भस्मासुर हमारे मिथकों का हिस्सा है। इसके दो खास लक्षण हैं। पहला, यह अपने स्वामी या बनाने वाले की ही जान पर भारी पड़ जाता है। कथाओं में वर्णित भस्मासुर भोलेनाथ शिव से वरदान पाकर उन्हें ही जलाने को दौड़ा। दूसरे, यह खुद को भी नष्ट करता है। आज यह एक प्रतीक है। यह अक्सर हमारे अंदर होता है, आसपास होता है और कई बार हमारे निवेश पोर्टफोलिओ में भी बैठा होता है।
हम शेयर बाजार के कुछ ऐसे नामों को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने अपने स्वामी को नुकसान पहुँचाया, उनकी संपदा नष्ट की और इस प्रक्रिया में भी खुद भी आसमान से जमीन पर आ गये। लेकिन इस लेख को पढ़ते समय ध्यान रखें कि इसमें जिन नामों का जिक्र है, उन सबको सदा-सर्वदा के लिए शेयर बाजार के खलनायकों की सूची में न डाल दें।
शेयर बाजार का एक मूल मंत्र है कि मजबूत शेयरों को अच्छे (यानी सस्ते) भावों पर खरीदा जाये। दूसरा मूल मंत्र यह है कि अतीत पीछे छूट चुका है और निवेश के लिए हमेशा भविष्य को देखना चाहिए। कोई शेयर 90% गिर चुका है तो स्पष्ट रूप से उसने शेयरधारकों को हद से ज्यादा नुकसान दिया है। पर आज निवेश बनाये रखने या नया निवेश करने के नजरिये से सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन स्तरों से उसमें प्रतिशत लाभ या हानि की संभावना कितनी है।
शेयर बाजार का एक अद्भुत सत्य है कि यह हमेशा उचित मूल्य की तलाश में रहता है, लेकिन ज्यादातर समय यह किसी अति की ओर झुका होता है - कभी अति उत्साह तो कभी अति निराशा। इसलिए जिन 'पोर्टफोलिओ के भस्मासुरों' का लेखा-जोखा हमने यहाँ रखा है, उनमें से कई नाम दुर्दिन से गुजर रहे अच्छे शेयरों की सूची में भी जोड़े जा सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि कंपनी कमजोर होने के चलते कोई शेयर रसातल में गया या फौरी वजहों से अभी दबाव के दौर से गुजर रहा है। इस काम में हमारी मदद कर रहे हैं आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के रिसर्च प्रमुख पंकज पांडेय, पर्पललाइन इन्वेस्टमेंट्स के निदेशक पी के अग्रवाल और क्राफ्टवेल्थ के एमडी आशीष कुकरेजा।
हमने दो तरह से शेयरों को चुना है। पहला पैमाना है शेयर भाव में उच्चतम स्तर से आयी गिरावट का। एक निवेशक पर सबसे ज्यादा फर्क इस बात से पड़ता है कि उसके निवेश पर अब कितना नफा-नुकसान है। लिहाजा हमने ऐसे नामों की सूची बनायी है (1-10), जिनका शेयर भाव उच्चतम स्तर से सबसे ज्यादा टूटा है। भाव बोनस, विभाजन वगैरह के आधार पर समायोजित हैं। मसलन, अगर किसी शेयर का उच्चतम भाव वास्तव में 100 रुपये रहा हो, लेकिन उसके बाद 1:1 का बोनस मिला हो, तो समायोजन के चलते उच्चतम भाव अब 50 रुपये ही कहा जायेगा।
लेकिन अगर पूरे निवेशक समूह का और खुद उस कंपनी का नुकसान देखना चाहें तो बाजार पूँजी (मार्केट कैपिटलाइजेशन) में कमी पर नजर डालनी होगी। हमने इस लिहाज से सबसे ज्यादा चोट पहुँचाने वाले नामों (11-27) को भी चुना है। बाजार पूँजी का मतलब है बाजार भाव के हिसाब से कंपनी का मूल्यांकन। शेयर भाव और शेयरों की कुल संख्या को गुणा करें तो बाजार पूँजी का पता चलता है। स्वाभाविक है कि बाजार पूँजी में सबसे ज्यादा गिरावट वाले शेयरों की सूची में बाजार के कुछ सबसे बड़े नाम ही आयेंगे। हमने तय अवधि में हुए नुकसान के बदले यह देखा है कि कंपनी की बाजार पूँजी उच्चतम स्तर से घट कर अप्रैल 2012 के अंत में कहाँ है।
आँकड़ों की सीमा के चलते हमारा विश्लेषण साल 2000 से अब तक का है। इसके चलते आपको कुछ ऐसे नाम इस सूची में नहीं मिलेंगे, जो इसमें शामिल होने लायक थे। जैसे, एमटीएनएल का शेयर भाव उच्चतम स्तर से करीब 94% नीचे चलने के बावजूद यह इससे बाहर रह गया। ऐसे और भी नाम होंगे। लेकिन 100% समग्र सूची भले ही न बने, पर इससे यह अंदाजा जरूर मिलेगा कि निवेश करते समय या निवेश करने के बाद भी खतरों के संकेत कैसे पहचानें।
1. रिलायंस इंडस्ट्रीज
निराशा का बोझ
जनवरी 2008, यानी भारतीय शेयर बाजार में अति उत्साह चरम पर पहुँच जाने का समय। और इस बाजार के सबसे बड़े नाम रिलायंस इंडस्ट्रीज का चरम भाव भी उसी समय दिखा। इसने 15 जनवरी 2008 को बीएसई में 3252.10 का शिखर छुआ, जिसे नवंबर 2011 में 1:1 के अनुपात में बोनस के बाद अब 1626.05 रुपये माना जा सकता है।
