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नोएडा एक्सटेंशन : आशंकाएँ और सवाल

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Category: अगस्त 2012

उमानाथ सिंह :

पत्रकार सुनील सिरीज की आँखों की चमक लौट आयी है। खिले हुए चेहरे लिए वह एक साँस में नोएडा एक्सटेंशन के हालिया डेवलपमेंट बयां कर जाते हैं। अबकी वह इस बात से आश्वस्त हैं कि उनकी उम्मीदों की लौ नहीं बुझेगी। नोएडा एक्सटेंशन के दो अन्य निवेशक कृष्णा और प्रीति भी अपनी खुशी नहीं छुपा पा रही हैं। विश्वास से भरे उनके चेहरे ही बता जाते हैं कि अब आशियाने के उनके सपने जल्द सच होंगे!

वास्तव में नोएडा एक्सटेंशन समेत ग्रेटर नोएडा के अन्य आवासीय परियोजनाओं पर एनसीआर प्लानिंग बोर्ड (एनसीआरपीबी) की वैधानिक समिति की मुहर से इस क्षेत्र के एक लाख से अधिक निवेशकों की उम्मीदें एक बार फिर जवाँ हो गयी हैं। अधिकांश लोग अब यह मानने लगे हैं कि एक साल की घोर अनिश्चितता और उससे उपजी मानसिक पीड़ा का अब शायद अंत हो जायेगा! अलबत्ता, नये निवेशकों की चहलकदमी भी शुरू हो गयी है, और प्रॉपर्टी के कारोबारी अपनी दुकानें पहले की तरह सजाने लगे हैं, जो यह संकेत देता है कि अब यह कारवां रुकेगा नहीं, बल्कि मंजिल तक जाकर ही रहेगा। लेकिन यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। वास्तव में इस पूरे मामले से अभी धुंध छँटी नहीं है। कम ही लोगों को जानकारी हो कि जिन दिनों नोएडा एक्सटेंशन को एनसीआर में सबसे अच्छे निवेश के ठिकाने के रूप में देखा जा रहा था और अपने आशियाने के सपना संजोये मध्यवर्गीय लोग इस तरफ सरपट दौड़ लगा रहे थे, उन दिनों भी यह इलाका गंभीर विवादों से घिरा था। लेकिन सपने परोसने वालों ने कई जानकारियाँ या तो जान-बूझकर छुपायीं, या फिर जिनके लिए पूरी जिंदगी का मकसद महज एक अदद छत था, वे दैवीय अवसर मान कर इसे गँवाना नहीं चाहते थे। ऐसे में लेकिन-परंतु के लिए निवेशकों ने गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी।
जब अक्टूबर 2011 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की बड़ी खंडपीठ ने कुछ शर्तों के साथ निवेशकों के पक्ष में फैसला सुनाया था, तब अधिकांश लोगों को यही उम्मीद थी कि अब मामले का हल एक-आध महीने में निकल आयेगा। लेकिन उसके बाद भी मामला इतना खिंच जायेगा, इसका भान किसी को नहीं था। अब भी नोएडा एक्सटेंशन की परियोजनाएँ पूरी होने में कितना समय लगेगा, इस मामले में कयास लगाना खतरे से खाली नहीं है। ऐसे में एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की वैधानिक समिति की इस मुहर के क्या निहितार्थ हैं? अब भी निवेशकों को किन जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है? ऐसे सवाल कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।
वैधानिक समिति ने 28 जून 2012 को सम्पन्न बैठक में कुछ शर्तों के साथ नोएडा एक्सटेंशन की परियोजनाओं को अपनी मंजूरी दी है। उन शर्तों में कुल परियोजना क्षेत्र का 16% हिस्सा हरित क्षेत्र (ग्रीन एरिया) के रूप में सुरक्षित रखना और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए 20-25% फ्लैट आरक्षित रखना अहम हैं। इनके अलावा एनसीआरपीबी ने ग्रेटर नोएडा-2021 के ड्राफ्ट मास्टर प्लान में बुनियादी सुविधाओं, जैसे जलापूर्ति, सीवेज, ड्रेनेज, बिजली, ठोस कचरा प्रबंधन आदि की व्यवस्था करने के लिए भी कहा था, जिन्हें ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने शामिल कर लिया है। अथॉरिटी के अनुसार ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी की पर्यावरण प्रबंधन योजना भी ग्रेटर नोएडा मास्टर प्लान का अहम हिस्सा होगी। अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार क्लीन टेक्नोलॉजी आधारित उद्योगों के साथ ही मेट्रो सिस्टम, एमआरटीएस और न्यू एक्सप्रेसवेज आदि की व्यवस्था करने से जुड़े सुझाव भी मान लिये गये हैं। इससे साफ तौर पर एक्सटेंशन की गाड़ी चल निकलने की उम्मीद बनी है।
सनद रहे कि समिति की इस अहम बैठक में हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के प्रिंसिपल सेक्रेटरी और एनसीआरबी के सदस्य सचिवों ने हिस्सा लिया। बैठक में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रखे गये सुझावों और शर्तों के आलोक में ग्रेटर नोएडा ड्राफ्ट मास्टर प्लान-2021 पर विचार किया गया और एनसीआर प्लानिंग बोर्ड से इसे स्वीकृति देने की अनुशंसा की गयी।
कहाँ है धुंध
