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मोदी के आने से भी चमत्कार नहीं

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Category: अक्तूबर 2013

कवी कुमार, ग्लोब कैपिटल :

अगले एक साल में बाजार की स्थिति चुनावी नतीजों पर निर्भर करेगी।

इन लोकसभा चुनावों में भाजपा सबको चौंका देगी और उसे 250 सीटें भी आ सकती हैं। कांग्रेस बुरी तरह हार सकती है। कांग्रेस को 2009 के चुनावों में शहरी क्षेत्रों से 68% सीटें मिली थीं। वह जीत मनरेगा की वजह से नहीं थी। अगर भाजपा की सरकार बनेगी तो बाजार की प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक रहने की उम्मीद है। लेकिन अगर सेक्युलरिज्म के नाम पर तीसरा मोर्चा आ गया तो यह बाजार के लिए बुरा होगा। खिचड़ी सरकार बनी तो दिक्कतें बढ़ेंगी और बाजार नहीं, पूरे देश में ही उथल-पुथल मचेगी।
लोकसभा चुनावों के ठीक पहले बाजार का रुख इन विधानसभा चुनावों पर निर्भर करेगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा की आमने-सामने की जंग हैं। इसके बाद ही लोकसभा चुनावों का माहौल बनेगा।
शेयर बाजार में इन स्तरों से 10% से ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं है। निफ्टी के लिए 5100-5200 से नीचे जाने की संभावना कम होगी, क्योंकि जो खराब वैश्विक खबरें आ सकती थीं वे आ चुकी हैं और भारत में सरकारी कदमों से जो नुकसान हो सकता था वह भी हो चुका है। सरकार पहले ही खाद्य सुरक्षा बिल, भूमि अधिग्रहण जैसे लोक-लुभावन बिल ला चुकी है। उसके पास बाजार को और नुकसान पहुँचाने के लिए अब कुछ खास बचा नहीं है।
कंपनियों की आय के अनुमान जरूर घटे हैं, पर बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों के शेयरों के भाव उस बात को दर्शा रहे हैं। पहले केवल डीएलएफ के एक शेयर का जो भाव था, उतने में आज सारी रियल एस्टेट कंपनियों के एक-एक शेयर खरीद सकते हैं।
मई 2009 का दोहराव नहीं
अगर चुनाव से पहले बाजार सुस्त रहा और उसके बाद भाजपा की सरकार बन गयी, तो भी 2009 वाली स्थिति का दोहराव बहुत मुश्किल है। उस समय बाजार सिर्फ एक साल से पिटा था, लेकिन अभी देश में काफी निराशा फैल चुकी है। इस बार सर्किट लगने जैसी स्थिति नहीं होगी।
भाजपा की सरकार अगर बन भी गयी तो अगले कई सालों की तेजी शुरू हो जाने का दावा नहीं किया जा सकता, क्योंकि स्थितियाँ कैसे आगे बदलेंगी इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। इस सरकार ने जो एक-दो कदम उठा लिये हैं, उन्हें पलटना बहुत मुश्किल होगा। इनमें सातवें वेतन आयोग का गठन शामिल है। इससे लोगों को ज्यादा रुपये तो मिलेंगे लेकिन रुपये की कीमत कम हो जायेगी। लोगों की खरीदारी क्षमता के लिहाज से देखें तो पिछले चार सालों में ही रुपये के मूल्य में काफी गिरावट आयी है।
हमारे विकास की कहानी के ढाँचे को ही नुकसान पहुँच चुका है। स्थिति बदलने में समय लगेगा। भूमि अधिग्रहण कानून क्या वापस होगा? इस कानून के साथ भूमि अधिग्रहण हो ही नहीं पायेगा। सातवें वेतन आयोग और खाद्य सुरक्षा कानून का असर भी अगली सरकार पर होगा।
चुनावी अनिश्चितता इस समय सबसे पहली चिंता है। वैश्विक स्तर पर समस्याएँ तो आती-जाती रहेगी। इसलिए अभी उन्हीं कंपनियों में निवेश करना चाहिए, जिन पर सरकार की नीतियों और फैसलों से कोई फर्क नहीं पड़ता। इनमें निवेश के लिहाज से फार्मा और आईटी कंपनियाँ सबसे सुरक्षित हैं। एफएमसीजी क्षेत्र भी ठीक लगता है, लेकिन वह अब काफी महँगा हो गया है।
अगर सरकार नासमझ योजनाएँ बनाती रहेगी तो रुपये में और कमजोरी आती रहेगी। सरकार अभी रुपये में कमजोरी के लिए सीरिया संकट की बात कर रही थी, लेकिन यह संकट तो महीने भर का था। सरकार को जवाब देना चाहिए कि उसके कार्यकाल में डॉलर की कीमत 45 रुपये से 70 रुपये तक किन वजहों से पहुँची?
अभी देश में काफी अनिश्चितताएँ हैं, इसलिए बाजार के बारे में कुछ पक्का अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा। अभी बुनियादी ढाँचा और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों से दूर रहना ही ठीक होगा। अभी इनकी समस्याएँ खुल कर पूरी तरह सामने नहीं आयी हैं। सीडीआर के नाम पर उनकी समस्याएँ छिप जा रही हैं। बैंकिंग क्षेत्र को लेकर बहुत गंभीर चिंताएँ हैं, खास कर पीएसयू बैंकों में। हालाँकि निजी बैंकों की स्थिति बेहतर है, क्योंकि ऋण देते समय उनकी छानबीन ज्यादा बेहतर रहती है।
अभी मैं भारत के विकास की कहानी पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। केजी डी6 के हालात से हम सब वाकिफ हैं। गैस की कमी के कारण स्थापित क्षमता से 17,000 मेगावाट बिजली नहीं बन रही है। हमारे देश के विकास की कहानी कई सालों के लिए अटक गयी है, जिसे वापस पटरी पर लाना किसी के लिए भी मुश्किल होगा, चाहे मोदी ही क्यों न हों।
अगर 15 साल पहले के अटल बिहारी वाजपेयी भी आज की स्थिति में होते तो उनके लिए इसे पटरी पर लाना उतना ही मुश्किल होता। अटल जी की सरकार ने अर्थव्यवस्था को जो गति दी थी, उसका फायदा यूपीए को मिल गया और साथ में वैश्विक तेजी भी रही। अटल जी के समय लोगों की संपदा खूब बढ़ी। तब एसटीटी नहीं था, सेवा कर (सर्विस टैक्स) नहीं था। पिछले साल सर्विस टैक्स के 90,000 करोड़ रुपये जमा हुए। यूपीए को तेज अर्थव्यवस्था मिली और वे उपहार बाँटते चले गये।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2013)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
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  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
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  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
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  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
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