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एफआईआई के लिए अब भी बाजार 2008 से सस्ता

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Category: मई 2014

सुनील मिंगलानी, तकनीकी विशेषज्ञ :

पिछले कुछ महीनों से चली आ रही शेयर बाजार की तेजी के बाद ज्यादातर खुदरा निवेशकों को शायद यह लगने लगा है कि बाजार काफी महँगा हो गया है।

उन्हें लग रहा है कि ज्यादातर शेयरों में अपने निचले स्तरों से 70-100% की उछाल आने के बाद अब मुनाफे और जोखिम का अनुपात सही नहीं रह गया है। इसी वजह से काफी निवेशक इस समय बाजार से दूरी बनाये हुए हैं।
मगर इस बात को लेकर मेरा मानना कुछ अलग है। यदि हम बाकी बुनियादी कारणों को एक बार छोड़ दें तब भी ज्यादातर शेयरों में अभी मूल्यांकन काफी अच्छे हैं और इसके पीछे मेरा तर्क केवल उतना ही है, जिसे एक आम आदमी भी समझ सकता है।
मेरा पहला तर्क है कि 2008 में जब सारे विश्व में मंदी का माहौल था, उस समय शेयरों ने जो निम्नतम स्तर बनाये थे, उनमें से कई शेयर अभी कुछ महीनों पहले उन स्तरों से भी नीचे चल रहे थे। यानी 2008 में जब वैश्विक मंदी का महौल था, और जिस वजह से शेयरों में उपरी स्तरों से 70-90% तक की गिरावट देखने को मिली थी। अभी कुछ महीनों पहले तक शेयरों के भाव पाँच साल पहले के उन भावों से भी नीचे थे। यहाँ मैं बात उन शेयरों की कर रहा हूँ जिनमें बुनियादी तौर पर उस समय से लेकर आज तक कुछ खास नहीं बदला है और वे सारे शेयर बहुत ही स्थायी कारोबार से जुड़े हैं।
इन शेयरों के भाव सरकारी उदासीनता, महत्वपूर्ण फैसलों को लेकर सुस्त रवैये, भ्रष्टाचार के आरोपों में कई नेताओं के फँसने और राजनीतिक दलों का अपने हितों के लिए देश हित के कई फैसलों को नजरअंदाज करने जैसे प्रमुख कारणों से इतने नीचे आये।
कुल मिला कर ऐसे बहुत सारे शेयरों में इतनी ज्यादा कमजोरी आने की महत्वपूर्ण वजह इनके अपने कारोबार में किसी तरह की बड़ी मंदी न हो कर बाहरी कारण थे। इसलिए अब लोकसभा के चुनाव की प्रक्रिया के दौरान शेयर बाजार यह मान कर चल रहा है कि देश को पुरानी सुस्त सरकार से मुक्ति मिलने की संभावना है। इसी वजह से अब ऐसे शेयरों में बड़ी चाल देखने को मिल रही है।
लेकिन यहीं से खुदरा निवेशकों की मनोवैज्ञानिक परेशानी शुरू होती है। वे यह देखते हैं कि तमाम शेयरों के भाव अपने हाल के निचले स्तरों से काफी ऊपर आ चुके हैं। साथ ही बाजार के प्रमुख सूचकांक भी अपने आज तक के उच्चतम स्तरों पर चल रहे हैं। इस स्थिति में उन्हें डर लगता है कि यहाँ से बाजार में सामान्य सी नरमी की स्थिति में भी इन शेयरों में काफी बड़ी गिरावट आ सकती है।
मुझे लगता है कि यह डर कारोबारियों (ट्रेडर) के लिए सही हो सकता है, लेकिन मध्यम से लंबी अवधि के निवेशकों के लिए यह डर बिल्कुल निराधार है। अगर आप इस तरीके से सोचें कि जो शेयर आज 2008 के निम्नतम स्तरों के पास मिल रहा है, वह साधारण बैंक ब्याज के हिसाब से भी छह साल बाद आपको लगभग आधे भावों पर ही तो मिल ही रहा है।
