नोटबंदी लागू होने के बाद एक सेठ जी ने क्या-क्या जतन नहीं किये, पर लक्ष्मी जी तो उनसे रूठ ही गयीं। लक्ष्मी जी ने अंत में क्या बताया उनको रूठने का कारण?
सेठ जी ने अपने बिस्तर पर जाने से पहले गद्दे को जरा उठा कर देखा और गद्दे के नीचे विश्राम कर रही लक्ष्मी जी को प्रणाम किया। गद्दा वापस रख कर वे बिस्तर पर लेट गये और रिमोट का बटन दबा कर टीवी चला लिया। कुछ देर पहले टीवी देखा था तो खबरों से सेठ जी को अंदाजा था कि कोई खास घोषणा आ सकती है। प्रधानमंत्री तीनों सेनाध्यक्षों से मिले हैं, जरूर कुछ खास होगा। मोदी जी, ठोक दो पाकिस्तान को! पूरा देश आपके साथ है।
तभी टीवी पर प्रधानमंत्री जी अवतरित ही हो गये। बोलने लगे तो उसमें पाकिस्तान कहीं मिला नहीं। और फिर उन्होंने जो कुछ कहा, उसे सुन कर सेठ के कानों में धमाका सा हो गया। कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था उन्हें। बीपी की दवा सिरहाने पर ही रखी थी, गोली गटक ली। कुछ देर में जब जरा सोचने-समझने की ताकत हुई, तो बिस्तर से उतरे और गद्दे को हटा कर फिर से लक्ष्मी जी के दर्शन किये। मन कर रहा था कि भोकार पार कर रोने लगें, पर रुलाई भी नहीं आयी। पाँच सौ और हजार के मेरे ये सारे नोट... वो कमबख्त कह रहा था कि अब रद्दी कागज है।
तुरंत मोबाइल उठाया, सीए का नंबर मिलाया। घबराये हुए से बोले, मेहता जी अब क्या होगा?
सीए मेहता जी ने जवाब दिया, कोई बात नहीं सेठ जी। कुछ न कुछ तो रास्ता निकाल ही लेंगे। मैं भी अभी खबर देख ही रहा हूँ। पर चिंता न करें। डिपार्टमेंट में हमारे बहुत जानने वाले हैं।
सेठ जी खाने बैठे, पर खाया नहीं गया। पत्नी कुछ बोलती-पूछती तो और दिल बैठा जाता। डपट दिया कि वैसे ही परेशान हूँ, और परेशान मत करो। रात भर नींद नहीं आयी। सुबह होते ही मेहता जी को फिर फोन मिलाया। पर यह क्या, मेहता जी का फोन बंद था। फिर उन्हें याद आया कि इस महीने का कर्मचारियों का वेतन भेजने के लिए कल ही उन्होंने चेक पर दस्तखत किया था। फौरन एकाउंटेंट को फोन किया कि चेक रोक लो। सबको नकद में 1000 और 500 के नोटों में वेतन देने का फरमान सुनाया। कुछ देर बाद उन्हें फिर कुछ ख्याल आया तो एकाउंटेंट को फिर से फोन किया। बोले, सबको छह महीने की एडवांस सैलरी दे दो, पर नकद में और एकदम ध्यान रहे, 1000 और 500 वाले नोटों में ही।
फैक्ट्री में करीब 100 लोग काम करते थे। औसतन 10,000 रुपये के हिसाब से भी 10 लाख रुपये खपे एक महीने के। छह महीने की एडवांस सैलरी और दे दी तो 60-70 लाख रुपये खप गये। यह तो उतना भी नहीं था, जितना किसी हिमशिला का ऊपर नजर आने वाला हिस्सा होता है। और क्या करें?
उन्हें याद आया कि पिछले महीने ही एक पेंटहाउस का बड़ा अच्छा-सा ऑफर ठुकराया था। उन्हें अंदाजा था कि अभी तो मकानों के दाम और घटने वाले हैं। चोपड़ा 10 करोड़ रुपये माँग रहा था, उन्होंने कह दिया था कि सात करोड़ से एक रुपया ज्यादा नहीं दूँगा। उन्होंने चोपड़ा को फोन मिलाया। बोले, हां जी मुझे तो आपका पेंटहाउस बहुत पसंद नहीं आया था, पर बेटे ने कहा है कि उसको छुट्टी मनाने के लिए चाहिए। तो बोलो, आठ करोड़ रुपये में बेचना है?
