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‘काले धन पर चोट से बढ़ेगी जीडीपी’

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Category: दिसंबर 2016

राजीव रंजन झा : नोटबंदी के फैसले पर कुछ लोग कह रहे हैं कि लंबी अवधि में यह फायदेमंद रहेगा। दूसरी ओर कुछ लोगों को यह आशंका है कि इससे आर्थिक गतिविधियाँ रुकेंगी। क्या इससे तीसरी और चौथी तिमाही के लिए कंपनियों की आय के आकलन गड़बड़ा नहीं जायेंगे?

डी. डी. शर्मा : दो नंबर का काम अगर कम होता है, वह गतिविधि रुकती है, तो उससे उस उत्पाद या सेवा की माँग कम नहीं होगी। लोगों को उसकी जरूरत तो होगी। महीने दो महीने के लिए थोड़ी रुकावट आ सकती है। पर माँग रहेगी तो वह संगठित और सही तरीके से काम करने वालों की तरफ चली जायेगी। उससे उपभोक्ता की लागत थोड़ी बढ़ेगी, लेकिन साथ-ही-साथ संगठित गतिविधि में जुडऩे के कारण वह जीडीपी में शामिल हो जायेगी।
आपके प्रश्न का सरल उत्तर यही है कि इससे फर्क कुछ नहीं पड़ेगा, पर जो गतिविधि अब तक जीडीपी में पहचानी नहीं जा रही थी, वह अब पहचान में आ जायेगी। अड़चनों वाली एक-दो तिमाहियों की बात छोड़ दें, तो उसके बाद यह चीज सकारात्मक असर डालेगी। जो कच्चे खाते वाली गतिविधियाँ कहीं आँकड़ों में जुड़ नहीं रही थीं और न उन पर सरकार को कर मिल रहा था, जब वे गतिविधियाँ सफेद अर्थव्यवस्था में आ जायेंगी तो कर भी मिलेगा, जीडीपी में भी आँकड़ा बढ़ेगा। इसीलिए हम कहते हैं कि यह लंबी अवधि में सकारात्मक है, इसका कोई नुकसान नहीं हो सकता। ऐसी गतिविधियों में लगे कुछ व्यक्तियों का नुकसान हो सकता है। ऐसे लोगों को आगे से अपना काम सही ढंग से करना पड़ेगा।
राजीव रंजन झा : गौतम, आपने अपने निवेश दर्शन में क्वालिटी यानी गुणवत्ता पर सबसे पहले और सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। जब आप निवेश के लिए कंपनियाँ चुनते हैं, तो किस बात को उनकी गुणवत्ता मानते हैं?
गौतम सिन्हा रॉय : हम किसी कंपनी में अल्पमत शेयरधारक होते हैं। हमें ऐसी कंपनी चाहिए, जो अल्पमत शेयरधारकों का हित ध्यान में रख कर काम करे। अल्पमत शेयरधारकों के लिए मैत्रीपूर्ण वही कंपनी होगी, जिसका कारोबारी मॉडल टिकाऊ होगा। हम कंपनी के वितरकों से बात करेंगे। पता करते हैं कि कहीं चोरी तो नहीं करती। ग्राहकों का फीडबैक महत्वपूर्ण है।
राजीव रंजन झा : अनिरुद्ध, म्यूचुअल फंड चुनने के लिए जितना रिसर्च जरूरी होगा, उससे कम में शायद कोई एक शेयर चुन सकता है। किसी को 400 स्कीमों से चुनाव करना हो तो कैसे करे?
अनिरुद्ध चौधरी : इसका जवाब यही है कि आप कोई सलाहकार रखें। अगर आपके पास खुद विश्लेषण करने क्षमता और जानकारी है और आप लालच एवं भय पर नियंत्रण कर सकते हैं, तो आप आराम से सीधे शेयर में निवेश करें और निवेश बनाये रखें। लेकिन अगर आपको किसी और की जानकारी का लाभ चाहिए, तो म्यूचुअल फंड में आयें।
एक प्रतिभागी : भारत में लोग इक्विटी और म्यूचुअल फंडों में निवेश से हिचकते क्यों हैं?
गौतम सिन्हा रॉय : इसमें कई मुद्दे हैं। भारत में ब्याज दरें विश्व में काफी ऊँची हैं। बैंक से आपको जो ज्यादा ब्याज मिलता है, वह 100% सुरक्षित है। यहाँ 8% ब्याज सामान्य है, जबकि विकसित देशों में शून्य ब्याज दर की स्थिति है। पर एक महत्वपूर्ण आँकड़ा यह है कि पिछले दो-ढाई सालों में इक्विटी म्यूचुअल फंडों में जितने पैसे आये हैं, वो इसके पिछले 10 सालों से ज्यादा हैं। जैसे-जैसे ब्याज दरें घटेंगी, वैसे-वैसे इक्विटी की ओर लोगों का रुझान बढ़ेगा।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)

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