इसके बाद से यह शेयर लगातार निवेशकों को निराश करता रहा है। नवंबर 2008 में 566 तक का निचला भाव छूने के बाद यह मई 2009 में वापस 1245 तक चढ़ा, यानी केवल 6 महीनों में दोगुने से भी ज्यादा हो गया। लेकिन उसके बाद से अब तक बाजार की हालत चाहे सँभली हो या बिगड़ी हो, रिलायंस ने लगातार नीचे का ही रुख बनाये रखा है। इसका भाव 30 अप्रैल 2012 को 745.20 रुपये रहा। इस तरह जनवरी 2008 के शिखर की तुलना में इसका भाव 54.2% नीचे है। भाव में गिरावट के लिहाज से यह बाजार के सैंकड़ों शेयरों के मुकाबले बेहतर है। लेकिन बाजार पूँजी में कमी के लिहाज से यह शेयरधारकों को चोट पहुँचाने में अव्वल है। इसकी बाजार पूँजी का नुकसान 215,612 करोड़ रुपये का है। नुकसान कितना बड़ा है, यह इस बात से समझ सकते हैं कि आज खुद रिलायंस, टीसीएस, ओएनजीसी और कोल इंडिया के अलावा किसी अन्य कंपनी की मौजूदा बाजार पूँजी भी इतनी नहीं है।
पंकज पांडेय : केजी बेसिन में नये पूँजीगत खर्च के लिए सरकार से मंजूरी मिलना इसके लिए अगला सकारात्मक संकेत होगा। जिनके पास यह शेयर है, वे इसे रखे रहें।
पी के अग्रवाल : अगर आपने पहले से निवेश नहीं किया है तो अभी निवेश करने की जरूरत नहीं है। यह और नीचे नहीं भी जाये तो आपका निवेश अटका रह सकता है। काफी अस्पष्टता है और सरकार से विवाद है।
2. एमएमटीसी
बाजार में है ही कहाँ
सरकारी कंपनी एमएमटीसी भी बाजार पूँजी गँवाने में रिलायंस से ज्यादा पीछे नहीं है। साल 2007 में इसका शेयर भाव किस तरह अचानक आसमान छू गया, यह आप इसके चार्ट में देख सकते हैं। उस समय इसका वास्तविक बाजार भाव 56,932 रुपये का था, जो 1:10 के शेयर विभाजन और 1:1 के बोनस के बाद समायोजन के चलते अब 2847 रुपये है। जनवरी 2008 में बाजार के टूटने से पहले ही यह बुरी तरह टूटा और दिसंबर 2008 में 9,125 रुपये के निचले स्तर पर (समायोजन के बाद 456) आ गया। दिसंबर 2011 में भी यह 439 तक फिसला।
इस शेयर में निवेश के लिए बुनियादी बातों का विश्लेषण करने से पहले किसी को यही सोचना पड़ता है कि जब वह बेचना चाहेगा तो खरीदार मिलेंगे या नहीं। शेयर विभाजन और बोनस से पहले जब यह 50,000-55,000 रुपये के दायरे में चला गया था, उस समय बीएसई में एक दिन में इसके केवल 10-20 सौदे होना आम बात थी। अब भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। अप्रैल में 20 कारोबारी दिनों में से 14 बार इसमें सौदों की संख्या तीन अंकों में ही रह गयी। बाजार में इस शेयर की कम खरीद-बिक्री क्यों है, यह इस बात से स्पष्ट है कि इसमें प्रमोटर यानी सरकार की हिस्सेदारी 99.33% है। इसके बाद घरेलू संस्थाओं के पास 0.52% हिस्सेदारी है। यानी जनता के पास इसकी हिस्सेदारी केवल 0.15% है। शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के बावजूद यह एक तरह से बाजार से बाहर ही है।
पी के अग्रवाल : इसमें फ्लोटिंग स्टॉक ही नहीं है। बेचने जायेंगे तो बिकेगा नहीं, काफी कम तरलता है, इसलिए इससे अलग रहें।
3. एनएमडीसी
बुरा नहीं इस भाव में
खनन क्षेत्र की इस सरकारी कंपनी ने भी बीते सवा दो सालों में अपनी बाजार पूँजी में से 151,154 करोड़ रुपये गँवा दिये हैं। बाजार में उपलब्ध शेयरों के मामले में इसका हाल काफी हद तक एमएमटीसी जैसा ही है। इसमें सरकारी हिस्सेदारी 90% है, लेकिन घरेलू संस्थाओं की 8.32% और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की 0.70% हिस्सेदारी के बाद बाकी जनता के पास केवल 0.98% शेयर ही हैं।
मजबूत बही-खाते, स्थिर कारोबार और काफी अच्छा मार्जिन इस कंपनी के सबसे मजबूत पहलू हैं। हालाँकि कंपनी ने 2011-12 और 2012-13 के लिए अपने बिक्री के अनुमान घटाये हैं। कुछ समय पहले इसने लौह अयस्क (आयरन ओर) की कीमतें भी घटायी थीं। बिक्री की मात्रा घटने के साथ-साथ कीमतों में भी कमी के आने चलते इसकी आमदनी और मुनाफे में बढ़त की रफ्तार कुछ समय तक धीमी रह सकती है, लिहाजा शेयर बाजार में जब तक इसके पक्ष में कोई नयी सकारात्मक खबर नहीं आये, तब तक इसके भावों में बड़ी उछाल की उम्मीद नहीं की जा सकती।
पंकज पांडेय : इसके पास अच्छी गुणवत्ता के लौह अयस्क का भंडार है। भारत में मात्रा के लिहाज से यह लौह अयस्क के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इसकी उत्पादन लागत भी काफी कम है। इसके चलते इसका एबिटा मार्जिन लगभग 75% जैसे ऊँचे स्तर पर है। एनएमडीसी की ज्यादातर बिक्री लंबी अवधि के सौदों के जरिये होती है, लिहाजा इसके कारोबार में स्थिरता है। मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से निवेशक इसे रख सकते हैं।
पी के अग्रवाल : यह बाजार से कमजोर चलता रहा है और इससे सबसे अच्छी पसंद की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। लेकिन इसका शेयर भाव काफी नीचे आ गया है और इसके पास खनिज के विशाल भंडार तो हैं ही। लेकिन कंपनी पर सरकारी नियंत्रण के चलते इसका भाव बहुत ज्यादा ऊपर जाने की उम्मीद भी नहीं है। वैसे मुझे लगता है कि इन भावों पर यह कोई बुरा विकल्प नहीं है।
5. विप्रो
साल 2000 का भूत