चोपड़ा ने कहा, सेठ जी बहुत मेहरबानी। मैं तो छह करोड़ में भी आपको दे दूँगा, लेकिन पैसे सारे चेक में दे दो आप। सेठ जी चीख पड़े, अरे ये क्या बात हुई। पिछले महीने तो तुमने कहा था कि 100 में 70 नकद में ले लोगे। चोपड़ा ने कहा, सेठ जी तब की बात और थी। या फिर रुक जाओ आप। जनवरी के बाद ले लेना। आठ करोड़ में दे दूँगा। कहो तो बयाना लेने आ जाऊँ। पर वो बयाना चेक से ही देना।
सेठ जी ने भद्दी-सी गाली दी और फोन काट दिया। फिर से ध्यान टीवी पर चला गया। खबर आ रही थी कि कल आधी रात के बाद भी सर्राफा दुकानें खुली रहीं और लोग लाइन लगा कर सोना खरीदते रहे। दाम भी एकदम से बढ़ गये थे सोने के, फिर भी यह हाल था। सेठ जी ने हिसाब लगाया कि चलो, दाम बढ़ गये हैं तो क्या। सोना कभी रद्दी तो नहीं होगा। उन्होंने गोपीचंद जवेरी को फोन मिलाया, तो बस घंटी बजती रही। सेठ जी झल्लाये - इस गोपी के बच्चे को क्या हो गया। अब तक तो वह मेरे फोन की घंटी बजने से भी पहले उठा लेता था। तब तक टीवी पर एक खबर झलकी - शहर के कई जौहरियों की दुकानों पर आय कर विभाग के छापे पड़े। विभाग ने उन जौहरियों से पूरी सूची माँगी, जिन्होंने नोटबंदी के बाद से अब तक सोना खरीदा। सेठ जी का दिल फिर से डूब गया।
जैसे-तैसे उन्होंने खुद को सँभाला। अखबार पलटने लगे। टीवी तो सामने चल ही रहा था। एक आदमी 4,000 रुपये तक के नोट बदल सकता है। उन्हें एक तरकीब सूझी। एकाउंटेंट को तलब किया। एकाउंटेंट आया तो उन्होंने कहा, देखो कल से फैक्ट्री में काम रोक दो। सारे वर्कर को रोज 16000 या 20,000 रुपये दे देना। ये पैसे लेकर हर वर्कर सुबह से बैंक की लाइन में लगेगा और एक बार 4000 रुपये बदलवाने के बाद फिर से बगल के किसी बैंक में लाइन में लग जायेगा। उन्होंने हिसाब लगाया, औसतन एक वर्कर चार खेप में 16,000 रुपये भी बदलवा ले तो 100 वर्कर मिल कर 16 लाख बदल लेंगे। पीएम ने 50 दिन माँगे हैं ना। हम 50 दिन में आठ करोड़ के नोट तो ऐसे ही बदलवा लेंगे! सेठ जी के चेहरे उड़ी हुई रंगत कुछ वापस आयी। चिल्ला कर बोले, अरे ननकुआ। जूस नहीं लाया अभी तक। कहाँ मर गया?
