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इन्फ्लेशन-इंडेक्स्ड बॉण्ड में महँगाई से अधिक ब्याज की गारंटी

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Category: जनवरी 2014

जो निवेशक बिना कोई जोखिम उठाये महँगाई दर से बेहतर रिटर्न हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए अच्छी खबर है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ऐसे निवेशकों के लिए 23 दिसंबर 2013 को इन्फ्लेशन-इंडेक्स्ड नेशनल सेविंग सिक्योरिटीज- क्यूमुलेटिव (आईआईएनएसएस-सी) पेश किया है।
इस पर ब्याज दर दो हिस्सों- निश्चित और परिवर्तनीय- में उपलब्ध होगी। पहला, 1.5% की सालाना दर (निश्चित) और दूसरा, महँगाई दर (परिवर्तनीय)। महँगाई दर तय करने के लिए औसत सीपीआई का इस्तेमाल किया जायेगा। यदि औसत सीपीआई 7% तय होता है तो निवेशक को इस बॉण्ड पर 8.5% (1.5%+7%) का रिटर्न हासिल होगा। दस सालों की परिपक्वता अवधि वाले इस बॉण्ड से तीन सालों के बाद कभी भी बाहर निकला जा सकता है। हालाँकि वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह अवधि एक साल तय की गयी है। इन बॉण्डों को गिरवी भी रखा जा सकता है।
लेकिन यह रिटर्न कर मुक्त नहीं है। मतलब यह कि आय कर के अपने दायरे के हिसाब से निवेशकों को इन पर कर देना होगा। जानकारों के अनुसार ये बॉण्ड उन निवेशकों के लिए मुफीद हैं जिन पर कोई आय कर नहीं लगता या फिर 10% की दर से आय कर लगता है। इसके अलावा यह मान लेना भूल होगी कि इन बॉण्ड की पूरी अवधि के दौरान महँगाई दर ऊँचे स्तरों पर ही बनी रहेगी। इन बॉण्डों में निवेश की अंतिम तिथि बढ़ा कर 31 मार्च 2014 कर दी गयी है।
एक जनवरी 2014 के बाद भी स्वीकार होंगे लिखे हुए नोट
भारतीय रिजर्व बैंक ने साफ किया है कि एक जनवरी 2014 के बाद भी लिखे हुए नोट बैंकों द्वारा स्वीकार किये जायेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक की प्रवक्ता के अनुसार, "अगर आप आरबीआई के 14 अगस्त 2013 के सर्कुलर को देखें तो इसमें ऐसा नहीं है कि लोगों से इस तरह के नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे। लोगों से इस तरह के नोट बिल्कुल स्वीकार किये जायेंगे लेकिन बैंक इन्हें दोबारा लोगों को नहीं दे सकेंगे।"
तो क्या यह मान लिया जाये कि आगे चल कर बैंक इस तरह के नोट स्वीकार करना भी बंद कर देंगे? प्रवक्ता के अनुसार, "आगे क्या होगा इसके बारे में अभी कोई आकलन नहीं किया जा सकता। आरबीआई का 14 अगस्त 2013 का सर्कुलर हमारी स्वच्छ नोट नीति को ही आगे बढ़ाता है, जो साल 2001 से चली आ रही है।"
आरबीआई द्वारा सभी बैंकों को भेजे गये 14 अगस्त 2013 के इस सर्कुलर के अनुसार, "यह बात ध्यान में आयी है कि बैंक की कुछ शाखाओं में, बैंक नोटों के भागों पर लिखने/अंकित करने की परंपरा अब भी प्रचलित है। बैंक नोटों के यंत्रीकृत प्रसंस्करण की वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत, बैंक नोट के किसी भी भाग पर लिखने या अंकित करने पर उस नोट को पुन:जारी करने के लिए अयोग्य नोट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। तदनुसार, ऐसे नोटों को गंदे बैंक नोटों के रूप में मान कर उनका पुन:संचलन नहीं किया जा सकता।"
बैंकों में मची आवास ऋण दरें घटाने की होड़
आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को अपरिवर्तित रखने की घोषणा के बाद बैंकों ने आवास ऋण पर ब्याज दरों को घटाना शुरू कर दिया है। भारतीय स्टेट बैंक अब 75 लाख रुपये से कम आवास ऋण पर 10.15% और इससे अधिक पर 10.30% ब्याज वसूलेगा। बैंक ने महिलाओं को 0.05%त्न की अतिरिक्त छूट देने की बात कही है। इसके अलावा एचडीएफसी ने भी आवास ऋण की दर में 0.25% की कटौती की है और यह अपने ग्राहकों से 75 लाख रुपये से कम आवास ऋण पर 10.25% ब्याज लेगा। हालाँकि एचडीएफसी की यह योजना 31 जनवरी 2014 तक आवेदन करने वाले लोगों के लिए ही है। आईसीआईसीआई बैंक ने 75 लाख रुपये से कम के आवास ऋण पर ब्याज दर 10.40% से घटा कर 10.25% कर दी है। साथ ही 75 लाख रुपये से अधिक के ऋण पर इसने ब्याज दर 10.65% से घटा कर 10.50% की है।
कार्ड स्वाइप के बाद पिन नंबर डालना जरूरी
हर लेन-देन (ट्रांजैक्शन) पर पिन नंबर पंच करना डेबिट कार्ड धारकों के लिए एक दिसंबर 2013 से अनिवार्य हो गया है। प्वाइंट ऑफ सेल्स (पीओएस) और मर्चेंट आउटलेट्स पर डेबिट कार्ड स्वाइप करने के बाद अब लेन-देन तब तक पूरा नहीं होगा जब तक ग्राहक ईडीसी मशीन में अपना एटीएम पिन पंच नहीं करेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी किये गये इस दिशा-निर्देश का उद्देश्य डेबिट कार्ड से संबंधित धोखाधड़ी रोकना है। अनिवार्य पंचिंग का यह निर्देश लागू किये जाने की समय-सीमा पहले 30 जून 2013 तक थी, लेकिन आरबीआई ने इसकी समय-सीमा बढ़ा कर 30 नवंबर 2013 तक कर दी थी।
वास्तविक उपयोग पर वसूलें एसएमएस शुल्क : आरबीआई
भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे लेन-देन से संबंधित सूचना देने वाले एसएमएस एलर्ट के लिए एक निश्चित शुल्क लेने के बजाय इस्तेमाल के आधार पर शुल्क लें। भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 नवंबर 2013 को सभी बैंकों को भेजी गयी अपनी अधिसूचना में कहा, "बैंकों और दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों के पास उपलब्ध तकनीकों को देखते हुए बैंकों के लिए यह संभव है कि वे एसएसएम एलर्ट के वास्तविक उपयोग के आधार पर अपने ग्राहकों से शुल्क लें। ऐसे में बैंकों को सलाह दी जाती है कि वे स्वयं और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के पास उपलब्ध तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए सभी ग्राहकों से वास्तविक उपयोग के आधार पर एसएमएस एलर्ट का शुल्क वसूला जाना सुनिश्चित करें।" लेकिन जानकारों का मानना है कि बैंक इस निर्देश का पालन करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं क्योंकि हर ग्राहक को भेजे गये एसएमएस एलर्ट का रिकॉर्ड रख पाना उनके लिए मुश्किल हो सकता है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)

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