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फेडरल रिजर्व पर निर्भर है सोने की अगली चाल

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Category: दिसंबर 2013

सुगंधा सचदेव, धातु विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज :

विश्व भर के केंद्रीय बैंकों की खरीदारी में मजबूती है जिसकी वजह से लंबी अवधि में सोने की कीमतों को सहारा मिलने की उम्मीद है।

लेकिन यदि छोटी अवधि की बात करें तो बाजार में अभी इस बात की चिंताएँ हैं कि फेडरल रिजर्व की ओर से टैपरिंग की जा सकती है। फेडरल रिजर्व की ओर से चलाया जा रहा मौद्रिक ढील कार्यक्रम (क्यूई प्रोग्रेम) पिछले कई सालों से सोने की खरीदारी को सहारा दे रहा है। यदि बाजार में नकदी (लिक्विडिटी) कम होती है और टैपरिंग होती है तो इससे सोने की कीमतों पर असर पड़ सकता है। इन्हीं चिंताओं की वजह से सोना अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव में रहेगा।
साथ ही हाल ही में ईरान का अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ जो आणविक समझौता हुआ है, उससे ऐसी संभावनाएँ बढ़ती दिखी हैं कि मध्य-पूर्व में राजनीतिक तनाव कम हो सकता है। ऐसे में सेफ हैवन डिमांड भी कम होती दिख रही है। गोल्ड ईटीएफ की बात करें तो इसमें अभी काफी आउटफ्लो देखने को मिल रहा है। एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट की होल्डिंग्स फरवरी 2009 के बाद से सबसे निचले स्तरों पर हैं। कुल मिला कर इन सभी कारणों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में छोटी अवधि में सोने में मंदी का रुख रहने की संभावना है। सोने के लिए 1225 डॉलर के आसपास जो समर्थन था उसे भी इसने तोड़ा दिया है और आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना नीचे की ओर 1200 से 1180 डॉलर प्रति औंस के स्तरों तक फिसल सकता है।
लेकिन यदि हम लंबी अवधि की बात करें तो लंबी अवधि में सोने को निचले स्तरों पर सहारा मिलेगा। अमेरिका में डेट सीलिंग का मसला जनवरी-फरवरी 2014 में फिर से उत्पन्न होगा। अगर फेड द्वारा टैपरिंग नहीं की जाती है तो इसका भी सोने की कीमत को सहारा मिलेगा। दिसंबर में फंड मैनेजरों द्वारा पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग की जायेगी, इसका भी सोने की कीमतों पर असर पड़ सकता है। इन स्तरों से यदि रुपये में डॉलर के मुकाबले कमजोरी आती है तो उसकी वजह से भी सोने को सहारा मिलेगा। मौजूदा स्थिति यह है कि सोने की कीमत 29,500 से 30,500 रुपये के बीच जमने की कोशिश (कंसोलिडेट) कर रही है। जब तक सोने की कीमत बंद भाव के आधार पर इस दायरे को तोडऩे में कामयाब नहीं रहती, तब तक सोना किसी दिशा में नहीं बढ़ेगा।
जहाँ ऊपर की ओर इसे 30,500 रुपये पर कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, वहीं नीचे की ओर इसे 29,500 पर मजबूत सहारा मिल रहा है। यदि नीचे की ओर सोना बंद भाव के आधार पर 29,500 रुपये का स्तर तोड़ देता है तो यह 28,000 रुपये के स्तर तक फिसल सकता है। ऊपर की ओर यदि यह बंद भाव के आधार पर 30,500 रुपये के ऊपर चला जाता है तो यह 31,500 रुपये से 31,800 रुपये के स्तरों तक जा सकता है।
साल 2014 की बात करें तो सोने में तेजी से संबंधित कारक मंदी से संबंधित कारकों पर हावी होंगे और इसमें अच्छी खरीदारी आने की उम्मीद है। केंद्रीय बैंकों की खरीदारी, एशिया में खुदरा खरीदारी और आर्थिक प्रदर्शन की अनिश्चितताओं के बीच अपनी पूँजी की रक्षा के लिए प्रमुख फंडों द्वारा सोने में निवेश की वजह से आने वाले साल में सोने की कीमत में मजबूती आने की उम्मीद है।
संकट की स्थिति में हमेशा ही सोने की कीमत में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। ऐसे में आम निवेशकों को चाहिए कि वे सोने की कीमत में आने वाली गिरावट को निवेश के मौके के तौर पर इस्तेमाल करें। सोने में निवेश से सकारात्मक रिटर्न हासिल होने का लंबा इतिहास रहा है। और अन्य वित्तीय विकल्पों की ही तरह इसमें भी सुधार हो सकता है और यह भी कंसोलिडेट करने की कोशिश कर सकता है। लेकिन इन सबके बावजूद सोना अभी भी निवेश के लिहाज से सर्वाधिक सुरक्षित परिसंपत्ति वर्गों में से एक है और महँगाई के खिलाफ बेहतरीन हेजिंग विकल्प हैं। ऐसे में सोने में आने वाली कोई भी गिरावट मध्यम से लंबी अवधि में सोने को इकट्ठा करने का अच्छा अवसर है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)

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