पेट्रोल और डीजल की कीमतों में जो अंतर कभी 10 रुपये प्रति लीटर से भी कम था, वह अब बढ़ कर तकरीबन 25-26 रुपये हो गया है। मारुति सुजुकी के ईडी (मार्केटिंग) शशांक श्रीवास्तव बता रहे हैं कि इस वजह से जिन वाहनों में डीजल का विकल्प उपलब्ध है, उनमें 85% गाडिय़ाँ डीजल की ही बिक रही हैं। निवेश मंथन से उनकी एक खास बातचीत...
हाल में पेट्रोल की कीमतें दो बार घटायी गयी हैं। इससे कार क्षेत्र के लिए खुद मारुति सुजुकी के लिए आप कितनी राहत महसूस कर रहे हैं?
कार क्षेत्र में जो थोड़ा-बहुत धीमापन देखने को मिला है, उसकी तीन ही वजहें हैं। एक तो यह है कि ईंधन की कीमत काफी बढ़ गयी है। दूसरी बात यह है कि ब्याज दरें ऊँची हैं। तीसरी वजह यह है कि अभी कारोबारी भरोसा घट गया है। हाल में पेट्रोल की कीमतें दो बार कम होना सकारात्मक तो है, लेकिन बहुत छोटा सकारात्मक पहलू है। छोटा सकारात्मक पहलू इसलिए है कि पहले पेट्रोल की कीमतें साढ़े सात रुपये प्रति लीटर बढ़ी थीं। उसके बाद ये दो बार में थोड़ा-थोड़ा घटी हैं। इस कटौती के बाद भी जो कीमत दो महीने पहले थी, उससे अभी यह ज्यादा ही है। इसीलिए यह कमी कुछ सकारात्मक जरूर है, लेकिन मेरे ख्याल से इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।
मई में जब पेट्रोल की कीमतों में सीधे साढ़े सात रुपये की बढ़ोतरी की गयी थी, तब इस वजह से कारों की बिक्री पर कितना दबाव दिखा था?
हम इसकी संख्या तो ठीक तरीके से नहीं बता सकते कि इस वजह से कितना दबाव पड़ा, क्योंकि यह कई बातों पर निर्भर करता है। ईंधन की लागत उनमें से एक पहलू है। लेकिन आप देखिए कि जून 2010 में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में केवल 9.80 रुपये प्रति लीटर का अंतर था। उसके बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अंतर बढ़ कर तकरीबन 25-26 रुपये तक पहुँच गया है। यही वजह है कि डीजल के वाहन ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। इसलिए ये जो दिशा है, ऐसी ही रहेगी। हाल में पेट्रोल की कीमत में हुई कटौती से इस पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।
जिन वाहनों में डीजल का विकल्प उपलब्ध है, उनमें 85% गाडिय़ाँ डीजल की ही बिक रही हैं। लेकिन हमारे देश में छोटी गाडिय़ाँ ज्यादा बिकती हैं, जैसे ऑल्टो, नैनो, आई10, सैंट्रो, ईयॉन, वैगन आर, एस्टिलो, ए-स्टार वगैरह हैं। इन सभी गाडिय़ों में अभी डीजल का विकल्प उपलब्ध नहीं है। इसलिए हमारे देश में इस वक्त कुल बिक्री में डीजल वाहनों का हिस्सा 50% के आसपास होगा। लेकिन हाँ, जिन गाडिय़ों में डीजल की सुविधा है, उनमें 85% से 90% तक डीजल की गाडिय़ाँ बिकती हैं।
एक ही मॉडल में डीजल इंजन वाली कार की कीमत पेट्रोल कार से ज्यादा होती है। इसके बावजूद जहाँ भी डीजल का विकल्प है, वहाँ ग्राहक डीजल वाली गाडिय़ों को ही खरीदना पसंद करता है। जिन छोटी गाडिय़ों में डीजल का विकल्प ही नहीं है, वहीं पेट्रोल की गाडिय़ाँ बिकती हैं।
लेकिन ऐसी छोटी गाडिय़ों में कुछ हद तक अब सीएनजी का विकल्प मौजूद है। लोग सीएनजी को कितनी प्राथमिकता दे रहे हैं इस समय?
