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कंपनियों की आय बढऩे से तेज होगा शेयर बाजार

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Category: अक्तूबर 2014

यूटीआई म्यूचुअल फंड के ग्रुप प्रेसिडेंट (सेल्स और मार्केटिंग) सूरज केइली का मानना है

कि अर्थव्यवस्था की सुधरती तस्वीर के बीच निचली महँगाई दर और ऊँची विकास दर से शेयर बाजार में तेजी का नया दौर शुरू हो रहा है।
जब भी भारत में महँगाई दर नीचे रहती है और जीडीपी विकास दर महँगाई दर से ज्यादा हो जाती है तो उस वक्त देश में सामान्यत: नयी तेजी (बुल रन) की शुरुआत होती है। अगर अगले साल विकास दर 6.5% के आसपास हो जाती है और आरबीआई का 2016 में महँगाई को 8% से 6% पर लाने का लक्ष्य है। उस समय अगर ब्याज दरें भी नीचे आनी शुरू हो जायें और कंपनियों की आय में भी सुधार आना शुरू हो जाये तो इन सब का सीधा असर बाजार पर भी पड़ता है। हमारा मानना है कि अर्थव्यवस्था के जो आँकड़े हैं, वे इस समय काफी सही दिशा में चल रहे हैं। अगर हमारी यही दिशा और रफ्तार रही तो यकीनन हम अच्छे दिन देखेंगे। आरबीआई ने स्पष्ट कहा है कि अगर लंबी अवधि में भारत की विकास की कहानी को बनाये रखना है तो महँगाई दर का नीचे आ कर नीचे बने रहना बहुत जरूरी है।
हमारा मानना है कि ऐसे बहुत सारे कारक हैं जो महँगाई को नीचे रखने में मदद कर रहे हैं, जिनको हमने पहले से नहीं आँका था। जैसे तेल को देख लीजिए। ब्रेंट क्रूड अब 92 डॉलर से नीचे आ गया है। इसके चलते चालू खाता घाटा (सीएडी) और सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) दोनों पर से काफी दबाव हट जाता है। इस तरह की बातें काफी मददगार हैं। अगर ऐसी स्थिति बनी रहती है तो इससे महँगाई दर भी घटेगी और ब्याज दरें भी घटने की संभावना बढ़ जायेगी। इसलिए अभी बाजार की दिशा हमें काफी ठीक लग रही है। अचानक से बाजार में कुछ हो जाये, उसका जोखिम तो बाजार में बना ही रहता है।
इसे आप दो तरीके से देख सकते हैं। हमने बाजार में अगस्त 2013 से लेकर अब तक जो तेजी देखी है, इसमें बाजार में काफी बढ़ोतरी आयी है। पहले चरण में जब बाजार वापस सँभला, उस समय तमाम शेयर काफी पिटे हुए थे और इस तेजी में मुख्य रूप से उसका सुधार हुआ है। अब इस तेजी को अगर आप बनाये रखना चाहते हैं तो कंपनियों की आमदनी का बढऩा बहुत जरूरी है।
भारत में आमदनी पर आधारित कहानी का ज्यादा सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। अगस्त 2013 में तो कोई ऐसा पहलू हमें दिखायी नहीं दे रहा था, जो शेयर बाजार के लिए सकारात्मक हो। लेकिन इस दौरान काफी कुछ ऐसी चीजें हुई, जिससे बाजार पटरी पर लौट पाया। उस समय जिसने निवेश किया, उसने उम्मीदों के आधार पर निवेश किया। लेकिन अभी बाजार में जो निवेशक आयेंगे, वे अर्थव्यवस्था में वास्तविक सुधार को देख कर आयेंगे और मेरे ख्याल से उससे काफी मदद मिलेगी। इसलिए हमारा नजरिया यही है कि आगे चल कर आमदनी में वृद्धि की संभावनाएँ ज्यादा उचित और वास्तविकता के करीब दिखायी दे रही हैं। इसलिए अब बाजार में बढ़त पीई अनुपात बेहतर होने के चलते नहीं आयेगी, बल्कि आय में वृद्धि की वजह से आयेगी।
सेंसेक्स ईपीएस होगी 2000 रुपये
पिछले कारोबारी साल में सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 1,340 रुपये रही है। अगर उसमें सालाना 14-15% वृद्धि का भी अनुमान रखते हैं तो हमें उम्मीद है कि अगले तीन सालों में यह 2,000 रुपये के आसपास होगी। इससे बाजार मौजूदा स्तरों से आगे बढऩे की गुंजाइश बनेगी। उस ईपीएस पर बाजार का मूल्यांकन कितने पीई का होगा, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। लेकिन हमें लगता है कि आय में वृद्धि की दर काफी तार्किक और वास्तविक रहेगी।
