राजीव रंजन झा :
सेंसेक्स ने दीपावली के दिन मुहुर्त कारोबार में एक नया रिकॉर्ड बना लिया, मगर बाजार इससे ज्यादा आगे नहीं जा सका।
निफ्टी तो केवल कुछ अंकों के फासले से अपना पिछला रिकॉर्ड छूने से वंचित रह गया। दीपावली के बाद के हफ्तों में बाजार कुछ नीचे आया है और लोगों का उत्साह भी घटा है।
पल में तोला पल में माशा, अभी अर्श पर अभी फर्श पर - यह हाल केवल भारतीय शेयर बाजार की मनोदशा का नहीं है, बल्कि सारी दुनिया में कारोबारियों का उत्साह कुछ इसी तरह कलाबाजियाँ खा रहा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व टैपरिंग करेगा या नहीं, यानी क्यूई-3 के नाम से प्रसिद्ध अपने कार्यक्रम के तहत बांडों की 85 अरब डॉलर की मासिक खरीद में धीरे-धीरे कटौती करेगा या नहीं, इस बारे में सुर्खियाँ मानो हर 12 घंटे में उलटती-पुलटती रहती हैं। एक दिन पता चलता है कि टैपरिंग अभी नहीं होने की उम्मीदों के चलते अमेरिकी बाजार में उत्साह है, अगली ही सुबह पता चलता है कि फिर कोई नया बयान आया है जिससे टैपरिंग जल्दी होने की आशंका बनी है और तमाम अंतरराष्ट्रीय बाजार ठंडे हैं।
खबरें चाहे अच्छी हों या बुरी, चाहे जितनी भी व्यापकता वाली हों, उनका असर अब दिनों तक नहीं, घंटों तक सीमित हो गया है। परमाणु हथियारों का निर्माण नहीं करने को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच समझौते के चलते दुनिया भर के बाजारों में कुछ उत्साह दिखा, मगर अगले ही दिन सब ठंडा।
इस समय भारतीय शेयर बाजार की धारणा कई बातों से प्रभावित हो रही है, जिनमें शायद सबसे ऊपर है घरेलू राजनीति। बाजार ने एक तरह से मान लिया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को बढ़त हासिल हो रही है और यह धारणा बाजार का उत्साह बढ़ा रही है। जुलाई-सितंबर 2013 की तिमाही में कंपनियों के कारोबारी नतीजे उस हद तक बुरे नहीं लगे, जैसी आशंका बन गयी थी। इससे भी बाजार को कुछ सांत्वना मिली है।
अंतरराष्ट्रीय स्थिति देखें तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व कब टैपरिंग यानी क्यूई-3 को धीमा करना शुरू करेगा, यह शायद खुद उसे भी पता नहीं है। इसलिए बाजार आश्वस्त है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के डॉलरों का भारतीय बाजार में आना जारी रहेगा। खुद अमेरिकी शेयर बाजार अपने रिकॉर्ड स्तरों के करीब हैं और नयी ऊँचाइयाँ छूते जा रहे हैं। इस बीच ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच समझौते से जहाँ कच्चे तेल के भावों में कुछ नरमी आयी है, वहीं दुनिया भर के शेयर बाजारों ने इससे राहत महसूस की है।
लेकिन इन तमाम पहलुओं के साथ कुछ ऐसी अनिश्चितताएँ जुड़ी हैं, जो जब-तब बाजार को परेशान करती रही हैं या आगे कर सकती हैं। जहाँ तक लोकसभा चुनाव के परिणामों के बारे में कयास लगाने की बात है, चुनावी नतीजे आने से पहले तक कई बार अलग-अलग तरह के अनुमानों-सर्वेक्षणों के आधार पर बाजार को हिचकोले खाने पड़ सकते हैं। दिसंबर में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम लोकसभा चुनाव के नतीजों के बारे में एक आंशिक संकेतक का ही काम कर सकते हैं।
