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महज औपचारिकता निभाता कांग्रेसी घोषणा-पत्र

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Category: अप्रैल 2014

राजीव रंजन झा :

लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणा-पत्र की सबसे खास बात यह है कि आप इसकी हर बात पर पलट कर पूछ सकते हैं - साहब, यह काम पिछले 10 सालों में क्यों नहीं किया?

अर्थव्यवस्था के नजरिये से इसमें सबसे अहम बात यह कही गयी है कि कांग्रेस अगले तीन वर्षों के भीतर 8% से अधिक विकास दर हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसे अगले दो दशकों तक बनाये रखा जायेगा। यह बात सुन कर सबसे पहले तो यही ध्यान में आता है कि जिस दल के एक दशक के राज में विकास दर 5% से भी नीचे की तलहटी पर आ गयी हो, उसे यह वादा या दावा करने में जरा भी हिचक नहीं हुई!
कांग्रेस ने इस घोषणा-पत्र में 2014-19 के लिए आर्थिक कार्य-योजना पेश की है। इसमें लिखा गया है कि हम 2016-17 तक वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3% तक लाने तथा इसे हमेशा के लिए 3% से नीचे रखने का संकल्प करते हैं। यह वादा भी गरीबी हटाओ के नारे जैसा हो गया है। इसकी समय-सीमा अनंत ढंग से बढ़ती जा रही है।
महँगाई इस सरकार के विरुद्ध आम आदमी का सबसे बड़ा इल्जाम है। कीमतों में स्थिरता के मसले पर घोषणापत्र में सफाई देने वाले अंदाज में कहा गया है कि एक विकासशील अर्थव्यवस्था में हमें यह तथ्य स्वीकार करना ही होगा कि जब हमारा लक्ष्य उच्च विकास कर पाना है तो यह स्वाभाविक है कि महँगाई में थोड़ा वृद्धि हो सकती है। लेकिन 2014 का घोषणा-पत्र यह नहीं बताता कि 2009 के घोषणा-पत्र में 100 दिनों में महँगाई घटाने के वादे का क्या हुआ!
इसमें वादा किया गया है कि हम अपने ढाँचागत विकास का पुनर्निर्माण करेंगे और इसमें नये ढाँचागत आयामों को व्यापक रूप से शामिल करेंगे। कहा गया है कि हम इसमें ऐसे प्रतिमान एवं मॉडल को लागू करेंगे जो प्रामाणिक हों। तो क्या बीते 10 वर्षों में यूपीए ने अप्रामाणिक मॉडल पर काम किया? घोषणा-पत्र कहता है कि हम सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को अधिक पारदर्शी एवं प्रतिस्पर्धी बनायेंगे, जिसे व्यापक रूप से उपयोग में लाया जा सकेगा। दीर्घकालिक निधियों तथा निवेशों की पूलिंग के लिए हम नयी वित्तीय संरचनाओं का सृजन करेंगे। फिर से प्रश्न यही उठता है कि इस काम के लिए 10 साल अपर्याप्त थे क्या?
अर्थव्यवस्था की धीमी पड़ी विकास दर के बीच सबसे ज्यादा चोट विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र पर पड़ी है। कांग्रेस का घोषणा-पत्र कहता है कि हम विनिर्माण, विशेष रूप से निर्यात हेतु विनिर्माण पर ज्यादा ध्यान देंगे। इसके लिए निर्यात उत्पाद संबंधी केंद्र एवं राज्य के सभी करों को या तो समाप्त कर देंगे या उसमें संशोधन करेंगे। यह यह प्रस्ताव रखेंगे कि इस संबंध में एक न्यूनतम टैरिफ संरक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि भारत में सामग्रियों और वस्तुओं के विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया जा सके। एक बार फिर प्रश्न यही है कि अब तक ऐसा करने से आपको रोका किसने था?
कांग्रेस ने एक बार फिर 100 दिनों का एजेंडा पेश किया है। इस ताजा एजेंडा में कहा गया है कि 100 दिनों के भीतर संसद में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पेश किया जायेगा और एक वर्ष के भीतर पारित कराया जायेगा। जीएसटी लागू करने की कवायद कई सालों से चल रही है। कांग्रेस विपक्ष के असहयोग को इसे लागू नहीं करा पाने के लिए कसूरवार बताती रही है। लेकिन अगर कांग्रेस दोबारा सत्ता में आयी तो इस बार विपक्ष का सहयोग लेने के लिए वह पहले से अलग क्या करेगी?
कांग्रेस के 100 दिनों के एजेंडा के मुताबिक वह नयी लोकसभा के गठन के पहले वर्ष में ही नयी प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू करेगी। लेकिन कांग्रेस ने यह क्यों नहीं बताया कि साल भर पहले ही लगभग सारी तैयारी हो जाने के बावजूद वह इसे लागू क्यों नहीं करा सकी? कांग्रेस चाहती तो साल 2013 के बजट के साथ ही इसे पारित करा सकती थी। डीटीसी की तैयारी तो 2009 के आम चुनाव से भी पहले से ही चल रही थी। लेकिन यह प्रणव मुखर्जी और पी. चिदंबरम का वॉलीबॉल बन गया।
एक दिलचस्प वादा यह है कि युवाओं के लिए 10 करोड़ नयी नौकरियों और उद्यमशीलता के सृजन हेतु कांग्रेस एक विस्तृत जॉब एजेंडे को लागू करेगी। अच्छा होता कि कांग्रेस इस वादे के साथ यह भी बताती कि बीते 10 वर्षों में रोजगार सृजन का उसका रिकॉर्ड कैसा रहा है। मगर जो आँकड़े हैं, उन्हें कांग्रेस शर्म के मारे सामने रख ही नहीं सकती।
इस पूरे घोषणा-पत्र को पढऩे से यह स्पष्ट दिखता है कि इसमें नयी सोच की कमी है और बीते 10 वर्षों की थकान है। ऐसा लगता है कि हाल के जनमत-सर्वेक्षणों के मद्देनजर पार्टी ने केवल एक औपचारिकता निभाने के लिए यह घोषणा-पत्र जारी कर दिया है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)

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