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गन्ने की कीमत पर फैली कड़वाहट

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Category: दिसंबर 2013

आलोक द्विवेदी :

भारत के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने की कीमत से जुड़ा गतिरोध खत्म होता नहीं दिख रहा है।

मुख्यमंत्री ने मिल मालिकों से अनुरोध किया है कि वे पहले गन्ना पेराई शुरू करें, उसके बाद उनकी माँगों पर विचार किया जायेगा।
दूसरी ओर मिल मालिकों का कहना है कि मसले का हल निकल जाने के बाद ही वे गन्ने की पेराई का काम आरंभ करेंगे। इस बारे में सरकार और मिल मालिकों के बीच एक चरण की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल सका है। राज्य सरकार ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निजी मिल मालिकों को काम शुरू करने के लिए 25 नवंबर की तारीख तय की थी, लेकिन यह तारीख बीत जाने के बाद भी निजी क्षेत्र की किसी भी चीनी मिल में गन्ना पेराई का काम आरंभ नहीं हुआ है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने 28 नवंबर की शाम को आनन-फानन में बुलायी गयी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उत्तर प्रदेश में गन्ने की कीमत तय करने के लिए किसी उच्च स्तरीय समिति के गठन की आवश्यकता नहीं है। सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली समिति ने पहले ही इसकी कीमत तय करने का एक फॉर्मूला दे रखा है। गौरतलब है कि मामले को न सुलझता देख कर उत्तर प्रदेश सरकार ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने की घोषणा की थी। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों को चेतावनी दे दी कि अगर उन्होंने जल्दी ही पेराई शुरू नहीं की तो उन पर दंडात्मक कार्रवाई की जायेगी।
दरअसल सरकार ने घोषणा की थी कि गन्ना वर्ष 2013-14 (1 अक्टूबर 2013- 30 सितंबर 2014) के लिए भी गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 280 रुपये प्रति क्विंटल रहेगा। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल ने यह भी कहा था कि गन्ने के हर क्विंटल की खरीद पर उन्हें दो रुपये का क्रय कर (पर्चेज टैक्स) नहीं देना पड़ेगा। लेकिन दूसरी ओर चीनी मिलों के मालिकों का कहना है कि कम प्राप्तियों की वजह से वे गन्ना किसानों को 225 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक की अदायगी नहीं कर सकते। उनका यह कहना है कि वह तभी गन्ने की पेराई शुरू करेंगे जब सरकार इस अंतर (55 रुपये) का बोझ स्वयं उठाने के लिए तैयार हो जायेगी।
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का कहना है कि एक किलोग्राम चीनी के उत्पादन की उनकी लागत 36 रुपये है, जबकि साल 2012-13 के दौरान उनकी प्राप्ति 3,150 रुपए प्रति क्विंटल रही थी। इस तरह उन्हें पिछले साल कुल 3,000 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा था। मिल मालिकों का कहना है कि इस साल उनकी प्राप्तियाँ 2,900 रुपये प्रति क्विंटल हैं। ऐसे में यदि वे 280 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने की खरीद करेंगे तो उनका घाटा और बढ़ जायेगा।
दूसरी ओर गन्ना किसानों की दिक्कतें भी बढ़ती दिख रही हैं क्योंकि चीनी मिलों ने उनका गन्ना खरीदने से मना कर दिया है। किसान संगठन भारत किसान यूनियन ने मुख्य मंत्री को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि सरकार राज्य के चीनी मिलों को पेराई शुरू करने का आदेश दे। साथ ही संगठन ने माँग की है कि पिछले साल का किसानों का जो बकाया पड़ा हुआ है उसे ब्याज के साथ किसानों को दिये जाने का आदेश चीनी मिलों को सरकार की ओर से दिया जाये। गौरतलब है कि पिछले साल किसानों की ओर से मिलों को दिये गये गन्ने के मद में अभी मिलों पर उनका 24 अरब रुपये बकाया है। साथ ही संगठन ने साल 2013-14 के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य को बढ़ा कर 350 रुपये प्रति क्विंटल किये जाने की माँग की है।
राज्य सरकार के लिए यह आगे कुँआ पीछे खाई की स्थिति है। मिल मालिकों की माँग मान लेने से सरकार पर सब्सिडी का भारी बोझ पड़ेगा। दूसरी ओर माँगें न मानने की स्थिति में इसे किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। आगामी लोक सभा चुनावों को देखते हुए समाजवादी पार्टी कतई यह जोखिम नहीं लेना चाहेगी। हालाँकि गन्ना किसानों की परेशानियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने सहकारी चीनी मिलों को गन्ना पेराई शुरू करने के आदेश तो दिये हैं लेकिन इन मिलों की क्षमता काफी कम है।
हालाँकि ग्लोब कैपिटल के कवी कुमार के मुताबिक मिलों का यह दावा पूरी तरह सही नहीं है कि वे भारी घाटे में हैं। वे कहते हैं कि यदि हम चीनी की कीमतों और उत्पादन लागत की तुलना करें तो सच्चाई का पता चलेगा। यहाँ तक कि छोआ, यानी पेराई के बाद बचे गन्ने के डंठल की बिक्री से उन्हें जो करोड़ों रुपये मिलते हैं, वह उनकी बैलेंस शीट में दिखाया ही नहीं जाता। किसानों को ये चीनी मिलें कृषि ऋण दिला देती हैं और उनसे यह पैसा लेकर उस किसान को दे दिया जाता है जिसका मिल पर बकाया होता है। इसी तरह चीनी मिल यह क्रम जारी रखते हैं।
देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश का देश के कुल चीनी उत्पादन में योगदान लगभग 30% है। ऐसे में इस बात की आशंका जतायी जा रही है कि यह गतिरोध लंबा खिंचने की स्थिति में चीनी की कीमतों में उछाल आ सकती है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)

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