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आरबीआई ने विदेशी बैंकों की राह आसान की

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Category: दिसंबर 2013

सुशांत शेखर :

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में सक्रिय विदेशी बैंकों के लिए बड़ा दरवाजा खोल दिया है।

आरबीआई ने विदेशी बैंकों से कहा है कि अगर वे पूर्ण स्वामित्व इकाई (डब्लूओएस) के तौर पर भारत में काम करने को तैयार हो जाएँ तो वह उन्हें तकरीबन भारतीय बैंकों जैसी सुविधाएँ देने को तैयार है। भारतीय रिजर्व बैंक चाहता है कि भारत में काम कर रहे विदेशी बैंक मौजूदा ब्रांच मॉडल को छोड़ कर डब्लूओएस मॉडल अपना लें। अगर विदेशी बैंक डब्लूओएस मॉडल अपनाते हैं तो उन पर आरबीआई का बेहतर नियंत्रण रहेगा और साथ ही ग्राहकों के हितों की सुरक्षा भी हो सकेगी। यही वजह है कि आरबीआई ने डब्लूूओएस नियमों को आकर्षक बनाने की कोशिश की है।
आरबीआई ने 6 नवंबर को विदेशी बैंकों की पूर्ण स्वामित्व इकाई पर नये नियम जारी कर दिये। इन नियमों के मुताबिक डब्लूओएस को भारतीय बैंक जैसा दर्जा मिलेगा। विदेशी बैंकों के डब्लूओएस देश के कुछ अतिसंवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर देश के किसी भी हिस्से में शाखाएँ खोल सकते हैं। हालाँकि आरबीआई ने साफ किया है कि विदेशी बैंक भारत में अंधाधुंध विस्तार नहीं कर सकते। अगर विदेशी बैंकों की शाखाएँ और परिसंपत्तियाँ घरेलू बैंकों की परिसंपत्तियों के 20% से ज्यादा हो जायेंगी तो वह नये डब्लूओएस को मंजूरी नहीं देगा।
विदेशी बैंकों के डब्लूओएस को भारतीय बैंकों के लिए लागू नियमों जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को 40% कर्ज देने का नियम मानना पड़ेगा। आरबीआई ने विदेशी बैंकों को अपने डब्लूओएस में हिस्सेदारी 74% या इससे कम रखने की इजाजत दी है, लेकिन इसके लिए उन्हें भारतीय शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होना पड़ेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने फिलहाल विदेशी बैंकों के डब्लूओएस को घरेलू बैंक में हिस्सेदारी खरीदने की मंजूरी नहीं दी है। आरबीआई ने कहा है कि डब्लूओएस मॉडल के तहत भारत में विदेशी बैंकों की पहुँच की समीक्षा के बाद ही वह उन्हें घरेलू बैंकों में 74% तक हिस्सेदारी खरीदने की मंजूरी देने पर विचार करेगा।
नये नियमों के मुताबिक विदेशी बैंकों के डब्लूओएस के निदेशक मंडल में कम से कम दो तिहाई गैर-कार्यकारी निदेशक होने चाहिए। साथ ही उसमें कम से कम एक तिहाई स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए। वहीं उसमें कम से कम 50 फीसदी निदेशक भारतीय/अनिवासी भारतीय या भारतीय मूल के होने चाहिए। साथ ही डब्लूओएस अपने पैतृक बैंक के लिए कोई गारंटी नहीं दे सकते।
नये नियमों के मुताबिक नये विदेशी बैंकों के लिए डब्लूओएस की अर्जी देने के लिए न्यूनतम 500 करोड़ रुपये का पेड-अप इक्विटी कैपिटल होना चाहिए या डब्लूओएस का नेटवर्थ 500 करोड़ रुपये होना चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक ने साफ किया है कि 2010 के बाद भारत में आने वाले विदेशी बैंकों को अनिवार्य तौर पर डब्लूओएस मॉडल अपनाना होगा। इसके पहले के विदेशी बैंकों के पास ब्रांच मॉडल के साथ भारत में कारोबार जारी रखने की छूट होगी।
क्या है ब्रान्च और डब्लूओएस मॉडल में फर्क
भारत में फिलहाल सक्रिय सभी विदेशी बैंक मसलन एचएसबीसी, सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक अभी ब्रान्च मॉडल पर काम करते हैं। ब्रान्च मॉडल का मतलब है कि वे पैतृक बैंक की शाखाएँ हैं। इनकी भारतीय शाखाओं और इनके पैतृक बैंकों की बैलेंस शीट एक ही होती है। इस मॉडल में ग्राहकों का पैसा सुरक्षित नहीं रहता। बैंक बंद होने की सूरत में भारतीय ग्राहकों की रकम वापसी पैतृक देश के ग्राहकों के बाद ही होती है। साथ ही ब्रान्च मॉडल में विदेशी बैंकों पर आरबीआई का मजबूत नियंत्रण नहीं है। दूसरी ओर डब्लूओएस मॉडल अपनाने के बाद विदेशी बैंक आरबीआई के ज्यादा नियंत्रण में होंगे। डब्लूओएस और पैतृक बैंक की बैलेंस शीट भी अलग-अलग होगी। चूँकि डब्लूओएस अपने पैतृक बैंकों के लिए किसी तरह की गारंटी नहीं दे सकेंगे, ऐसे में उनकी वित्तीय सेहत उनके अपने पैतृक बैंकों के हिसाब से निर्धारित नहीं होगी। 2008 के वित्तीय संकट के बाद विदेशों में बड़े पैमाने पर बैंकों के फेल होने की घटनाओं के सामने आने के बाद भारत में सक्रिय विदेशी बैंकों में भारतीयों के पैसे की सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े हो गये थे। ऐसे में आरबीआई चाहता है कि विदेशी बैंक एक ही तरीके से भारत में उपस्थित रहें। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने आरबीआई के नये नियमों का स्वागत किया है। हालाँकि बैंक ने साफ किया है कि वह इन नियमों की समीक्षा के बाद ही कोई टिप्पणी करेगा। वहीं एचएसबीसी ने इस मामले में किसी भी टिप्पणी से इनकार किया है। साफ है कि विदेशी बैंक डब्लूओएस मॉडल को लेकर बहुत उत्साहित नहीं नजर आ रहे हैं।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)

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