जहाँ तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बात है, उसे देर-सबेर क्यूई-3 को धीमा करना ही होगा। बाजार को भी यह पता है। अटकलें अगर हैं तो केवल इस बात पर कि इसमें धीमापन कब से शुरू होगा - जल्दी ही या कई महीनों बाद। वहीं अगर फेडरल रिजर्व क्यूई-3 को धीमा करने का साहस नहीं जुटा पा रहा, तो इसका भी बड़ा स्पष्ट मतलब यही है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के नवांकुरित संकेतों पर ज्यादा भरोसा नहीं हो पा रहा है। वैश्विक शेयर बाजारों में टिकाऊ नयी तेजी के लिए अर्थव्यवस्था का फिर से विकास के रास्ते पर लौटना जरूरी है।
इस बार तिमाही नतीजे भले ही उतने बुरे नहीं रहे, जितने बुरे नतीजों की आशंकाएँ थीं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आने वाली तिमाहियों के लिए गुलाबी तस्वीर दिखने लगी हो। आईएमएफ ने ताजा अनुमान में कहा है कि भारत की विकास दर कारोबारी साल 2013-14 में केवल 3.75% रह जायेगी, जबकि विश्व बैंक ने 4.7% विकास दर का अनुमान जताया है। वहीं घरेलू संस्थाओं में एनसीएईआर ने 2013-14 की विकास दर 4.8-5.3% के बीच रहने का अनुमान लगाया है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी हाल में यही बताया कि सालाना विकास दर इस बार 5-5.5% के बीच रह सकती है। यानी भले ही आईएमएफ के अनुमान को एकदम निराशावादी मान कर खारिज कर दिया जाये, लेकिन इस बात के पूरे-पूरे आसार हैं कि सालाना दर 5% के नीचे ही अटक जाये। इस कारोबारी साल की पहली तिमाही की विकास दर महज 4.4% रही है।
धीमी होती अर्थव्यवस्था की कमजोर जमीन पर भारतीय बाजार में अभी उत्साह के जो भी संकेत दिख रहे हैं, वे अंतरराष्ट्रीय नकदी उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट्स) की ओर आने और अपुष्ट उम्मीदों के कारण हैं। किसी भी समय खबरों का प्रवाह वापस इस साल अगस्त में बनी स्थितियों को दोहरा सकता है, जब रुपया डॉलर के मुकाबले फिसलने लगा था, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शेयर बाजार में बिकवाली शुरू कर दी थी और शेयर बाजार टूटने लगा था।
सेंसेक्स ने जनवरी 2008 के रिकॉर्ड स्तर 21,207 को पार कर इस साल तीन नवंबर को मुहुर्त कारोबार में 21,322 तक जाकर एक नया रिकॉर्ड स्तर छुआ। लेकिन निफ्टी जनवरी 2008 का रिकॉर्ड स्तर 6357 नहीं छू सका और मुहुर्त कारोबार में 6343 पर ही अटक गया। उसके बाद से बाजार धीरे-धीरे नीचे ही आता रहा है।
निफ्टी ने 28 अगस्त की तलहटी 5119 से लेकर तीन नवंबर के शिखर 6343 तक की उछाल के बाद इसकी 23.6% वापसी के स्तर 6054 को पिछले कुछ दिनों में कई बार काटा है। इसी दौरान निफ्टी ने 13 नवंबर को 5972 पर और फिर 22 नवंबर को 5973 पर सहारा लिया। पिछले कुछ दिनों में निफ्टी का 50 एसएमए बढ़ते-बढ़ते 6054 के पास ही आ गया है। आने वाले दिनों में अगर निफ्टी 50 एसएमए से नीचे जाने लगे तो 5972 की ताजा तलहटी पर खास नजर रखनी होगी। अगर यह 5972 से नीचे गया तो 5119-6343 की उछाल की 38.2% वापसी के स्तर 5876 को अगला लक्ष्य समझा जा सकता है। अभी 200 एसएमए भी अभी 5876 के पास 5865 पर है। अगर निफ्टी 200 एसएमए भी कटा तो यह बाजार की चाल एकदम कमजोर होने का साफ संकेत होगा। वैसी स्थिति में निफ्टी 5119-6343 की 61.8% वापसी के स्तर 5587 को छूने का प्रयास कर सकता है।