कुछ देर में एकाउंटेंट खुद ही उनके पास आया। बोला, सेठ जी मैंने एक आदमी खोजा है। पुराने नोट बदल कर छोटे नोट या नये नोट दे देगा, लेकिन 100 में 30 टका कमीशन माँग रहा है। सेठ जी अपने 100 वर्करों के भरोसे थोड़े निश्चिंत हो चुके थे। बोले, ये बहुत ज्यादा माँग रहा है। 30 टका देना ही होता तो सरकार को टैक्स ही नहीं भर दिये होते? पहले 10 टका बोलो, 15 टके तक आ जाये तो बदलवा लो।
कुछ देर बाद एकाउंटेंट लौटा, सेठ जी वो 20 से कम पर नहीं मान रहा। सेठ जी ने हिसाब लगाया। उनके 100 वर्कर बहुत करेंगे तो सात-आठ करोड़ बदलवा सकेंगे। तब भी उससे कई गुणा बाकी बचेगा। उन्होंने कहा, चलो ठीक है। पूछा कितना है उसके पास? एक करोड़, दो करोड़ जितना हो बदलवा लो।
एकाउंटेंट दो मिनट में फिर वापस लौटा तो खीझा हुआ था, अरे सेठ जी, करोड़ की बात ही नहीं है। वो तो 10-20 लाख में ही हाँफ गया। लेकिन बोल रहा है कि उसके पास और भी लोग हैं, उनसे बात करके बतायेगा। सेठ जी का थोबड़ा फिर थोड़ा लटक गया। उन्होंने कहा, चलो इसके पास नहीं है तो ऐसे और लोग खोजो।
फिर उन्हें याद आया कि न्यू इंडिया पेट्रोल पंप का मालिक खन्ना उनका अच्छा दोस्त है। उन्होंने फोन लगाया और शुरू के पाँच मिनट तक दोनों देश के प्रधान सेवक के लिए शुभाशीषों का आदान-प्रदान करते रहे। फिर सेठ जी ने असली बात रखी, यार खन्ना! तुम्हारे पेट्रोल पंप पर तो बहुत सारे लोग सौ-पचास के नोट भी लेकर आ रहे होंगे ना। ऐसे जितने नोट आते हैं, वो सब मेरे लिए रखवा लो। पाँच-दस टका ले लेना। तुम्हारा भी फायदा और मेरा भी बोझ कुछ हल्का हो जायेगा।
खन्ना ने जवाब दिया, सेठ जी बात तो आपकी एकदम सही है। पर वो क्या है ना, जब से ये नोटबंदी हुई है तब से हर आदमी हजार पाँच सौ के ही नोट लेकर आ रहा है। लोग भी इतने चालाक हैं कि पाँच सौ का नोट दिखा कर बोलते हैं कि 100 रुपये का पेट्रोल डाल दो। हमने तो साफ मना कर दिया है अपने स्टाफ को किसी को छुट्टा नहीं देना है। थोड़े-बहुत छोटे नोट आ रहे हैं बाइक-सकूटर वालों के। पर वो क्या है ना कि अपने पास भी तो कुछ माल-मत्ता पड़ा है। जो आ रहा है, अपने लिए ही काफी नहीं पड़ रहा है। हम तो खुद जुगाड़ खोज रहे हैं। कुछ आपको रास्ता मिले तो हमें भी बताना जी।
फोन रखने के बाद सेठ जी ने ठंडी साँस ली। दिमाग नया जुगाड़ खोजने में लगा था। उन्हें बैंक मैनेजर जोशी याद आया। पिछले महीने ही उनके पास आया था। तरह-तरह की निवेश योजनाओं के बारे में बता रहा था। बता क्या रहा था, मिन्नतें ही कर रहा था कि कुछ लगा दूँ। उसका कार्ड खोज कर फोन मिलाया तो फोन बंद था। याद आया कि उसके साथ एक और मार्केटिंग वाला बंदा आया था। उसका कार्ड खोजा, नंबर मिलाया। संयोग से उससे बात हो गयी। उसने कहा, सर हम तो आफत में हैं। सारा काम बंद है, बस नोट बदल रहे हैं लोगों के। मैनेजर के बारे में पूछने पर उसने बताया कि उनका फोन रात 9-10 बजे से पहले नहीं चलेगा। सारा दिन फोन बंद रख रहे हैं आजकल।
