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जज, आईएसएस, प्रोफेसर भी ठगे जा रहे बीमा के नाम पर

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Category: दिसंबर 2014

बीमा पॉलिसी के नाम पर धोखाधड़ी से बचने के लिए बीमा नियामक इरडा की चेतावनी वाले विज्ञापन लगातार जारी किये जा रहे हैं।

बावजूद इसके देश भर में बीमा पॉलिसी के नाम पर ठगी जारी है। आम आदमी ही नहीं, उच्च-शिक्षित और उच्च पद वाले भी ऐसी ठगी के शिकार हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में ऊना जिले के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर भी इस ठगी के शिकार हो गये। उनसे पाँच लाख रुपये ऐंठे गये। इस मामले की शिकायत प्रोफेसर ने पुलिस में की, जिसके बाद पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
ऐसे हुई धोखाधड़ी
भुक्तभोगी प्रोसेफर कुलदीप चंद सूद ऊना जिले में अंब उपमंडल में प्रताप नगर निवासी हैं। उन्होंने 29 अगस्त 2014 को धोखाधड़ी के मामले की शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत में प्रोफेसर ने बताया था कि उन्होंने एक बीमा पॉलिसी ली थी, जिसके बाद 18 से 20 मई 2014 के बीच उन्हें किसी एजेंट के जरिए फोन किया गया था। फोन पर एजेंट ने उन्हें जानकारी दी थी कि उन्होंने जो बीमा पॉलिसी ली है, उसका सारा पैसा डूब गया है। फोन करने वाले व्यक्ति ने प्रोफेसर को यकीन दिलाया था कि यदि वे उससे दो और पॉलिसी करवायेंगे तो उन्हें पुरानी पॉलिसी का सारा पैसा वापस मिल जायेगा। इसके बाद फोन करने वाले व्यक्ति ने पॉलिसी खोलने के नाम पर प्रोफेसर के घर एक दूसरे व्यक्ति को भेजा। प्रोफेसर ने घर ही पर उस व्यक्ति को 2.5 लाख रुपये के दो चेक दिये थे। जब प्रोफेसर ने एजेंट को 21 मई को दोबारा फोन किया तो उसका फोन बंद था।
दो-तीन दिन बाद जब प्रोफेसर ने अपना खाता देखा तो उसमें कोई रकम नहीं थी। शिकायत पर पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज किया। एसपी अनुपम शर्मा ने केस जांच की जिम्मेवारी एसआईयू को सौंपी थी। जाँच में पाया गया कि चेक वित्तीय संस्था सिटी सॉल्यूशन के नाम पर जारी किया गया था। प्रोफेसर का खाता दिल्ली के इलाहाबाद बैंक में था।
इस शिकायत के बाद पुलिस ने आरोपी को दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर के पास गिरफ्तार कर लिया। उसे अदालत में पेश भी किया गया। अदालत ने पांच दिसंबर तक आरोपी को पुलिस रिमांड पर भेजने के आदेश दिये। आरोपी की पहचान दिल्ली निवासी प्रवेश कुमार के रूप में हुई है।
मध्य प्रदेश में भी बीमा पॉलिसी के नाम पर फ्रॉड के मामलों में काफी इजाफा हुआ है। बीमा लोकपाल के पास हाल में ऐसी कई शिकायतें आयी हैं जिनमें जज, आईएएस जैसे उच्च पदस्थ लोगों को भी ठगा गया है। एजेंट तय आय और भारी रिटर्न के नाम पर लोगों को धोखाधड़ी का शिकार बना रहे हैं। बीते एक साल में भोपाल में बीमा पॉलिसी के नाम पर ठगी के 1 हजार से भी अधिक मामले सामने आये हैं।
इरडा ने फिर से सर्कुलर जारी कर कहा है कि बीमा उत्पादों के विज्ञापन पर बीमा कंपनियाँ ज्यादा पारदर्शी तरीके से ग्राहकों को उत्पाद की शर्तों के बारे में बतायें।
अब 1 लाख रुपये होगी प्रीपेड कार्ड की सीमा
भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रीपेड कार्ड के नियमों में कई अहम बदलाव किये हैं। अब प्रीपेड कार्ड की सीमा 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख रुपये कर दी गयी है। आरबीआई ने गिफ्ट कार्ड की वैधता की अधिकतम सीमा भी मौजूदा एक साल से बढ़ा कर तीन साल कर दी है।
आरबीआई ने यह भी तय किया है कि इस कार्ड में किसी भी समय एक लाख रुपये से अधिक की राशि नहीं रखी जा सकती है। नकद लेनदेन को सीमित करने के उद्देश्य से इन वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि गिफ्ट कार्ड के मामले में पीपीआई (प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रुमेंट) संबंधी दिशानिर्देशों के अन्य प्रावधान लागू रहेंगे। रिजर्व बैंक ने पूर्ण रूप से केवाईसी अनुपालन वाले बैंक खातों से कई पीपीआई जारी करने की अनुमति भी दे दी है। ऐसे खाताधारकों के आश्रितों और परिवार के सदस्यों को प्रीपेड कार्ड जारी किया जा सकेगा, हालाँकि एक व्यक्ति के नाम पर केवल एक ही कार्ड दिया जा सकेगा।
इरडा ने दिया जन बीमा योजना का सुझाव
बीमा नियामक इरडा ने सरकार को सुझाव दिया है कि जन-धन योजना की तर्ज पर जन बीमा योजना की शुरुआत की जानी चाहिए। इससे लोगों में बीमा को लेकर जागरूकता बढ़ेगी और ज्यादा से ज्यादा लोग बीमा का लाभ ले पायेंगे। इरडा के चेयरमैन टी एस विजयन ने उद्योग संगठन फिक्की की ओर से आयोजित 16वें सालाना बीमा सम्मेलन के दौरान यह बात कही।
उन्होंने कहा कि अभी सरकार की ओर से सामाजिक और आर्थिक पिछड़े लोगों के लिए स्वास्थ्य और दुर्घटना संबंधी बीमा मुहैया कराने को लेकर कई योजनाएँ चल रही हैं, लेकिन इसे और रफ्तार दिये जाने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के जरिये अस्पताल में मुफ्त इलाज कराने की सुविधा दी जा रही है। इसी तरह जन बीमा योजना की शुरुआत कर एक बड़ी आबादी को लाभ पहुँचाया जा सकता है।
केवल 9% शहरी पसंद करते हैं म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंडों में निवेश भारतीयों घरों की पहली पसंद नहीं बन पाया है। नीलसन के एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार केवल 9% शहरी भारतीय घरों में ही म्यूचुअल फंड में निवेश किया जाता है। हालाँकि नीलसन का कहना है कि इस वजह से वित्तीय संस्थानों के सामने म्यूचुअल फंड के रूप में एक बड़ा अवसर मौजूद है। बीते तीन वर्षों में महानगरों में म्यूचुअल फंडों में उपभोक्ता निवेश 5% बढ़ा है, गैर-मेट्रो क्षेत्रों में साल 2010 से 2% की ही वृद्धि दर्ज की गयी है।
म्यूचुअल फंडों में निवेश के लिए मध्यम से उच्च आय वर्ग का ज्यादा झुकाव है। नीलसन के सर्वेक्षण के मुताबिक निम्न आय वर्ग के 50% व्यक्तियों ने कहा कि उन्होंने न तो कभी म्यूचुअल फंडों में निवेश किया है, न करने का इरादा रखते हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक वित्तीय संस्थाओं और कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारतीय उपभोक्ताओं में वित्तीय साक्षरता बहुत कम है, जिससे आम निवेशक म्यूचुअल फंडों को संदेह और सावधानी की नजर से देखते हैं।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2014)

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