शा यद आप विप्रो का नाम इस जगह देख कर चौंक जायें, क्योंकि ज्यादातर आईटी शेयर इस समय अपने उच्चतम स्तरों के आसपास ही चल रहे हैं। दरअसल विप्रो पर साल 2000 का भूत अब भी सवार है, जब इसने 9,800 (समायोजन के बाद 980) रुपये का शिखर छुआ था। वह शेयर बाजार में आईटी को लेकर बने बुलबुल का समय था। बेशक अगर किसी ने साल 2001 से 2005 के बीच या हाल में साल 2009 में निवेश किया होगा तो उसे आज विप्रो से वैसी कोई शिकायत नहीं होगी।
विप्रो को पहले 1999 में अशोक सूत और उसके बाद 2005 में विवेक पॉल के रूप में अपने सबसे बड़े नाम गँवाने पड़े। लेकिन दोनों ही मौकों पर कंपनी ने अपने-आपको अच्छी तरह सँभाला। पिछले साल जनवरी में कंपनी एक बार फिर अपने शीर्ष प्रबंधन में बदलावों से गुजरी, जिसके कुछ बेहतर नतीजे दिखने शुरू हो गये हैं।
पर ताजा तिमाही नतीजों में कंपनी ने अपने भविष्य के अनुमानों से बाजार को निराश किया। आईटी सेवाओं से 2011-12 की चौथी तिमाही के 153.6 करोड़ डॉलर की आय की तुलना में इसने 2012-13 की पहली तिमाही के लिए 152-155 करोड़ डॉलर का अनुमान रखा है।
पंकज पांडेय : इसके चौथी तिमाही के नतीजे कमजोर रहे हैं। इसने 2012-13 की पहली तिमाही के लिए निचले आधार के बावजूद -1% से 1% वृद्धि के कमजोर अनुमान सामने रखे हैं। मौजूदा भावों से इसमें बढ़त की संभावना सीमित है। अगर यह लगभग 350-375 के दायरे में मिले तो वहाँ खरीदा जा सकता है।
पी के अग्रवाल : अगर किसी को आईटी क्षेत्र में ही निवेश करना हो तो सवाल है कि विप्रो क्यों? टीसीएस और एचसीएल टेक्नोलॉजीज इससे बेहतर विकल्प हैं।
4. रिलायंस कम्युनिकेशंस
फिसली दुनिया मुट्ठी से
अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की इस प्रमुख कंपनी ने बीते कुछ वर्षों में कई तरह के उतार-चढ़ाव झेले हैं। पर आज इसकी जो हालत है, उसे देख कर तो यही लगता है कि कर लो दुनिया मुट्ठी में के नारे के साथ शुरू होने वाली इस कंपनी के लिए दुनिया मुट्ठी से फिसल गयी है। इसने न केवल 148,694 करोड़ रुपये की बाजार पूँजी गँवायी है, बल्कि इसका शेयर भाव भी अपने उच्चतम शिखर से अप्रैल 2012 के अंत में 91.1% की गिरावट दिखा रहा है।
इतनी गिरावट के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि अब यह और नहीं गिरेगा। लेकिन आक्रामक निवेशक इसे चुनें तो 2-3 सालों में कई गुना फायदा मिलना भी संभव है। करीब 15 करोड़ ग्राहकों के साथ यह कोई छोटी-मोटी कंपनी नहीं है। कर्ज का बोझ कुछ कम होते ही टेलीकॉम बाजार के साथ-साथ शेयर बाजार में भी इसके तेवर बदल सकते हैं।
पंकज पांडेय : संचार क्षेत्र में नियमन (रेगुलेशन) संबंधी मसलों, कंपनी की आमदनी में धीमापन और ऊँचे कर्ज की वजह से मैं इसमें नया निवेश करने की सलाह नहीं दूँगा। लेकिन अगर यह कंपनी अपने टावर कारोबार के लिए कोई सौदा कर सके या अपने समुद्री (अंडरसी) केबल कारोबार के लिए सिंगापुर में आईपीओ ला सके तो छोटी अवधि के लिए इस शेयर में एक उछाल आ सकती है। लिहाजा जिनके पास यह पहले से है, वे रखे रहें।
पी के अग्रवाल : इससे बच कर रहें। इसमें तीन बड़ी समस्याएँ हैं। एक तो टेलीकॉम क्षेत्र की सारी समस्याएँ हैं। दूसरे, खुद कंपनी पर कर्ज काफी ज्यादा है। तीसरे, टेलीकॉम क्षेत्र में हालत सुधरे भी तो इसमें बाकी टेलीकॉम शेयरों से कम बढ़त होगी।
6. बीएचईएल
घट गयी ऊर्जा
जनवरी 2008 से कुछ पहले ही नवंबर 2007 में इसने 2,925 रुपये (समायोजित भाव 585 रुपये) का शिखर छुआ था। अक्टूबर 2008 में यह फिसल कर 984 रुपये (समायोजित 197) पर आ गया, यानी घट कर केवल एक तिहाई रह गया। करीब ढाई साल बाद इस समय वापस उन्हीं निचले स्तरों को छूने का खतरा इस पर मँडरा रहा है।
पूरे बिजली क्षेत्र में छायी अनिश्चितता और नये निवेश में धीमापन आने के चलते बीएचईएल को 2011-12 के दौरान मिलने वाले ठेकों में काफी कमी आयी है। भारी बिजली उपकरणों के क्षेत्र में अगले कुछ सालों के लिए माँग से अधिक क्षमता की स्थिति रहेगी। एक अनुमान के मुताबिक अगले दो सालों में इस क्षेत्र की कुल उत्पादन क्षमता 36,000-39,000 मेगावाट बढ़ जायेगी, जबकि माँग में वैसी बढ़ोतरी नहीं होगी।
पंकज पांडेय : इसकी ज्यादातर नकारात्मक बातों का असर मौजूदा भावों में शामिल दिख रहा है। यह 2012-13 की अनुमानित ईपीएस के आधार पर 9 पीई के मूल्यांकन पर है, जो आकर्षक कहा जा सकता है। लेकिन जब तक बिजली क्षेत्र से जुड़े मुद्दे नहीं सुलझते, तब तक यह शेयर एक दायरे में अटका रहेगा। मौजूदा निवेशकों को मैं इसमें बने रहने की सलाह दूँगा, जबकि नये निवेशक कोई गिरावट आने पर इसे खरीद सकते हैं।
पी के अग्रवाल : अब निवेश के लिहाज से इसमें कुछ बाकी नहीं है, तकनीकी उछाल आ जाये तो अलग बात है। निवेश के लिए मुझे यह इन स्तरों पर भी अच्छा नहीं लग रहा, क्योंकि यहाँ से 300 रुपये का भाव आने में भी अगर 5 साल लग जायें तो क्या फायदा?