सेंसेक्स भी अगस्त की तलहटी 17,449 से लेकर 21,322 के ताजा रिकॉर्ड स्तर तक की उछाल की 23.6% वापसी के स्तर 20,408 के पास है। सेंसेक्स के चार्ट पर निफ्टी से यह फर्क है कि इसने 13 नवंबर की तलहटी 20,162 को तोड़ कर 22 नवंबर को 20,138 पर एक निचली तलहटी बनायी। मोटी बात इसमें भी यही है कि अगर यह 22 नवंबर की तलहटी 20,138 को तोड़े तो यह 17,449-21,322 की उछाल की 38.2% वापसी का स्तर 19,843 इसका अगला स्वाभाविक मुकाम बन जायेगा। निफ्टी से इसमें एक और फर्क यह है कि सेंसेक्स का 200 एसएमए इस 38.2% वापसी के पास नहीं, बल्कि इससे थोड़ा नीचे 19,561 पर है। इस चार्ट में भी यही मानना होगा कि 200 एसएमए कटने की स्थिति में 61.8% वापसी के स्तर 18,929 तक फिसलने की आशंका बन जायेगी।
अगर बिल्कुल छोटी अवधि की बात करें तो ऐसा लगता है कि मुहुर्त कारोबार से अब तक निफ्टी एक गिरती पट्टी (फॉलिंग चैनल) के अंदर अटक गया है। इस पट्टी के अंदर चलते हुए निफ्टी ने 3 नवंबर के ऊपरी स्तर 6343 से 13 नवंबर की तलहटी 5972 तक 371 अंक की गिरावट दर्ज की। इसके बाद निफ्टी ने वापस उछाल दर्ज की और 19 नवंबर को 6212 तक चढ़ा, जहाँ एक निचला शिखर बन गया। अगर निफ्टी इस निचले शिखर से फिर से 371 अंक की गिरावट दर्ज करे तो लगभग 5840 का लक्ष्य मिलता है। साथ ही अगर छोटी अवधि की चाल समझने के लिए महत्वपूर्ण 20 एसएमए (6151) को देखें तो निफ्टी इसके नीचे चल रहा है। अभी यह 10 एसएमए (6075) को छू रहा है। इसलिए मोटी बात यह है कि अगर यह अगले कुछ दिनों में 20 एसएमए के ऊपर फिर से नहीं निकल पाये तो यह 5840 तक फिसल सकता है। निफ्टी फिर से ऊपर की ओर चाल पकड़ सके, इसके लिए जरूरी होगा कि यह पहले 20 एसएमए के ऊपर निकले और उसके बाद अपने 19 नवंबर के शिखर 6212 को पार कर सके।
अगर मध्यम अवधि के नजरिये से देखें तो निफ्टी के चार्ट पर एक बड़ी खतरनाक संभावना बनती दिख रही है, जो एक फैलते त्रिभुज (एक्सपैंडिंग ट्राइऐंगल) का नतीजा है। इस साल की शुरुआत से अब तक निफ्टी की चाल देखें तो ऊपरी शिखरों और निचली तलहटियों से एक फैलता त्रिभुज बनता है, जो बाजार के लिए खतरनाक हो सकता है।
लेकिन दूसरी बात बाजार के लिए काफी सकारात्मक है। नवंबर 2013 की शुरुआत में ही निफ्टी का 50 दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) इसके 200 एसएमए को नीचे से काटते हुए ऊपर आ गया है। इस तरह 50 एसएमए और 200 एसएमए का सकारात्मक कटान हो चुका है, जिसे गोल्डेन क्रॉसओवर भी कहा जाता है।
सवाल यह है कि एक तरफ बेहद नकारात्मक संभावना और दूसरी तरफ बेहद सकारात्मक संभावना के बीच बाजार वास्तव में करेगा क्या? अगर आपको पता हो कि भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था कब दोबारा 7% की विकास दर को छू सकेगी तो आप इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।
बाजार में नमो-मंत्र
नवंबर के पहले हफ्ते में खबर आयी थी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को चुनावी सफलता मिलने की उम्मीदों के मद्देनजर गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी का लक्ष्य 5700 से बढ़ा कर 6900 कर दिया है। इसके कुछ समय बाद सीएलएसए ने बाकायदा अपनी ओर से एक सर्वेक्षण जारी कर दिया कि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में 202 सीटें मिलेंगी।
सीएलएसए के सर्वेक्षण में कई राज्यों में भाजपा के खाते में इतनी सीटें जोड़ी गयी हैं, जितनी उम्मीद शायद खुद भाजपा को भी नहीं होगी। जैसे, इसने भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 में से 40 सीटें और राजस्थान की 25 में से 20 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है।