यूटीआई में हम बाजार का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश नहीं करते। हमारा ध्यान इस पर ज्यादा होता है कि ऐसी कंपनियों में पैसा लगायें, जिनमें आमदनी होगी और क्योंकि बाजार में शेयर भाव अंतत: कंपनी की आमदनी के आधार पर ही होता है। हमारा मानना है कि एक तो अच्छी कंपनियाँ होती हैं, जिन कंपनियों पर हमारा विश्वास है कि वे अच्छी हैं और अच्छी रहेंगी। दूसरी वो जो उतनी अच्छी नहीं हैं। कंपनियों के कारोबारी मॉडल का आकलन करके हम सामान्यत: इन दो श्रेणियों में कंपनियों को बाँटते हैं।
जब बाजार बहुत नीचे जाता है तो लोग कमजोर कंपनियों को लेने की कोशिश करते हैं, इस उम्मीद से कि इनमें बहुत लाभ मिलेगा। पर हमारा मानना है कि जब बाजार में बढ़त आती है तो स्थापित और मजबूत कारोबार वाली कंपनियों की आय में ही ज्यादा वृद्धि दिखती है। हम कंपनियों को चुनते समय उनके कामकाज से आने वाली नकदी (कैश फ्लो) पर ज्यादा जोर देते हैं। हमें उम्मीद है कि उस तरह की कंपनियाँ ही आगे चल कर निवेशकों को ज्यादा लाभ देंगी। हम बॉटम-अप तरीके से शेयरों का चुनाव करते हैं। इसलिए क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान नहीं होता।
फिर आ रहे हैं निवेशक
बीते कुछ महीनों से निवेशकों का उत्साह बढ़ा है। एम्फी के आँकड़ों में हम देख रहे हैं कि पूरे म्यूचुअल फंड क्षेत्र में शुद्ध बिक्री (रिडेंप्शन या निकासी घटा कर) 4,000-5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ही हो रही है। पिछले महीने यह ज्यादा अच्छी थी। सितंबर महीने के आँकड़े अभी आने वाले हैं और हमारा अनुमान है कि इसमें भी शुद्ध बिक्री 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर ही रहेगी। कई महीनों में इससे ज्यादा भी रहा है। यह रुझान इस साल काफी सकारात्मक है। अप्रैल 2014 से इस तरह का सकारात्मक रुझान बन गया था। हम अब देख रहे हैं कि थोड़ी-सी भागीदारी व्यापक हो रही है। पर हमें लगता है कि खुदरा निवेशक अभी पूरी तरीके से निवेश करने बाजार में आया नहीं है। ऐसे शुरुआती संकेत ही दिख रहे हैं कि खुदरा निवेशक बाजार में वापस आने की कोशिश कर रहा है। अगर इस समय खुदरा निवेशक बाजार में आते हैं तो यह बाजार के लिए काफी सकारात्मक कदम होगा। पुराने निवेशक तो हैं ही, बाजार में नये निवेशक भी आ रहे हैं। हमारे पास करीब 20-30% नये निवेशक आ रहे हैं।
यूटीआई की बाजार हिस्सेदारी अभी सपाट है। दरअसल इक्विटी और नियत आय (फिक्स्ड इन्कम) दोनों तरह की योजनाओं में जब वृद्धि होती है तो आपकी पूरी बाजार हिस्सेदारी में सुधार होता है। इक्विटी में हमारी बाजार हिस्सेदारी सुधरी है। नियत आय योजनाओं में हमारी बाजार हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है। नियत आय योजनाओं में एक रुझान यह भी है कि आयकर नियमों में बदलाव की वजह से एफएमपी में लोगों की रूचि थोड़ी कम हो गयी। वह पैसा लोग दूसरे ऋण उत्पादों में या इक्विटी में ले जा रहे हैं।
स्वतंत्र सलाहकारों की भागीदारी
नये फंड प्रस्तावों (एनएफओ) में भी तेजी आयी है। हमने अभी हाल ही में एक फंड पेश किया था फोकस्ड इक्विटी फंड नाम से। यह तीन साल की नियत अवधि (क्लोज एंडेड) वाली योजना है। उसमें हमने 770 करोड़ रुपये जुटाये और 67,000 से ज्यादा निवेशकों ने इसमें हिस्सा लिया। एक अच्छी बात यह थी कि इसमें 8,000 से ज्यादा स्वतंत्र वित्तीय सलाहकारों (आईएफए) ने हिस्सेदारी की थी। हमारा मानना है कि अगर आपकी निवेश रणनीति अच्छी है और बाजार को पसंद आती है तो जरूर अच्छी वृद्धि और भागीदारी दिखेगी।
हमारा मानना है कि कोई आईएफए या वितरक तभी अच्छा काम कर पाता है जब बाजार अच्छा हो। पहले उनका संग्रह कमजोर रहने का कारण यह भी था कि तब बाजार अच्छा नहीं था और निवेशकों की रुचि नहीं थी। ऐसी स्थिति में किसी भी वितरक के लिए टिक पाना मुश्किल हो जाता है। अभी यही स्थिति बीमा क्षेत्र में भी दिखायी दी थी। लोगों ने कम बीमा उत्पाद खरीदने शुरू कर दिये थे। उदाहरण के लिए यूलिप में जो हुआ उसे देख लें। इससे आईएफए की रूचि कम हो जाती है। हमारा मानना है कि वितरण में जो वृद्धि होती है, वह बाजार के साथ ही होती है। यह रुझान हम देख रहे हैं कि बाजार जैसे-जैसे स्थिर होंगे, स्वतंत्र सलाहकारों की रूचि में भी धीरे-धीरे सुधार होगा।
