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- Category: अगस्त 2012
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक:
प्रणव मुखर्जी का वित्त मंत्री पद छोडऩा और उनको राष्ट्रपति बनाने का रहस्य आने वाले समय में राजनीतिक टिप्पणीकारों का सबसे दिलचस्प विषय होगा। वित्त मंत्रालय छोड़ते समय 25 जून को उन्होंने अपने 45 सालों के राजनीतिक सफर को बड़े भावुक होकर याद किया। पर बतौर वित्त मंत्री अपने कार्यकाल पर एक शब्द भी बोलना उन्हें मुनासिब नहीं लगा। उन्हें यूपीए-2 सरकार का राजनीतिक संकटमोचक कहा गया है। लेकिन बाजारवादी अर्थ-जगत उन्हें मौजूदा खराब आर्थिक हालत के लिए कसूरवार मानता है।
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- Category: अगस्त 2012
शेयर मंथन सर्वेक्षण
जनवरी 2012 में शेयर बाजार के दिग्गज विशेषज्ञों के सर्वेक्षण पर हमारी आमुख कथा का शीर्षक था - कहीं पास ही है तलहटी। लेकिन आज पलट कर देखें तो पता चलता है कि तब बाजार अपनी तलहटी के आसपास नहीं था, बल्कि ठीक उसी समय दिसंबर के अंतिम हफ्ते में तलहटी बना कर आगे बढ़ा था।
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राजीव रंजन झा :
बाजार वक्त से आगे चलने का आभास देता है, लेकिन हर बार वाकई ऐसा होना जरूरी नहीं है। कई बार बाजार किसी बड़े रुझान को देखने में काफी समय लगा देता है और जब बाजार की नजर उस रुझान पर पड़ती है, तब तक संभव है कि उस रुझान का पेंडुलम वापस पलट चुका हो।
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- Category: अगस्त 2012
तिमाही नतीजे
क्या सेंसेक्स की दिग्गज कंपनियों पर इस कारोबारी साल की पहली तिमाही में दबाव भले ही रहे, लेकिन सुधार के लक्षण भी दिखेंगे? क्या ऐसा होगा कि मोटे तौर पर साल-दर-साल आकलन करते समय तस्वीर अच्छी न लगे, लेकिन तिमाही-दर-तिमाही तुलना में स्थिति बेहतर होती दिखे?
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दिनेश ठक्कर, सीएमडी, एंजेल ब्रोकिंग :
बाजार ब्याज दरों में कम-से-कम 0.25% अंक की कटौती की उम्मीद करके चल रहा था, इसलिए 18 जून को आरबीआई की बैठक में इनमें कोई बदलाव नहीं होना निराशाजनक है। लेकिन यह सच है कि विकास दर में काफी कमी आने के बावजूद महँगाई दर ऊपरी स्तरों पर अटकी है, जिससे मौद्रिक नीति बनाना काफी चुनौती भरा हो गया है।
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अशोक अग्रवाल, सीओओ, एस्कॉट्र्स सिक्योरिटीज :
रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने का जो फैसला किया है, उससे लगता है कि आरबीआई थोड़ा सुरक्षित रह कर चलना चाहता है। इससे दिखता है कि आरबीआई काफी ज्यादा सावधानी बरत रहा है।
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- Category: अगस्त 2012
राजीव रंजन झा :
निवेश मंथन के पिछले अंक के लिए जब मैं राग बाजारी लिख रहा था, तब बाजार में चिंताएँ थीं और जानकार काफी नीचे के स्तरों तक गिरावट के अंदेशे जता रहे थे। मेरा भी ध्यान निफ्टी के चार्ट पर नवंबर 2010 के शिखर 6339 से लेकर साल 2011 के तमाम शिखरों को छूती उस रुझान रेखा पर था, जिस पर निफ्टी करीब सवा साल तक अटकता रहा था। इस साल जनवरी के अंत में ही तो वह रुझान रेखा पार हो पायी थी, जिसके बाद फरवरी में निफ्टी 5630 तक गया था।
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- Category: अगस्त 2012
प्रणव दा की अब तक की उपलब्धियों पर नजर डाल कर कुछ अच्छा-अच्छा लिखने का मन कर रहा है। लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि बात कहाँ से शुरू की जाये। यह दुविधा इसीलिए है कि मन तो उपलब्धियाँ गिनने-गिनाने का हो रहा है, लेकिन अर्थव्यवस्था की ताजा हालत इस बात की इजाजत नहीं देती कि बीते तीन सालों में वित्त मंत्री के रूप में उनकी भूमिका के कसीदे पढ़े जायें। क्या कहें? क्या
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पेट्रोल और डीजल की कीमतों में जो अंतर कभी 10 रुपये प्रति लीटर से भी कम था, वह अब बढ़ कर तकरीबन 25-26 रुपये हो गया है। मारुति सुजुकी के ईडी (मार्केटिंग) शशांक श्रीवास्तव बता रहे हैं कि इस वजह से जिन वाहनों में डीजल का विकल्प उपलब्ध है, उनमें 85% गाडिय़ाँ डीजल की ही बिक रही हैं। निवेश मंथन से उनकी एक खास बातचीत...
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सतकाम दिव्य, बिजनेस हेड, रूपीटॉक डॉट कॉम :
आपका वाहन आपके लिए कीमती वस्तु है और इसकी सुरक्षा करना भी आपके लिए उतना ही अनिवार्य है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने वाहन का बीमा जरूर करायें। इस मामले में अगर आप ढिलाई बरतते हैं तो भी सरकार की ओर से यह प्रावधान है कि आप अपने वाहन की उचित सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसके लिए मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत सरकार की ओर से तीसरे पक्ष (थर्ड पार्टी) का मोटर बीमा कराया जा सकता है। यह अधिनियम मुख्य रूप से वाहनों की चार श्रेणियों पर लागू होता है :
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उमानाथ सिंह :
पत्रकार सुनील सिरीज की आँखों की चमक लौट आयी है। खिले हुए चेहरे लिए वह एक साँस में नोएडा एक्सटेंशन के हालिया डेवलपमेंट बयां कर जाते हैं। अबकी वह इस बात से आश्वस्त हैं कि उनकी उम्मीदों की लौ नहीं बुझेगी। नोएडा एक्सटेंशन के दो अन्य निवेशक कृष्णा और प्रीति भी अपनी खुशी नहीं छुपा पा रही हैं। विश्वास से भरे उनके चेहरे ही बता जाते हैं कि अब आशियाने के उनके सपने जल्द सच होंगे!
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- Category: अगस्त 2012
केवल चार लोगों के साथ घर के एक कमरे में शुरू होने वाली इंडियामार्ट कैसे देश की सबसे बड़ी बी2बी पोर्टल बन पायी और कैसे डॉट कॉम की तबाही के दौर से भी सुरक्षित रह पायी, यह किस्सा बता रहे हैं खुद इस कंपनी के संस्थापक सीईओ दिनेश अग्रवाल :
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