उदहारण के लिए, यदि स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया (सेल) का 2008 में निम्नतम स्तर 55-60 रुपये था और आज छह साल बाद भी इसका भाव 60 रुपये के आसपास ही है तो असलियत में यह 2008 के 30-40 रुपये के बराबर है, क्योंकि इस दौरान महँगाई दर के चलते रुपये की कीमत घट चुकी है। सामान्य बैंक ब्याज के हिसाब से 5-6 सालों में भी आपका पैसा काफी बढ़ जाता है।
पिछले पाँच सालों के दौरान रुपये में जबरदस्त गिरावट के कारण सामान्य अर्थशास्त्र के अनुसार भी हमारी सभी संपत्तियों में 2008 के मुकाबले 30-40% की बढ़त देखने को मिली है। मतलब यह कि रुपये की कीमत घटने से जो चीज आज से पाँच साल पहले 100 रुपये की थी, वह अब 140-150 रुपये में मिलती है।
केवल यही कारण है कि हम पिछले कई महीनों से विदेशी निवेशकों की लगातार खरीदारी देख रहे हैं, क्योंकि जो शेयर आज हमारे लिए 100 रुपये का है, वही शेयर विदेशी निवेशकों को केवल 60 रुपये का लग रहा है। उसके उपर पिछले 5-6 सालों का सुस्त प्रदर्शन इन शेयरों को और आकर्षक बना देता है।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया का शेयर भाव अगस्त 2013 में 39 रुपये के निचले स्तर पर चला गया था। यदि रुपये के मूल्य में आयी कमी के असर को देखें तो विदेशी निवेशकों के लिए यह शेयर 2008 में बनी तलहटी के भी आधे भाव से कम पर उपलब्ध था।
भारतीय बाजार के प्रति विदेशी निवेशकों के अति विश्वास की एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि आज जब हमारे बाजार अपने उच्चतम स्तरों से करीब 7% उपर आ चुके हैं, तब भी डॉलर के भावों में यह बाजार अभी 2008 के उच्चतम स्तरों से 30% नीचे ही है (डॉलेक्स का चार्ट देखें)।
अगर निफ्टी का चार्ट देखें तो इसका साल 2008 का उच्चतम स्तर 6357 का था। उसकी तुलना में यह हाल में 6800 के ऊपर जाने में सफल रहा। लेकिन इसकी तुलना अगर डॉलेक्स-30 से करें, जो सेंसेक्स के चुनिंदा 30 शेयरों का ही डॉलर भावों पर आधारित सूचकांक है, तो यह 2008 के उच्चतम स्तर लगभग 4,420 की तुलना में अभी बस 3,000 से थोड़ा ऊपर जा सका है।
चुनिंदा शेयरों की बात करे तो वे 2008 के उच्चतम स्तरों से अब भी 25-75% नीचे हो सकते हैं। अगर इसकी तुलना निफ्टी से करें तो यह कुछ ऐसा ही होगा मानो निफ्टी आज 4500-4800 के पास चल रहा हो। अब आप समझ सकते हैं कि विदेशी निवेशक हमारे बाजारों में इतना पैसा क्यों लेकर आ रहे हैं। इसलिए मेरा मानना है कि जिन निवेशकों ने पिछले महीनों के दौरान हमारे बाजारों में अरबों रुपये लगाये हैं, उनकी दूरदर्शिता और समझ पर बेवजह शक करने की जरूरत नहीं है।
मेरे हिसाब से मध्यम से लंबी अवधि के निवेशकों के लिए अभी डरने की कोई भी वजह नजर नहीं आती। अगर चुनावों के नतीजे बाजार अनुमानों के हिसाब से नहीं आते, तब इन परिस्थितियों में कुछ बदलाव जरूर हो सकता है और इस वजह से छोटी अवधि में कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है। लेकिन अगर इन चुनावों में कोई बहुत बड़ा उलट-फेर नहीं होता, जिसकी संभावना अभी काफी कम लगती है, तो बाजार की यह चाल पलटने का कोई पुख्ता कारण अभी मुझे नजर नही आता।
(निवेश मंथन, मई 2014)

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