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निखर कर सामने आये हैं राहुल गांधी

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Category: फरवरी 2014

विनोद शर्मा, राजनीतिक संपादक, हिंदुस्तान टाइम्स :

एआईसीसी के सत्र में राहुल गांधी का भाषण उनके अपने मानक से अब तक सबसे बेहतरीन भाषण था।

इसमें हँसी-मजाक, जोश और वादे थे। कुल मिला कर संतुलित भाषण था। उन्होंने इस तकरीर को अदा भी बड़े अच्छे तरीके से किया। राहुल गांधी ने अपने कार्यकत्र्ताओं में रक्त का संचार बेहतर ढंग से किया। कांग्रेस चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बाद औंधे मुँह पड़ी थी। ऐसे समय में इसी तरह के भाषण की जरूरत थी, जिससे कार्यकत्र्ताओं में जोश पैदा हो सके। इसमें राहुल गांधी काफी हद तक सफल भी रहे। यह ट्रिस्ट विद डेस्टिनी जैसा भाषण तो नहीं था, लेकिन यकीनन यह ट्रिस्ट विद वोटर वाला भाषण था।
उन्होंने अपने भाषण में गरीबों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बात कही। उन्होंने कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) में सुधार की भी बात कही। उन्होंने सरकार की उन नीतियों को विस्तार से बताया, जिनमें लोगों को अधिकार दिये गये हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही गरीबों के लिए सबसे बड़ा सशक्तीकरण है। भ्रष्टाचार पर भी वे विस्तार से बोले। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सबसे बड़ा कानून आरटीआई है, जो कि सच है। मनमोहन सिंह सरकार की उपलब्धियों पर पहली बार उन्होंने इतना जोर दिया। इस सरकार की उपलधियाँ तो हैं। अभी उनका लाभ नजर नहीं आयेगा। लेकिन आने वाली कोई भी सरकार उन्हें वापस नहीं ले सकती, चाहे वह खाद्य सुरक्षा हो, सूचना का अधिकार हो या फिर शिक्षा का अधिकार हो।
दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के भाषण से ऐसा लगता था कि वे सपनों के सौदागर हो गये हैं। बुलेट ट्रेन होगी, 100 नये शहर बनायेंगे। वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। ये सब चीजें हो सकती हैं, लेकिन इनमें काफी समय लगेगा। अभी वे 60-62 वर्ष के हैं, ये सब करने में उन्हें 100 वर्ष लग जायेंगे। जनता की उम्मीदें बढ़ानी चाहिए, लेकिन इतनी भी नहीं कि बाद वे आपकी नीतियों और कार्यप्रणाली पर ही हावी हो जायें। आजकल अरविंद केजरीवाल के साथ यही होता दिख रहा है।
राहुल गांधी का भाषण संतुलित और सधा हुआ था। मोदी का भाषण उनके अपने पुराने रिकॉर्ड के मुकाबले कम आकर्षक था। राहुल गांधी ने अपने-आप को निखारा है। पहले की तुलना में इस बार वे अच्छे लगे। इसे वे और कितना बढ़ा पाते हैं, यह उनकी प्रतिभा पर निर्भर करता है। राहुल गांधी और मोदी में विशेष अंतर यह है कि टेस्ट क्रिकेट की भाषा में राहुल गांधी चौथी पारी में मुश्किल विकेट पर बल्लेबाजी कर रहे हैं, जबकि मोदी एक बैटिंग विकेट पर बल्लेबाजी करने आये हैं।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)

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