राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
बुरा दौर गुजर गया। जो बुरी खबरें आनी थीं आ चुकीं। अब बाजार में तेजी आयेगी।
सेंसेक्स 22,000 पर अब पहुँचा, तब पहुँचा। महँगाई थम गयी है। थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट है। भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें कम करेगा। विकास दर पटरी पर आ जायेगी। सरकारी घाटा काबू में है। देश की सार्वभौमिक रेटिंग गिरने का खतरा टल गया है। रुपया अब और नहीं गिरेगा। व्यापार घाटा कम हो गया है। आशा की लौ जलती है।
लेकिन फिर कोई अंधड़ आता है। लौ एक झटके में बुझ जाती है। शेयर बाजार गिरने के कयास लगने शुरू हो जाते हैं कि निफ्टी 5000 तक गिरेगा या 4800 तक। खाद्यान महँगाई कम नहीं हुई है। महँगाई की तलवार लटक रही है, इसलिए रिजर्व बैंक ब्याज दर नहीं घटायेगा। फिर झटका लगता है। सोने और कच्चे तेल अधिक आयात के कारण व्यापार घाटा बढ़ गया है। खाद्य सुरक्षा बिल पास हो गया है। सरकारी घाटा अंकुश में नहीं रहेगा। फिर बाजार को एक धक्का। विकास दर के आकलन चकनाचूर हो जाते हैं।
भूमि अधिग्रहण बिल पास हो गया है। अब कोई नया कारखाना इस देश में लगाना मुश्किल है, चाहे कोई भी सरकार आ जाये। आगामी दो-तीन साल तक कोई भला होने वाला नहीं है। डॉलर की आमद घट गयी है। अमेरिका मौद्रिक ढील (क्यूई) को खत्म करने वाला है। विदेशी वित्तीय संस्थाएँ देश से डॉलर निकाल रही हैं। बाजार को फिर झटका।
अब अमेरिका में शटडाउन हो गया है। डॉलर की कीमत गिर रही है। रुपये में मजबूती आ रही है। शेयर बाजार फिर चढ़ जाता है। 2014 के लोकसभा चुनावों में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी तो बाजार के छोर-ठोर का कुछ पता नहीं। मोदी आ गये तो सेंसेक्स 30,000 तक पहुँच जायेगा।
इस तरह की अटकलों से बाजार गुलजार होता है तो विकास दर का आकलन 6-6.5% तक हो जाता है। बाजार में मंदी का खौफ हावी होता है तो विकास दर में गिरावट की आशंकाएँ बलवती हो जाती हैं। दिल बहलाने की इन ख्याली खबरों से एक दिवाली से दूसरी दिवाली आ जाती है। एक वित्त वर्ष से दूसरा वित्त वर्ष शुरू हो जाता है और हकीकत में स्थितियाँ बद से बदतर हो जाती हैं।
पिछले तीन-चार सालों से देश अस्थिरता का शिकार है, जिससे अनिश्चितता के बादल खत्म नहीं हो पाते। इसीलिए कोई आकलन खरा नहीं उतर पाता है। विकास दर के अनुमान गड़बड़ा जाते हैं। महँगाई के सारे आकलन पारे की तरह लुढ़कते-पुढ़कते रहते हैं। कमोबेश यही हाल व्यापार और सरकारी घाटे का है। हर तिमाही में कहानी बदल जाती है। इसलिए निफ्टी कभी 6200-6500 की ओर जाता दिखायी देता है तो कभी उसके 4800-5100 तक गिरने की खबरों से दिल बैठने लगता है। निकट भविष्य में क्या अस्थिरता का यह बुरा दौर खत्म हो जायेगा? इसकी उम्मीद कम ही है। स्थायित्व की वापसी के लिए गहराई जरूरी है। पानी जितना गहरा होता है, उसकी सतह उतनी स्थिर होती है।
देश में विकास और बाजार दोनों अपनी गहराई खो चुके हैं। शेयर बाजार में उछाल के लिए डॉलर चाहिए। अर्थव्यवस्था के तेज विकास के लिए डॉलर चाहिए। बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए डॉलर चाहिए। डॉलर की आमद बढ़ती है तो चमक आती है। डॉलर की आमद कम होती है हताशा पसर जाती है। उधार के डॉलर पर आधारित व्यवस्था में स्थायित्व की कल्पना कैसे की जा सकती है? क्या महज सत्ता परिवर्तन से स्थायित्व का मार्ग प्रशस्त हो सकता है? यह उम्मीद भी छल से कम नहीं है। यूपीए हो या एनडीए गठबंधन दोनों ही इस मॉडल के मुरीद हैं। सम्यक आचार व्यवहार से ही निश्चल (स्थायी) लक्ष्मी आती है। इस दीपावली पर देश के लिए निश्चल लक्ष्मी की कामना है। तभी विकास के दीये घर-घर जल पायेंगे। स्थायी लक्ष्मी के लिए सम्यक आचार-व्यवहार अनिवार्य है।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2013)