ऐसे माहौल में जो निवेशक अधिक जोखिम नहीं लेना चाहते, वे ऋण (डेट) बाजार का रुख कर सकते हैं।
इनके लिए इस बाजार में इस समय कई ऐसे विकल्प मौजूद हैं जो बगैर जोखिम के ठीक-ठाक लाभ देने की क्षमता रखते हैं।
एफएमपी
कम जोखिम लेने वाले निवेशकों को आकर्षित करने के लिए म्यूचुअल फंड कंपनियाँ बड़ी संख्या में फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) ला रही हैं। ये योजनाएं विभिन्न प्रकार के ऋणों में निवेश करती हैं और इनमें जोखिम काफी कम रहता है। एक ऐसे माहौल में जब फिर से ब्याज दरें बढऩे की स्थिति दिख रही है, जानकार एफएमपी को नियत आय (फिक्स्ड इन्कम) वाले बाकी उत्पादों के ऊपर तरजीह देते नजर आ रहे हैं।
एफएमपी म्यूचुअल फंड कंपनियों की ऐसी तय अवधि (क्लोज एंडेड) योजनाएँ होती हैं, जो निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में पैसा लगाती हैं। इनके पोर्टफोलियो में बैंकों के सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, कंपनियों के कमर्शियल पेपर, पास थ्रू सर्टिफिकेट (पीटीसी), मनी मार्केट की प्रतिभूतियाँ आदि शामिल होती हैं। एफएमपी इन विकल्पों में इस तरह निवेश करते हैं कि एफएमपी की अवधि पूरी होने से कुछ दिन पहले ही उनके निवेश परिपक्व हो जाते हैं। निवेशकों के लिए बाजार में अलग-अलग अवधि, जैसे एक महीने, छह महीने, एक साल, दो साल, तीन साल आदि के एफएमपी उपलब्ध हैं।
मोटे तौर पर हर एफएमपी एक जैसा ही लगता है, लेकिन ये एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हो सकते हैं। यह इस पर निर्भर है कि कोई एफएमपी अपना निवेश कहाँ कर रहा है। इसी से यह तय होता है कि आपको कितने समय में कितना लाभ होगा। एक साल तक के एफएमपी सामान्यत: सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट्स और कॉमर्शियल पेपर्स में और तीन साल या इससे अधिक के एफएमपी मुख्यत: एनसीडी में पैसे लगाते हैं।
हालाँकि एफएमपी में जोखिम बाकी विकल्पों के मुकाबले काफी कम होता है, लेकिन ये पूरी तरह जोखिम-मुक्त नहीं हैं। कोई एफएमपी किस विकल्प में निवेश कर रहा है, इसी से यह तय होता है कि उस एफएमपी में जोखिम कितना है। यदि किसी एफएमपी के पोर्टफोलियो में सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट्स का बोलबाला है तो उसमें निवेश से संबंधित जोखिम और उससे मिलने वाला लाभ दोनों कम होंगे। लेकिन दूसरी ओर यदि उस एफएमपी के पोर्टफोलियो में कमर्शियल पेपर की अधिकता है तो उस एफएमपी का जोखिम बढ़ता है, पर साथ ही उससे मिलने वाला संभावित लाभ भी बढ़ जाता है।
प्रत्येक फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान की एक निश्चित लॉक-इन अवधि होती है। जानकारों का कहना है कि यदि कोई निवेशक एफएमपी की पूरी लॉक-इन अवधि तक अपना निवेश बरकरार रख सकता है, तभी उसे इसमें निवेश करना चाहिए। जानकार इस बात से आगाह करते हैं कि इस अवधि से पहले पूँजी निकालने पर आपको इनका पूरा फायदा नहीं मिलेगा। इतना ही नहीं, लॉक-इन अवधि से पहले पूँजी निकालने पर आपको नुकसान होने की संभावना भी बन जाती है।
एनसीडी
अगर आप शेयर बाजार की अनिश्चितताओं से बचते हुए निवेश करना चाहते हैं तो नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) भी एक बेहतर विकल्प है। जो निवेशक इनमें निवेश करना चाहते हैं, वे पंजीकृत ब्रोकरों के जरिये खुले बाजार से ऐसा कर सकते हैं। एनसीडी एक निश्चित अवधि तक आवेदन के लिए खुले रहते हैं और ऑफर बंद होने के बाद इन्हें स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध करा दिया जाता है।
किसी एनसीडी में निवेश से पहले आप अपने वित्तीय लक्ष्यों, जोखिम उठाने की क्षमता और एनसीडी जारी करने वाली कंपनी की बुनियादी स्थिति पर विचार कर लें। ध्यान दें कि जिस कंपनी ने एनसीडी जारी किया है, वह किस क्षेत्र की है और उस क्षेत्र का भविष्य अभी कैसा लग रहा है। किसी एनसीडी में निवेश करने से पहले इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि आपका निवेश नजरिया क्या है, आपको उस पूँजी की जरूरत कब है और आपकी कर-देनदारी क्या है।
