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और गिरावट के इंतजार में बस छूट जाती है

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Category: सितंबर 2011

अनिल चोपड़ा, सीईओ, बजाज कैपिटल :

बाजार में गिरावट आयी है इसलिए निवेश करना चाहिए, ऐसा सोचना गलत है। या फिर बाजार नीचे गिर रहा है, इसलिए इसमें से निकल जाना चाहिए, यह सोचना भी गलत है। म्यूचुअल फंड संपत्ति बनाने का एक जरिया है, बशर्ते आपका कोई लंबी अवधि का लक्ष्य हो।

अगर आप अनुशासन के साथ लगातार निवेश करने में विश्वास रखते हैं तो निश्चित रूप से आप एक अच्छी रकम जमा कर पायेंगे। अब सवाल यह है कि म्यूचुअल फंड में कब निवेश किया जाये। इसका जवाब यह नहीं है कि जब बाजार नीचे हो तब निवेश करें। इसका जवाब यह है कि जब आपके पास पैसे हों, तब निवेश करें। दूसरा सवाल यह है कि कब बेचना चाहिए, कब अपनी यूनिट रिडीम करनी चाहिए, तो उसका जवाब यह है कि जब आपको पैसे की जरूरत हो। ऐसा करना ठीक नहीं है कि बाजार नीचे है इसलिए बेच दो या और नीचे जाने का डर है इसलिए बेच दो। निवेश का हर फैसला आपके भविष्य के लक्ष्यों से जुड़ा होना चाहिए। बाजार में निवेश करने या बेचने का सबसे अच्छा समय चुनना काफी मुश्किल है, कोई ऐसा नहीं कर पाता। अगर आपका कोई लक्ष्य 7-8 साल या उसके भी बाद आने वाला है तो आप म्यूचुअल फंड में नियमित निवेश योजना (एसआईपी) के जरिये निवेश शुरू कर दीजिए। हम तो मानते हैं कि एसआईपी दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है। यह ऐसा खेल है, जिसमें खेलने वाला हमेशा जीतता ही है। जब बाजार चढ़ता है, उस समय तो सबको फायदा होता ही है और आपके पैसे बढ़ते जाते हैं। जब बाजार गिरता है, तब भी आपके पैसे चढ़ते हैं। अगर बाजार नीचे आ गया हो और आपके वित्तीय लक्ष्य का समय नहीं आया हो, तो उस समय आपके वही 5,000 रुपये जो आप हर महीने डालते हैं, उन पर आपको ज्यादा यूनिट मिलने लगते हैं। इससे तो आपको आगे चल कर फायदा मिलने की संभावना और बढ़ जाती है, क्योंकि आपको सस्ते में माल मिल रहा है। आप कभी खरीदारी करने बाजार जाते हैं, कोई कमीज पसंद आती है, पर देखते हैं कि 1,000 रुपये कीमत है। तब आप सोचते हैं कि थोड़ी महँगी है, कौन 1,000 रुपये खर्च करे। अगले रविवार को आप उसी मॉल में जाते हैं और देखते हैं कि वही कमीज 30% छूट की सेल पर है। आप सोचते हैं कि यही कमीज है जिसे मैं देख कर गया था, अब 700 रुपये में मिल रही है इसलिए आज तो ले ही लो। बल्कि दो कमीज ले लो, पता नहीं कब मौका मिले ना मिले।
इसी तरह से आप एसआईपी में अपनी निवेश योजना को थोड़ा इस तरह बदल सकते हैं कि अगर आप हर महीने 5,000 रुपये का निवेश करते हैं तो बाजार में ऐसी गिरावट के समय अपना निवेश थोड़ा बढ़ा दें, 10,000 रुपये कर दें। लेकिन शर्त यही है कि उस अतिरिक्त 5,000 रुपये का निवेश कहीं से उधार ले कर, बैंक से कर्ज लेकर या सोना बेच कर नहीं करें, अपनी बचत के पैसे में से थोड़ा ज्यादा निकाल कर सकते हैं तो ऐसा कर लें। लालच में आ कर अपनी क्षमता से अधिक निवेश नहीं करें। अगर आपके वित्तीय लक्ष्य कम-से-कम 5-7 साल बाद आने वाले हों, तब ऐसे मौकों पर निवेश थोड़ा बढ़ाया जा सकता है।
एसआईपी में यही खास बात है कि जब बाजार चढ़े तब फायदा, और गिरे तो दोगुना फायदा। ऐसी योजना में नियमित निवेश करने पर लंबी अवधि में आपको सालाना 15-16% का लाभ मिल जाता है। अगर हम यह मान कर चल रहे हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था 7-8% की दर से बढ़ेगी तो डाइवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड से 15-16% का लाभ मिलने की भी उम्मीद रहेगी। 
अभी जहाँ तक जमीनी हकीकत की बात है, लोग न तो अपना निवेश बढ़ा रहे हैं, न ही पैसे निकाल रहे हैं। पैसे निकालने (रिडेंप्शन) का दबाव तो बिल्कुल नहीं है। लेकिन जिन लोगों ने लिक्विड फंड में पैसा डाल रखा था, वे अब वहाँ से निकाल कर इक्विटी फंड में लगा रहे हैं। नया निवेश थोड़ा बहुत, करीब 10-15% बढ़ा होगा।