संख्याओं पर सबके अलग-अलग अनुमान हो सकते हैं, लेकिन गोल्डमैन सैक्स और सीएलएसए दोनों की रिपोर्ट एक मुख्य बात को सामने रखती है। वह बात यही है कि शेयर बाजार लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की संभावनाएँ देख रहा है और इस बात को अपने लिए अच्छा मान रहा है। इस बात में संदेह नहीं है कि दोनों ने अपनी-अपनी रिपोर्टों में बाजार के सहभागियों के बीच चल रही भावना को ठीक से सामने रखा है। शेयर बाजार ने अगस्त से अब तक जो बढ़त हासिल की है, उसका एक प्रमुख कारण बाजार की यह धारणा भी है कि अगले चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बना सकेगी। गोल्डमैन सैक्स और सीएलएसए ने बाजार की इस धारणा को ही प्रतिबिंबित किया है।
लेकिन बाजार की यह धारणा कई तरह के जोखिमों को आमंत्रण दे रही है। इस बात में संदेह की गुंजाइश कम है कि इस समय कांग्रेस चुनावी मैदान में कमजोर है और भाजपा उसकी तुलना में ठीक-ठाक बढ़त ले चुकी है। लेकिन जहाँ कांग्रेस की सीटें घटने की बहुत साफ भविष्यवाणी की जा सकती है, वहीं दावे के साथ यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा बहुमत के लिए जरूरी आँकड़ा जुटा पाने की स्थिति में आ चुकी है। अभी बाजार यही मान कर चल रहा है कि जब भाजपा अच्छी-खासी सीटें हासिल कर लेगी तो बहुमत में जितनी कमी होगी उसे पूरा करने के लिए नये सहयोगी आ ही जायेंगे।
इसी बिंदु पर बहुत-से अगर-मगर हैं, लेकिन बाजार उन पहलुओं को दरी के नीचे डालने की मनोवृत्ति दिखा रहा है। अगर हम सीएलएसए के सर्वेक्षण में सामने आयी संख्याओं को हकीकत मान लें, तो क्या भाजपा केवल 202 सीटों पर सरकार बना पाने की स्थिति में होगी? आप कह सकते हैं कि लगभग इतनी ही सीटों पर कांग्रेस ने भी तो सरकार चलायी है ना। मान लिया।
लेकिन करीब 200 सीटों से बहुमत के लिए जरूरी करीब पौने तीन सौ सीटों तक जाने के लिए जिन क्षेत्रीय दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी, वे नरेंद्र मोदी के नाम पर सहमत नहीं हुए तो क्या होगा? मैंने एक विश्लेषक से पूछा कि अगर चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बने, लेकिन नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न बन सकें तो क्या बाजार का उत्साह उतना ही रहेगा या घट जायेगा? उन्होंने कहा कि कुछ घट जायेगा।
अगर भाजपा की सीटें 200 के बदले 170-180 ही रह जायें तो क्या होगा? तब बहुमत तक जाने के लिए जिन क्षेत्रीय छत्रपों के समर्थन की जरूरत होगी, उनमें से बहुत सारे लोग खुद ही बादशाहत पाने को लालायित हो जायेंगे। बाजार को जिस तीसरे मोर्चे के नाम से ही डर लगता है, उसकी संभावना अभी एकदम से खारिज की जा सकती है क्या? अगर कांग्रेस कमजोर हो गयी, लेकिन भाजपा बहुमत जुटा सकने लायक मजबूत नहीं हो सकी तो फिर तीसरे मोर्चे का बेताल फिर से कंधे पर लटक जायेगा।
मैं इन संभावनाओं की चर्चा केवल इस समय सामने आ रहे अनुमानों के आधार पर कर रहा हूँ। अभी मोटी-मोटी बात यही दिख रही है कि देश में नरेंद्र मोदी अपने पक्ष में एक चुनावी हवा बहा पाने में सफल हुए हैं। लेकिन यह हवा एक बड़ी लहर पैदा कर चुकी है, यह बात अब तक के सर्वेक्षण तो नहीं बता रहे। अगर संभावनाएँ 160-200 सीटों के बीच अटक जा रही हों, तो इसे बड़ी लहर नहीं कहा जा सकता।
