Nivesh Manthan
Menu
  • Home
  • About Us
  • ई-पत्रिका
  • Blog
  • Home/
  • 2014/
  • दिसंबर 2014/
  • सरकार ने दी ढील, 80:20 के जंजाल से मुक्त हुआ सोने का आयात
Follow @niveshmanthan

हम बुनियादी ढंग से सस्ते शेयर चुन रहे हैं

Details
Category: सितंबर 2011

गोपाल अग्रवाल, सीआईओ, मिरै एसेट ग्लोबल इन्वेस्टमेंट्स (इंडिया) :

विश्व की अर्थव्यवस्था में कर्ज संकट के चलते इस समय भारतीय बाजार में काफी गिरावट आयी है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में चिंताओं की वजह से शेयर बाजार से बाहर निकल रहे हैं। उनके पोर्टफोलिओ में भारत का हिस्सा काफी छोटा रहता है। और हम सब जानते हैं कि भारतीय बाजार में जो तरलता (लिक्विडिटी) आती है, वह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का निवेश आने की वजह से ही होती है।

बीते 2-3 सालों में म्यूचुअल फंडों और बीमा कंपनियों का निवेश हल्का ही रहा है। ऐसे में एफआईआई की ओर बिकवाली होने पर बाजार की दिशा किधर होगी, यह सबको पता है। ऐसे मौकों पर मूल्यांकन और समर्थन स्तरों की बात करना बेवकूफी ही है। ऐसा नहीं है कि भारतीय बाजार का कोई वाजिब मूल्यांकन नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पर भी कोई बड़ा सवाल नहीं है। लेकिन छोटी अवधि में नकदी की धारा की दिशा ही कीमतें तय करती है। अभी बाजार में यही होता दिख रहा है। अगर आप दुनिया भर में इस समय विलय-अधिग्रहण के सौदों को देखें तो खरीदने वाली कंपनियाँ उसी तरह की दूसरी सूचीबद्ध (लिस्टेड) कंपनियों के मौजूदा मूल्यांकन की तुलना में दोगुनी कीमत तक दे रही हैं। मिसाल के तौर पर, गूगल ने मोटोरोला मोबिलिटी को खरीदने का जो सौदा किया वह शेयर बाजार के भाव से दोगुने मूल्यांकन पर है। भारत में दवा क्षेत्र में कुछ समय से जो कुछ हो रहा है, वह भी उसी बात का संकेत है। भारतीय बाजार में अभी जो गिरावट है, उसका कारण यही है कि अभी बाजार में नया निवेश नहीं आ रहा है या बिकवाली हो रही है। कंपनियों का कारोबार बुनियादी रूप से इतना कमजोर नहीं हुआ है कि उस वजह से शेयर भावों में इतनी गिरावट आये। 

अगर आप 2008-09 में भारतीय बाजार की तलहटी को देखें तो सेंसेक्स करीब 8000 के पास था। कारोबारी साल 2009-10 में सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 804 रुपये थी। इस कारोबारी साल यानी 2011-12 में हमारा अनुमान है कि सेंसेक्स की ईपीएस 1150 के आसपास रहेगी। अगर आप इस बात को देखें कि बीते तीन सालों में सेंसेक्स की ईपीएस में 350 रुपये जुड़े हैं, और साथ में आप कंज्यूमर और टेलीकॉम शेयरों को अलग करके देखें, तो भारतीय शेयर बाजार अभी एक तरह से 2009 के स्तरों पर लौट चुका है। छोटी अवधि में बाजार नकदी की धारा पर ही निर्भर रहेगा और यह धारा अभी सूखी हुई दिख रही है। लेकिन अगर एफआईआई फिर से खरीदारी शुरू कर दें तो आप देखेंगे कि शेयरों के भाव फिर से छलांग मारने लगेंगे। अगस्त के अंतिम दो दिनों में एफआईआई के आँकड़े सकारात्मक होते ही बाजार में तेज उछाल दिखी है।

