केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खान और खनन (नियंत्रण और विकास) विधेयक 2011 को मंजूरी दे दी है। यह 1957 में बने विधेयक की जगह लेगा। संभावना है कि यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जायेगा।
इस नये विधेयक के अनुसार खनन कंपनियों को कोयला परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले लोगों को अपने मुनाफे का 26% हिस्सा देना होगा। कोयले के अलावा अन्य खनिज संसाधनों का खनन करने वाली कंपनियों को राज्य सरकार को कुल रॉयल्टी में से 10% और केंद्र सरकार को 2.5% का उपकर जमा करना होगा।
इस विधेयक के तहत लोहे और बॉक्साइट जैसे खनिजों का खनन करने वाली कंपनियों को भी अपने मुनाफे के साथ-साथ रॉयल्टी का एक हिस्सा भी परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले लोगों के साथ बाँटना होगा।
इस विधेयक के अनुसार हर जिले में खनन विकास फंड बनाया जायेगा, जिसमें कंपनियों के मुनाफे और रॉयल्टी का वह हिस्सा रखा जायेगा, जो वे प्रभावित लोगों के लिए जमा करेंगे। इस राशि को इलाके के विकास और स्थानीय लोगों के कल्याण के लिए खर्च किया जायेगा।
इस विधेयक के लागू होने पर पर्यावरण की और टिकाऊ विकास के लिए खनन से पहले प्रभावित लोगों का परामर्श लेना अनिवार्य होगा। इस विधेयक के तहत देश के 60 ऐसे जिलों में राष्ट्रीय खनन नियामक प्राधिकरण व राष्ट्रीय खनिज ट्रिब्यूनल का गठन किया जायेगा, जहाँ खनिज संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। राज्यों और केंद्र के खनन से जुड़े विभागों की क्षमता बढ़ाने के लिए भी व्यवस्था की जायेगी। इस विधेयक के आने से सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी 4,500 करोड़ रुपये से बढ़ कर 8,500 करोड़ हो जायेगी। लेकिन इस खबर ने उद्योग जगत का जायका जरूर खराब कर दिया है। उद्योग जगत के संगठन फिक्की, सीआईआई और एसोचैम ने मुनाफा बाँटने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी है। इन्होंने कहा है कि इससे विदेशी निवेशकों का भारत में निवेश करने का उत्साह खत्म हो जायेगा। सरकारी कंपनी कोल इंडिया के चेयरमैन एन. सी. झा ने हाल में मीडिया से बातचीत में जानकारी दी कि इस प्रावधान के चलते कोल इंडिया के मुनाफे पर करीब 2000 करोड़ का असर पड़ सकता है। कारोबारी साल 2011 में कोल इंडिया ने 10,867 करोड़ रुपये का मुनाफा हासिल किया था।
फिक्की ने कहा है कि भारत उन देशों में से एक है, जहाँ पहले से ही खनन कंपनियों पर सबसे ज्यादा कर लगाया जाता है। नये विधेयक से कोयले के खनन पर 61% और लौह अयस्क के खनन पर 55% तक करों का बोझ बढ़ेगा। सीआईआई का कहना है कि नये खनन विधेयक से उद्योग की मुश्किलें बढ़ जायेंगी, क्योंकि कंपनियाँ सीएसआर के तहत पहले से ही सामाजिक योजनाओं पर बड़ी रकम खर्च कर रही हैं। एसोचैम का भी कहना है कि खनन कंपनियों पर आस्ट्रेलिया में 39%, कॉन्गो में 36%, रूस में 35% और चीन में 32% का कर भार होता है। ऐसे में भारत में इतने कड़े प्रावधान लाना व्यवहारिक नहीं है। साफ है कि उद्योग जगत रॉयल्टी या मुनाफे के हिस्से को लेकर चिंतित है।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)