चुनावी समर जैसे-जैसे करीब आयेगा, वैसे-वैसे तस्वीर ज्यादा साफ होगी। मुमकिन है कि मोदी निरंतर और मजबूत होते जायें। वैसी हालत में भाजपा की चुनावी संभावनाओं का आँकड़ा भी 200 से कहीं ज्यादा ऊपर उठ सकता है। कई बार सर्वेक्षक और समीक्षक हवा और लहर को तो महसूस कर लेते हैं, लेकिन संख्या का ठीक अंदाजा नहीं लगा पाते। उत्तर प्रदेश में मायावती के स्पष्ट बहुमत और उसके पाँच साल बाद अखिलेश को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावनाएँ भी लोग नहीं देख पाये थे। संभव है कि चुनावी नतीजे मोदी और भाजपा के पक्ष में इतने स्पष्ट ढंग से आयें कि किसी अगर-मगर की कोई गुंजाइश ही बाकी न रहे। लेकिन कम-से-कम आज वैसी स्थिति नजर नहीं आ रही।
डेढ़ महीने में लक्ष्य 5700 से बदल कर 6900
बाजार अचानक बदलती धारणाओं के हिसाब से किस तरह अपना रुख और नजरिया बदलता है, इसका बड़ा खूबसूरत उदाहरण है गोल्डमैन सैक्स की ओर से निफ्टी में लक्ष्य में बदलाव। जब गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट सामने आयी तो प्रभुदास लीलाधर के पूर्व पीएमएस प्रमुख संदीप सभरवाल ने चुटकी लेते हुए फेसबुक पर टिप्पणी की। वे हँसे कि गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी का लक्ष्य बढ़ा कर 6900 कर दिया। हँसने का कारण यह था कि गोल्डमैन सैक्स ने इसके डेढ़ महीने पहले ही 18 सितंबर 2013 को निफ्टी का लक्ष्य घटा कर 5700 किया था।
फेसबुक पर उनकी बात के जवाब में कुछ मित्रों ने टिप्पणी की कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पहले डाउनग्रेड करते हैं और फिर निचले भावों पर शेयर इक_ा (एकम्युलेट) करते हैं। यह एक गंभीर आरोप है। इस समय गोल्डमैन सैक्स के संदर्भ में जब तक आपके पास कोई ठोस तथ्य नहीं हो, तब तक ऐसा कुछ कहना सही नहीं है। लेकिन गोल्डमैन सैक्स को यह तो साफ करना चाहिए कि आखिर 18 सितंबर 2013 से अब तक ऐसा क्या बदलाव हुआ, जिसके चलते उसे निफ्टी का लक्ष्य 5700 से 6900 करना उचित लगा। क्या केवल इसलिए, कि निफ्टी अगस्त की तलहटी 5119 से उठ कर अपने रिकॉर्ड स्तरों के करीब 6300 के आसपास आ गया? क्या केवल इसलिए, कि 5700 का उसका केवल डेढ़ महीने पहले दिया गया लक्ष्य मौजूदा स्तरों के चलते हास्यास्पद लगने लगा?
गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी का लक्ष्य घटा कर 5700 करने के डेढ़ महीने बाद ही इसे बढ़ा कर 6900 करने की जो कलाबाजी दिखायी, उसे इसने मोडी-फाइंग नाम दिया। मतलब यह कि नरेंद्र मोदी के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को देख कर उसने अपना नजरिया मोडी-फाई कर दिया! इस लिहाज से गोल्डमैन सैक्स कह सकती है कि उसके पास अपने नजरिये को बदलने का एक वाजिब और महत्वपूर्ण कारण मौजूद था।
लेकिन मोदी की लोकप्रियता तो अगस्त में भी स्पष्ट दिखती थी, जब बाजार गोते लगा रहा था और 18 सितंबर को भी स्पष्ट थी, जिस दिन गोल्डमैन सैक्स ने निफ्टी का लक्ष्य घटा कर 5700 किया था। आखिर भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार 13 सितंबर को घोषित किया था और सारी दुनिया पहले से ही यह बात जान रही थी। इसलिए असली प्रश्न यह है कि सितंबर के मध्य से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते के बीच में आखिर ऐसा क्या हुआ, जिससे मोदी के राजनीतिक प्रभाव के बारे में गोल्डमैन सैक्स का नजरिया बदल गया?
