जायेगी। अभी हमारी मौजूदगी 18 शहरों में है, जिसे हम बढ़ा कर 25 शहरों तक ले जाना चाहते हैं। हालाँकि जो पहली श्रेणी के शहरों यानी मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलूरु और चेन्नई का इसकी बिक्री में योगदान 75% से ज्यादा बना रहेगा।
तो क्या आप हाइपर सिटी को एक अलग कंपनी की तरह बनाये रखना चाहेंगे?
—इसका प्रबंधन एक अलग ब्रांड की तरह होता रहेगा। अभी इसका सारा हिसाब-किताब अलग रख कर इसके नतीजे अलग से दिखा रहे हैं। अभी हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम हाइपर सिटी में हो रही प्रगति के बारे में बाजार को अलग से बतायें। जब यह फायदे में आ जायेगी, तब हम सोचेंगे कि कैसे एकीकरण करना है और क्या इसकी 100% हिस्सेदारी खरीदनी है। इसमें हमारी हिस्सेदारी 51% और प्रमोटरों की हिस्सेदारी 49% है। शॉपर्स स्टॉप की सूचीबद्ध कंपनी में प्रमोटर हिस्सेदारी 68% से ज्यादा है। इसलिए हम कब इन दोनों का एकीकरण करेंगे, यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।
लेकिन कामकाजी स्तर पर दोनों में किस तरह का तालमेल रहेगा?
—आईटी, वित्त (फाइनेंस), संपत्ति (प्रॉपर्टी) की खोज वगैरह में तालमेल पहले ही बन चुका है। सामानों की खरीद के मामले में दोनों अलग तरह से काम करेंगे। इसका कारण यह है कि शॉपर्स स्टॉप स्टोर में ब्रांड की प्रमुखता पर जोर है, जबकि हाइपर सिटी में मूल्य पर जोर है। इसलिए दोनों ब्रांडों को अलग तरह से चलाना होगा। मसलन, हाइपर सिटी के ग्राहक हर हफ्ते स्टोर में आते हैं, जबकि शॉपर्स स्टॉप के ग्राहक औसतन महीने में 1 बार आते हैं। हाइपर सिटी में ग्राहक सामानों की कीमत पर ध्यान देते हैं, जबकि शॉपर्स स्टॉप में वे फैशन और अलग अनुभव पर ध्यान देते हैं। एक ही ग्राहक इन दोनों स्टोर में अलग-अलग सोच के साथ जाता है। हमें दोनों ब्रांडों को इस तरह सँभालना है कि लोगों में दोनों को लेकर कोई भ्रम न बने।
आप प्राइवेट लेबल यानी अपने ब्रांड बेचने की रणनीति को इन दोनों में कितना अपनायेंगे?
—शॉपर्स स्टॉप में हमारे प्राइवेट लेबल की बिक्री करीब 18% है और हम उसी स्तर पर बनाये रखना चाहेंगे। हाइपर सिटी में प्राइवेट लेबल का हिस्सा 22% है और हम इसे बढ़ा कर 24-25% करना चाहते हैं।
कारोबारी साल 2011-12 में आप आमदनी और मुनाफे में किस तरह की बढ़त देख रहे हैं?
—अगर पहले से चल रहे स्टोर को देखें तो हम उनकी बिक्री में ऊँचे इकाई अंक (हाई सिंगल डिजिट) की बढ़त की उम्मीद कर रहे हैं। नये स्टोर से 18-30% तक की बढ़त मिल सकेगी। इस तरह कुल आमदनी में 25% से ज्यादा बढ़त की उम्मीद है। कामकाजी मुनाफे (एबिटा) को हम 8% के स्तर पर रखने का लक्ष्य ले कर चल रहे हैं। यह कोई अनुमान (गाइडेंस) नहीं है, बल्कि यह हमारा लक्ष्य है और हमें लगता है कि हम उसे हासिल कर सकेंगे।
हाल में महँगाई दर लगातार ऊँची रहने से आपकी लागत पर कितना दबाव रहा है?
—हमारी लागत लगातार बढ़ रही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि ग्राहकों की धारणा सकारात्मक बनी हुई है। आने वाले ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अगर पहले से चल रहे स्टोर की बिक्री देखें तो उसमें भी बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए बिक्री की मात्रा पर कुछ असर हो सकता है, लेकिन कुल मिला कर बिक्री बढ़ती रहेगी।
पर इससे मार्जिन पर कितना दबाव आ रहा है?
—मार्जिन पर दबाव नहीं है, क्योंकि हमने कई चीजों को नये सिरे से ढाला है, जैसे ट्रेडिंग मॉडल, किराये के लिए आमदनी में साझेदारी, कामकाजी लागत में कमी वगैरह। इन सबसे हमें मार्जिन अच्छा बनाये रखने में मदद मिली है।
रिटेल क्षेत्र पर भी अर्थव्यवस्था के धीमेपन का असर पड़ा और अब यह उससे उबरता दिख रहा है। इस पूरे चक्र में आपने अपनी रणनीतियों को किस तरह बदला?
—जब धीमेपन का असर शुरू हुआ, उस समय इस क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियों के कारोबारी मॉडल में ज्यादा फर्क नहीं था। जब धीमेपन के दौरान पहले से चल रहे स्टोर की बिक्री घटने लगी तो हमने अपने पूरे मॉडल की समीक्षा की। हमने तीन पहलुओं पर काम किया, जिनमें पहला था माल का भंडार (स्टॉक)। कई रिटेल कंपनियों के बंद होने का कारण ही यही रहा कि उनके पास चीजों का जरूरत से ज्यादा भंडार था या कम भंडार था या सही कीमत पर या सही गुणवत्ता का माल नहीं था।
हमने अपने मॉडल को सुधारा। पहले हमारे पास 60% चीजें पहले से खरीदी हुई होती थीं। हमने इसका स्तर 45% किया। इससे हमने अपने भंडार का जोखिम घटाया। फिर हमने अपने इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ईआरपी) के जरिये इस बात पर जोर दिया कि बिक गये सामान की जगह नया सामान कितनी जल्दी पहुँच सकता है। इससे यह फायदा मिलता है कि सही सामान की कमी के चलते आपको कोई बिक्री गँवानी नहीं पड़ती।
दूसरे, हमने नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) पर ध्यान दिया और हर स्टोर पर इसे सकारात्मक रखने की कोशिश की। इससे हमें ज्यादा स्टोर खोलने में मदद मिली। जब आपके हाथ में नकदी होती है तो उधारी और ब्याज का खर्च घटता है और आपका कर्ज-इक्विटी अनुपात ठीक रहता है। अब हमारा कर्ज- इक्विटी अनुपात घट कर 2 पर आ गया है।
तीसरी बात, उस समय किराये आसमान छू गये थे। धीमेपन के दौरान हमने किरायों पर फिर से बातचीत की और कई संपत्ति को आय में साझेदारी (रेवेन्यू शेयरिंग) के आधार पर रखा, क्योंकि वह हमारे और जगह के मालिक दोनों के लिए फायदेमंद था। ऐसा करने से किराये पर हमारा खर्च 10.8% से घट कर 9.8% पर आ गया। लागत के मोर्चे पर हमने बिजली की खपत घटायी और कर्मचारी खर्च में कमी की। इन सबसे हमने अपनी लागत पर नियंत्रण किया।
आर्थिक धीमेपन से पहले और बाद के रिटेल क्षेत्र में सबसे खास फर्क आप क्या देखते हैं?
—मुख्य रूप से दो बातें साफ दिखती हैं। धीमेपन से पहले लोगों का ध्यान कारोबार की असली कीमत के बदले उसे मिलने वाले मूल्यांकन पर काफी ज्यादा हो गया था। अब लोग मूल्यांकन के पीछे भागने के बदले कारोबार की असली कीमत को समझ रहे हैं। दूसरी बात, जो छोटे खिलाड़ी बस खुद को रिटेल कंपनी बता कर केवल आईपीओ लाने के खेल में लगे थे, लेकिन न ईआरपी था, न कोई बैकअप था और न ही पेशेवर प्रबंधन था, वे सब निपट गये या बंद हो गये। अब जो लोग इस बाजार में बचे हैं, वे यहाँ लंबे समय के लिए हैं। बड़ों और बच्चों का फर्क साफ दिखने लगा है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2016)

