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स्थिर सरकार बनी तो सँभलेगा बाजार

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Category: अप्रैल 2014

रमेश नायर, सीओओ-बिजनेस, जेएलएल इंडिया :

रियल एस्टेट यानी भू-संपदा क्षेत्र की निगाहें लोकसभा चुनावों पर हैं।

साँसे रोक कर नतीजों का इंतजार कर रहे इस क्षेत्र को चुनावों के बाद आशावादी हालात की उम्मीद है। इससे संपत्तियों के सौदे बढ़ सकते हैं।
मौजूदा सरकार के कामकाज ने खरीदारों और बिल्डरों को चिंता में डाल दिया था। नयी सरकार की आर्थिक और रोजगार संबंधी नीतियाँ अगले पाँच सालों में भू-संपदा क्षेत्र के विकास की मुख्य वाहक होंगी। इस बाजार के लिए साल 2012 और 2013 अच्छे नहीं रहे, कुछ इलाकों को छोड़ कर सभी हिस्सों में सुस्ती का असर दिखा।
बिल्डरों को चुनावों के बाद सकारात्मक हालात बनने की उम्मीद है। क्या वाकई क्या नयी सरकार की सूरत स्पष्ट होने के बाद कारोबार में निवेश बढ़ेगा? किसी भी दल ने ज्यादा घर मुहैया कराने और ब्याज दरें घटा कर भू-संपदा क्षेत्र में सुधार का कोई समग्र प्रस्ताव नहीं दिया है।
चुनाव के पहले नकदी संकट
भारत में चुनावी राशि जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर भू-संपदा क्षेत्र के काले धन का इस्तेमाल होता है। चुनावों से पहले बिल्डरों की ओर से नेताओं को पैसा उपलब्ध कराने की संभावना है। उम्मीदवारों को पैसा देने वाले बहुत से बिल्डर नकदी की कमी की वजह से परियोजनाओं में देरी कर रहे हैं। बिक्री में सुस्ती से बिल्डरों की हालत वैसे ही खस्ता है। चुनाव अभियान के लिए पैसे जुटाने के उद्देश्य से कई संपत्तियों की बिक्री बाजार भाव से कम पर भी हुई है। ऐसे हालात में कई बिल्डर नयी परियोजनाएँ शुरू करने में कमी करके मौजूदा संपत्तियों को बेचने पर जोर दे रहे हैं।
चुनाव के बाद रियल एस्टेट
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में नयी सरकार बनने में सिर्फ कुछ हफ्ते बाकी हैं। इस दौरान ऐसा लगता है कि निवेशक और खरीदार इंतजार ही करेंगे। बहुत से लोगों को चुनावों के बाद कीमतों में तेजी की उम्मीद है। लेकिन ये उम्मीद बेबुनियाद है, क्योंकि कोई भी पार्टी जीते, चुनावों के नतीजों का बाजार पर क्रांतिकारी बदलाव नहीं होगा। हालाँकि ये नतीजे बाजार के रुझान को काफी हद तक प्रभावित करेंगे।
कई क्षेत्रों में पिछली कुछ तिमाहियों के दौरान राजनीतिक अनिश्चितता ने खरीदारों के भरोसे को कमजोर किया है। किसी भी गठबंधन की निर्णायक जीत से खरीदारों का भरोसा बढ़ेगा और संपत्ति की माँग में सुधार होगा। चुनावों के बाद अगर सुधार में कोई बाधा नहीं आती है तो बड़े पैमाने पर खरीदार बाजार में लौटेंगे।
बड़ी उम्मीदें
राजनीतिक अस्थिरता का भारतीय भू-संपदा बाजार पर बड़ा असर दिखता है। राजनीतिक अस्थिरता को रोजगार सृजन और ब्याज दर जैसे व्यापक आर्थिक कारकों से अलग करना आसान नहीं है। बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में सकारात्मक कदमों से बाजार में सुधार होगा। इस क्षेत्र में नयी पहल से आसपास की आवासीय संपत्ति की कीमतों बढ़ोतरी होती है।
एक राजनीतिक दल ने अपने घोषणापत्र में अगले दशक में बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश के साथ कई कदम उठाने का वादा किया है। इसके साथ ही घोषणापत्र में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों को तेज रफ्तार वाली रेलगाडिय़ों से जोडऩे सहित रेलवे नेटवर्क में सुधार का वादा किया गया है। साथ ही बेहतर बंदरगाह, घरेलू जलपरिवहन और विश्व-स्तरीय हवाई अड्डों के विकास के लिए सार्वजनिक निजी साझेदारी को बढ़ावा देने का वादा भी है। वहीं इसके धुर विरोधी दल से भी रियल एस्टेट क्षेत्र को बड़ी उम्मीदें हैं, क्योंकि इसने जीडीपी में 12% विकास की दिशा में काम करने का वादा किया है।
भारतीय भू-संपदा क्षेत्र में अनबिके मकान और ऊँची ब्याज दरें मुख्य चिंताएँ हैं। चुनाव में किसी भी दल की जीत से तत्काल इन कारकों में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है। लंबे समय में इस क्षेत्र को विदेशी निवेश, आरईआईटी नियम और रियल एस्टेट (नियामक और विकास) विधेयक का प्रभावी क्रियान्वयन सबसे ज्यादा प्रभावित करेंगे।
चुनावों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की भू-संपदा क्षेत्र में अहम भूमिका होगी। ब्याज दरों में कमी, सबवेंशन योजनाओं को दोबारा मंजूरी और कर्ज में घिरे डेवलपरों के ऋण-पुनर्गठन की उम्मीदें रहेंगी। ब्याज दरों में कटौती और मकान खरीदने के लिए शुरुआती भुगतान (डाउनपेमेंट) को घटाने से भी संपत्ति बाजार पर असर पड़ेगा।
नयी स्थिर सरकार बनने से कारोबार और निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। हालाँकि किसी बदलाव का अर्थव्यवस्था में असर कम-से-कम एक साल बाद ही दिखेगा। नये कदमों कितने प्रभावी होंगे, यह भविष्य ही बतायेगा।
संपत्ति कीमतों के सबसे निचले स्तर से बाहर आने, कम ब्याज दरें और खरीदारों का भरोसा लौटने से भू-संपदा क्षेत्र में सुधार और तेजी का नया दौर भी शुरू हो सकता है। अगर नयी सरकार सस्ती ब्याज दरें और रोजगार सृजन की ऊँची दर सुनिश्चित कर पाती है तो इससे कहीं अधिक स्थिर और निवेश-हितैषी भू-संपदा बाजार तैयार करने का मंच मिलेगा।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)

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