प्रणव :
सवा अरब की आबादी वाले देश की वित्तीय प्रणाली में 86 फीसदी नकदी के रूप में मौजूद 500 और 1,000 रुपये के नोट को बदलना बैंकिंग प्रणाली के लिए यकीनन दुरूह चुनौती थी। प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद लोगों में खलबली मचना स्वाभाविक था। ऐसे में आठ नवंबर को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद जब 10 नवंबर को बैंक खुले तो एकाएक यही लगा कि पूरा देश बैंकों के सामने कतार में खड़ा हो गया है।
जाहिर है कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सेवाएँ मुहैया कराना मुश्किल ही नहीं, बल्कि एक तरह से नामुमकिन ही था।
बहरहाल, तमाम दावों-प्रतिदावों के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह फैसला इससे बेहतर तरीके से अमल में नहीं लाया जा सकता था क्योंकि अगर इसकी तैयारी से लोगों को इसकी भनक पड़ जाती तो फिर नोटबंदी का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
बदलती गयी रणनीति
बढ़ती भीड़ और तल्ख प्रतिक्रियाओं का ही नतीजा था कि सरकार ने इन पर ध्यान देते हुए अपनी रणनीति को उसी हिसाब से बदला। जैसे प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि नोट बदलने के लिए पूरे 50 दिन दिये जायेंगे, लेकिन बैंकों में बढ़ती भीड़ को देखते हुए सरकार ने बाद में 30 दिसंबर की इस मियाद को घटाते हुए 24 नवंबर को ही नोट बदलने पर विराम लगा दिया। इससे पहले नोट बदलवाने के लिए राशि की सीमा भी बदली गयी। पहले तय किया गया था कि 4,000 रुपये तक के नोट बदले जायेंगे। फिर इसे बढ़ा कर 4,500 रुपये कर दिया गया, लेकिन बाद में यह सीमा घटा कर 2,000 रुपये कर दी गयी और फिर रोक ही दिया गया। शुरू में यह भी स्पष्टï नहीं था कि एक व्यक्ति 30 दिसंबर तक कितनी बार अपने पुराने नोट बदलवा सकता है। बैंकों के बाहर बढ़ती कतार को देखते हुए इसे भी सिर्फ एक बार कर दिया गया और नोट बदलवाने के लिए आने वालों की अंगुली पर स्याही भी लगायी जाने लगी।
एटीएम से निकासी के मोर्चे पर भी यही हुआ। पहले एक दिन में अधिकतम 2,000 रुपये और सप्ताह में अधिकतम 10,000 रुपये निकासी की सीमा तय हुई, लेकिन बाद में एटीएम से दैनिक निकासी को बढ़ा कर 2,500 रुपये कर दिया गया। बैंक खाते से निकासी की सीमा भी साप्ताहिक 20,000 रुपये से बढ़ा कर 24,000 रुपये कर दी गयी।
काले धन को खपाने के लिए जन-धन खातों के बेजा इस्तेमाल की खबरों को भी सरकार ने गंभीरता से लिया और उनसे जुड़े नियम बदले। अब जन धन खातों से महीने में 10,000 रुपये ही निकाले जा सकते हैं। बिना केवाईसी वाले जन धन खाताधारक 5,000 रुपये निकाल सकेंगे।
सार्वजनिक एवं आकस्मिक सेवाओं के लिए पहले यही तय किया गया कि वहाँ पुराने नोट सिर्फ 72 घंटों तक ही मान्य होंगे। धीरे-धीरे यह समय-सीमा भी 15 दिसंबर तक बढ़ा दी गयी। लेकिन इस मोर्चे पर भी सहूलियत का दुरुपयोग होते देख पेट्रोल पंप जैसी कुछ जगहों पर इसकी मियाद दो दिसंबर को खत्म कर दी गयी।
क्यों बदली रणनीति
ऐसी काफी खबरें आयीं कि कुछ लोग संगठित रूप से नोट बदलवाने के गोरखधंधे में लग गये हैं और रोजाना बैंकों में आकर भीड़ बढ़ा रहे हैं, जिसके कारण जरूरतमंद लोग बैंक आने से कतरा रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने नोट बदलवाने की मियाद एक बार तय करते हुए स्याही के इस्तेमाल का फैसला किया। इसका अपेक्षित परिणाम भी देखने को मिला और बैंकों के बाहर कतारें कम होती गयीं।
एटीएम मशीनें भी नये नोटों के अनुरूप पुनर्योजित (रिकैलिब्रेट) नहीं थीं, लिहाजा लोगों को दोहरी परेशानी हो रही थी। एक तो सिर्फ 100 रुपये के नोट होने से मशीन के सामने समय ज्यादा लग रहा था, दूसरे मशीन में ज्यादा राशि के नोट नहीं आ पा रहे थे। फिर 500 और 2,000 रुपये के नये नोटों के अनुरूप एटीएम मशीनों के पुनर्योजन ने इस समस्या का भी कुछ हद तक निदान निकाला, क्योंकि अब कम नोटों में उतनी ही राशि निकलने लगी और मशीन में ज्यादा राशि के नोट लगने लगे।
किसानों को हो रही परेशानी को देखते हुए सहकारी बैंकों को 21,000 करोड़ रुपये जारी करने के निर्देश दिये गये। इसी तरह शादी के मामले में एक खाते से 2.5 लाख रुपये तक की निकासी को मंजूरी दी गई। हालाँकि इस निकासी के लिए प्रावधान जरूर सख्त हैं। शुरू में यह भी स्पष्ट नहीं था कि इसमें कितने खातों से 2.5 लाख रुपये की निकासी हो सकती है। फिर यह स्पष्ट हुआ कि माता या पिता में किसी एक के खाते से ये 2.5 लाख रुपये निकाले जा सकते हैं।
सरकार के रणनीतिकार बार-बार नियम बदले जाने से आम जनों को परेशानी होने की बात तो स्वीकार करते हैं, लेकिन कहते हैं कि नोटबंदी की आड़ में काले धन को सफेद बनाने वालों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
इस बीच सरकार ने आयकर (संशोधन) विधेयक पारित करा कर काले धन की घोषणा करने वालों को एक और अवसर दिया है। इसमें सरकार 50% कर वसूलने के साथ उस राशि का 25% हिस्सा चार साल के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में रखेगी। इसमें जमाकर्ता को उस राशि पर चार साल के जमा के लिए किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जायेगा।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)