सेंसेक्स के 16,000 के नीचे के स्तर पर एक इक्विटी निवेशक को निवेश के लिए काफी आकर्षक मौका मिल रहा है। मुझे लगता है कि भारतीय निवेशक समय के साथ परिपक्व हो रहे हैं। अब बाजार में इस तरह की गिरावट आने पर वे अपना निवेश बेचने के लिए नहीं भागते। वे म्यूचुअल फंड से पैसा निकाल नहीं रहे। हालाँकि अभी उनका नया निवेश हल्का ही है। हमें थोड़ा-बहुत नया निवेश ही मिल रहा है, लेकिन ज्यादा जोरदार ढंग से नहीं। एक फंड मैनेजर के रूप में मैं कहूँगा कि हम बुनियादी ढंग से सस्ते शेयरों को चुनने का ही काम कर रहे हैं। जहाँ भी हमें लगता है कि मौजूदा कीमत और उचित मूल्यांकन के बीच का फासला बाजार की गिरावट के कारण काफी बढ़ गया है, वैसे शेयरों में हम खरीदारी कर रहे हैं। हम अपने हाथ में ज्यादा नकदी रख कर नहीं चल रहे हैं। इस गिरावट में हमने काफी आक्रामक ढंग से अपनी नकदी का इस्तेमाल करके नया निवेश किया है। बाजार में यह गिरावट हद से ज्यादा बिकवाली की वजह से आयी है। इसके चलते काफी शेयरों की कीमतें ऐसे स्तरों पर आ गयी हैं, जिन्हें संकटकालीन कीमत (डिस्ट्रेस प्राइस) कहा जा सकता है। अभी वित्तीय क्षेत्र, आईटी, धातु (मेटल), ऑटो जैसे तमाम क्षेत्रों में शेयरों के भाव सस्ते स्तरों पर दिख रहे हैं। हम ऐसे क्षेत्रों में खरीदारी कर रहे हैं और इन मौकों का फायदा उठा रहे हैं।

एफएमसीजी और टेलीकॉम जैसे क्षेत्रों में गिरावट नहीं आयी है। इन दो क्षेत्रों पर बाजार की गिरावट का ज्यादा असर नहीं पड़ा है, बल्कि वे नयी ऊँचाई पर हैं। इन दो क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी लगभगग सभी क्षेत्रों में हम खरीदारी कर रहे हैं। आईटी क्षेत्र को देखें तो उसमें कई शेयरों पर काफी ज्यादा मार पड़ी है, जबकि इन कंपनियों में आने वाली अतिरिक्त नकदी का प्रवाह (फ्री कैश फ्लो) काफी अच्छा रहा है। कई पैमानों के लिहाज से ये शेयर इस समय काफी सस्ते मूल्यांकन पर आ गये हैं। लोग यूरोप और अमेरिका को लेकर चिंता में जरूर हैं। लेकिन अगर आप इन कंपनियों का 2007-08, 2008-09 और 2009-10 के दौरान एबिटा प्रदर्शन देखें तो उन्होंने वैश्विक संकट के दौर में भी बढ़त का ही रुझान दिखाया। ये तीन साल उनके लिए काफी महत्वपूर्ण थे। हकीकत कुछ और थी, जबकि बाजार की धारणा कुछ और थी। अगर हम भावों में गिरावट को देखें तो रियल एस्टेट शेयरों में भी काफी गिरावट आयी है। लेकिन इस क्षेत्र के साथ एक दिक्कत यह है कि इन कंपनियों में अतिरिक्त नकदी का प्रवाह (फ्री कैश फ्लो) नहीं आ रहा है। आपको इन कंपनियों की संपत्तियों और देनदारियों के बारे में भी ठीक से पता नहीं चल पाता है। इन कंपनियों में प्रमोटरों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। मैं इस बात काफी मुखर हो कर कहता हूँ कि रियल एस्टेट के बाजार और रियल एस्टेट के शेयरों के बीच एक बड़ा अंतर बन गया है। इस क्षेत्र में हमें प्रमोटरों पर ही भरोसा करना पड़ता है। एक रियल एस्टेट कंपनी मूल रूप से एक वित्तीय कंपनी है।

