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डेब्ट फंड : सेवानिवृत्ति के बाद का सहारा

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Category: नवंबर 2016

सेवानिवृत्ति के बाद नियमित रूप से किसी आमदनी का स्रोत सुनिश्चित करने की चिंता होना बेहद स्वाभाविक है। परंपरागत रूप से लोग इसके लिए बैंकों में मियादी जमा (एफडी) की राह चुनते आये हैं, जिसे तय अवधि में निश्चित प्रतिफल देने वाला एक सुरक्षित माध्यम माना जाता है। लेकिन मुद्रास्फीति, कर अदायगी और ब्याज दरों में गिरावट जैसे मानदंडों के लिहाज से देखें तो एफडी का विकल्प माकूल नहीं बैठता। अगर ऐसा विकल्प मिल जाये, जिसमें न केवल निवेश सुनिश्चित रहे बल्कि नियमित रूप से कुछ आमदनी का भी इंतजाम हो जाये और कर बचत भी हो जाये तो वाकई बात बन जाये। इस लिहाज से डेब्ट म्यूचुअल फंड आपके लिए सबसे मुफीद विकल्प हो सकता है।

चिंता से मुक्ति

अपनी खासियतों के चलते डेब्ट म्यूचुअल फंड सेवानिवृत्ति के बाद की योजनाओं में तेजी से अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। परंपरागत रूप से लोग बैंक जमाओं को इसके लिए तरजीह देते आये हैं, लेकिन घटती ब्याज दरों के दौर और कर देनदारी के लिहाज से बैंक जमाएँ उतनी आकर्षक नहीं रह गयी हैं। खास तौर से अगर आप कर देनदारी की सबसे ऊँची श्रेणी में हैं, तो फिर बैंक जमाओं पर कर देनदारी और ऊँची हो जाएगी। इसकी तुलना में डेब्ट म्यूचुअल फंड आमदनी और कर बचत के पैमाने पर इक्कीस साबित होते जा रहे हैं। ये फंड मासिक आय योजना (एमआईपी) जैसी योजनाओं की पेशकश करते हैं। इनमें नियमित निकासी योजना (एसडब्ल्यूपी) का विकल्प भी चुना जा सकता है। अपने कोष के निवेश के मामले में ये फंड काफी अलग होते हैं और आम तौर पर कोष का 10-20% ही इक्विटी में लगाते हैं, जबकि 80-90% डेब्ट और बॉन्ड जैसे अपेक्षाकृत सुरक्षित माध्यमों में निवेश करते हैं। लचीलेपन के मामले में भी डेब्ट म्यूचुअल फंडों का कोई जवाब नहीं। ऐसे में सेवानिवृत्त लोगों को चिंता से मुक्ति मिल जाती है।

लचीलेपन की बात करें तो इसमें मौजूद एसडब्ल्यूपी के विकल्प से नियमित अंतराल पर एक पूर्व निर्धारित राशि की निकासी की जा सकती है। जब आपको पैसों की जरूरत न हो तो एसडब्ल्यूपी पर विराम भी लगाया जा सकता है। ये केवल बैंक जमाओं से ही नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों द्वारा पेश की जाने वाली पेंशन योजनाओं से भी बेहतर साबित होते हैं।

यूँ होते कारगर

फिर भी निवेशकों की कुछ आशंकाएँ बाकी रह जाती हैं। चूँकि इनकी प्रकृति तो फंड वाली है, लिहाजा कुछ अनिश्चितता का भाव जरूर रहता है। लेकिन जैसा कि इनके कोष निवेश का विवरण दिया गया है तो इनमें उतनी अनिश्चितता भी नहीं रहती। खास तौर से इक्विटी में निवेश जितनी तो बिल्कुल भी नहीं।

असल में डेब्ट माध्यमों की दर ब्याज दरों के दौर से तय होती है। ब्याज दरों में गिरावट की स्थिति में कोई डेब्ट फंड सकारात्मक रूप से भी प्रभावित हो सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि संबंधित फंड ने किस तरह के माध्यमों (इंस्ट्रूमेंट) में निवेश कर रखा है। इसकी तुलना में ब्याज दरों में गिरावट आने की स्थिति में बैंक जमाओं का प्रतिफल आपको दगा दे सकता है। हाल फिलहाल नरम मौद्रिक नीति के दौर में ब्याज दरों में गिरावट का सिलसिला लंबा भी चल सकता है।

अगर आप अब भी आप इस दुविधा में हों कि सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन योजना भी कारगर हो सकती है तो इस पैमाने पर भी डेब्ट म्यूचुअल फंड पेंशन योजनाओं पर भारी पड़ते हैं। पेंशन योजनाओं में भी वार्षिक भुगतान पर मियादी जमाओं के माफिक ही कर देना पड़ता है। साथ ही पेंशन योजनाओं में प्रतिफल भी अमूमन सालाना 5.5% से 6.5% के दायरे में रहता है, जो उन्हें और अनाकर्षक बना देता है। इसमें अगर कर उपरांत प्रतिफल को देखें तो यह और कम हो जाता है। साथ ही एक बार अगर पेंशन शुरू हो गयी तो उसे बंद नहीं किया जा सकता, जबकि एसडब्ल्यूपी के जरिये इसे कभी भी शुरू और कभी भी बंद किया जा सकता है। साथ ही डेब्ट म्यूचुअल फंडों में अपनी जरूरत और जोखिम के हिसाब से ऊँचे प्रतिफल वाले विकल्पों को भी चुना जा सकता है।     

(निवेश मंथन, नवंबर 2016)

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  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
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