7. यूनिटेक
चौतरफा मार
जमीन-जायदाद या रियल एस्टेट क्षेत्र की इस कंपनी की मौजूदा बाजार पूँजी अभी जितनी है, उससे 11.5 गुना ज्यादा रकम तो डूब चुकी है। अप्रैल 2012 के अंत में इसकी बाजार पूँजी 6,946 करोड़ रुपये है, जबकि यह कंपनी अपने ऊपरी स्तर से 80,425 करोड़ रुपये की बाजार पूँजी का नुकसान देख चुकी है।
इसमें मजबूती का दौर साल 2003 से चालू हुआ, पर साल 2005 से इस पर लोगों का ध्यान ज्यादा गया। एक समय तो इसने हर दिन ऊपरी सर्किट छूने का लंबा सिलसिला बना लिया था। साल 2000 से 2002 तक यह 30-40 रुपये का शेयर होता था, जिसने 2005 में पहली बार 1000 का स्तर छू लिया। अगले साल 2006 में तो यह 14,799 तक चढ़ा। इसके बाद कंपनी ने जून 2006 में न केवल 10 रुपये अंकित मूल्य को दो रुपये के पाँच शेयरों में विभाजित किया, बल्कि एक पर 12 के अनुपात में बोनस शेयर भी जारी किये। इन दोनों के असर से कंपनी का एक शेयर उस समय 60 शेयरों में बदल गया और एक झटके में इसका भाव 10,500 रुपये के आसपास के स्तरों से घट कर करीब १७० पर आ गया।
वहाँ से यह जनवरी 2008 में 547 तक जाने के बाद अब 27 रुपये पर है, यानी 100 में से 95 रुपये स्वाहा हो चुके हैं। इतनी गिरावट के बाद भी जानकार इस कंपनी को निवेश के लायक नहीं मान रहे। उनकी राय में अब यह ज्यादा-से-ज्यादा कारोबारी सौदों के ही लायक रह गया है।
पी के अग्रवाल : रियल एस्टेट क्षेत्र अपनी समस्याओं से जूझ रहा है। यूनिटेक में 2जी स्पेक्ट्रम से संबंधित समस्याएँ भी जुड़ी हुई हैं। इस तरह यहाँ करेले पर नीम चढ़ा वाली स्थिति है। अगर किसी को रियल एस्टेट क्षेत्र पर दाँव लगाना ही है तो यूनिटेक की तुलना में डीएलएफ में पैसा लगाना कहीं बेहतर होगा।
9. सुजलॉन
हवा अनुकूल नहीं
पवन की शक्ति को मुनाफे की शक्ल में अपने बही-खातों में उतार लेने वाली यह कंपनी आज कल शेयर बाजार में एक कटी पतंग है। यह पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विंड टर्बाइन और विंड जेनरेटर बनाने वाली विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी कंपनी है। लेकिन इसके सबसे ऊपरी स्तर से देखें तो निवेशक 100 में से 95 रुपये गँवा चुके हैं।
हालाँकि याद दिला दें कि अक्टूबर 2011 के अंक में निवेश मंथन ने इसे निवेश के लायक चुनिंदा शेयरों में शामिल किया था। तब हमारा तर्क यह था कि जर्मनी की कंपनी रीपावर सिस्टम्स में कंपनी की 95% हिस्सेदारी की कीमत 7675 करोड़ रुपये बैठती है, जबकि खुद सुजलॉन की बाजार पूँजी 7000 करोड़ रुपये के नीचे जा चुकी है। वह तर्क आज और भी सटीक है, क्योंकि अब तो सुजलॉन की बाजार पूँजी घट कर 4052 करोड़ रुपये पर आ चुकी है। लेकिन सच यह भी है कि इतने निचले भावों पर आने के बावजूद किसी भी स्तर पर बाजार के जानकार इसमें कोई जान नहीं देख रहे। इसका मुख्य कारण यही है कि कंपनी पर हद से ज्यादा कर्ज है। इस मोर्चे पर सुधार दिखते ही यह शेयर लंबी छलांग लगा सकता है, लेकिन ऐसा होने में कितना समय लगेगा, यह कहना आज कठिन है।
पंकज पांडेय : इस शेयर से अलग रहना बेहतर है। जिन निवेशकों के पास यह शेयर है, उन्हें किसी उछाल में इससे बाहर आ जाना चाहिए और वह पैसा इसी क्षेत्र के बड़े नामों, जैसे एलएंडटी में लगाना चाहिए।
पी के अग्रवाल : इससे अभी दूर रहना चाहिए। पिछली 8 तिमाहियों से यह कंपनी अपने कामकाज में सुधार की बातें कर रही है, लेकिन इसका कर्ज पहले जैसे ऊँचे स्तरों पर ही अटका है। कहीं तो कोई योजना नजर आये कि कंपनी आगे क्या करेगी। अब तक कंपनी के 50% वादे भी पूरे नहीं हो सके हैं।
8. सेल
अंदर से मजबूत
सरकारी इस्पात कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. (सेल) ने भी बाजार में हर तरह के रंग देखे हैं। एक जमाने में इसकी बाजार पूँजी इसके गोदामों में पड़े स्क्रैप की कीमत से भी कम रह गयी थी और 1998 से 2003 के बीच यह शेयर 4-5 रुपये जैसे हास्यास्पद भावों पर मिलता रहा। लेकिन जब साल 2003 से शुरू होने वाली तेजी में इसके दिन फिरे तो यह 293 रुपये के ऊँचे स्तर पर भी चला गया। हालाँकि सच तो यह है कि 1998 से 2003 तक इस शेयर को अपने पोर्टफोलिओ में मन से या बेमन से रखे रहने वाले ज्यादातर निवेशकों ने जैसे ही 10-20 रुपये के भाव देखे होंगे, उन्होंने इसे बेच डाला होगा। शेयर बाजार में अपनी तपस्या का पूरा लाभ उठा पाने वाले निवेशक कम ही होते हैं।
