कारों और मोटरसाइकलों की बिक्री की रफ्तार घटने का सिलसिला लगातार जारी है।
फरवरी में तेज गिरावट के बाद मार्च में भी ऑटो बिक्री की दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर चली गयी। ऐसा पिछले 10 सालों में पहली बार हुआ है। मार्च में पैसेंजर गाडिय़ों की बिक्री में साल-दर-साल करीब 20% तक की कमी दर्ज की गयी। गाडिय़ों पर 10-15% तक की छूट के बावजूद इनकी बिक्री बिल्कुल ठंडी है। बढ़ती महँगाई, ऊँची ब्याज दरों और पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर बनी अनिश्चितता की वजह से गाडिय़ों की बिक्री पर दबाव बना हुआ है। पहले पेट्रोल के बढ़ते दामों की वजह से ग्राहकों का रुझान डीजल गाडिय़ों की ओर बढ़ रहा था। लेकिन अब हर महीने डीजल के दाम बढऩे से ग्राहकों के लिए डीजल का विकल्प भी महँगा हो गया है।
ऑटो कंपनियों के संगठन सिआम के ताजा आँकड़ों को देखें तो मार्च 2013 का महीना इस क्षेत्र के लिए काफी बुरा गुजरा है। जहाँ पूरे ऑटो क्षेत्र की बिक्री मार्च 2012 की तुलना में 6.3% घट गयी, वहीं टाटा मोटर्स को अपनी बिक्री में 27.6% जैसी तीखी गिरावट का सामना करना पड़ा। हीरो मोटोकॉर्प, बजाज ऑटो, टीवीएस और मारुति सुजुकी के लिए भी मार्च का महीना मद्धिम ही रहा। केवल एचएमएसआई और महिंद्रा एंड महिंद्रा कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सकीं।
एंजेल ब्रोकिंग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जब तक आर्थिक आँकड़ों में कुछ सुधार के संकेत नहीं आते, तब तक ऑटो कंपनियों के लिए चुनौतियाँ बनी रहेंगी। ऐसी हालत में बुनियादी रूप से मजबूत उन कंपनियों पर नजर रखनी चाहिए, जो ग्रामीण और विदेशी बाजारों पर अच्छी पकड़ रखती हों। बजाज ऑटो, हीरो मोटोकॉर्प, मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा पर ब्रोकिंग फर्म का सकारात्मक नजरिया है।
इक्रा की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऑटो कंपनियों की चिंता कम होती नहीं दिखाई दे रही है, क्योंकि गाडिय़ों के डीलरों के पास ग्राहकों की पूछताछ की संख्या में तेज गिरावट आयी है। यह गिरावट बड़े शहरों के साथ छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी देखी जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिक्री की रफ्तार तो धीमी हुई ही है, साथ ही ऐसे माहौल में ग्राहकों को लुभाने के लिए नये मॉडलों को बाजार में उतारने पर कंपनियों को ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। हाल में कर्मचारियों के वेतन में की गयी बढ़ोतरी से लागत भी बढ़ेगी। साथ ही बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियों को अभी गाडिय़ों पर छूट भी जारी रखनी होगी।
सब्सिडी घाटे को कम करने के लिए सरकार डीजल के दाम हर महीने बढ़ाती रहेगी। पेट्रोल के दाम तो पहले ही बाजार के हवाले कर दिये गये हैं। महँगाई दर अब भी ऊँचे स्तरों पर बनी हुई है और जब तक इसमें कमी नहीं आती, ब्याज दरें घटना मुश्किल है। ऐसे में ऑटो कंपनियों की मुश्किलें अभी कम होती नहीं दिख रही हैं।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2013)