Nivesh Manthan
Menu
  • Home
  • About Us
  • ई-पत्रिका
  • Blog
  • Home/
  • 2013/
  • जून 2013/
  • क्या 80% वापसी वाकई कारगर है?
Follow @niveshmanthan

सरकारी जड़ता टूटने की ख्वाहिश

Details
Category: जनवरी 2012

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :

पूरी उम्मीद है कि सन 2012 पिछले साल जैसा भयावह नहीं होगा। मुद्रास्फीति, ऊँची ब्याज दरें, कमजोर होता रुपया और वैश्विक आर्थिक कारकों ने पिछले साल भारत की विकास गाथा को लील लिया। लेकिन निवेश मंथन के ताजा सर्वेक्षण में यह उम्मीद उभर कर सामने आयी है कि 2012 का साल 2011 जितना खराब और डरावना नहीं होगा। मुद्रास्फीति की दर धीरे-धीरे उतार पर है।

ऊँची ब्याज दरों के नरम होने के संकेत अब मिलने लगे हैं। सबको पूरी आस है कि पाँच राज्यों में विधान सभा चुनावों के बाद केंद्र सरकार की नीतिगत निष्क्रियता और असमर्थता टूटेगी।

मगर आशंकाएँ पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। सच तो यह है कि आशंकाओं पर ही उम्मीदों की नींव टिकी है। घरेलू मोर्चे पर सरकार का बढ़ता घाटा चिंता का सबब बना हुआ है। रुपये के मजबूत होने के कोई संकेत नहीं दिखायी दे रहे हैं। मुद्रास्फीति के कम होते दबाव को कमजोर रुपया चौपट कर सकता है। इससे आयात महँगे होंगे और निर्यात सस्ते। लेकिन निर्यात सस्ते होने का लाभ देश को मिल पायेगा, इसमें संदेह है। कारण यह है कि विकसित देशों में विकास दर संकुचन के दौर में है और वहाँ अभी मंदी का खतरा टला नहीं है। अमेरिका से मिल रहे आर्थिक संकेत जरूर कुछ उम्मीद जगाते हैं। वहाँ 2008 के बाद से अब बेरोजगारी न्यूनतम स्तर पर है। अमेरिकी आवासीय बाजार में सुधार भी उत्साहकारी है और वहाँ खुदरा (रिटेल) बाजार में भी सुधार हुआ है। कुल मिला कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था गहरी मंदी के भयावह स्वप्न से उबर आयी है।

यूरो क्षेत्र टूटेगा या सँभलेगा, यह तय होना बाकी है। पर अब तक जो संकेत उभर कर सामने आये हैं, उनसे कुछ उम्मीद जागती है। यूरो क्षेत्र के टूटने के अंदेशे पहले से कम हो गये हैं। सारा दारोमदार इस बात पर है कि यूरो संकट के लिए फ्रांस और जर्मनी कितनी सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

हमारे सर्वेक्षण में यह बात साफ उभर कर सामने आयी है कि मार्च 2012 से कारोबारी सुकून की खबरें मिलनी शुरू हो जायेंगी। केंद्र सरकार की नीतिगत और निर्णय लेने की विकलांगता खत्म होने की उम्मीद इस सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों ने जतायी है। लेकिन उनके लहजे से लगता है कि यह उम्मीद कम और ख्वाहिश ज्यादा है। मार्च तक देश में नये राजनीतिक समीकरण सामने आ जायेंगे। नतीजतन शायद विघ्नकारी शक्तियों से केंद्र सरकार को मुक्ति मिल जायेगी। तेल की कीमतों ने धोखा नहीं दिया तो ऐसा लगता है कि जून 2012 के बाद निवेशक राहत की सांस ले पायेंगे।

कमजोर होते रुपया और केंद्र सरकार के बढ़ते राजकोषीय घाटे से कारोबारी जगत का विश्वास हिला हुआ है। रुपये की मजबूती या कमजोरी हमारे आयात-निर्यात से ज्यादा विदेशी निवेशकों के पूँजी प्रवाह और तेल की कीमतों पर निर्भर है। इन दोनों कारकों पर हमारा कोई कारगर नियंत्रण नहीं है। इसलिए निकट भविष्य में रुपये में मजबूती आने के आसार कम हैं।

खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू करने के लिए केंद्र की यूपीए सरकार तत्पर दिख रही है। भले ही यह सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे राजकोषीय घाटा और बढ़ जायेगा जो इस साल पहले ही अपनी हद पार कर चुका है। बढ़ते सरकारी घाटे के चलते देश का कर्ज भी तेजी से बढ़ रहा है। यदि समय रहते जीएसटी लागू नहीं हो पाया तो सरकार के कर संग्रह में अपेक्षित बढ़ोतरी न होने के कारण कर्ज की समस्या डरावनी हो जायेगी। यह कुछ वैसी ही स्थिति होगी, जिससे आज कई यूरोपीय देश जूझ रहे हैं। वैसे, जान पड़ता है कि ईंधन की सब्सिडी खत्म करने का सरकार ने मन बना लिया है। खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू करने के बाद निश्चित रूप से ईंधन सब्सिडी को खत्म करने का हरसंभव उपाय सरकार करेगी। इसके अपने फलितार्थ होंगे। इससे सरकारी तेल कंपनियों को तो काफी राहत मिलेगी, लेकिन अर्थव्यवस्था को महँगाई के एक और झटके का सामना भी करना पड़ सकता है।

(निवेश मंथन, जनवरी 2012)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
  • निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
  • निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
  • साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
  • भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
  • सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
  • भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
  • बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
  • ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
  • 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
  • रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
  • साल भर में नया शिखर
7 Empire

अर्थव्यवस्था

  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) : भविष्य के अनुमान
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीती तिमाहियों में
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीते वर्षों में

बाजार के जानकारों से पूछें अपने सवाल

सोशल मीडिया पर

Additionaly, you are welcome to connect with us on the following Social Media sites.

  • Like us on Facebook
  • Follow us on Twitter
  • YouTube Channel
  • Connect on Linkedin

Download Magzine

    Overview
  • 2023
  • 2016
    • July 2016
    • February 2016
  • 2014
    • January

बातचीत

© 2025 Nivesh Manthan

  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
Go Top