राजीव रंजन झा
बाजार की अगली दिशा को लेकर अभी असमंजस के साथ-साथ चिंता और घबराहट की स्थिति भी है। इस समय निफ्टी वापस उसी रुझान रेखा को छू रहा है, जो नवंबर 2010 और उसके बाद साल 2011 के तमाम शिखरों को छूती है। यह रेखा करीब सवा साल तक बाजार के लिए सबसे बड़ी बाधा बनी रही थी और इसी साल जनवरी में निफ्टी इसके ऊपर लौटने में सफल हो पाया था। ऐसे में इस रेखा के नीचे जाना निफ्टी के लिए खतरनाक होगा और इससे कहीं ज्यादा गहरी गिरावट की संभावना खुल जायेगी। लेकिन अभी यह उम्मीद की जा सकती है कि निफ्टी इसी रेखा पर थोड़ा ऊपर-नीचे होने के बाद सहारा ले और वापस पलटे। वैसी हालत में निफ्टी एक नयी चढ़ती पट्टी बना सकता है, जिसका शुरुआती ढाँचा अभी से बनता दिख रहा है।
इस पट्टी की ऊपरी रेखा 5400 और 5630 के शिखरों को छूती है, जबकि निचली रेखा पर 4531 की तलहटी है। अगर निफ्टी इस पट्टी के मुताबिक चला तो दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 से फरवरी 2012 के शिखर 5630 जैसी, यानी करीब 1100 अंकों की एक और उछाल दिख सकती है। लेकिन इस संभावना के सच होने के लिए सबसे पहली बड़ी शर्त यह होगी कि निफ्टी अगले कुछ दिनों में इस पट्टी की निचली रेखा को न तोड़े। दूसरे, यह संभावना तब ज्यादा पक्की होगी, जब अगले कुछ दिनों में निफ्टी वापस 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के ऊपर लौट आये। अभी 200 एसएमए 5110 पर है। अभी 10 दिनों का एसएमए भी इसके पास ही 5094 पर है। लिहाजा मोटे तौर पर निफ्टी का 5100 के ऊपर टिकना बाजार को सँभाल सकता है। अगर निफ्टी 200 एसएमए को पार कर सका तो 50 एसएमए तक जाना एक स्वाभाविक लक्ष्य होगा, जो अभी 5247 पर है।
करीब 4950 के पास से सहारा लेकर वापस लौटने की उम्मीद इसलिए भी बन रही है कि नवंबर 2010 के शिखर 6339 से लेकर दिसंबर 2012 की तलहटी 4531 तक की गिरावट की वापसी में 23.6% का महत्वपूर्ण स्तर 4958 पर है। अगर मान लें कि निफ्टी करीब 4900 के पास से ही सहारा ले कर पलट जाये तो यही कहा जायेगा कि 23.6% वापसी के इस स्तर ने सहारा दिया है। लेकिन अगर इन स्तरों के पास सहारा न मिले और नवंबर 2010 से लेकर साल 2011 के तमाम शिखरों को छूती रुझान रेखा भी नीचे की ओर कट जाये तो 4531 की तलहटी की ओर फिर से फिसलने की आशंका नकारी नहीं जा सकती।
लेकिन 4900-4950 के मौजूदा स्तरों से 4531 के बीच में कुछ मजबूत सहारे भी हैं। अगर हम 4531 से 5630 तक की उछाल की वापसी देखें तो 61.8% वापसी के स्तर 4951 से नीचे फिसलने के बाद 80% वापसी का स्तर 4751 पर आता है। निफ्टी के लिए 4786 काफी अरसे तक एक महत्वपूर्ण बिंदु बना रहा था। लिहाजा अगर निफ्टी और फिसला तो 4750 के आसपास गिरावट रुकने की अच्छी संभावना होगी।
क्या वाकई यह जनवरी 2008 जैसा समय है?
