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इनसाइडर ट्रेडिंग, पी-नोट्स पर सख्त हुआ सेबी

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Category: दिसंबर 2014

सुशांत शेखर :

शेयर बाजार नियामक सेबी ने बाजार में कारोबार को और पारदर्शी बनाने के इरादे से इनसाइडर ट्रेडिंग और पी नोट्स से जुड़े नियम काफी सख्त कर दिये हैं। सेबी ने 19 नवंबर की बोर्ड बैठक में इनसाइडर ट्रेडिंग के नियमों को कड़ा कर दिया है।

इसके बाद सेबी ने 24 नवंबर को एक सर्कुलर जारी करके पी नोट्स से जुड़े नियम भी सख्त कर दिये। सेबी बोर्ड ने इनसाइडर ट्रेडिंग के लिए इनसाइडर शब्द की परिभाषा और साफ कर दी है। कोई भी व्यक्ति जिसके पास कंपनी से जुड़ी संवेदनशील जानकारियाँ हैं, उसे इनसाइडर यानी भेदिया माना जायेगा। इसमें कंपनी के कर्मचारी से लेकर ठेके पर काम करने वाले वेंडर के कर्मचारी भी शामिल होंगे। अगर कंपनियां थर्ड पार्टी को कॉन्ट्रैक्ट देती हैं तो उनसे भी इसके लिए डिस्क्लोजर लेना होगा।
सेबी के नये नियमों के मुताबिक भेदिया माने गये व्यक्तियों को अपनी बेगुनाही खुद ही साबित करनी होगी। बोर्ड ने यह भी साफ कर दिया है कि किसी भी कंपनी के निदेशक और बड़े अधिकारी कंपनी के शेयरों के डेरिवेटिव यानी वायदा कारोबार से जुड़े सौदे नहीं कर पायेंगे।
सेबी ने कंपनियों के शेयर बाजार से हटने यानी डीलिस्टिंग के नियमों को भी आसान किया है। डीलिस्टिंग की प्रक्रिया अब 137 दिन के बदले घट कर 76 दिन में ही पूरी हो सकेगी। डीलिस्टिंग के लिए मौजूदा 50% के बदले 25% पब्लिक शेयरहोल्डरों की ही मंजूरी लेनी होगी। यह भी साबित करना होगा कि डीलिस्टिंग से निवेशकों को फायदा होगा। लेकिन कंपनियाँ डीलिस्टिंग के ऐलान करने के बाद पीछे नहीं हट सकेंगी।
सेबी बोर्ड ने विवादों के निपटारे की प्रक्रिया भी आसान कर दी है। कंपनियाँ चाहें तो बेसिक नोटिस मिलने पर ही खुद पहल कर सेबी के साथ केस निपटा सकती हैं। अब तक कारण बताओ नोटिस मिलने के बाद ही कंसेट की प्रक्रिया शुरू होगी थी। सेबी के इस कदम से लंबित मामलों का निपटारा तेजी से होगा।
पी-नोट्स पर सख्त सेबी
ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट यानी ओडीआई के तौर पर पी-नोट्स हमेशा से विवादों में रहे हैं। पी-नोट्स के जरिये विदेश में रहने वाला कोई व्यक्ति अपनी पहचान जाहिर किये बगैर भारत में पंजीकृत फॉरेन पोर्टफोलिओ इन्वेस्टर यानी एफपीआई के जरिये भारतीय बाजार में पैसा लगा सकता है।
सेबी के 24 नवंबर के नये सर्कुलर के जरिये पी-नोट्स जारी करने से जुड़े नियमों को सख्त बना दिया गया है। इस सर्कुलर के मुताबिक पी-नोट्स जारी करने वाले फॉरेन पोर्टफोलिओ इन्वेस्टर यानी एफपीआई को चार शर्तें पूरी करनी होगी।
1. पी-नोट्स केवल उन्हीं देशों के नागरिकों को जारी किया जा सकेगा, जिनके शेयर बाजार नियामक ने इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ सिक्योरिटीज कमीशन यानी आईओएससीओ के साथ समझौते किये हैं। ऐसे कुल 103 देश हैं। लेकिन इनमें चिली, रूस और फिलीपींस जैसे कई देश शामिल नहीं हैं। मतलब उन देशों से जुड़े निवेशकों को पी-नोट्स जारी नहीं किया जा सकेगा। अगर पी-नोट्स आवेदक कोई बैंक है तो उस देश के केंद्रीय बैंक को बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट का सदस्य होना पड़ेगा।
2. पी-नोट्स सब्सक्राइबर ऐसे देशों के नहीं होने चाहिए, जिन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग पर अंतरराष्ट्रीय करार फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ को ठीक से लागू नहीं किया है। इस श्रेणी में ईरान, इंडोनेशिया, म्यांमार और उत्तरी कोरिया जैसे कई देश शामिल हैं।
3. ‘ओपेक स्ट्रक्चर’ यानी मालिकों की सूची छिपाने वाली कंपनियों को ओडीआई जारी नहीं किया जा सकता।
4. सबसे अहम माने जानी वाली शर्त है कि एफपीआई किसी कंपनी में निवेश सीमा से जुड़े नियमों के दायरे में ही ओडीआई जारी कर सकेंगे। अभी कोई एफपीआई किसी कंपनी में 10% से ज्यादा निवेश नहीं कर सकते। लेकिन अब एफपीआई की पोजीशन में ओडीआई को भी मिला दिया गया है। मतलब एफपीआई का अपना खुद का निवेश और ओडीआई के जरिये आया निवेश मिला कर 10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। माना जा रहा है कि इस नियम से कंपनियों के मालिकाना हक पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
पी-नोट्स पर सेबी के नये नियम तत्काल प्रभाव से लागू हो गये हैं। हालाँकि पहले से जारी हो चुके पी-नोट्स अपनी वैधता अवधि तक तक वैध माने जायेंगे। लेकिन अगर वे नये नियमों के मुताबिक नहीं होंगे तो उन्हें रिन्यू यानी नवीकृत नहीं किया जा सकेगा।
पी-नोट्स पर सेबी इसलिए भी सख्त हुआ क्योंकि इस रास्ते भारतीय बाजारों में आने वाला निवेश काफी बढ़ गया था। सिर्फ अक्टूबर में ही पी-नोट्स के जरिये भारतीय बाजार में 2.65 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया। अक्सर संदेह उठता रहा है कि पी नोट्स के जरिये कुछ कंपनियों के प्रमोटर खुद ही विदेशी निवेशक बन कर काले धन को सफेद करते हैं। साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी पैसे के बाजार में निवेश के लिए इसका इस्तेमाल किये जाने के भी आरोप लगते रहे हैं। पिछली एनडीए सरकार ने पी-नोट्स पर रोक भी लगा दी थी। लेकिन यूपीए सरकार के समय यह रोक हटा दी गयी।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)

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