आखिर क्या है तकनीकी विश्लेषण?

Details
Category: अगस्त 2011

सुनील मिंगलानी, तकनीकी विश्लेषक:

पैसे की पाठशाला

अक्सर लोग शेयर बाजार से डरते हैं, लेकिन वास्तव में हर वह काम खतरनाक है जिसे आपको करना नहीं आता। अगर आपने कार चलाना नहीं सीखा और कार चलाने लगे तो क्या होगा? जब आप किसी भी ऐसे कारोबार में पैसा लगाते हैं, जिसकी आपको अच्छी जानकारी नहीं है, तो आप अपनी सारी पूँजी गँवा सकते हैं। 

Read more...

  1. क्या हफ्ते भर का पैसा नहीं स्पीक एशिया के पास?
  2. किस्से कम नहीं
  3. लाखों की नौकरी मिलेगी, बस जरा पत्तियाँ...
  4. सीधी बिक्री में मिला सफलता का नया मंत्र

Subcategories

2011 127

ई-पत्रिका 23

Page 9 of 13

  • Start
  • Prev
  • ...
  • 5
  • 6
  • 7
  • 8
  • 9
  • ...
  • 11
  • 12
  • 13
  • Next
  • End
7 Empire

अर्थव्यवस्था

  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) : भविष्य के अनुमान
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीती तिमाहियों में
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीते वर्षों में

बाजार के जानकारों से पूछें अपने सवाल

सोशल मीडिया पर

Additionaly, you are welcome to connect with us on the following Social Media sites.

  • Like us on Facebook
  • Follow us on Twitter
  • YouTube Channel
  • Connect on Linkedin

Download Magzine

    Overview
  • 2023
  • 2016
    • July 2016
    • February 2016
  • 2014
    • January

बातचीत

© 2025 Nivesh Manthan

  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
Go Top