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उद्योगों के हौसले पस्त, म्यूचुअल फंड उद्योग को खुशी

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Category: दिसंबर 2016

राजेश रपरिया :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले से कई उद्योगों के हौसले पस्त हैं। पर म्यूचुअल फंड उद्योग की खुशी का ठिकाना नहीं है। सरकारी आकलन है कि इस फैसले से 10 लाख करोड़ रुपये की नकदी बैंकों में बढ़ेगी। म्यूचुल फंड उद्योग को उम्मीद है कि इसका एक बड़ा हिस्सा उसके खाते में आयेगा।

इस उद्योग के तमाम प्रतिनिधियों की ओर से मीडिया में आये बयान इस उद्योग की उम्मीदों की झलक देते हैं। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के वाइस चेयरमैन जी. प्रदीप कुमार को उम्मीद है कि विमुद्रीकरण के कारण 8-10 लाख करोड़ रुपये की राशि बैंकिंग प्रणाली में आयेगी। इसका लगभग 10% हिस्सा म्यूचुअल फंड उद्योग में आयेगा। तमाम लोग अपनी आय के एक हिस्से का निवेश म्यूचुअल फंडों के लिक्विड, इक्विटी और बैलेंस्ड फंडों में करना बेहतर समझेंगे।
मोतीलाल ओसवाल एएमसी के एमडी और सीईओ पी. सौमैया भी विमुद्रीकरण के फैसले को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनकी धारणा है कि लोग अब रियल एस्टेट और सोने में धन लगाने की बजाय पूँजी बाजार में ज्यादा निवेश करेंगे। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था में वैध सफेद पूँजी का प्रवाह बढ़ेगा, वैसे-वैसे म्यूचुअल फंडों में नयी पूँजी आने का प्रवाह उतनी ही तेजी से बढ़ता जायेगा।
देश के शीर्ष म्यूचुअल फंडों में से एक, यूटीआई म्यूचुअल फंड के एमडी लिओ पुरी भी विमुद्रीकरण के फैसले को नायाब मानते हैं। उनका साफ कहना है कि इस फैसले से 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक पूँजी का प्रवाह अर्थव्यवस्था में बढ़ेगा। इसका पुनर्नियोजन विभिन्न वित्तीय उत्पादों, इक्विटी, बॉन्ड एवं म्यूचुअल फंड आदि में होना लाजिमी है। पुरी की धारणा है कि इस फैसले से गृहिणियों का एक नया निवेशक वर्ग भी जुड़ेगा। इसके लिए हम जोरदार अभियान चला रहे हैं। यूटीआई एएमसी अभी 3 लाख करोड़ रुपये की आस्तियों का प्रबंधन करती है। इसमें 1.3 लाख करोड़ रुपये के घरेलू फंड हैं। यूटीआई ने इस वित्त वर्ष में घरेलू फंडों में 30% वृद्धि का लक्ष्य रखा है। श्री पुरी का दावा है कि विमुद्रीकरण के फैसले से इस लक्ष्य को हम आसानी से हासिल कर लेंगे।
जानकारों का कहना है कि विमुद्रीकरण से 8-12 लाख करोड़ रुपये की नकदी बैंकिंग व्यवस्था में आयेगी। आगामी 2-3 महीनों में तकरीबन 50,000 करोड़ रुपये ऋण योजनाओं, विशेष कर लिक्विड योजनाओं में आना तयशुदा है। लिक्विड योजनाओं में बैंक और बड़ी कंपनियों का ही ज्यादा निवेश होता है, ताकि अधिक प्रतिफल मिल सके। अपने पास धन पड़े रहने से उन पर लाभ-हानि का बोझ बढ़ जाता है। 31 अक्टूबर तक इन योजनाओं में 2.7 लाख करोड़ रुपया लगा हुआ था। रिजर्व बैंक ने 2011 से लिक्विड फंडों में निवेश पर बैंकों के ऊपर 10% की सीमा लगा रखी है, यानी वे अपने कुल निवेश का केवल 10% हिस्सा ही लिक्विड फंडों में डाल सकते हैं। लिक्विड फंड मुद्रा बाजार में 91 दिनों तक परिपक्व होने वाली प्रतिभूतियों में ही निवेश करते हैं।
