अमर अंबानी, रिसर्च प्रमुख, इंडिया इन्फोलाइन
शेयर बाजार करवट बदलने की कोशिश में है। जानकार मानने लगे हैं कि अब बाजार के ऊपर जाने में भले ही थोड़ा कम या थोड़ा ज्यादा वक्त लगे, लेकिन इन स्तरों से ज्यादा नीचे फिसलने की संभावनाएँ कम ही हैं। यानी निवेश के लिए यह एक अच्छा मौका हो सकता है। तो इस अच्छे मौके का फायदा उठाने के लिए हम लेकर आये हैं 10 दिग्गजों के पाँच-पाँच चुनिंदा शेयर। ये 10 दिग्गज हैं अमर अंबानी, अंबरीश बालिगा, अशोक अग्रवाल, गजेंद्र नागपाल, के के मित्तल, पंकज पांडेय, राजन शाह, सुदीप बंद्योपाध्याय, विनय गुप्ता और विजय चोपड़ा।
सिप्ला
सिप्ला ने बड़े निवेश का एक दौर हाल में ही पूरा किया है, जिससे अगले 2-3 वर्षों में इसकी आमदनी काफी बढ़ सकेगी। यह शेयर बीते दो सालों में बाजार की तुलना में कमजोर चलता रहा है। यह कमजोरी दवा क्षेत्र की अन्य कंपनियों की तुलना में आमदनी में धीमी बढ़त की वजह से दिखी। साथ ही इसके मार्जिन पर दबाव बना हुआ था। अब इंदौर में इसके एसईजेड में व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने से कंपनी के कामकाज पर अच्छा असर दिखेगा और इसके मार्जिन में सुधार आयेगा। अनुमान है कि इसका मार्जिन 2013-14 में करीब 4% अंक तक बढ़ कर 24% हो जायेगा। इसकी आमदनी में 2010-11 से 2013-14 की अवधि में सालाना औसतन 17% की बढ़ोतरी होगी। मेरा मानना है कि अब शेयर बाजार में इस शेयर को पहले से ज्यादा मूल्यांकन मिलने लगेगा।
आईसीआईसीआई बैंक
इस बैंक ने 2008-11 के दौरान अपने कामकाज में काफी बदलाव किये हैं। इन बदलावों से आईसीआईसीआई बैंक की बैलेंस शीट काफी सुधरी है। इसने मौजूदा माहौल को ध्यान में रख कर काफी सावधानी से अपना विस्तार किया है। यह अपने कर्ज में सालाना 18% बढ़ोतरी का ही लक्ष्य लेकर चलता रहा। चालू खातों और बचत खातों (कासा) की मजबूत हिस्सेदारी और इसके कर्जों के मूल्य में सुधार से बीते दो सालों में इसका तिमाही शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) काफी स्थिर रहा है। जमाओं (डिपॉजिट) पर ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी के बावजूद इसके एनआईएम पर दबाव नहीं पड़ा। कमजोर कारोबारी माहौल के बावजूद बैंक की संपत्तियों यानी उसके कर्जों की गुणवत्ता में लगातार सुधार आया है। यह बात इसकी बैलेंस शीट की मजबूती को दिखाती है। आगे चल कर ऋण की लागत में कमी आने की ही संभावना है। इससे बैंक के रिटर्न ऑन एसेट्स (आरओए) में सुधार होगा। एचडीएफसी बैंक की तुलना में इसके आरओए में अब केवल 0.10%-0.20% अंक का ही अंतर रह गया है। लेकिन दोनों के मूल्यांकन में अब भी 55% का अंतर है। आईसीआईसीआई बैंक का प्रदर्शन लगातार मजबूत रहने के चलते मुझे इसके मूल्यांकन में काफी तेज सुधार आने की उम्मीद है और यह शेयर मुझे बैंकिंग क्षेत्र में सबसे अच्छा लग रहा है।
आईटीसी