सीएनजी गाडिय़ों की जहाँ तक बात है, अभी सिर्फ मारुति ही मूल रूप से सीएनजी किट लगी हुई कारें बेच रही है। काफी लोग बाहर से भी सीएनजी किट लगाते हैं। उसके आँकड़े हमें इतने साफ ढंग से नहीं मिल पाते। लेकिन हम लोग सीधे जो सीएनजी गाडिय़ाँ बेचते हैं, उनके आँकड़े साफ तौर दिखाते हैं कि उसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। हमारे ऐसे पाँच मॉडल हैं, जिनमें सीएनजी कार बेचते हैं - ऑल्टो, एस्टिलो, वैगन आर, ईको और एसएक्स फोर। लेकिन सीएनजी में समस्या यह है कि हम केवल तीन जगहों पर इनकी बिक्री कर पाते हैं - गुजरात, मुंबई और दिल्ली-एनसीआर। इसकी वजह यह है कि सिर्फ इन्हीं तीन जगहों पर सीएनजी पंप उपलब्ध हैं। इन तीन क्षेत्रों के बाहर सीएनजी पंप ही नहीं हैं, या हैं भी तो बहुत कम मात्रा में। इसलिए बाकी किसी जगह पर लोग सीएनजी की गाडिय़ाँ नहीं खरीदते हैं, क्योंकि अगर ले भी लेंगे तो सीएनजी भरवाने में दिक्कत आयेगी। इसलिए सीएनजी गाडिय़ाँ सिर्फ इन्हीं तीन जगहों पर लोकप्रिय हैं।
अभी ऐसी अटकलें चल रही हैं कि डीजल की गाडिय़ों पर एक नया शुल्क लगाया जा सकता है, जो प्रत्येक डीजल गाड़ी पर दो-ढाई लाख रुपये तक हो सकता है। क्या आपको लगता है कि सरकार इस तरह का कोई कदम उठाने के बारे में गंभीरता से सोच है? यदि ऐसा कोई कदम उठाया जाता है तो कार उद्योग पर उसका कितना प्रभाव पड़ेगा?
इस पर काफी चर्चा पहले भी हुई थी। पारिख समिति की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि डीजल वाहनों पर 80,000 रुपये तक का सरचार्ज लगना चाहिए। लेकिन देखने वाली बात यह है कि हर तरह की गाडिय़ाँ होती हैं। कुछ गाडिय़ाँ ऐसी हैं जो केवल चार लाख रुपये की हैं। अगर चार लाख रुपये की गाड़ी पर आपने दो लाख रुपये का अतिरिक्त सरचार्ज लगा दिया तो यह बहुत ज्यादा हो जायेगा। लेकिन अगर 40 लाख रुपये की मर्सिडीज गाड़ी पर दो लाख रुपये का शुल्क लगायें तो उससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा। मुझे नहीं लगता कि हर श्रेणी की सारी कारों पर एक बराबर तय राशि का शुल्क लगा दिया जायेगा। यह शुल्क गाडिय़ों की कीमत पर निर्भर करेगा। हो सकता है कि गाड़ी की कीमत का 2% या 3% शुल्क लगा दिया जाये। हर गाड़ी पर एक बराबर शुल्क लगा दिये जाने की संभावना मुझे् कम लग रही है।
लेकिन आपकी नजर में ज्यादा अच्छा विकल्प क्या है - डीजल गाडियों पर इस तरह का अतिरिक्त शुल्क लगाना या फिर डीजल और पेट्रोल की प्रति लीटर कीमत में जो अंतर बढ़ गया है, उसे कम करने की तरफ ध्यान देना?