एक सवाल यह होता है कि म्यूचुअल फंड की सैंकड़ों योजनाएँ (स्कीम) हैं और उनमें से किन योजनाओं में पैसा लगाना है, यह कैसे चुना जाये? मेरा सुझाव है कि अगर किसी ने निवेश करने की अभी शुरुआत ही की है तो उसे चाहिए कि वह दिग्गज (लार्जकैप) शेयरों के डाइवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड से शुरुआत करे। इनमें से ऐसे फंड को चुनें जो पहले से स्थापित और नामी-गरामी हैं और जिनका प्रदर्शन नियमित रूप से अच्छा रहा है। जैसे कि आप एचडीएफसी टॉप 200, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल का फोकस्ड इक्विटी फंड, रिलायंस विजन फंड, डीएसपी ब्लैकरॉक टॉप 100 फंड, एचडीएफसी इक्विटी फंड वगैरह में निवेश कर सकते हैं। ये सारे दिग्गज शेयरों में निवेश करने वाले फंड हैं। ये जमे-जमाये फंड हैं और इनके प्रदर्शन में एक स्थिरता रहती है। ये अपने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इनके जो फंड हाउस हैं, उनकी भी अच्छी प्रतिष्ठा है।
इस तरह के फंड से निवेश की शुरुआत करनी चाहिए। अगर किसी को 25,000 रुपये प्रति माह का निवेश करना है तो उसे चाहिए कि वह 5,000-5,000 रुपये का निवेश पाँच अलग-अलग फंडों में करे। इन पाँच फंडों में से दो फंड तो दिग्गज शेयरों (लार्जकैप) के हों, एक हो फ्लेक्सीकैप, एक हो मँझोले शेयरों (मिडकैप) का फंड और एक हो इन्फ्रास्ट्रक्चर या ऐसा ही कोई विशेष क्षेत्र का (थीमैटिक) फंड। फ्लेक्सीकैप जैसे रिलायंस इक्विटी अपॉर्चुनिटीज फंड है या एचडीएफस इक्विटी फंड है, जिसमें फंड मैनेजर को यह सुविधा रहती है कि वह बाजार की स्थिति के हिसाब से जब ठीक समझे तब दिग्गज शेयरों से हट कर मँझोले शेयरों में या छोटे शेयरों में निवेश ले जा सके या शेयरों से निवेश हटा कर नकदी रख सके। इसी तरह थीमैटिक फंड इस तरह के फंड होते हैं जो किसी खास क्षेत्र में निवेश करते हैं, जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर या कॉन्ट्रा फंड या गोल्ड फंड या इंटरनेशनल इक्विटी फंड वगैरह। मिसाल के तौर पर अभी रिलायंस गोल्ड फंड, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल डिस्कवरी फंड वगैरह में निवेश कर सकते हैं।
इस तरह से पाँच अलग-अलग तरह के फंड में पैसा लगाने पर निवेशक को सारे क्षेत्रों का फायदा मिल सकेगा। उसे अपने लक्ष्य तय करने चाहिए कि उसे बच्चों की पढ़ाई, शादी वगैरह के लिए पैसा चाहिए, या अपने रिटायर होने के समय के लिए पैसा चाहिए। ऐसे लक्ष्य के साथ आप लगातार निवेश करते रहें और जब लक्ष्य नजदीक आने वाले हों, उससे करीब साल भर पहले अपना निवेश इक्विटी से निकाल कर ऋण (डेब्ट) फंड में डाल देना चाहिए। उस समय हो सकता है कि आपके इक्विटी फंड से निकलने के बाद भी बाजार चढ़ता जाये। लेकिन तब आपको कोई गिला नहीं होना चाहिए कि बाजार तो चढ़ गया, लेकिन मैं साल भर पहले ही इससे निकल गया। यह नहीं सोचना चाहिए कि साल भर पहले नहीं निकलते तो थोड़ा और फायदा हो जाता। उस समय यह सब लालच नहीं करना चाहिए, क्योंकि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आपके जीवन के वित्तीय लक्ष्य। बच्चों की पढ़ाई या शादी ज्यादा महत्वपूर्ण है, बजाय इसके कि आपको 15% लाभ मिला या 18% लाभ मिला। इस तरह रणनीति यही होनी चाहिए कि जब पैसे हों तब जोडऩा शुरू कर दें, और निकालें तब जब आपको पैसे की जरूरत हो।
कई बार लोगों के हाथ में एकमुश्त पैसा होता है और वे सोचते हैं कि आज निवेश करें या दो-चार महीने रुक जायें। वे सोचते हैं कि शायद आगे चल कर और नीचे के भाव मिल जायेंगे। लेकिन जो रुकने की सोचेंगे, वे हमेशा रुके ही रह जायेंगे। उनकी लाल बत्ती कभी हरी नहीं होगी। इसी पशोपेश में उनकी बस छूट जाती है। आपको ऐसे लाखों लोग मिलेंगे जो 18,000 के सेंसेक्स पर कह रहे थे कि 16,000 का स्तर आने पैसा लगायेंगे। अब सेंसेक्स 16,000 से नीचे जाने पर उनका कहना होगा कि नहीं भाई, सारे टीवी चैनल कह रहे हैं कि 15,000 आयेगा। उस समय पैसा लगायेंगे।
अगर 15,000 भी आ गया तो वे कहेंगे कि अरे इतना गिर रहा है, यह तो 12,000 जायेगा। और जब बाजार चढऩा शुरू होता है, तो फिर उनको लगता है कि बाजार दोबारा नीचे आयेगा और जब दोबारा गिरेगा तब पैसा लगायेंगे। ऐसे लोगों को मौका मिलता ही नहीं है। वे हाथ मलते रह जाते हैं। हमने लोगों को कई बार ऐसे किस्से दोहराते देखा है। कभी एकदम सही समय पर निवेश करना संभव नहीं होता।
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)

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