कुछ समय से मुझे अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 का दौर अक्सर याद आता रहा है, हालाँकि इस समय काफी लोग जनवरी 2008 और यहाँ तक कि 1991 को याद करते दिख रहे हैं। बीते समय के पन्नों को पलटते रहना अच्छा होता है, क्योंकि उससे हमें आज के दौर को समझने में मदद मिलती है। लेकिन क्या 2008 की शुरुआत में आये आर्थिक संकट से आज के दौर की तुलना सटीक होगी? कई लोग तो मान रहे हैं कि 2008 के मुकाबले इस बार का संकट ज्यादा गंभीर है। शायद विश्व अर्थव्यवस्था के लिए यह बात एक हद तक सही है। लेकिन भारतीय शेयर बाजार के लिए तो यह तुलना कुछ जँच नहीं रही।
साल 2008 की शुरुआत में भारतीय बाजार अपने उफान पर था। तब अमेरिका से आर्थिक संकट के संकेत आने शुरू हो गये थे, लेकिन भारतीय बाजार ने उन संकेतों को जरा देर से पकड़ा। उस समय भारतीय बाजार को अपनी अर्थव्यवस्था में तेज रफ्तार विकास का भरोसा था। लेकिन जब दुनिया के संकट का अंदाजा लगा तो धीरे-धीरे वह हौसला कमजोर पडऩे लगा। शेयर बाजार के टूटने और हमारी विकास दर घटने के बीच एक सीधा संबंध दिख रहा था। लेकिन एक सीमा के बाद लगा कि विकास दर में कमी के मुकाबले हमारा बाजार तो कहीं ज्यादा टूट गया है। जब 15 सितंबर 2008 को लेहमन ब्रदर्स ढहा तो दुनिया भर के बाजार टूटे और हम भी उनके साथ गिरे। लेकिन उस बड़ी घटना के महीने डेढ़ महीने बाद ही भारतीय बाजार ने अपनी तलहटी बनायी।
साल 2008 की शुरुआत की तुलना में आज सबसे बड़ा फर्कयह है कि तब भारतीय शेयर बाजार पाँच साल की तेजी के सबसे उफान पर था और आज यह पहले से ही लुटा-पिटा है। जनवरी 2008 में बने शिखर को भारतीय बाजार इन सवा चार सालों में भी पार नहीं कर सका है और वहाँ से यह अभी करीब 23% नीचे ही है। तब लोग भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ भी नकारात्मक नहीं सोच पा रहे थे और सारी दुनिया से अपने-आप को अलग मान रहे थे। आज लोग भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ भी सकारात्मक नहीं देख पा रहे और उन्हें लगता है कि ग्रीस डूबा तो हम भी डूब जायेंगे। तब एकदम तेज रफ्तार से चल रही विकास दर एक झटके में धीमी पड़ गयी थी। इस समय विकास दर पहले से ही धीमी है और सारे आर्थिक आँकड़े पहले ही कमजोर हैं। तब शेयर बाजार की उम्मीदों की पतंग अचानक कट गयी थी और निवेशकों को बिना पूर्व चेतावनी के सूनामी जैसे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। आज निवेशक दूध के जले की तरह छाछ भी फूँक कर पी रहे हैं। तब हम चोटी पर थे और जब गिरे तो बड़ी चोट लगी। आज बाजार पहले से ही जमीन पर है और सबको संकट की गंभीरता का पूरा अंदाजा है। यूरो क्षेत्र से ग्रीस के बाहर हो जाने से लेकर खुद यूरो के अस्तित्व पर संकट जैसी तमाम संभावनाओं का मंथन होता रहा है। तो क्या वास्तव में हम 2008 की शुरुआत जैसी हालत में हैं?
वैसे अगर आप सितंबर 2008 को याद कर रहे हैं, यानी लेहमन ब्रदर्स के ढहने के बाद के समय को, तो थोड़ा इंतजार कर लें। शायद किसी बुरी खबर से घबराहट मचे और उसी में बाजार एक तलहटी बना ले।
(निवेश मंथन, मई 2012)