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सोने में और बढ़ सकती है गिरावट

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Category: जून 2013

सुशांत शेखर :

आकर्षक निवेश और महँगाई से मुकाबले के हथियार के तौर पर सोने का महत्व लगातार घटता जा रहा है।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था की लगातार बेहतर होती सेहत के बीच सोने के दाम और घटने की संभावना जतायी जा रही है। हालाँकि भारत के संदर्भ में सोने के घटे दाम सरकार की मुश्किलें और बढ़ा रहे हैं, क्योंकि इससे सोने की माँग और आयात में वृद्धि हो रही है।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान क्रेडिट सुइस ने अपनी रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम 1,085 डॉलर प्रति औंस तक फिसलने की आशंका जतायी है। क्रेडिट सुइस के मुताबिक बाजार में यह धारणा मजबूत हो रही है कि सोने की तेजी का 12 साल का चक्र पूरा हो गया है। इसके चलते भी सोने के भाव पर दबाव है।
विदेशी बाजारों में सोने के दाम करीब 1,380 डॉलर प्रति औंस के आस-पास चल रहे हैं। क्रेडिट सुइस की मानें तो सोने में अभी करीब 27% की और गिरावट देखी जा सकती है। अगस्त 2011 में सोने की कीमतें 1921 डॉलर प्रति औंस के उच्चतम शिखर पर पहुँची थीं। मतलब तकरीबन 2 साल में सोने की कीमतें करीब एक तिहाई टूट चुकी हैं। क्रेडिट सुइस के आकलन के मुताबिक अभी तकरीबन इतनी ही गिरावट अभी बाकी है।
दुनिया के कई बैंकों और गोल्ड ईटीएफ की ओर से सोने में लगातार बिकवाली से भी सोने की कीमतें और नीचे आने के संकेत मिल रहे हैं। खासकर पश्चिमी देशों के केंद्रीय बैंक लगातार सोना बेच रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक बैंकों ने साल 2012 के दौरान ही करीब 500 टन सोना बेचा है।
दुनिया की सबसे बड़ी गोल्ड ईटीएफ कंपनियों में से एक एसपीडीआर गोल्ड शेयर लगातार सोने की बिकवाली कर रही है। इस साल कंपनी ने करीब 450 टन सोने की बिकवाली की है। एसपीडीआर को निवेशकों की ओर से धन निकासी (रिडेंप्शन) के दबाव के चलते सोने में बिकवाली करनी पड़ रही है। कंपनी ने इस साल करीब 1,600 करोड़ डॉलर के सोने की बिकवाली की है। 2012 के अंत में एसपीडीआर 7,200 करोड़ डॉलर का फंड था, जो अब घट कर 4,500 करोड़ डॉलर का रह गया है।
क्यों गिर रहा है सोना
सोने की गिरावट की वजहों को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि सोना चढ़ क्यों रहा था। सोने की कीमत 2007 के बाद से बड़ी तेजी से बढऩी शुरू हो गयी थी। साल 2008 में अमेरिका से शुरू हुई वैश्विक मंदी और उसके बाद यूरोप के कर्ज संकट के दौर में 2011 तक सोने की कीमतें आसमान छूने लगी थीं। दरअसल निवेशकों ने आर्थिक संकट के जोखिम से बचने के लिए लगातार सोने में अपना निवेश बढ़ाया था। सोने की बढ़ती निवेश माँग की वजह से सोने की कीमत रिकार्ड स्तर तक पहुँच गयी थी।
लेकिन समय का पहिया अब उल्टा घूमने लगा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सेहत में लगातार सुधार हो रहा है। अमेरिका में बेरोजगारी दर 7.5% के करीब है, जो बीते दो सालों में सबसे कम है। वहीं अमेरिका में मकानों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और इनकी कीमतें 2008 की मंदी से पहले के स्तरों पर पहुँच गयी हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने राहत पैकेज की वापसी के संकेत देने शुरू कर दिये हैं। अटकलें लगायी जा रही हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस साल के अंत तक बॉन्डों की खरीदारी का मौजूदा कार्यक्रम बंद कर देगा।
यूरोप की हालत देखें तो यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) संकटग्रस्त यूरोपीय देशों को कर्ज देने के लिए आगे आया, जिससे यूरोपीय अर्थव्यवस्था की हालत और बिगडऩे का जोखिम कम हुआ है। ईसीबी ने जुलाई 2012 में ही संकटग्रस्त देशों को कर्ज देने का फैसला किया था।
अमेरिकी अर्थव्यस्था में सुधार से दूसरी विदेशी मुद्राओं की तुलना में डॉलर में लगातार मजबूती आयी है। डॉलर की मजबूती बढऩे से निवेशकों की दिलचस्पी सोने के बजाय डॉलर में बढ़ रही है। डॉलर की मजबूती की वजह से सोने की कीमतों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
