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गरीबी रेखा को लेकर उलझन में सरकार

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Category: अक्तूबर 2011

देश के अर्थशास्री प्रधानमंत्री के राज में गरीबों के साथ इतना घटिया मजाक किया जायेगा। यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले योजना आयोग ने गरीबी रेखा की नयी परिभाषा दी।

इस परिभाषा के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपये और शहरी इलाके में 32 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाले गरीबी रेखा से ऊपर माने जायेंगे। अगर इस परिभाषा की माना जाये, तो वह बीपीएल (बिलो पावर्टी लाइन) परिवारों वाली सुविधा पाने का हकदार नहीं है।
हालाँकि उच्चतम न्यायालय में दिये गये हलफनामे में योजना आयोग द्वारा 32 रुपये को गरीबी रेखा का आधार बताये जाने पर हुई फजीहत के बाद सरकार की ओर से इस मामले में अपनी सफाई पेश की गयी है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने संयुक्त पत्रकार वार्ता में कहा कि 32 रुपये को गरीबी रेखा का आधार मानना आयोग की राय नहीं थी। मोंटेक ने कहा कि वह तेंडुलकर समिति की राय थी और उसी के आधार पर आयोग ने उच्चतम न्यायालय के सवालों के जवाब देते हुए वह हलफनामा दायर किया था।
बहरहाल, अब यह ऐलान हो गया है कि पुराने आँकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि गाँवों में सर्वे के बाद गरीबी रेखा का नया आधार बनाया जायेगा। उनका कहना है कि जनवरी 2012 तक यह सर्वे रिपोर्ट आयेगी।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह ने यह भी कहा है कि आयोग योजनाओं का लाभ केवल गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों तक सीमित रखने के पक्ष में नहीं है। इसका विस्तार इसके ऊपर के परिवारों तक भी किया जायेगा।
योजना आयोग ने उच्चतम न्यायालय में जो हलफनामा दायर किया था उसके मुताबिक शहरों में जो 965 रुपये प्रति माह और 32 रुपये प्रतिदिन खर्च करते हैं वे गरीब नहीं हैं। वहीं गाँवों में जो लोग 781 रुपये प्रति माह और 26 रुपये प्रति दिन खर्च करते हैं, उन्हें गरीब नहीं माना गया।
योजना आयोग ने कहा कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरू और चेन्नई में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वह गरीब नहीं कहा जा सकता। आयोग के मुताबिक एक दिन में एक आदमी प्रतिदिन अगर 5.50 रुपये अनाज पर, 1.02 रुपये दाल पर, 2.33 रुपये दूध, 1.55 रुपये तेल, 1.95 रुपये साग-सब्जी, 44 पैसे फल पर, 70 पैसे चीनी पर, 78 पैसे नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे अन्य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति अगर 49.10 रुपये मासिक किराया दे कर आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जायेगा।
योजना आयोग की यह बात मानें तो स्वास्थ्य सेवा पर 39.70 रुपये प्रति महीने खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। आयोग को शिक्षा पर 99 पैसे प्रति दिन का खर्च पर्याप्त लगा। 
योजना आयोग ने ये मापदंड बनाते समय 2010-11 के इंडस्ट्रियल वर्कर्स के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स और तेंडुलकर समिति की 2004-05 की कीमतों के आधार पर खर्च का हिसाब-किताब दिखाने वाली रिपोर्ट पर गौर किया। हालाँकि, रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जायेगी। लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली में 5 रुपये में आप 136 ग्राम चावल या 166 ग्राम गेहूँ ही खरीद सकते हैं। 1 रुपये 80 पैसे में 180 ग्राम आलू या 90 ग्राम प्याज, 90 ग्राम टमाटर या फिर 180 ग्राम लौकी खरीद सकते हैं। ऐसे ही 1 रुपये में 20 ग्राम दाल ही मिल पायेगी। 2.50 रुपये से कम में दूध मिलेगा सिर्फ 85 मिली लीटर। और 112 रुपये में आप डेढ़ किलो रसोई गैस से ज्यादा नहीं खरीद सकते। इतने राशन में तो एक वक्त खाना भी मुश्किल है!
योजना आयोग की गरीबी रेखा की नयी परिभाषा ने एक बार फिर गरीबों की पहचान को लेकर बहस छेड़ दी है। सरकारी आँकड़ों के हिसाब से भारत की 37.5% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। लेकिन कुछ अर्थशास्री इसे 77% तक मानते हैं। सवाल यही उठता है कि गरीबी रेखा का आधार क्या है?
दरअसल, इसे तय करने के लिए योजना आयोग के पास बाकायदा एक सूत्र है। इस सूत्र के मुताबिक देश की आधी आबादी जिस चीज पर जितना खर्च करती है उसे औसत मान लिया जाता है। जैसे महँगाई के लिए अब तक आधार वर्ष माने गये 2005-2006 में जनता अनाज पर औसतन 96 रुपये प्रति माह खर्च करती थी। यानी अनाज पर इससे ज्यादा खर्च करने वालों को गरीब नहीं माना जाता।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)

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