इसमें बुनियादी कच्चा माल क्या है - पैसा, जिससे वे आपके लिए संपत्ति बनाते हैं। लिहाजा उनका मूल्यांकन भी बुक वैल्यू और इक्विटी पर लाभ (रिटर्न ऑन इक्विटी या आरओआई) के आधार पर किया जाना चाहिए। मगर ऐसा करने के लिए जरूरी है कि कंपनी पारदर्शी ढंग से पर्याप्त जानकारियाँ दे। अगर जानकारियों का स्तर अच्छा हो जाये तो आप देखेंगे कि रियल एस्टेट शेयरों को भी आज की तुलना में काफी अच्छा मूल्यांकन मिलने लग जायेगा। वित्तीय क्षेत्र के शेयर लगभग 1:1 के कीमत : बुक वैल्यू अनुपात से लेकर अच्छे शेयरों में 3:1 तक के अनुपात पर चलते हैं। रियल एस्टेट शेयरों में ऐसा नहीं होने की जिम्मेदारी प्रमोटरों की ही है। अभी इन कंपनियों से मिलने वाली जानकारियों के स्तर से मैं संतुष्ट नहीं हूँ। अगर वे इस मामले में स्थिति सुधारें तो बाजार उन्हें तुरंत ही काफी अच्छा मूल्यांकन देने लगेगा। हालाँकि अभी जिस तरह से इन शेयरों कीमतें घटी हैं, उसके चलते मैं छोटी अवधि में कारोबारी लिहाज से इन्हें खरीदने के खिलाफ नहीं हूँ। मगर हमारे निवेश पोर्टफोलिओ में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी ज्यादा नहीं है। कुछ रियल एस्टेट कंपनियों को हमने चुना है, लेकिन वे ऐसी कंपनियाँ हैं जो काफी हद तक कर्ज-मुक्त हैं। ऑटो क्षेत्र में हमें लगता है कि दोपहिया श्रेणी के शेयर ही असली विजेता हैं। दोपहिया कंपनियों की बिक्री की संख्या लगातार मजबूत रही है। लिहाजा हमने इन शेयरों में अच्छा निवेश किया है। साथ ही हम ऑटो-पुर्जे बनाने वाली कंपनियों के बारे में भी काफी सकारात्मक नजरिया लेकर चल रहे हैं। 

इन कंपनियों को वाहन निर्माताओं से ओईएम बाजार में अच्छी मात्रा में काम मिल रहा है, साथ ही खुले बाजार से भी अच्छी मात्रा में मांग बनी रहने की उम्मीद है। बीते 3-4 सालों में गाडिय़ों की बिक्री काफी अच्छी रही है, जिससे आने वाले समय में खुले बाजार में भी पुर्जों की बिक्री अच्छी रहेगी। दोपहिया कंपनियों और ऑटो-पुर्जा कंपनियों को रबर की कीमतें बढऩे के चलते लागत के मोर्चे पर कुछ दबाव झेलना पड़ा है, लेकिन बाकी कमोडिटी भाव उतने ज्यादा नहीं बढ़े हैं।

(निवेश मंथन, सितंबर 2011)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
  • निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
  • निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
  • साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
  • भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
  • सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
  • भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
  • बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
  • ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
  • 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
  • रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
  • साल भर में नया शिखर
7 Empire

अर्थव्यवस्था

  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) : भविष्य के अनुमान
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीती तिमाहियों में
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीते वर्षों में

बाजार के जानकारों से पूछें अपने सवाल

सोशल मीडिया पर

Additionaly, you are welcome to connect with us on the following Social Media sites.

  • Like us on Facebook
  • Follow us on Twitter
  • YouTube Channel
  • Connect on Linkedin

Download Magzine

    Overview
  • 2023
  • 2016
    • July 2016
    • February 2016
  • 2014
    • January

बातचीत

© 2025 Nivesh Manthan

  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
Go Top