महँगाई से मुकाबले के तौर पर सोने की अहमियत भी घट रही है। दरअसल दुनिया भर में कमोडिटी की कीमतें घटने की वजह से महँगाई दर की दिशा नीचे की ओर दिखाई दे रही है। ऐसे में महँगाई कोई बड़ा खतरा नहीं रह गयी है।
वहीं दूसरी ओर अमेरिकी अर्थव्यवस्था की लगातार सुधरती हालत से निवेशकों को सोने के मुकाबले शेयर बाजार में निवेश करना ज्यादा फायदे का सौदा लग रहा है। यही वजह है अमेरिकी शेयर बाजार के सूचकांक डॉव जोंस और नैस्डैक नये रिकार्ड स्तरों तक उछल गये हैं।
सोने की गिरती कीमतों ने बढ़ायी भारत की मुश्किलें
सोने की घटती कीमतों ने जहाँ एक ओर सोना खरीदने की चाहत रखने वालों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है, वहीं दूसरी ओर माँग पूरा करने के लिए सोने के लगातार बढ़ते आयात ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। सरकार सोने के आयात पर लगाम कसने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने से अप्रैल 2013 में सोने का आयात अप्रैल 2012 से 138% बढ़ कर 750 करोड़ डॉलर का रहा। अप्रैल महीने में भारत ने करीब 142.5 टन सोने का आयात किया। वित्त मंत्रालय के मुताबिक मई में सोने का आयात और भी बढ़ कर 162 टन हो गया है।
भारत में साल 2012 में 860 टन सोने का आयात हुआ था। मतलब 2012 में सोने का औसत मासिक आयात करीब 70-75 टन के बीच रहा था। लेकिन 2013 में सोने का औसत मासिक आयात करीब दोगुना हो गया है।
सोने का आयात बढऩे से भारत का चालू खाते का घाटा (सीएडी) और बढऩे का खतरा पैदा हो गया है। अक्टूबर-दिसंबर 2012 की तिमाही में देश का चालू खाता घाटा जीडीपी के 6.7% के बराबर पहुँच गया है, जो अब तक का सबसे ऊँचा स्तर है। चालू खाता घाटा बढऩे का मतलब यह है कि देश में जितनी विदेशी मुद्रा आ रही है, उससे कहीं ज्यादा बाहर जा रही है। चालू खाता बढऩे से देश के सामने भुगतान संतुलन बिगडऩे का खतरा पैदा हो सकता है।
देश के आयात में पेट्रोलियम उत्पादों के बाद दूसरा स्थान सोने का ही है। सरकार को लगता है कि सोने का आयात बढऩे से अर्थव्यवस्था को तो कोई फायदा नहीं मिलता, उल्टे कीमती विदेशी मुद्रा देश के बाहर जा रही है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद देश के निर्यात में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो पायी है। ऐसे में सरकार सोने के आयात पर लगाम कस कर चालू खाता घाटे को काबू में रखना चाहती है।
सरकार और रिजर्व बैंक ने पिछले कुछ हफ्तों में सोने के आयात पर अंकुश लगाने के लिए कई कड़े कदम उठाये हैं। वित्त मंत्रालय ने पाँच जून को सोने और प्लैटिनम पर आयात शुल्क 6% से बढ़ा कर 8% कर दिया। इसके पहले सरकार ने जनवरी में आयात शुल्क 4% से बढ़ा कर 6% किया था। सरकार ने पिछले दो सालों में सोने पर आयात शुल्क 6% बढ़ाया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी बैंकों को अपने लिए सोने का आयात करने से रोक दिया है। बैंकों को अब सिर्फ आभूषण बनाने वाली कंपनियों की वास्तविक माँग के लिए ही आयात करने की इजाजत है।
साथ ही रिजर्व बैंक ने आभूषण कंपनियों और ट्रेडिंग हाउसों पर भी लगाम कसी है। आरबीआई ने सोने के आयात पर शत प्रतिशत मार्जिन लागू कर दिया है। पहले कंपनियाँ अपनी क्रेडिबिलिटी के हिसाब से कुछ फीसदी मार्जिन जमा करके बैंकों से लेटर ऑफ क्रेडिट जारी करवा लिया करती थीं। लेकिन अब बैंक पूरी रकम रमा करने के बाद ही लेटर ऑफ क्रेडिट जारी करेंगे।
यही नहीं रिजर्व बैंक ने राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों के लिए सोने के सिक्कों पर कर्ज देने की सीमा तय कर दी है। सहकारी बैंक एक ग्राहक को अधिकतम 50 ग्राम सोने के सिक्कों के एवज में कर्ज दे सकेंगे।
इसके अलावा सरकार ने बैंकों से कहा है कि वे सोने के सिक्के बेचने से बचें। सरकार ने कहा है कि बैंक अपने ग्राहकों को सोने में निवेश करने के लिए उत्साहित नहीं करें। सरकार ने आम लोगों को भी सोने के मोह से बचने की सलाह दी है।
हालाँकि उद्योग जगत की राय है कि सोने के आयात पर इन बंदिशों से खास फायदा नहीं होगा। पहले भी आयात शुल्क बढ़ाने से सोने के आयात में कमी नहीं आयी।
उल्टे उद्योग जगत को आशंका है कि सोने पर आयात शुल्क बढ़ाने से इसकी तस्करी बढ़ेगी। अनुमान है कि साल 2012 में देश में करीब 200 टन सोना तस्करी से आया। सोने पर आयात शुल्क बढऩे से इस साल तस्करी 30% बढ़ कर 300 टन हो सकती है।
(निवेश मंथन, जून 2013)

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