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- Category: दिसंबर 2016
संदीप त्रिपाठी :
‘आज रात 12 बजे के बाद 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।’ मंगलवार, 8 नवंबर, 2016 की शाम सवा आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम प्रसारण में यह बात कही तो मानो पूरे भारत में भूचाल आ गया। आम जनता जहाँ एटीएम पर लाइन लगा कर 400 रुपये निकालने के लिए अकुलाई दिखी, वहीं एक वर्ग ऐसा भी था जो अलग ही तरह के खेल में लिप्त हो गया। यह खेल था काले धन को बचाने का खेल।
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प्रणव :
सवा अरब की आबादी वाले देश की वित्तीय प्रणाली में 86 फीसदी नकदी के रूप में मौजूद 500 और 1,000 रुपये के नोट को बदलना बैंकिंग प्रणाली के लिए यकीनन दुरूह चुनौती थी। प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद लोगों में खलबली मचना स्वाभाविक था। ऐसे में आठ नवंबर को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद जब 10 नवंबर को बैंक खुले तो एकाएक यही लगा कि पूरा देश बैंकों के सामने कतार में खड़ा हो गया है।
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संदीप त्रिपाठी :
संकट का समय रिश्तों की पहचान कराता है। नोटबंदी ने एक बार फिर साबित किया कि हिंदुस्तान में इंसानियत और सहयोग की भावना शेष है, रिश्ते हैं, भावनाएँ हैं, भाईचारा है। नोटबंदी ने अचानक उस आदमी को भी कंगाल बना दिया जिसकी जेब में 500-500 रुपये के नोटों की शक्ल में 10-20 हजार रुपये भी पड़े हुए थे। रुपये हैं लेकिन चलेंगे नहीं, खायेंगे क्या, पीयेंगे क्या? बैंक बंद, एटीएम बंद, दो दिन बाद खुलेंगे तो नोट बदले जायेंगे, पैसे निकल पायेंगे। लेकिन पैसे तो सबको चाहिए, भीड़ जबरदस्त होगी, किसके निकल पायेंगे, किसके नहीं निकल पायेंगे, कब तक नहीं निकल पायेंगे, कोई नहीं जानता था।
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नोटबंदी लागू होने के बाद एक सेठ जी ने क्या-क्या जतन नहीं किये, पर लक्ष्मी जी तो उनसे रूठ ही गयीं। लक्ष्मी जी ने अंत में क्या बताया उनको रूठने का कारण?
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संदीप त्रिपाठी :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों की बंदी की घोषणा कर दी। राजनीतिक विरोधियों ने पहले तो प्रधानमंत्री के इस कदम के उद्देश्य का समर्थन किया, और फिर इसके तरीके और जनता की परेशानी की आड़ में विरोध शुरू कर दिया। आम जनता %प्रतीक्षा करो और निगरानी रखो’ के मूड में दिखी। 28 नवंबर को तथाकथित %भारत बंद’ के विपक्ष के आह्वान का हस्र साफ संकेत देता है कि जनता अपने नाम पर किसी को सियासी खेल खेलने देने की अनुमति देने के पक्ष में नहीं है।
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राजेश रपरिया :
मोदी सरकार का दावा है कि विमुद्रीकरण के क्रांतिकारी फैसले से विकास दर में इजाफा होगा। ब्याज दरों के गिरने से माँग में वृद्धि होगी, जिससे पूँजी निवेश को जोरदार प्रोत्साहन मिलेगा। निस्संदेह तुरंत ऐसा लगा भी। देश के सबसे बड़े व्यावसायिक बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सावधि जमाओं पर ब्याज दरें घटा दी। कुछेक अन्य बैंकों ने भी ऐसा किया। तब लगा कि कर्जों की ब्याज दरें भी नीचे आयेंगी और ब्याज दरें कम होने से कर्ज वृद्धि दर में उछाल आयेगी। बैंकों के साथ ही अर्थव्यवस्था की गाड़ी सरपट दौडऩे लगेगी।
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राजेश रपरिया :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले से कई उद्योगों के हौसले पस्त हैं। पर म्यूचुअल फंड उद्योग की खुशी का ठिकाना नहीं है। सरकारी आकलन है कि इस फैसले से 10 लाख करोड़ रुपये की नकदी बैंकों में बढ़ेगी। म्यूचुल फंड उद्योग को उम्मीद है कि इसका एक बड़ा हिस्सा उसके खाते में आयेगा।
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ब्याज दरों में गिरावट का क्रम शुरू हो गया है और वित्तीय सलाहकार निवेशकों को इससे संबंधित सलाह देने में जुट गये हैं और कई तरह के निवेश विकल्पों की सलाह दे रहे हैं। लक्ष्य है पोर्टफोलिओ में ऐसा बदलाव ताकि इस गिरावट का अधिकतम फायदा उठाया जा सके। लेकिन जानकार यह भी कहते हैं कि ब्याज दरों में गिरावट का फायदा उठाने की सोच रहे निवेशक को विकल्पों का चयन करते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए।
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