विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज :
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत शुक्रवार 12 अप्रैल को 1500 डॉलर प्रति औंस के भी नीचे आ गयी।
जुलाई 2011 के बाद यह पहला मौका था, जब यह कीमती धातु इस स्तर से नीचे नजर आया। अगर इस साल की शुरुआत से देखें तो कॉमेक्स में सोने का भाव करीब 12% लुढ़क गया है।
सोने में यह तीखी गिरावट तब शुरू हुई, जब यूरोपीय आयोग इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि साइप्रस को यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से मिली मदद (बेलआउट पैकेज) के मद्देनजर अपने स्वर्ण भंडार से 40 करोड़ यूरो का सोना बेचना पड़ेगा। इस मदद की शर्तों के तहत साइप्रस सरकार को मदद की राशि का 3% योगदान करना है। इसके अलावा बाजार को यह आशंका भी सता रही है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी मौद्रिक ढील (क्वांटिटेटिव ईजिंग) की नीति खत्म कर सकता है।
हालाँकि हाल में फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नांके ने कहा था कि अर्थव्यवस्था में मजबूती की वजह से केंद्रीय बैंक अपने बांड खरीद कार्यक्रम की गति को केवल तभी धीमा कर सकता है, जब अगले कुछ महीनों में श्रम बाजार में निरंतर सुधार हो। फेडरल रिजर्व की ओर से मौद्रिक ढील के कार्यक्रम की वजह से ही हाल के कुछ वर्षों में सोने में रिकॉर्ड-तोड़ उछाल आयी।
सोने में 12 अप्रैल को आयी तीखी गिरावट के साथ ही कॉमेक्स में इसका भाव सितंबर 2011 के रिकॉर्ड स्तर 1923 डॉलर प्रति औंस से करीब 23% नीचे आ चुका है। आम तौर पर माना जाता है कि पिछली ऊँचाई से 20% नीचे जाने पर कोई बाजार मंदा हो जाता है। इस लिहाज से निश्चित रूप ऐसा लगता है कि सोना भी अब मंदी के दौर में प्रवेश कर रहा है। इस तरह करीब 12 साल तक इसमें चली अनवरत तेजी पर एक विराम लगा है। दरअसल 12 सालों के बाद पहली बार निवेशकों की ओर से लांग लिक्विडेशन यानी सारा निवेश बेच डालने की स्थिति दिखी है।
दरअसल अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिलने से सोने में सुरक्षित निवेश के नजरिये से आने वाली माँग घटी है। आम तौर पर निवेशक सोने को सेफ हेवन यानी सुरक्षित निवेश मानते हैं। किसी संकट की स्थिति में सोने की माँग बढ़ जाती है। लेकिन अभी निवेशक बुरे वक्त का साथी समझे जाने वाले सोने को छोड़ कर फिर से अधिक लाभ की तलाश में ज्यादा जोखिम वाले निवेश को पसंद करने लगे हैं।
जिन निवेशकों को सुरक्षा की तलाश होती है, वे भी अब सोने में निवेश करने के बदले डॉलर खरीदना पसंद कर रहे हैं। इसके चलते एक ओर जहाँ डॉलर इंडेक्स में मजबूती आ रही है, वहीं सोना फिसल गया है।
अगर घरेलू बाजार की बात करें तो वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संकेत दिया है कि वे सोने पर अब आयात शुल्क में और वृद्धि नहीं करेंगे। इसके चलते भी जौहरियो में बना डर खत्म हुआ है और घरेलू बाजार में सोने को फिसलने का एक कारण मिला है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चिंता केवल साइप्रस को लेकर नहीं है। साइप्रस तो तुलनात्मक रूप से छोटा देश है, लेकिन डर इस बात का है कि कर्ज संकट में फँसे अन्य कुछ यूरोपीय देशों, जैसे पुर्तगाल, आयरलैंड, इटली, ग्रीस और स्पेन ने भी अगर अपने स्वर्ण भंडार से बिकवाली शुरू की तो इससे सोने के भावों में काफी गिरावट आ सकती है। इन पाँच देशों का कुल स्वर्ण भंडार 3,230 टन का है, जिसकी कीमत करीब 125 अरब यूरो बैठती है।
इसके अलावा विश्व में सोने के बड़े एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (गोल्ड ईटीएफ) भी अपने भंडार में कटौती कर रहे हैं। उनका भंडार 2012 की शुरुआत से अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।
घरेलू बाजार में एमसीएक्स पर सोने का पहला तकनीकी सहारा 27,500 रुपये पर है, जिसके टूटने पर यह 27,100 और फिर 26,500 तक गिर सकता है। छोटी अवधि में इससे नीचे जाने की आशंका नहीं लगती। इस बीच एक वापस उछाल में यह 29,300 तक ऊपर आ सकता है। इसके लिए 29,500 और उसके बाद 30,200 पर काफी मजबूत बाधाएँ रहेंगी, जिन्हें पार करना बड़ा मुश्किल होगा। दरअसल अब 30,200 पार होने के बाद ही किसी नयी तेजी की बात सोची जा सकती है।
मध्यम से लंबी अवधि की सोचें तो इसका 100 हफ्तों का एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (ईएमए) अभी 27,900 पर है। इसके नीचे साप्ताहिक आधार पर बंद होने पर एक से डेढ़ साल में 24,200 रुपये का भाव आ सकता है जो 200 हफ्तों का ईएमए है।
चाँदी का भाव भी 26 डॉलर प्रति औंस से नीचे टूट गया है और इसमें मंदी का ही रुख है। घरेलू बाजार में इसे पहला सहारा 46,800 रुपये पर मिल सकता है। इसका 200 हफ्तों का ईएमए 47,100 पर है। उसके नीचे जाने पर 42,000 तक फिसल जाने की आशंका रहेगी।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2013)