एफएमसीजी क्षेत्र में मुझे आईटीसी सबसे ज्यादा पसंद है। सिगरेट पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) में जो बढ़ोतरी हुई है, उसकी भरपाई कीमतों में बढ़ोतरी से हो सकती है। साथ ही 65 मिलीमीटर से छोटी सिगरेट पर कम उत्पाद शुल्क लागू होने की वजह से कंपनी 64 मिलीमीटर के सिगरेट की श्रेणी में फिर से कदम रख सकती है। अपने गैर-सिगरेट कारोबार में अच्छी बढ़त की वजह से अब आईटीसी विविध क्षेत्रों में मौजूद कंपनी बन चुकी है। मेरा अनुमान है कि इसका मुनाफा 2011-13 के दौरान सालाना औसतन करीब 18% की दर से बढ़ सकेगा।
मारुति सुजुकी
कारोबारी साल 2011-12 के शुरुआती नौ महीनों के दौरान कंपनी एक मुश्किल दौर से गुजरती रही। लेकिन उम्मीद है कि इस साल की चौथी तिमाही और 2012-13 के दौरान यह अच्छी बढ़त दिखायेगी। डीजल गाडिय़ों की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है। साथ ही ब्याज दरों में कटौती की संभावनाएँ हैं। ये दोनों बातों कंपनी की बिक्री की मात्रा बढ़ा सकती हैं। बजट में उत्पाद शुल्क बढ़ा है। साथ ही महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार ने कर बढ़ाया है। इससे कंपनी पर कुछ नकारात्मक असर होगा, लेकिन मध्यम अवधि में बाजार इनके असर को सह लेगा। तथ्य यह भी है कि मार्च 2010 में उत्पाद शुल्क 2% बढऩे के बाद साल 2010-11 में घरेलू मांग में 30% की बढ़त दिखी थी। उम्मीद है कि कंपनी अपने कामकाज में सुधार और देश में बने पुर्जों के ज्यादा इस्तेमाल से मार्जिन बढ़ा सकेगी। मुझे उम्मीद है कि 2011-12 से 2013-14 की अवधि में इसकी आमदनी में सालाना औसतन करीब 40% की वृद्धि होगी। यह 2012-13 की अनुमानित आय के आधार पर 13.7 के पीई अनुपात पर है जो पिछले सालों में इसके पीई स्तरों से काफी नीचे है।
विप्रो
कंपनी ने 2010-11 में अपने कारोबार का पुनर्गठन किया, जिसके बाद इसके प्रदर्शन में काफी सुधार आया है। यह अपने पुराने ग्राहकों से ज्यादा कारोबार ले सकी। इसने फैसले लेने की प्रक्रिया भी आसान बना दी। इससे न केवल आमदनी बढ़ी, बल्कि सौदों की संख्या भी बढ़ी। पहले इसके पास 10 करोड़ डॉलर से ज्यादा बड़ा काम देने वाला केवल एक ग्राहक था। अब यह संख्या छह हो गयी है। कंपनी छोड़ कर जाने वाले कर्मचारियों की संख्या 2011-12 की पहली तिमाही में 23% के ऊँचे स्तर पर थी, जो अब घट कर 14% पर आ गयी है। विप्रो की सेवाओं में अब विवेकाधीन (डिस्क्रीशनरी) कामकाज की हिस्सेदारी कम रह गयी है, जिन्हें ग्राहक अपनी इच्छा से घटा-बढ़ा सकें। मौजूदा अनिश्चित माहौल में यह बात विप्रो के पक्ष में जाती है। मुझे उम्मीद है कि विप्रो अपनी डॉलर आय में 2012-14 के दौरान सालाना औसतन 13% वृद्धि कर सकेगी। रुपये में यह औसत वृद्धि 12.5% होने का अनुमान है। इससे यह टीसीएस और इन्फोसिस से अपना फासला घटा सकेगी। अभी यह 2012-13 की अनुमानित ईपीएस के आधार पर 15.3 के पीई पर है, लेकिन उम्मीद है कि इसका मूल्यांकन सुधरेगा।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2012)