सबसे पहली बात तो यह है कि अगर डीजल की कीमत को ही नियंत्रणमुक्त कर दिया जाये, जैसा कि पेट्रोल के मामले में किया गया है, तो वह सबसे अच्छी बात होगी। फिर उसमें सब्सिडी का सवाल रहेगा ही नहीं। लेकिन शायद सामाजिक और राजनीतिक कारणों से सरकार ऐसा नहीं कर पायेगी। बड़ा मुश्किल है ऐसा करना। इसीलिए दूसरा तरीका यही है कि डीजल की गाडिय़ों पर लगने वाला कर बढ़ा दिया जाये। और तो कोई तरीका मुझे समझ में नहीं आता।
बीच में एक सुझाव यह आया था कि पेट्रोल पंप पर जो डीजल भरवायेगा, उससे ज्यादा कीमत ले ली जायेगी। मेरे ख्याल से यह बात व्यावहारिक नहीं हैं, क्योंकि फिर लोग डीजल कहीं बाहर से खरीद कर अपनी गाडिय़ों में डालने लगेंगे। इसलिए व्यावहारिक तरीका तो यही हो सकता है कि गाड़ी की कीमत के अनुसार एक निश्चित राशि बढ़ा दी जाये, जैसे कि 12% उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) को डीजल गाडिय़ों के लिए बढ़ा कर 1४% या 15% कर दिया जाये। ऐसा कुछ करना संभव लगता है।
लेकिन मैं यहाँ आपसे एक दूसरी महत्वपूर्ण बात कहना चाहूँगा। अभी तक शायद यही सोचा जा रहा है कि ऐसे किसी कदम से गाडिय़ों की माँग डीजल से घट कर पेट्रोल की ओर आ जायेगी। लेकिन हमें यह भी देखना है कि गाडिय़ों की कुल बिक्री की मात्रा भी अभी कुछ अच्छी नहीं है। अगर आपने डीजल के वाहनों की कीमत बढ़ा दी तो उनकी माँग में कमी आ जायेगी। वहीं पेट्रोल की माँग तो पहले से ही कम हो गयी है। लिहाजा डीजल वाहनों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने से बाजार में गाडिय़ों की कुल माँग पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
कुछ समय से कारों की बिक्री के आँकड़े अच्छे नहीं हैं। मारुति के लिए अप्रैल-जून तिमाही कैसी रही है और आगे के तिमाहियों के बारे में आपका आकलन क्या है?
अगली तिमाहियों के बारे में मेरी निजी राय तो यही है कि इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार त्योहारी मौसम में शुरू होगा। यानी तीसरी तिमाही से ही बढ़त लौटती दिखेगी। मुझे नहीं लगता कि अभी या फिर छोटी अवधि में दिशा बदलेगी, क्योंकि ऊँची ब्याज दरें अब भी जारी हैं। कारोबारी माहौल भी बेहतर होता नहीं दिख रहा। ईंधन के दाम अब भी आसमान छू रहे हैं। यह ठीक है कि हाल में इसमें दो-तीन रुपये की कटौती हुई है। लेकिन कुल मिला कर पहले की तुलना में तो यह अब भी ज्यादा ही है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि दिशा इतनी जल्दी बदल पायेगी। हाँ यह बात और है कि त्योहारी मौसम में धारणा अच्छी होती है, इसलिए उस समय कुछ सुधार हो जाये।
हाल ही में कुछ कंपनियों ने हफ्ते में एक दिन अपने संयंत्र बंद करने का फैसला लिया। कंपनियाँ अपना उत्पादन कम करने के लिए ऐसे कदम उठा रही हैं। अभी मारुति की स्थिति क्या है?
देखिए, ऐसा है कि सब कुछ खुदरा बिक्री पर निर्भर करता है। अगर बिक्री अच्छी होगी तो लोग ज्यादा उत्पादन करेंगे। अगर खुदरा बिक्री नहीं होगी तो सिर्फ उत्पादन करने का भी कोई मतलब नहीं है कि भंडार बढ़ाते जाओ। दुनिया की हर कंपनी, चाहे वह ऑटो क्षेत्र की हो या किसी और क्षेत्र की, वह अपने भंडार का स्तर तो सँभालने की कोशिश करेगी ही। उसी के हिसाब से उत्पादन की योजना बनती है।
अप्रैल-जून की तिमाही में हमारा ब्लॉक शटडाउन चला है। साल में दो बार हमारे यहाँ ब्लॉक शटडाउन होता है - एक बार दिसंबर में और एक बार जून में। हर साल चलता है यह शटडाउन। आगे हम देखेंगे कि खुदरा बिक्री की स्थिति कैसी है। उसी के हिसाब से योजना तैयार की जायेगी।
हाल में एक खबर यह आयी थी कि आप 800सीसी की एक नयी गाड़ी बाजार में उतारने वाले हैं। इस बारे में क्या रणनीति है?
आगे के उत्पादों के के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। इस पर मैं कोई भी टिप्पणी नहीं कर पाऊँगा।
कुल मिला कर यह पूरा कारोबारी साल कैसा लग रहा है आपको?
अभी तो इस कारोबारी साल की पहली ही तिमाही खत्म हुई है। साल की शुरुआत में जो लक्ष्य और अनुमान थे, उनकी समीक्षा करके आगे की रणनीति बनायी जायेगी। अभी लगता तो यही है कि जो शुरुआती अनुमान लगाये गये थे, उनसे कम ही वृद्धि हासिल होगी।
(निवेश मंथन, अगस्त 2012)