बेशक यह अहम बैठक बोर्ड की एक अहम समिति की थी, लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण बैठक होनी अभी बाकी है। यह एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की बैठक होगी, जिसमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों के साथ केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमलनाथ भी हिस्सा लेंगे। इस बैठक में योजना समिति द्वारा रखी गयी शर्तों और अन्य बिंदुओं के आलोक में अंतिम फैसला लिया जायेगा। गौरतलब है कि कमलनाथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) के अध्यक्ष हैं और दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री इसके सदस्य।
यद्यपि ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एनसीआर बोर्ड के सभी सुझावों को अथॉरिटी ने शामिल कर लिया है और अगली बैठक में महज औपचारिक रूप से इस पर मुहर लगनी है, लेकिन पूरी पृष्ठभूमि को देखते हुए मामला इतना आसान भी नहीं लगता। सूत्रों के अनुसार अभी संबंधित राज्यों के बीच कई मामलों पर मतैक्य नहीं है। ऐसे में बोर्ड की होने वाली यह बैठक अंतिम होगी या फिर इसके बाद भी बैठकों का सिलसिला जारी रहेगा, इसके बारे में अभी साफ तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता है।
इसके अलावा, ग्रेटर नोएडा के कुछ गाँवों के किसान पहले ही सर्वोच्च न्यायालय पहुँच चुके हैं, जिस पर अदालत को अभी फैसला देना बाकी है। ये किसान अभी उम्मीद लगाये हुए हैं कि अदालत उनके पक्ष में फैसला देगी। इन किसानों का यह भी कहना है कि जब तक सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं आ जाता, तब तक वे बिल्डरों को काम शुरू करने नहीं देंगे। इससे बिल्डरों को तो परेशानी होगी ही, निवेशकों को भी फ्लैट मिलने में देरी हो सकती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने निर्माण पर कोई रोक नहीं लगायी है। ऐसे में अगर किसानों से बाधा नहीं आती है तो बिल्डर निर्माण शुरू कर सकते हैं।
अगर इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला इन परियोजनाओं के पक्ष में रहता है और बाकी सभी तरह की जरूरी मंजूरी मिल भी जाती है तो खस्ताहाल ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के पास किसानों को बढ़े हुए मुआवजे देने के लिए पैसे नहीं है। इसने बैंकों से काफी कर्ज लेकर किसानों से जमीनें ली है और नोएडा एक्सटेंशन के विकास पर काफी खर्च भी किया है। एक अधिकारी ने बताया कि इस कर्ज पर अथॉरिटी प्रति महीने भारी-भरकम ब्याज दे रही है। गौरतलब है कि अथॉरिटी ने बिल्डरों को सिर्फ 10% के भुगतान पर जमीन दे रखी है और बाकी रकम अगले दस सालों में किस्तवार अदा की जानी है। लेकिन अथॉरिटी को किसानों को तो एकमुश्त पैसे देने होंगे। इसके अलावा निर्माण कार्य रुकने से बिल्डरों ने अथॉरिटी को किश्तों में पैसे देने भी बंद कर दिये हैं, जिससे उसका संकट और बढ़ गया है। जहाँ तक आँकड़ों का सवाल है, अथॉरिटी को कोर्ट के आदेशानुसार लगभग 5500 करोड़ के बदले अब 9500 करोड़ रुपये किसानों को देने हैं। अथॉरिटी के समक्ष उपस्थित इन चुनौतियों के बावजूद यह माना जा रहा है ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के लिए यह फैसला संजीवनी का काम कर सकता है। इसके बाद अब समय ही बतायेगा कि अथॉरिटी किस तरह अपनी चुनौतियों से निपटती है।
समस्या यहीं खत्म नहीं हो जाती है। गाड़ी चल निकलने पर निवेशकों को अपने फ्लैट के लिए पहले से अधिक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। कई बिल्डिरों ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि वे पुराने खरीदारों के लिए कीमतें नहीं बढ़ायेंगे, लेकिन सभी बिल्डर इस तरह के स्पष्टीकरण के साथ सामने नहीं आये हैं। एक बिल्डर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि किसी-न-किसी तरह पुराने निवेशकों से भी बिल्डर पहले से तय रकम से कुछ प्रतिशत अधिक पैसे उगाह ही लेंगे।
जहाँ तक नये खरीदारों का सवाल है तो उनके लिए फ्लैटों की कीमतें इस समय ही पहले की तुलना में 500-1000 रुपये प्रति वर्ग फीट तक बढ़ चुकी हैं। शुरुआत में जहाँ कीमत 1600 प्रति वर्ग फुट के आसपास थी, वहीं इस समय यह 2500 रुपये के आसपास बतायी जा रही है। संभावना यह भी है कि अगर कानूनी दांवपेंचों से इन परियोजनाओं को पूरी तरह से छुटकारा मिल जाये तो प्रति वर्गफुट कीमत 3000 रुपये तक जा सकती है।
इसके अलावा, अब बैंक भी पहले की तरह खुल कर निवेशकों को कर्ज देंगे इसमें संदेह है। एक राष्ट्रीय बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बैंक अभी तक आश्वस्त नहीं हो सके हैं कि एक्सटेंशन की परियोजनाएँ आगे किसी परेशानी में नहीं पड़ेंगी। आशंका यह भी है कि कुछ किसान यहाँ निर्माण कार्य शुरू होने पर भी अड़ंगा डालेंगे। ऐसे में पुलिस प्रशासन की निरंतर सहायता की दरकार होगी। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि अब इन परियोजनाओं के पूरा होने की संभावना मजबूत हो गयी है, भले ही इसमें समय अधिक लग जाये।
(निवेश मंथन, अगस्त 2012)

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