आशीष पार्थसारथी, ट्रेजरर, एचडीएफसी बैंक :
रघुराम राजन के नये गवर्नर बनने से जहाँ तक बाजार में उत्साह आने की बात है, हमें ध्यान रखना चाहिए कि बुनियादी बातों (फंडामेंटल) में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
चालू खाता घाटा (सीएडी) बना रहेगा, मगर इस घाटे को पूरा करने के लिए जरूरी रकम कैसे आये, इस पर काम किया जा रहा है। आरबीआई गवर्नर के भाषण में लोगों का उत्साह बढ़ाने वाली मुख्य बात यह थी कि उन्होंने पहले ही दिन आत्मविश्वास और स्पष्टता के साथ अपनी बात रखी। उनकी आगामी कार्यनीति साफ नजर आ रही थी। दूसरे, उन्होंने साफ संकेत दिया कि बाजार पर लगाम कस कर, रोक लगा कर कोई समाधान नहीं होगा। इससे निवेशकों में पूँजी निकासी पर पाबंदी (कैपिटल कंट्रोल) का जो डर था, वह चला गया।
भारत में यह सोच रही है कि अगर कुछ ठीक नहीं चल रहा है तो रोक लगा दो। करेंसी डेरिवेटिव पर लगी सीमाओं से इसमें कारोबार लगभग रुक गया है। लेकिन रघुराम राजन की सोच अलग है। वे मानते हैं कि बाजार को ज्यादा तरल (लिक्विड) बनाया जाये और ज्यादा आजादी दी जाये। उन्होंने निर्यातकों के लिए रद्द फॉरवर्ड एक्सचेंज कॉन्ट्रैक्ट को री-बुक करने की सीमा बढ़ाने का फैसला किया और भारतीय कंपनियों के लिए ओवरसीज डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ओडीआई) की सीमा उनकी नेटवर्थ के 400% से घटा कर 100% करने के फैसले को पलट दिया। अब अगर इस ओडीआई की रकम विदेशी स्रोत से ही आ रही है तो उस पर रोक नहीं है।
पहले जब आरबीआई ने ओडीआई सीमा घटाने का फैसला किया था तो उसका बाजार पर काफी नकारात्मक असर पड़ा था और उसके चलते रुपये में काफी तीखी गिरावट आयी थी। इससे बाजार में संदेश गया कि भारत से पूँजी निकालने पर पाबंदियाँ बढऩे वाली हैं। एक विदेशी निवेशक यह सोचता है कि आज मैं भले ही डॉलर लगा दूँ, लेकिन कुछ साल बाद मुझसे कहा जा सकता है कि आप अपना पैसा बाहर नहीं ले जा सकते। ऐसा माहौल बनेगा तो कोई विदेशी निवेशक क्यों अपने पैसे लगायेगा?
नकारात्मकता के इस माहौल में रघुराम राजन ने बड़ी सकारात्मकता के साथ स्पष्ट रूप से अपनी बात कही, जिस वजह से बाजार को राहत मिली। उन्होंने संदेश दिया कि हम प्रतिबंध नहीं लगायेंगे, उल्टे बाजार को ज्यादा खोल देंगे।
करेंसी स्वैप से आयेंगे डॉलर
आरबीआई ने करेंसी स्वैप के जरिये डॉलर में कर्ज के लिए रास्ता आसान किया है। करेंसी स्वैप में आप किसी को डॉलर दे कर रुपया लेते हैं और कहते हैं कि एक निश्चित अवधि, जैसे तीन साल के बाद आप मुझसे रुपया लेकर डॉलर वापस दे देना। कोई बैंक अगर बाजार में ऐसी अदला-बदली (स्वैप) करे तो उसे 7% हेजिंग खर्च करना पड़ता। आरबीआई ने बैंकों का का यह हेजिंग खर्च घटा कर 3.50% कर दिया है।
इससे बैंकों के लिए अनिवासी भारतीयों से डॉलर में जमा (डिपॉजिट) लेकर उसे भारत लाना आसान हो गया है। फॉरेन करेंसी नॉन रेजिडेंट (एफसीएनआर) डिपॉजिट एक तरह की उधारी ही है, जिसे 3-5 साल बाद वापस देना है। अब तक बैंक एफसीएनआर डिपॉजिट ज्यादा नहीं ला रहे थे। तीन साल के एफसीएनआर पर डॉलर में 5% ब्याज देने के बाद इस डॉलर को अगर रुपये में बदला जाये तो बाजार में इसकी लागत 12-13% के आसपास रहेगी। अब 12% लागत पर रुपया लेकर कोई बैंक क्या करेगा?
अब आरबीआई ने फैसला किया है कि वह 3.50% पर स्वैप करेगा। इससे बैंक की लागत घट कर 8.50% हो जायेगी। अगर 8.50% पर पैसा मिले तो बैंक आगे इसे किसी को कर्ज पर दे सकता है। इसलिए अब एफसीएनआर डिपॉजिट से ज्यादा डॉलर आयेंगे।
इसके अलावा बैंक को डॉलर में ऋण लेने की भी अनुमति है। बैंकों को डॉलर में एक साल के लिए कर्ज अगर 2.50% पर मिलता है तो उनकी रुपये में लागत 9.50% हो जाती है, क्योंकि बाजार में एक साल का स्वैप रेट करीब 7% है। दो-चार हफ्ते पहले यह 8% था। अब आरबीआई ने तय किया है कि जो भी बाजार की दर है, उससे 1% नीचे हम आपसे स्वैप करेंगे। इसलिए बैंक ने अगर 2.50% में बाहर से कर्ज लिया तो बैंक की लागत 8.50% हुई। इस लागत पर मिलने वाला पैसा बैंक के लिए ठीक बैठता है। इसलिए अब बैंक ज्यादा उधारी लायेंगे, जिससे देश में और ज्यादा डॉलर आयेंगे। आरबीआई ने स्वैप के लिए नवंबर तक का समय दिया है। उनका इरादा है कि एक साथ अभी 10-15 अरब डॉलर की एक बड़ी राशि आ जाये, जिससे तुरंत विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा और कुछ राहत मिल जायेगी।
अभी कुछ समय तक रुपये में अस्थिरता रहेगी, क्योंकि अमेरिका में एफओएमसी की बैठक होने वाली है, जिसमें बॉण्ड खरीदारी कार्यक्रम धीमा करने के बारे में फैसला होगा। आरबीआई की भी मौद्रिक नीति पर बैठक होने वाली है। महीने भर की अवधि की बात करें तो रुपया में कुछ मजबूती आ सकती है। अक्टूबर-दिसंबर तक डॉलर की कीमत 62-64 तक सकता है। इसके बाद फिर चुनाव आने वाले हैं। उस वजह से भी दबाव बन सकता है। वैश्विक कारणों से भी अस्थिरता रहेगी। अगले 2-3 हफ्ते अस्थिरता वाले रहेंगे, लेकिन बाद में डॉलर के मुकाबले रुपया 62-64 के स्तरों पर टिक सकता है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)