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मोदी नहीं बन सकेंगे प्रधानमंत्री, बने भी तो जादू नहीं

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Category: मई 2014

शंकर शर्मा, जेएमडी, फस्र्ट ग्लोबल :

यहाँ से बाजार अभी मुझे तो कमजोर ही लग रहा है।

वैश्विक स्तर पर भी कमजोरी के आसार हैं। यहाँ भी चुनावी नतीजे बाजार की पसंद के मुताबिक नहीं आने वाले हैं। दुनिया का दस्तूर है कि बाजार जो सोचता है, उसका उल्टा होता है, चाहे यह एक शेयर की बात हो या अर्थव्यवस्था की या राजनीति की। बाजार एक उम्मीद पर चल रहा है, लेकिन उस उम्मीद का मुझे कोई खास आधार नजर नहीं आता है। लोग जो सोच रहे हैं, अगर वैसा ही होता भी है तो वह उम्मीद मौजूदा बाजार भावों में पहले से भुनायी जा चुकी है। इसलिए बाजार के ऊपर चढऩे की ज्यादा गुंजाइश नहीं है, गिरावट की आशंका ज्यादा है।
मेरा मानना है कि भारतीय बाजार अभी उचित मूल्यांकन से काफी ज्यादा महँगा हो चुका है। अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन भी गये तो उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। मुझे यह समझ में नहीं आया कि वे जो बातें कर रहे हैं, उनमें से एक भी बात होगी कैसे? आप कहते हैं कि बुलेट ट्रेन बना देंगे। बुलेट ट्रेन की लागत 13 करोड़ डॉलर यानी 800 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर आती है। आप कम-से-कम 100 किलोमीटर का तो नेटवर्क बनायेंगे ना कम-से-कम! इसके लिए 80,000 करोड़ रुपये कहाँ से आयेंगे? ऐसी कितनी ही बातें हैं, जिन्हें एक सीमा से बढ़ कर किया गया वादा कहा जा सकता है।
लोग मान रहे हैं कि मोदी के आने पर पता नहीं क्या-क्या हो जायेगा। मेरे हिसाब से वे ऐसा कुछ नहीं कर पायेंगे। केवल बातें हैं। अगर इस पूरी बहस में मुझे एक तरफ बैठना हो तो मैं कहूँगा कि मोदी आयेंगे ही नहीं। इसकी संभावना नहीं बनती है। मेरे हिसाब से भाजपा को 160-170 सीटों से ज्यादा नहीं मिलने वाली है। एनडीए के बाकी दलों को मिला कर भी बहुत फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि इस समय जो एनडीए है, उसके बाकी दलों की सीटें लगभग 25 रहेंगीं। कुल मिला कर 200-205 तक ही हो पायेगा।
उसके बाद भी 70-80 सीटों की जरूरत बाकी रहेगी। इन 80 सीटों के लिए सपा, बसपा, बीजेडी, एआईएडीएमके और टीएमसी, इन सबको साथ लाना जरूरी होगा। इनमें से आधे आये तो भी बात नहीं बनेगी। ये सब 20-20 सीटों के दल हैं। ऐसे चार-पाँच दल साथ आने पर ही 80-90 सीटें जुड़ सकेंगी और इन सबके साथ आने की संभावना ही नहीं है।
अगली सरकार कांग्रेस अन्य दलों के समर्थन से बनायेगी या अन्य दलों की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनेगी। यही दो विकल्प हैं। इससे बाजार में एक बार बड़ी गिरावट आ सकती है, और वही खरीदारी का शानदार मौका होगा।
अगर कांग्रेस की सरकार अन्य दलों के समर्थन से बनी तो बाजार के लिए कोई समस्या ही नहीं है। अगर कांग्रेस की 140 सीटें आती हैं तो उसकी सरकार बन जायेगी। इतनी ही सीटों के साथ 2004 में उसकी सरकार बनी थी। उसके बाद हमने भारत में सबसे अच्छी विकास दर वाले पाँच साल देखे थे। उस दौरान लगभग 8% की विकास दर रही। शेयर बाजार के लिए 2004 से 2007-08 तक सबसे अच्छा दौर रहा है।
अगर बाकी दलों की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी, तो उसकी तुलना इतिहास में 1996 से 1998 की संयुक्त मोर्चा सरकार से हो सकती है। उस समय विकास दर अविश्वसनीय ढंग से अच्छी थी। एक साल 8% विकास दर रही थी और अगले साल जब एशियाई संकट आया तो जहाँ बाकी देशों में 10% की गिरावट आ गयी, वहीं भारत ने 5% विकास दर हासिल की। उसी दौरान दो प्रधानमंत्री बदले। मगर भारत का कर्ज भी कम रहा, सरकारी घाटा भी कम रहा। इसलिए यह कहना गलत होगा कि संयुक्त मोर्चा जैसी सरकार से देश का कबाड़ा हो जायेगा।
इन दोनों विकल्पों में मुझे अर्थव्यवस्था के लिए कोई क्षति नजर नहीं आती। पर ऐसा होने पर बाजार में कुछ तो गिरावट आ ही जायेगी, चाहे 10% हो या 20% हो। अगर बाजार में 20% की क्षति होगी तो वह खरीदारी का एक बड़ा अवसर होगा। अगर बाजार 10% नीचे आ जाये तो वहाँ भी खरीदेंगे। अगर मुझे 100 रुपये लगाने हों तो 30-40 रुपये उतनी गिरावट पर भी लगा देंगे।
मेरे हिसाब से भारत की बुनियादी स्थिति अभी विश्व में सबसे अच्छी है। चीन की वित्तीय स्थिति सुजलॉन की तरह है और भारत की वित्तीय स्थिति हिंदुस्तान यूनिलीवर की तरह है। चीन एक बहुत बड़ी मंदी के कगार पर खड़ा है। इसलिए बाजार में गिरावट आने पर पैसा भारत में ही आयेगा। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को इस समय भारतीय बाजार अच्छा ही लग रहा है। लेकिन एफआईआई निवेश कितना है, इसे बहुत ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए।
बाजार में प्रमुख क्षेत्र तो गिने-चुने ही हैं। अभी ऑटो क्षेत्र अच्छा लगता है, उसे खरीदेंगे। फार्मा शेयरों को लेंगे। उपभोक्ता श्रेणी वाले शेयरों को खरीदेंगे। बैंकिंग और बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) शेयर नहीं खरीदेंगे। अभी बुनियादी ढाँचे में उतना विकास नहीं हो सकता है, जितना लोग सोचते हैं, चाहे कोई भी आ जाये। आईटी क्षेत्र मोटे तौर पर ठीक है। फिलहाल इस बाजार में हम चुपचाप बैठे हैं। न तो अभी खरीदारी करनी है, न ही बिकवाली करनी है। चुनावी नतीजे आ जाने के बाद देखा जायेगा।
(निवेश मंथन, मई 2014)

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