सेठ जी का सारा दिन काटे नहीं कटा। रात 9 बजे से लगातार मिलाते रहे। आखिर 10.30 बजे फोन मिल गया। मैनेजर की आवाज कुछ यूँ आयी, मानो महीने भर से बीमार हो। खैर, सेठ जी ने अपनी समस्या रखी - मैनेजर साहब, कुछ अपना हिसाब-किताब लगा देते। आपके पास तो काफी नये नोट आ गये होंगे, कुछ जुगाड़ लगायें।
मैनेजर ने जवाब दिया - सर हमारी तो जान निकली पड़ी है। इतना काम सारी जिंदगी में नहीं किया। रोज जितने पैसे आते हैं ऊपर से, उससे दस गुना लेने वाले लोग लाइन में लगे रहते हैं। और जुगाड़ के चक्कर में अभी-अभी हमारे बैंक के दो ब्रांच मैनेजर नप गये हैं। जेल जाने से बचे रहे और नौकरी बची रही तो आगे आपकी सेवा करेंगे कभी। अभी तो माफ करें।
सेठ जी की रात फिर से आँखों-आँखों में कटी। रात में कई बार गद्दा हटा कर लक्ष्मी जी के दर्शन करते रहे।
अगले दिन सेठ की निगहबानी में एकाउंटेंट ने वर्करों को फिर से पैसे बाँट दिये बैंकों से बदलवाने के लिए। कुछ ही घंटे बीते थे कि बारी-बारी से वर्कर वापस लौटने लगे। एकाउंटेंट ने बताया - सेठ जी, अब दोबारा लाइन में लगने पर पैसे नहीं मिल रहे। आईडी को कंप्यूटर में डालने लगे हैं बैंक वाले। हमारा एक वर्कर पहले चार-पाँच बार बदल लेता था रोज। अब एक ही बार कर पायेगा।
सेठ जी के चेहरे का रंग उड़ गया। कहाँ तो सोच रहे थे वर्करों के हाथों आठ-दस करोड़ के नोट बदलवा लेंगे। पर ऐसे तो दो करोड़ के नोट बदलवाना भी मुश्किल हो जायेगा। हे भगवान! अरे, हाँ, भगवान! याद आया, शक्तिपीठ के महंत जी। सेठ जी ने फौरन ड्राइवर को हांक लगायी और कार में शक्तिपीठ पहुँच गये। महंत जी के चरण स्पर्श किये, आशीर्वाद लिया। बोले - अब तो भगवान का ही आसरा लग रहा है। कुछ जुगाड़ हो जाये तो अच्छा है।
महंत जी का चेहरा लटक गया। बोले - आइये आपको कुछ दिखाता हूँ। मंदिर की दानपेटी के पास ले गये। सेठ जी ने देखा, दानपेटी के ताले पर सील लगी थी। महंत जी बोले - हमने तो कई भक्तों का कल्याण किया। लेकिन कल ही अफसर लोग आये थे, ये सील लगा गये। अब हम क्या करें?
इसी तरह उधेड़-बुन में दो दिन और निकल गये। सेठ जी को न दिन में चैन आये, न रातों में नींद। इसी बीच यह भी खबर आ गयी कि अब एक व्यक्ति 30 दिसंबर तक केवल एक बार ही नोट बदलवा सकेगा, और वो भी केवल 2000 रुपये तक। अभी तो अपने 100 वर्करों के भरोसे उनका नोटबदली कार्यक्रम 50 लाख रुपये के ऊपर भी नहीं जा सका था। अब तो यह कार्यक्रम ही ठप्प पड़ गया। उनको सीने में एक हूक सी महसूस हुई। हे भगवान, दौरा तो नहीं। वे घबराये, लंबी साँस ली, पानी पिया। नहीं, दौरा तो नहीं है।
सीए मेहता जी को फिर से फोन लगाया। घंटी देर तक बजती रही। तब तक सेठ जी की साँसें भी रुकी रहीं। आखिरकार मेहता जी ने फोन उठा लिया। सेठ जी ने कहा, अरे मेहता जी आप तो कुछ रास्ता निकालो। ऐसे तो सब डूब जायेगा।
मेहता जी ने कहा - सेठ जी, एक रास्ता है। आपके जितने वर्कर हैं, सबके खाते में ढाई ढाई लाख रुपये जमा करा दीजिए। करीब ढाई करोड़ रुपये तो इस रास्ते से निकल जायेंगे।
सेठ जी हड़बड़ा गये। बोले - अरे मेहता जी, ये क्या तरीका बता रहे हो आप। कोई धर्मखाता खुला है क्या?