लेकिन साल 2008 में जब बाजार टूटा तो सेल की अंदरुनी मजबूती ज्यादा काम नहीं आ सकी और यह 55 रुपये तक फिसल गया।
पंकज पांडेय : सेल भारत में इस्पात बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल है। यह अभी अपनी क्षमता बढ़ा रही है, जिससे कंपनी की आमदनी बढऩे की उम्मीद है। हाल में कोकिंग कोल की कीमतें घटी हैं, जिसका इस कंपनी को फायदा मिलेगा। मेरा अनुमान है कि कंपनी का एबिटा मार्जिन 2011-12 की तीसरी तिमाही के 14.7% से सुधर कर साल 2012-13 में 15.6% हो जायेगा। मध्यम से लंबी अवधि का नजरिया रखने वाले मौजूदा निवेशक इसे रखे रहें।
पी के अग्रवाल : सेल और एनएमडीसी की हालत एक जैसी है। सेल के अंदर मूल्य है, लेकिन इसमें काफी जोरदार तेजी की भी उम्मीद नहीं की जा सकती। औसत लाभ से संतुष्ट होने वाले संकोची निवेशकों के लिए यह ठीक है।
10. रिलायंस कैपिटल
उम्मीदें हैं कायम
भारत के वित्तीय क्षेत्र में एक समय बेहद आक्रामक ढंग से पाँव पसारने वाली यह कंपनी पिछले दिनों वक्त की मार से सिकुड़ गयी थी। लेकिन इसके बारे में हाल के कई संकेत सकारात्मक रहे हैं और अब ऐसा लगता है कि इसके दिन फिर सकते हैं।
अगर हम इसका पीई अनुपात देखें तो यह अपने क्षेत्र के अन्य शेयरों से महँगा लग सकता है। लेकिन बुक वैल्यू के नजरिये से यह उचित भावों पर है, क्योंकि इसके शेयर भाव और बुक वैल्यू का अनुपात लगभग 1 पर आ गया है।
पंकज पांडेय : रिलायंस कैपिटल की कई सहायक कंपनियाँ अच्छा कारोबार कर रही हैं। इसकी एएमसी का सालाना कर पूर्व लाभ (पीबीटी) 240-250 करोड़ रुपये का है। इसकी जीवन बीमा कंपनी 2011-12 में मुनाफे में आ गयी है। इसका कंज्यूमर फाइनेंस भी मुनाफेदार कारोबार है। एएमसी और जीवन बीमा में निप्पॉन लाइफ को हिस्सेदारी बेचने से कंपनी को लगभग 4,500 करोड़ रुपये मिले हैं, जिससे इसकी वित्तीय सेहत सुधरी है। मेरा मानना है कि मौजूदा निवेशकों को इसे रखे रहना चाहिए। साथ ही इसे निचले भावों पर जमा (एकम्युलेट) किया जा सकता है क्योंकि मौजूदा भावों पर यह आकर्षक लग रहा है।
पी के अग्रवाल : यह इतना बुरा भी नहीं, लेकिन ऐसा भी नहीं कि कल से ही इसका भाव चलना शुरू हो जायेगा। यह इतने अलग-अलग कारोबारों में है कि जब तक इसके म्यूचुअल फंड और बीमा जैसे कारोबारों का मूल्यांकन नहीं खुलेगा, तब तक कंपनी का मूल्यांकन करना ही मुश्किल है। एडीएजी समूह में अगर आपको कोई शेयर चुनना है तो यह एक नाम जरूर हो सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि इसका भाव 250 रुपये तक गिर सकता है।
12. केजीएन इंडस्ट्रीज
इन भावों पर भी महँगा
केजीएन इंडस्ट्रीज का शेयर साल 2001 में बाजार से हटने के बाद 21 मई 2008 को दोबारा सूचीबद्ध हुआ और उसी दिन इसने 55,000 रुपये से लेकर 72 रुपये तक का उतार-चढ़ाव देखा। अगर लिस्टिंग के दिन के 55,000 रुपये (समायोजन के बाद 5,500, जिसे इस चार्ट में दिखाना भी मुश्किल था) को छोड़ भी दें तो अगले दिन 5,477 रुपये (समायोजित 550) के भाव से भी यह करीब 96% नीचे है। इसे निवेशकों के लिए असुरक्षित कहा जा सकता है।
आशीष कुकरेजा : यह महँगा शेयर लगता है, इससे निकल जायें।
12. सुबेक्स
एफसीसीबी बना गले की फांस
बौद्धिक संपदा पर आधारित कारोबारी मॉडल से भीड़ में अलग पहचान बनाने की रणनीति के साथ आमदनी और मुनाफे में शानदार बढ़त ने एक समय इसे बाजार का दुलारा शेयर बना दिया था। इसके ग्राहकों की सूची में बीटी, एटीएंडटी, टी-मोबाइल और वोडाफोन जैसे नाम भी भरोसा जगाते थे। लेकिन एफसीसीबी से जुटायी पूँजी अब कंपनी के गले की फांस बन चुकी है। हालाँकि हाल में आरबीआई ने इसके एफसीसीबी पुनर्गठन की योजना को मंजूरी दी है।
आशीष कुकरेजा : इसे बेच कर हेक्सावेयर में निवेश करें।
13. रिलायंस मीडियावक्र्स
घाटे की पटकथा
अनिल अंबानी समूह की इस कंपनी का पुराना नाम ऐडलैब्स फिल्म्स है। फिल्म प्रोसेसिंग और बिग सिनेमा के नाम से मूवी थिएटर का कारोबार चलाने वाली यह कंपनी कई तिमाहियों से लगातार घाटे में चल रही है। अक्टूबर-दिसंबर 2011 की तिमाही में भी इसने 211 करोड़ रुपये की कंसोलिडेटेड आमदनी पर 150.5 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया।
पी के अग्रवाल : मीडिया में लागत और अन्य पहलुओं को समझना मुश्किल है, पर भविष्य अच्छा है। लिहाजा जोखिम लिया जा सकता है।
14. केएस ऑयल
कहाँ गये प्रमोटर?