एफआईआई: कहना कुछ करना कुछ?
शेयर बाजार बड़े गतिशील परिवेश में काम करता है। यहाँ किसी एक बड़ी घटना से आपके विचार रातों-रात बदल सकते हैं। आप अचानक बड़ी गिरावट के बदले बड़ी उछाल उम्मीद करने लग जा सकते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन अगर आप एक तरफ निराशाजनक बातें करते रहें और दूसरी तरफ खरीदारी करते रहें, तो जरूर नीयत पर शक हो सकता है।
किसी एक संस्थान की बात करना अभी ठीक नहीं, लेकिन बाजार में यह धारणा तो रही है कि एफआईआई बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं। आपको ऐसे कालखंड मिल जायेंगे, जब एफआईआई की ओर से भारत के बारे में बड़ी अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिलती रहीं, लेकिन अक्सर दिन के अंत में एफआईआई की शुद्ध रूप से बिकवाली का आँकड़ा सामने आता रहा। इसका उल्टा भी होता रहा है।
कहा जा सकता है कि एफआईआई किसी एक व्यक्ति या एक संगठन का नाम तो है नहीं। यह तो काफी बड़ा और काफी विविध किस्म का समूह है और इस समूह के अंदर भी अलग-अलग सोच और रणनीति चलती रहती है। लेकिन अगर बाजार में कोई धारणा बनती है तो उसके पीछे कुछ-न-कुछ कारण अवश्य होता है। अगर आपको अलग-अलग एफआईआई की ओर से ज्यादातर एक जैसी बातें सुनने को मिले, लेकिन दिन के अंत में उन बातों की पुष्टि उनकी शुद्ध खरीदारी या शुद्ध बिकवाली के आँकड़े से होती न दिखे, तो कुछ खटकता है।
सामान्य रूप से एक निवेशक, विश्लेषक या हम जैसे पत्रकारों की अपनी सीमाएँ हैं। कुछ खटकता है तो बस दो बातें लिख-बोल कर हमें रुक जाना पड़ता है। बिना किसी ठोस तथ्य के हम एक सीमा से आगे कुछ नहीं लिख-बोल सकते। हमें यह तो मीडिया में देखने-सुनने या पढऩे को मिल जाता है कि किस एफआईआई ने क्या कहा, लेकिन उस एफआईआई ने बाजार में वास्तव में क्या किया और उसकी गतिविधियाँ सार्वजनिक बयानों या रिपोर्टों के अनुरूप हैं या नहीं, यह सब जानने-समझने का कोई साधन हमारे पास नहीं है। जिनके पास साधन और अधिकार हैं, उन्हें इस पहलू पर गौर करना चाहिए। यह उनकी जिम्मेदारी भी है। तब तक संदीप 5700 से 6900 के सर्कस पर केवल हँस सकते हैं और मैं बस उनकी हँसी को आपके साथ साझा करता रह सकता हूँ।
पर मूल प्रश्न यह है कि एफआईआई के मीडिया में आने वाले बयानों, उनकी रिपोर्टों और ठीक उस समय उनके कारोबारी रुझान में क्या एकरूपता रहती है? अगर कोई विश्लेषक मीडिया में एक तरह की राय दे और खुद बाजार में दूसरी तरह का व्यवहार करे, तो बाजार नियामक इसे अनुचित व्यवहार की श्रेणी में रखेगा।
मैं यह आरोप नहीं लगा रहा कि एफआईआई वाकई ऐसा अनुचित व्यवहार कर रहे हैं। किसी भी पत्रकार या विश्लेषक के पास इन बातों की खोजबीन के लिए पर्याप्त साधन और सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन बाजार में यह बात जरूर गाहे-बगाहे सुनने को मिल जाती है कि एफआईआई अक्सर कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। समस्या यह भी है कि एफआईआई हजार सिरों वाला प्राणी है। इसमें कौन क्या कह रहा है, यह तो हमें एक हद तक पता भी है। लेकिन कौन क्या कर रहा है, यह हमें नहीं पता।
निफ्टी ने 28 अगस्त 2013 को 5119 की तलहटी बनायी थी, जिसके बाद यह सितंबर में सँभल कर 19 सितंबर को 6142 तक गया था। उसके बाद हल्की नरमी में 1 अक्टूबर को यह 5701 तक आया था। इसके बाद फिर से यह मजबूती की राह पर बढ़ चला और अभी अपने रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों के आसपास ही है।
अब इस दौरान एफआईआई की खरीद-बिक्री देखें। नकद श्रेणी में अगस्त के अंत तक वे बिकवाल थे, सितंबर शुरू होते ही खरीदार बन गये। सितंबर और अक्टूबर में ज्यादातर दिनों में उन्होंने शुद्ध खरीदारी की। यानी बाजार की तेजी और एफआईआई की खरीदारी के बीच सीधा संबंध बना रहा है। लेकिन क्या ऐसा ही सीधा संबंध एफआईआई के विचारों से भी बनता है?