मेहता जी ने कहा - नहीं सेठ जी। सबसे ढाई लाख के कर्जे के कागज पर दस्तखत करा लीजिए।
सेठ जी को यह तरीका उतना जँचा नहीं। कोई ढाई लाख ले कर गायब ही हो गया तो कहाँ खोजता फिरूँगा। लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं दिख रहा था। खैर, एकाउंटेंट को पैसे बाँटने के लिए कहा। एकाउंटेंट ने हामी भरी। बोला, हाँ सरकार ने कहा तो है कि लोग अपने खाते में ढाई लाख तक जमा करायें तो कोई पूछताछ नहीं होगी।
एकाउंटेंट ने पहले कुछ भरोसेमंद कर्मचारियों को ढाई-ढाई लाख रुपये दे दिये। वे कर्मचारी दो घंटे बाद बैंक से वापस लौट आये और बताया कि बैंक वाले तो पैन कार्ड माँग रहे हैं। हमारे पास पैन कार्ड कहाँ है।
एकाउंटेंट ने उन सबसे दो-दो लाख रुपये वापस ले लिए। कहा कि आज चालीस-पैंतालिस हजार रुपये जमा करा दो, फिर कल इतना ही जमा करा देना। ऐसा करके पाँच-छह दिन में जमा कर दो। वे कर्मचारी फिर से चले गये बैंक की ओर।
अगले दिन उन्हीं कर्मचारियों ने पैसे लेने से मना कर दिया। सेठ जी झल्लाये। चिल्ला कर पूछा एकाउंटेंट से - अब क्या हो गया इन्हें?
एकाउंटेंट ने बताया - ये सब डर गये हैं। बार-बार टीवी पर आ रहा है कि दूसरे का पैसा अपने खाते में जमा कराया तो जेल हो सकती है। फिर हमने उनको सात महीने की जो नकद सैलरी दी है, वो भी तो उन्होंने अपने खाते में जमा कर रखी है।
सेठ जी ने सिर पकड़ लिया। फिर कुछ सोच कर एकाउंटेंट से बोले - अच्छा सुन, तूने पिछले महीने लोन माँगा था ना मकान खरीदने के लिए। लोन का चक्कर छोड़। मैं खरीद देता हूँ। पैसे मेरे, और कागज पर मकान तुम्हारे ही नाम रहेगा। जब तक चाहो तब तक रहो उसमें।
एकाउंटेंट ने हाथ जोड़ लिये - साहब, अब वो तो बेनामी हो जायेगा। आपको पता ही है कि सरकार ने बेनामी का नया कानून कितना खराब बनाया है। जेल-वेल का चक्कर कौन लगायेगा। बार-बार बोला जा रहा है कि दिसंबर में नोटबंदी निपटने के बाद अगला सर्जिकल स्ट्राइक बेनामी पर होगा। इस लफड़े में अब आप भी ना ही पड़ें तो अच्छा है।
सेठ जी बुरी तरह चिढ़ गये। ये एकाउंटेंट का बच्चा अब मुझे पाठ पढ़ा रहा है। क्या दिन आ गये हैं! कहते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं। फिर उन्हें ध्यान आया कि सेल्स टैक्स वाला खान तो बड़ा जुगाड़ी है। खुद उनसे पता नहीं कितने डकार चुका है। जब ये लोग इतना कमाते हैं तो बचाने का इंतजाम भी खोज ही लिया होगा। खान को फोन मिलाया। बात हुई, दुआ-सलाम के बाद सेठ जी ने जुगाड़ के लिए पूछा। खान ने बताया, हुजूर मैं तो अभी लखनऊ जाने के रास्ते में हूँ। वहाँ हमारे एक बड़े साहब का एक्सीडेंट हो गया है।
ओह हो। सेठ जी ने अफसोस जताते हुए पूछा - यह कैसे हुआ।
खान ने बताया - एक्सीडेंट तो आठ तारीख को ही हो गया था। असल में जैसे ही नोट बंद होने की खबर आयी तो हमारे साहब घर में रखी सारी नकदी लेकर गाड़ी से निकले थे। बेटा साथ में था। शायद जौहरी के पास जा रहे थे। पर घबराहट में कार डिवाइडर पर चढ़ गयी और एक्सीडेंट हो गया। दोनों बुरी तरह जख्मी हैं। और तो और, एक्सीडेंट में डिक्की खुल गयी और बैग में रखे नोट छितरा गये। लोग जमा हो गये और सारा पैसा ले गये।
सेठ जी ने कहा - ये तो बड़ी बुरी खबर बतायी आपने। भगवान उनको सलामत रखे। पर कुछ जुगाड़ तो बतायें ना। आगे कैसे काम होगा?