करीब डेढ़ साल पहले तक कई प्रमुख ब्रोकिंग फर्मों ने सरसों तेल, रिफाइंड तेल वगैरह बनाने वाली इस कंपनी के लिए खरीद रेटिंग दे रखी थी। लेकिन नकदी के संकट में फँसी इस कंपनी की इसकी बिक्री पिछली कुछ तिमाहियों के दौरान लगातार घटी और यह मुनाफे से घाटे में आ गयी। इसमें प्रमोटर हिस्सेदारी जून 2011 के 30.72% से घट कर सितंबर 2011 में 9.10% रह गयी।
पी के अग्रवाल : इसका तेल-घी खा लें, शेयर छोड़ दें!
आशीष कुकरेजा : अभी बने रहें और भाव बढऩे पर बेच दें।
15. किंगफिशर एयरलाइंस
सारे जमीं पर
आजकल जिस तरह इसके पायलट और बाकी कर्मचारी वक्त-बेवक्त हड़ताल करते रहते हैं, उससे इस कंपनी के विमानों के लिए यही कहा जा सकता है - सारे जमीं पर। भारतीय विमानन क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के लिए विजय माल्या ने जब एयर डेक्कन को खरीदा तो घोषित-अघोषित इरादा यह था कि कम किराये वाली विमानसेवाओं से मिल रही प्रतिस्पर्धा को खत्म किया जाये। लेकिन अपने खर्चीले कारोबारी मॉडल से कंपनी अब ऐसे संकट में घिर गयी है कि खुद उसका अस्तित्व खत्म होने की आशंका बनी हुई है।
पंकज पांडेय : इसकी वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता है। कंपनी को अपने कर्ज का भारी बोझ घटाने के लिए जरूरी पैसा जुटाने में काफी मुश्किल होगी। विदेशी विमानसेवाओं को निवेश की अनुमति मिलने पर भी अभी अनिश्चितता कायम है। जब तक इस दिशा में कोई पहल न हो, तब तक इस शेयर से अलग रहें।
पी के अग्रवाल : यह अब निवेश के लायक नहीं रह गया है।
16. जय कॉर्प
सटोरिया उतार-चढ़ाव से डर
जय कॉर्प इस्पात, प्लास्टिक प्रोसेसिंग और स्पिनिंग यार्न जैसे कई तरह के कारोबारों में सक्रिय है। कुछ समय से इसने एसईजेड, बुनियादी ढाँचा, वेंचर कैपिटल और रियल एस्टेट जैसे कारोबारों में भी कदम रखा है। लेकिन निवेशकों के बीच इस कंपनी की सबसे खास पहचान इस रूप में है कि यह आनंद जैन की कंपनी है, जो मुकेश अंबानी के करीबी मित्र कहे जाते हैं। इसी वजह से बाजार के कई जानकार मानते हैं इस शेयर की चाल रिलायंस इंडस्ट्रीज की चाल से काफी मेल खाती है। लेकिन साल 2007-08 में इसकी चाल रिलायंस से ज्यादा तूफानी थी और वैसी ही गति से यह बाजार कमजोर होने पर टूट भी गया।
साल 2007-08 के दौरान बाजार में उछाल के साथ यह शेयर भी 1,450 के शिखर तक चढ़ा था, लेकिन वहाँ से यह 95% से अधिक का नुकसान देख चुका है। इस उतार-चढ़ाव में कंपनी की बाजार पूँजी 21,666 करोड़ रुपये नीचे आ चुकी है। कंपनी की आमदनी और मुनाफे के आँकड़ों में एक स्थिरता दिखती है और मार्जिन भी ठीक-ठाक कहा जा सकता है। लेकिन कंपनी अपनी बुनियादी वजहों से कम और शेयर भावों में सटोरिया दिलचस्पी के लिए ज्यादा चर्चा में रहती है।
आशीष कुकरेजा : यह अच्छे मूल्यांकन पर है। इसे निचले भावों पर जमा किया जा सकता है। इसमें मूल्यांकन खुलने (वैल्यू अनलॉकिंग) की उम्मीद रहेगी।
17. यूनाइटेड ब्रेवरीज (होल्डिंग्स)
किंगफिशर के जाल में उलझी
जनवरी 2008 में 8,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बाजार पूँजी पर पहुँच चुकी इस कंपनी का बाजार मूल्यांकन घट कर अप्रैल 2012 के अंत में केवल 481 करोड़ रुपये रह गया है। यूबी समूह की कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस पर भारी कर्ज के कारण बाजार में यह अटकलें लगती रही हैं कि इसके प्रमोटर विजय माल्या यूबी होल्डिंग्स में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेच सकते हैं। प्रमोटर कंपनी होने के नाते किंगफिशर के कर्ज की गारंटी यूबी होल्डिंग्स ने ही दी है। यह यूबी समूह की होल्डिंग कंपनी है, जो यूनाइटेड स्पिरिट्स में करीब 18% हिस्सेदारी रखती है, लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा गिरवी रखा हुआ है। समूह की एक प्रमुख कंपनी यूनाइटेड ब्रेवरीज में यूबी होल्डिंग्स की सीधी हिस्सेदारी 11.46% है, जिसमें 2.90% भाग गिरवी रखा है।