यूबीएस ने सितंबर के आखिरी हफ्ते में कहा कि निफ्टी 6000 के ऊपर नहीं जायेगा। उस समय निफ्टी 5900 के आसपास ही था और यूबीएस ने मुनाफावसूली करने की सलाह दी थी। बीएनपी पारिबा ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में ही सेंसेक्स का लक्ष्य घटा कर 21,300 से घटा कर 17,000 किया था। जब यह खबर आयी थी, उस समय सेंसेक्स 20,000 के आसपास था। बीएनपी पारिबा ने तब साल 2013-14 की आय के अनुमानों में भी कटौती की बात कही थी।
मॉर्गन स्टैनले के रिदम देसाई 5100 से 6100 तक की छलाँग के बाद सितंबर के तीसरे हफ्ते में कह रहे थे कि निफ्टी दोबारा 5300 की तलहटी की ओर बढ़ सकता था। जब वे ऐसा कह रहे थे, उस समय निफ्टी 5900 के पास था।
नोमुरा ने अभी सेंसेक्स का लक्ष्य 20,000 से बढ़ा कर 22,000 किया है। सितंबर के दूसरे हफ्ते में ही इसने कहा था कि मार्च 2014 में तय 20,000 के लक्ष्य को वह कायम रख रही है। तब सेंसेक्स 20,000 के पास ही था।
बार्कलेज की ओर से सितंबर के आखिरी हफ्ते में चेतावनी आ रही थी कि एफआईआई का भारतीय बाजार को लेकर ओवरवेट होना, यानी उनकी ओर से खरीदारी बढ़ाये जाने को बाजार के लिए एक जोखिम के रूप में देखना चाहिए। मैक्वेरी ने सितंबर के अंत में कहा कि आने वाले समय में भारत की विकास दर के अनुमानों में कटौती का एक और दौर चलने की संभावना है।
बेशक, हमें उस समय कुछ एफआईआई की ओर से थोड़ी सकारात्मक बातें भी सुनने को मिल रही थीं। लगभग उसी समय डॉयशे ने साल के अंत तक सेंसेक्स का 21,000 का लक्ष्य सामने रखा था। सितंबर के तीसरे हफ्ते में जेपी मॉर्गन सिक्योरिटीज ने भी निवेशकों को भारतीय बाजार में खरीदार बने रहने की सलाह दी थी। स्टैनचार्ट ने सितंबर के दूसरे हफ्ते में कहा था कि भारतीय बाजार के लिए सबसे बुरा दौर बीत गया है। पर ऐसा कहते समय भी स्टैनचार्ट की राय थी कि निफ्टी फिर से 5200 नहीं तोड़ेगा, यह बात विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती।
आप ऐसी टिप्पणियों की अंतहीन सूची बना सकते हैं। मगर मोटी बात यह है कि सितंबर में ज्यादातर एफआईआई का नजरिया भारतीय बाजार को लेकर नकारात्मक या सावधान था, फिर भी न केवल सितंबर, बल्कि उसके बाद भी एफआईआई की ओर से लगातार शुद्ध खरीदारी के ही आँकड़े आते रहे। एफआईआई के समूह ने सितंबर में 12,600 करोड़ रुपये से ज्यादा और अक्टूबर में 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की शुद्ध खरीदारी की। इस बात को किस रूप में समझा और देखा जाये? बाजार की धारणा जिस ओर जाती है, उस दिशा में पड़ताल करने के लिए जरूरी औजार नियामक के पास हैं।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)