खान ने जवाब दिया - अभी तो हमारा भी कुछ दिमाग काम नहीं कर रहा। लौट कर आता हूँ तो बात करूँगा आपसे।
खान से बात खत्म ही की थी कि तभी सीए मेहता जी का फोन आया। सेठ जी चौंके और खुश भी हुए। जरूर इसने कुछ नया रास्ता निकाला होगा। उनकी उम्मीद सही थी। मेहता जी ने कहा - सेठ जी, जितनी नकदी पड़ी है, वो सब हम विंडफॉल गेन दिखा कर खाते में डाल देंगे। उसका एडवांस टैक्स भी भर देंगे। कोई पेनाल्टी नहीं लगा सकेगा फिर।
सेठ जी बोले - पर टैक्स तो देना पड़ेगा ना फिर?
मेहता जी ने कहा - सेठ जी, अब ब्याज बचाने के चक्कर में न पड़ें, यहाँ तो मूल डूब रहा है।
सेठ जी ने भारी दिल से कहा - चलो ठीक है मेहता जी, आप देखो हिसाब कि कैसे करना है।
सेठ जी उसी समय अपने शयन कक्ष में गये। गद्दा उठा कर लक्ष्मी जी के दर्शन किये, नमन किया। उस रात उन्हें अच्छी नींद आयी।
अगले दिन एक नयी ब्रेकिंग न्यूज ने उनको थोड़ा अचंभे में डाला। ये 50-50 क्या है? 50 फीसदी टैक्स भरो और बाकी 50 फीसदी का भी आधा सरकार के पास जमा रखो चार साल। बाकी 25 फीसदी में हम क्या ठन-ठन गोपाल बन कर घूमें?
सीए मेहता जी को फोन मिला कर पूछा - अरे मेहता जी, हमें तो इस 50-50 के चक्कर में नहीं पडऩा होगा ना। आपने वो जो विंडफॉल वाला तरीका बताया था।
मेहता जी बोले - सेठ जी, सारा आइडिया बेकार हो गया। इस 50-50 ने हमारा वो रास्ता ही बंद कर दिया। अब दिसंबर तक जितना भी पैसा डालेंगे, वो इस 50-50 में ही जायेगा। और अगर खुद नहीं बताया तो 85 परसेंट। अब कुछ नहीं कर सकते।
सेठजी का दिल फिर से डूब गया। तभी उनके फोन की घंटी बजी। नाम देख कर सेठजी का जी तो बिल्कुल नहीं कर रहा था फोन उठाने का, मगर उठाना मजबूरी थी। आय कर विभाग के एक अधिकारी सक्सेना का था, जिनसे अक्सर वास्ता पड़ता रहता था। सेठ जी फोन उठाते ही बोले, अरे हुजूर कितना अच्छा संयोग है। मैं तो अभी आपको ही नंबर मिलाने जा रहा था, तब तक आपका फोन आ गया। हुकुम।
सक्सेना ने कहा, हुकुम तो आप करें। आप लोगों का तो रास्ता सरकार ने निकाल दिया। पर हम क्या करें। हम तो इस 50-50 में भी नहीं जा सकते, जायेंगे तो नौकरी भी जायेगी और जेल भी होगी। कुछ बेड़ा पार लगाइये सेठ जी। सेठ जी मन ही मन भुनभुनाये - पहले हमसे ही कमाया भी और अब ठिकाने लगाने का काम भी हम ही करें!
उधर से सक्सेना ने फिर कहा, आपने कुछ कहा क्या सेठ जी?
सेठ जी बोले - नहीं नहीं। हाँ हाँ, कुछ करता हूँ। आप पधारो कभी।
फोन रखने के बाद सेठ जी फिर से शयन कक्ष में पहुँचे। गद्दा हटाया, लक्ष्मी जी के दर्शन किया, जम कर रोये। उनकी रुलाई से द्रवित हो कर लक्ष्मी जी साक्षात प्रकट हो गयीं। सेठ जी ने रोते-रोते ही पूछा - मइया, मैंने तो आपकी दिन-रात पूजा की। अब क्यों रूठ रही हैं आप मुझसे?
लक्ष्मी जी ने कहा - बेटा, तुम भूल गये कि मैं चंचला हूँ। कहीं अटके रहना मेरा काम नहीं है। तुमने गद्दे में दबा रखा था। खाते में रखते तो मैं इधर-उधर घूमती रहती और तुम्हारे पास भी रहती। अब मैं तो चली। आगे परिश्रम करो, फिर से आ जाऊँगी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)