पी के अग्रवाल : किंगफिशर एयरलाइंस का दबाव इस पर भी है। लिहाजा इसे भी निवेश करने लायक नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसमें जो पैसा बनेगा भी वह दूसरी जगह डुबा देंगे।
18. गैमन इंडिया
बाजार की बेरुखी
बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) क्षेत्र को लेकर इस समय बाजार में काफी हताशा का माहौल है, जिसका असर इस शेयर के भावों पर स्पष्ट दिखता है। पिछले साल से ही गैमन इंडिया दबाव में है। कुछ पुराने बड़े ठेकों में कम मार्जिन, नये ठेके मिलने की धीमी रफ्तार, भारी कर्ज और कामकाजी पूँजी की कमी, बिजली क्षेत्र से जुड़े कारोबार में घाटा जैसी कई परेशानियाँ इसे पिछले साल से ही परेशान कर रही हैं। हाल में इसके कारोबारी नतीजों में, खास कर मुनाफे के आँकड़े में काफी उतार-चढ़ाव दिखता रहा है। लेकिन इसका पीई अनुपात घट कर करीब छह पर आ गया है। कीमत और बुक वैल्यू का अनुपात तो 0.31 पर है। लिहाजा निचले भावों पर खरीदारी उभरे तो आश्चर्य नहीं होगा।
पी के अग्रवाल : अभी बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) क्षेत्र में कुछ खास हो नहीं रहा है। नयी परियोजनाएँ नहीं आ रही हैं और पुरानी परियोजनाएँ अटकी पड़ी हैं। इस क्षेत्र की कहानी अभी पीछे है। करीब साल भर तक इन शेयरों का समय नहीं आयेगा।
19. अंसल प्रॉपर्टीज
गिरवी शेयरों का बोझ
अंसल समूह की यह प्रमुख रियल एस्टेट कंपनी आजकल बाजार की नजरों से उतरी हुई है। इसमें कारोबार की मात्रा बेहद घट गयी है। दरअसल रियल एस्टेट क्षेत्र को लेकर ही बाजार का उत्साह बिल्कुल खत्म हो चुका है और जो निवेशक इस क्षेत्र पर नजर डालते भी हैं, वे डीएलएफ और यूनिटेक जैसे नामों से आगे नहीं बढ़ते। इसी वजह से चार दशक पुरानी यह कंपनी कई बड़ी परियोजनाओं के बावजूद निवेशकों का ध्यान नहीं खींच पा रही है। इसका मूल्यांकन देखें तो पीई अनुपात घट कर पाँच से कम रह गया है, जबकि मौजूदा भाव और बुक वैल्यू का अनुपात केवल 0.27% पर है। रियल एस्टेट क्षेत्र के औसत पीई से मुकाबले यह काफी गहरी छूट पर उपलब्ध है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसका डिविडेंड लाभ भी डीएलएफ और यूनिटेक की तुलना में कहीं बेहतर है। लेकिन इन सारी बातों पर एक चिंता यह हावी है कि इसमें प्रमोटर हिस्सेदारी का ज्यादातर भाग गिरवी है। कंपनी में प्रमोटर हिस्सेदारी 46% से कुछ ज्यादा है, जबकि इसमें से 36% भाग गिरवी रखा है।
पी के अग्रवाल : निवेशक इन भावों पर इसे खरीद सकते हैं, लेकिन यह पूरे रियल एस्टेट की स्थिति के हिसाब से ही चलेगा। इस क्षेत्र का दबाव इस कंपनी पर भी लागू रहेगा। हालाँकि इसकी स्थिति उतने दबाव में नहीं है और कीमत काफी नीचे आ गयी है। इसलिए तुलनात्मक रूप से बेहतर लाभ मिल सकता है, बशर्त ब्याज दरें और नीचे आने लगें।
20. जय बालाजी इंडस्ट्रीज
घाटे ने घसीटा
कोलकाता की यह कंपनी लोहा-इस्पात क्षेत्र में सक्रिय है। यह वायर रोप, स्टील बिलेट और स्पांज आयरन बनाती है। हमने जिन तीन विश्लेषकों से बात की, उनमें से किसी ने इसके बारे में कोई राय नहीं दी। हालाँकि मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने मई 2011 में इसे 188 के भाव पर खरीदने की सलाह देते हुए 316 रुपये का लक्ष्य बताया था। अप्रैल 2012 के अंत में इसका भाव 39 रुपये है।
इस ब्रोकिंग फर्म ने अनुमान लगाया था कि साल 2011-12 में इस कंपनी का मुनाफा 85 करोड़ करोड़ रुपये होगा। लेकिन साल की शुरुआती तीन तिमाहियों से स्पष्ट है कि कंपनी इस साल तगड़े घाटे में ही रहेगी। अप्रैल-जून 2011 की तिमाही में इसने 592 करोड़ रुपये की आमदनी पर केवल 7 करोड़ रुपये का मुनाफा दिखाया था। उसके बाद से यह कंपनी घाटे में ही चल रही है। जुलाई-सितंबर 2011 में इसे 53 करोड़ रुपये का और अक्टूबर-दिसंबर 2011 में 70 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। इसका वायर रोप कारोबार काफी नुकसान दे रहा है।
21. नेटवर्क 18 मीडिया
बड़े दाँव, पर बाजार में दबाव