खुदरा निवेशक डायरेक्ट प्लान से दूर
हमने डायरेक्ट प्लान में खुदरा निवेशकों की ज्यादा भागीदारी नहीं देखी है। डायरेक्ट प्लान में जो भागीदारी है, वह मुख्य रूप से संस्थागत (इंस्टीट्यूशन), कॉर्पोरेट और बड़े व्यक्तिगत निवेशकों (एचएनआई) की है। वे जानकार निवेशक हैं और उन्हें पता है कि वे क्या खरीद रहे हैं, इसलिए वे ही डायरेक्ट प्लान में आ रहे हैं। जिनको सलाहकार की जरूरत महसूस होती है, वे डायरेक्ट प्लान में नहीं आयेंगे। हमारा मानना है कि लंबी अवधि में भी 80-90% खुदरा निवेशक सीधे नहीं आयेंगे। वे किसी वितरक के जरिये ही आयेंगे, क्योंकि वे सलाहकारों की राय को काफी महत्व देते हैं।
लेकिन एचएनआई और संस्थागत निवेशकों का बड़ा हिस्सा डायरेक्ट प्लान की ओर आयेगा। उन्हें डायरेक्ट प्लान समझ में आता है, इसलिए वे डायरेक्ट में आ भी रहे हैं। उनको लाभ में फीसदी के एक छोटे हिस्से के अंतर से भी फर्क पड़ता है, क्योंकि उनके निवेश का आकार बड़ा है। अगर आप खुदरा निवेशक को देखें तो कोई अगर 10,000 रुपये लगा रहा है और उसमें आपने 50 पैसे बचा भी लिये तो वो बहुत बड़ी राशि नहीं है। इसलिए वे सलाहकार की सेवा लेते हैं, जो उसे सलाह देता है, आवेदन जमा करता है। इसलिए जब वह देखता है कि पैसे कितने बचेंगे और उसके बदले वितरक से क्या-क्या सेवाएँ मिल रही हैं, तो उसकी पसंद हमेशा वितरक की तरफ ही रहेगी। वैश्विक स्तर पर भी हमने यही देखा है कि डायरेक्ट में खुदरा निवेशक कम ही आते हैं।
सेल्स एजेंट की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे दो तरह की सेवाएँ ग्राहकों को देते हैं। पहली यह कि आप ग्राहको को बता करे रहे हैं कि आप कौन-सा उत्पाद खरीदें, कब खरीदें और किस तरह से अपनी वित्तीय योजना बनायें या किस तरह से बचत करें। उसके लिए सलाहकार को बहुत प्रशिक्षण चाहिए। आपको उसे तैयार करना होगा। दूसरी बात यह कि उसके बाद के जो काम हैं, मसलन ग्राहक ने जब उत्पाद चुन लिया तो उसका आवेदन फॉर्म भर कर जमा करायें। फिर जब भी उसे निकासी (रिडेंपशन) करानी है तो उसमें उसकी मदद कीजिए। इसमें जो पहला हिस्सा है, उसमें बाजार को परिपक्व होने में थोड़ा समय लगेगा। पर दूसरा हिस्सा भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। हमने देखा है कि निवेशक इन दोनों ही बातों को अहमियत देते हैं।
हमारे म्यूचुअल फंड उद्योग की पहुँच का स्तर अभी इतना कम है कि हमें सलाहकारों की बहुत ज्यादा जरूरत है। अभी केवल 4-5% लोग ही म्यूचुअल फंड में पैसा लगाते हैं। अक्सर लोग तभी आते हैं, जब शेयर बाजार में बहुत ज्यादा उछाल आ चुकी होती है। लेकिन अभी हम जाकर निवेशक को समझायें कि अगले तीन साल में कंपनियों की आय में वृद्धि की दर अच्छी रहने वाली है और आपको निवेश करना चाहिए। यह सही समय है अभी निवेश करने के लिए, क्योंकि बाजार में अभी कोई नकारात्मक धारणा भी नहीं है। बाद में जब बाजार बहुत बढ़ जाता है और महँगा हो जाता है, उस समय तो लोग खुद पूछते-पूछते आ जाते हैं, जबकि आम तौर पर वह सही समय नहीं होता है निवेश करने के लिए।
शेयर ब्रोकरों के ग्राहकों और आईपीओ में निवेश करने वालों का नजरिया बहुत अलग होता है। ऐसे निवेशकों का रुझान छोटी अवधि के सौदों की तरफ ज्यादा होता है। हम बोलते हैं कि एसआईपी कीजिए, लंबी अवधि के लिए निवेश कीजिए। हमारा बाजार थोड़ा-सा अलग है। इसलिए ब्रोकरों के ग्राहक इस बात को ज्यादा समझ नहीं पाते। ब्रोकरों ने म्यूचुअल फंडों की बिक्री शुरू की है, पर उसमें अभी तक ज्यादा सफलता नहीं मिली है। इस पर अभी काफी काम करना है।
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)

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