कवी कुमार, कंट्री हेड, ग्लोब कैपिटल :
भारतीय शेयर बाजार में अभी कमजोरी ही बरकरार रहेगी।
सभी एफआईआई के आँकड़े देख रहे हैं, लेकिन बाजार में बुनियादी मजबूती कहाँ है? डॉलर का भाव 45 से बढ़ कर 57 रुपये हो चुका है। चालू खाते का घाटा (सीएडी या करेंट एकाउंट डेफिसिट) सबसे बड़ी चिंता बन गया है। यह धीरे-धीरे दीवालियेपन की ओर बढऩे जैसा है। जब हमने 2008 का वैश्विक संकट झेल लिया, तो उसके बाद 2009 से अब तक हमारी अर्थव्यवस्था क्यों फिसलती जा रही है? वित्त मंत्री कह रहे हैं कि सोने के आयात पर प्रतिबंध लगायेंगे। लेकिन ऐसा होने पर सोने की तस्करी होने लगेगी।
इस परिस्थिति से उबरने का रास्ता यही है कि ज्यादा उदार एफडीआई नीतियाँ बनायी जायें। निवेशक यहाँ आने को तैयार नहीं हैं क्योंकि कर संबंधी विवाद उठते हैं, भूमि अधिग्रहण पर स्थिति साफ नहीं है। सरकार विपक्ष पर आरोप लगा सकती है कि वह सुधारों को नहीं होने दे रहा है। लेकिन बहुमत तो सरकार के पास है ना। नरसिंह राव की सरकार तो अल्पमत सरकार थी।
फिलहाल मुझे लगता है कि बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिति रहेगी। यह थोड़ा वापस सँभलेगा, लेकिन उसके बाद फिर से गिरावट आयेगी। कुछ हफ्तों पहले ऐसा लगता था कि बाजार में एक बड़ी तेजी आयेगी। उस तेजी का कारण केवल यह था कि बाजार में काफी विदेशी नकदी आ रही थी। लेकिन बाजार की बुनियादी बातों ने उस नकदी को सहारा नहीं दिया। अभी जो स्थिति है, उसमें स्पष्ट है कि बाजार बुनियादी रूप से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इस स्थिति में एफआईआई की खरीदारी भी निश्चित रूप से अटक जायेगी। आखिर कोई क्यों यहाँ पैसा लगाने के लिए आयेगा?
अब इस सरकार की अवधि को खत्म ही समझना चाहिए, क्योंकि अब यह चुनाव की तैयारी में है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के लिए यह एक लाख रुपये खर्च करने जा रही है। दूसरी तरफ सरकार के बहीखाते की हालत हमें पता है। इसके अलावा तेल बांड की बात करें तो यह भी एक संकट खड़ा करेगा। इसके चलते पाँच साल में इंडियन ऑयल की हालत क्या होगी? उसके बही-खाते में देख लें कि तेल बांड कितने हैं। आखिर कौन उसे अच्छी रेटिंग देगा? सरकार के पास उसके लिए नये नोट छापने के अलावा और क्या विकल्प होगा? लेकिन उससे महँगाई दर और बढ़ेगी। अगर भारत सरकार की रेटिंग की बात करें तो हमारा कर्ज जीडीपी का 89% हो चुका है। अगर हम इसमें तमाम राज्यों का कर्ज भी जोड़ दें तो हम 120% के स्तर पर हैं, जहाँ ग्रीस कर्ज संकट में फँसा था।
इन स्थितियों में अगले दो हफ्तों में निफ्टी 5750 तक गिर सकता है। बाजार में वापस उछाल आ सकती है, लेकिन यह नीचे की ओर घिसटता रहेगा। अगर इससे और आगे की बात सोचें तो बाजार एक दायरे में घिसटता रहेगा क्योंकि अब हम चुनावी दौर में प्रवेश करने जा रहे हैं। सरकार ने खाद्य सुरक्षा बिल और भूमि अधिग्रहण बिल को चुनावी हथियार बना लिया है और वह इनके सहारे ही चुनाव जीतने की रणनीति बना रही है।
अगले कुछ महीनों में निफ्टी 5500 तक भी गिर सकता है, लेकिन उससे पहले 5750 का लक्ष्य तो स्पष्ट रूप से दिख रहा है। मुझे नहीं लगता कि 5500 से भी ज्यादा गिरने का खतरा होगा। अगर निफ्टी करीब 6200 से 700-800 अंक गिर जाये तो करीब 13-15% की गिरावट हो जायेगी। इससे ज्यादा नरमी (करेक्शन) की संभावना नहीं लगती है।
अगर बाजार को निचले स्तरों पर खरीदारी का सहारा नहीं भी मिलेगा तो कारोबार की मात्रा (वॉल्यूम) घट जायेगी और बाजार एक दायरे में घिसटता रहेगा। जब तक बाजार में अति-उत्साह की स्थिति नहीं आती, तब तक विदेशी निवेशकों के हाथ में मौजूद शेयरों के बिक पाने की स्थिति नहीं होगी। वे ऐसा भी नहीं चाहेंगे कि बाजार एकदम से टूट जाये, क्योंकि तब वे बेचेंगे किसको?
इस बार वायदा एक्सपायरी के दिन भी जिस तरह से सेट्लमेंट होने तक बाजार ऊपर टिका रहा और उसके बाद अगले दिन गिरने लगा, उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि बाजार विदेशी निवेशकों की पकड़ में है। वे अगर यहाँ नयी खरीदारी नहीं भी करेंगे तो बाजार को एक हद से ज्यादा टूटने नहीं देंगे। इसलिए अब से लेकर लोकसभा चुनाव होने तक निफ्टी मोटे तौर पर 5500 से 6100 के बीच घूमता रहेगा। जब तक देश चुनावी दौर में रहेगा, तब तक कोई बड़ा बुनियादी बदलाव नहीं आयेगा। इस दौरान कोई बड़ा संकट आने की आशंका नहीं है, लेकिन कोई बड़ी तेजी भी नहीं लगती है।
पर अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर में है और तलहटी पर है। विकास दर 9% से घट कर 4.8% पर आ गयी है। इसलिए यहाँ से आगे स्थिति सुधरेगी ही। अब और कहाँ जायेंगे! इसलिए शेयर बाजार में निफ्टी भी 5500-5600 के आसपास फिर से अपनी तलहटी बना लेगा और उसके बाद फिर से ऊपर चलेगा। उसके बाद जो तेजी दिखेगी, वह टिकाऊ तेजी होगी क्योंकि तब बाजार की सफाई हो चुकी होगी।
(निवेश मंथन, जून 2013)