नेटवर्क 18 मीडिया एंड इन्वेस्टमेंट्स सीएनबीसी टीवी18 और सीएनबीसी आवाज को चलाने वाली कंपनी टीवी18 ब्रॉडकास्ट की प्रमोटर है। साथ ही यह सेटप्रो, नेटवर्क18 होल्डिंग्स और आईबीएन18 ब्रॉडकास्ट में हिस्सेदारी रखती है। इसने हाल में रिलायंस के साथ बड़ा समझौता किया है और साथ ही 2100 करोड़ रुपये के निवेश से ईटीवी के चैनलों में हिस्सेदारी ली है।
आशीष कुकरेजा : हाल में इसे जो पूँजी मिली है, उससे कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसे रखे रहें और ऊपरी स्तर आने पर बेचें।
22. बजाज हिंदुस्तान
भारी कर्ज से घटी मिठास
बजाज हिंदुस्तान ने ठीक पिछली तिमाही के 44.43 करोड़ रुपये के घाटे के मुकाबले बीती तिमाही में इसने 8.8 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया, पर यह बाजार की उम्मीदों से कम रहा।
पंकज पांडेय : यह कामकाजी मोर्चे पर ठीक है, मगर लगभग 5000 करोड़ रुपये के कर्ज से इस पर दबाव है। अभी इससे अलग रहें।
पी के अग्रवाल : बाजार में जब अगली तेजी आयेगी तो उसमें चीनी क्षेत्र और इस शेयर के आगे रहने की उम्मीद मुझे नहीं है। इसलिए इनमें पैसा फँसा कर रखना बेकार है।
23. श्री अष्टविनायक सिने विजन
शेयर नहीं दबंग, हीरो गायब
दबंग जैसी सफल फिल्में बनाने वाली श्री अष्टविनायक सिने विजन निवेशकों के लिए तो सफल निवेश की श्रेणी में कतई नहीं रखी जा सकती। हालाँकि दबंग की कामयाबी के बाद इसने नवंबर 2010 में 51 रुपये का ऊपरी स्तर छुआ, लेकिन अब यह वहाँ से 93% गिर कर 4 रुपये के भी नीचे है। एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें प्रमोटर हिस्सेदारी केवल 5% है, यानी हीरो गायब है!
पी के अग्रवाल : अगर मीडिया में निवेश करना है तो रिलायंस मीडिया बेहतर विकल्प है।
24. इंडियाबुल्स रियल एस्टेट
शेयर भाव उतरे जमीन पर
जनवरी 2008 से आयी गिरावट से जो शेयर कभी ठीक से उबर नहीं पाये, उनमें यह भी है। लेकिन 2008 के आसमानी भावों से उतरने के बाद अब यह हकीकत की जमीन पर आ गया लगता है। इसके ताजा तिमाही नतीजे उम्मीदों के मुताबिक रहे हैं।
पी के अग्रवाल : इसकी बैलेंस शीट बाकी रियल एस्टेट कंपनियों से बेहतर है, लेकिन परियोजनाओं को सँभालने की इसकी क्षमता खुल कर सामने आयी नहीं है। रियल एस्टेट के चुनिंदा शेयरों का पोर्टफोलिओ बनाना हो तो इसे जरूर रखा जा सकता है।
25. अबान ऑफशोर
कारोबार ठंडा, शेयर मंदा
अबान ऑफशोर तेल-गैस कंपनियों के लिए रिग लगाने का काम करती है। यह कारोबार कुछ मंद पड़ गया है, जिससे बीती कई तिमाहियों से यह घाटे में है।
पंकज पांडेय : कंपनी के आठ रिग के करार की अवधि 2012-13 में पूरी हो रही है। कंपनी पर ब्याज दरों का दबाव भी है। लेकिन इसका भाव काफी नीचे आ गया है। निचले भावों पर इसे जमा करना ठीक है।
पी के अग्रवाल : तेल कंपनियाँ ज्यादा आक्रामक ढंग से खुदाई पर जोर नहीं दे रही हैं। अभी यह कारोबार ठंडा ही लग रहा है।
26. ग्रेट ऑफशोर
ब्याज के बोझ से डगमग नैया
ख्रनन और उत्पादन के लिए तेल-गैस कंपनियों को ऑफशोर सेवाएँ देने वाली ग्रेट ऑफशोर पिछली कई तिमाहियों से ब्याज के बढ़ते बोझ से दबी है। बीती तिमाही में भी इसका ब्याज भुगतान ठीक पिछली तिमाही से 8% ज्यादा रहा।
पंकज पांडेय : ब्याज के बढ़ते बोझ से इसके मुनाफे पर दबाव रहा है। इसमें नया निवेश न करें। मौजूदा निवेशक किसी बढ़त पर निकलें।
पी के अग्रवाल : यह स्थिर कारोबार है और चलता रहेगा, लेकिन इसके भावों में तुरंत तेजी आने की उम्मीद नहीं है।
27. एवरेस्ट कैंटो सिलिंडर
घटती बिक्री, बढ़ती लागत
कंपनी औद्योगिक और सीएनजी सिलिंडर बनाती है। इसने 2011-12 की तीसरी तिमाही में 22 करोड़ रुपये का घाटा सहा। कंपनी की शुद्ध बिक्री में भी बीती कुछ तिमाहियों से कमी आ रही है।
पंकज पांडेय : भारत और दुबई में बिक्री घटने के साथ-साथ अमेरिका और चीन में भी इसकी माँग घटी है। कच्चे माल की ऊँची कीमत से मार्जिन पर भी दबाव रहेगा। इससे अलग रहें।
पी के अग्रवाल : कंपनी के मार्जिन में कमी आ रही है। लेकिन इसे अच्छे तकनीकी समर्थन स्तरों पर खरीदा जा सकता है।
(निवेश मंथन, मई 2012)