रिलायंस म्यूचुअल फंड के डिप्टी सीईओ हिमांशु व्यापक का मानना है कि आगामी 2-3 महीनों में 5-7 लाख करोड़ रुपये वित्तीय व्यवस्था में आयेंगे। ब्याज दरें गिरने से विभिन्न बैंक इसका 25-30% हिस्सा अधिक लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादों के बजाय अन्य उत्पादों में लगा सकते हैं। उनके इस तर्क में दम है, क्योंकि बैंक बड़े धन को जल्द ही कर्ज के रूप में नहीं लगा सकते हैं। जानकार एकमत हैं कि विमुद्रीकरण के फैसले का रियल्टी, ऑटो, उपभोक्ता सामान वाले उद्योग आदि पर अल्पकालिक बुरा असर पड़ेगा। नतीजनत बैंकों के कर्ज संवितरण में गिरावट आयेगी। लिहाजा ब्याज की कमाई बनाये रखने के लिए उन्हें वैकल्पिक निवेशों की तरफ देखना पड़ेगा। अन्य जगह निवेश करना बैंकों की मजबूरी है।
एम्फी के जी प्रदीप कुमार का साफ मानना है कि नियत आय (फिक्स्ड इन्कम) वाले निवेशों का प्रतिफल गिर रहा है, जिसका लाभ डेब्ट फंडों को मिलेगा। दीर्घकाल में इक्विटी फंडों के प्रति भी लोगों का आकर्षण तेजी से बढ़ेगा। देश में म्यूचुअल फंडों को आये अरसा हो चुका है। लेकिन उन्हें अपने पाँव जमाने में भारी मशक्कत करनी पड़ी है।
एम्फी के सीईओ सीवीआर राजेंद्रन के अनुसार म्यूचुअल फंडों में निवेशकों की संख्या दो करोड़ के पास पहुँच रही है। आगामी पाँच सालों में यह संख्या नौ करोड़ पर पहुँचाने का लक्ष्य है। देश में अभी 43 म्यूचुअल फंड कंपनियाँ हैं, जिनमें तकरीबन 17 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। इसमें से तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये केवल डेब्ट और लिक्विड फंडों में हैं। पर कुछेक सालों में बचतों पर ब्याज दरें गिरने से निवेशकों का रुझान तेजी से म्यूचुअल फंडों की तरफ बढ़ा है। 31 अक्टूबर 2016 तक सिप यानी सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान के तहत म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या 1.08 करोड़ थी। यह सब गिरती ब्याज दरों का कमाल है। सरकारी बचत योजनाओं और बैंकों की सावधि जमा पर 8% से ज्यादा ब्याज अब दूर की कौड़ी होता जा रहा है, जबकि म्यूचुअल फंडों में निवेश पर लाभ ज्यादा है।
विमुद्रीकरण के फैसले से ब्याज दरें गिरने की संभावना प्रबल है। नवंबर में नोटबंदी से बाजार में चौतरफा गिरावट दर्ज हुई। पर इसी महीने में इक्विटी फंडों, बैलेंस्ड फंडों और ईएलएसएस में आवाई यानी उनमें आने वाला नया निवेश लगभग 12,000 करोड़ रुपये रहा है। अक्टूबर 2016 में यह शुद्ध आवाई 12,799 करोड़ रुपये की थी। सोना और रियल एस्टेट में निवेश भी अब पहले जैसे लुभावने नहीं रहे हैं। इसीलिए अब तय है कि म्यूचुअल फंड ही बचत और निवेश के राजा होंगे। वैसे भी विमुद्रीकरण, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों को लेकर बाजार में भारी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इसलिए जब-जब शेयर बाजार लुढ़कें, तब-तब म्यूचुअल फंडों में निवेश का सुनहरा अवसर होगा। बाजार की उछल-कूद और म्यूचुअल फंडों की एनएवी से न घबरायें। इससे दीर्घकाल में आपकी आर्थिक सेहत बेहतर रहेगी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)

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