जानकार बताते हैं कि उच्चतम आय कर श्रेणी के निवेशकों के लिए एनसीडी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसे निवेशक के लिए शुद्ध लाभ कर-मुक्त बॉण्ड से मिलने वाले लाभ के ही बराबर पड़ेगा। लेकिन यदि आप शून्य आय कर या आय कर के सबसे निचले दायरे (10%) में आते हैं तो एनसीडी के कुछ विकल्पों में कर-पश्चात लाभ कर-मुक्त बॉण्डों से मिलने वाले लाभ से अधिक हो सकता है।
अभी मुथूट फाइनेंस लिमिटेड का एनसीडी ऑफर 16 सितंबर 2013 तक खुला है। इसमें सिक्योर्ड और अनसिक्योर्ड दोनों तरह के डिबेंचर शामिल हैं, जिनमें आप 400 दिनों से पाँच साल तक की अवधि का निवेश कर सकते हैं। इसके 11 विकल्पों के तहत उपलब्ध एनसीडी के कूपन रेट 11.5% से 12.25% तक हैं। सूचीबद्ध होने के बाद सेकेंडरी बाजार में भी इन्हें खरीदा-बेचा जा सकता है। जानकारों की मानें तो यह एनसीडी दरअसल आरईसी की ओर से पेश किये गये कर-मुक्त बांड के मुकाबले अधिक जोखिम वाला है।
इसके अलावा श्रेई इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस के सिक्योर्ड एनसीडी भी उपलब्ध हैं। इस ऑफर के बंद होने की तिथि 17 सितंबर 2013 है। इसमें न्यूनतम 10 हजार रुपये से निवेश किया जा सकता है। यह एनसीडी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होगा और उसके बाद सेकेंडरी बाजार में इसमें ट्रेडिंग की जा सकती है। रेटिंग एजेंसी केयर ने इसे एए- रेटिंग दी है। दूसरी ओर ब्रिकवर्क रेटिंग्स ने इसे एए रेटिंग दी है। इसके विभिन्न विकल्पों के तहत कूपन रेट 11.16% से लेकर 11.75% तक हैं।
मियादी जमा या फिक्स्ड डिपॉजिट
कम जोखिम लेने वाले निवेशकों के लिए मियादी जमा या फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) भी बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि बैंकों ने एफडी पर ब्याज में बढ़ोतरी कर दी है। एफडी ऐसी जमा योजना है, जिसमें निश्चित अवधि के लिए धन जमा किया जाता है और एक निश्चित दर से ब्याज मिलता है। निवेशकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि एफडी पर मिलने वाला ब्याज कर मुक्त नहीं होता। इन पर उस व्यक्ति के आय कर के दायरे के अनुसार हिसाब से कर लागू होता है। बैंकों में 7 दिन से लेकर 10 साल तक की एफडी करायी जा सकती है। ऐसे में निवेशक अपनी जरूरतों के हिसाब से उचित परिपक्वता अवधि वाली एफडी का चुनाव कर सकते हैं। सरकारी और निजी बैंकों की एफडी के अलावा ग्राहक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की एफडी और कॉर्पोरेट एफडी में भी निवेश कर सकते हैं। लक्ष्मी विलास बैंक एक साल की एफडी पर 9.५% ब्याज दे रहा है, जबकि आंध्र बैंक भी एक से दो साल की एफडी पर इसी दर से ब्याज दे रहा है।
कम जोखिम लेने वाले निवेशकों को बैंकों की एफडी में ही निवेश करना चाहिए। बैंकों की एफडी योजनाओं में जोखिम कम होता है। पर इनसे मिलने वाला ब्याज भी अन्य एफडी के मुकाबले कम होता है। लेकिन बैंक के डूब जाने की स्थिति में भी निवेशकों को भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जोखिम सुरक्षा प्रदान की जाती है। अगर वह बैंक दीवालिया हो जाता है, जिसमें आपने एफडी करा रखी है तो भारतीय रिजर्व बैंक प्रत्येक निवेशक को अधिकतम एक लाख रुपये का भुगतान सुनिश्चित करता है।
कॉरपोरेट एफडी और एनबीएफसी की एफडी पर तुलनात्मक रूप से अधिक ब्याज की पेशकश होती है। लेकिन इनमें अधिक लाभ के साथ जोखिम भी अधिक होता है। इनकी एफडी पर रिजर्व बैंक की ओर से जोखिम सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं दी जाती। यदि कोई निवेशक अधिक जोखिम लेने का इच्छुक है तो वह ऐसी एफडी में निवेश कर सकता है। जो निवेशक कॉर्पोरेट एफडी में निवेश करना चाहते हैं, उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि विभिन्न रेटिंग एजेंसियों की ओर से क्या रेटिंग दी गयी है। एएए रेटिंग वाली कॉरपोरेट एफडी को अन्य कॉरपोरेट एफडी की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।
एनसीडी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराया जाता है, इसलिए इन्हें कभी भी बेचा जा सकता है। लेकिन एफडी को नहीं बेचा जा सकता। एनसीडी में ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव का जोखिम होता है, जबकि एफडी में ऐसा नहीं होता। एफडी पर टीडीएस कटता है, जबकि एनसीडी में कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है।
सरकारी बॉण्ड
इन दिनों सरकारी बॉण्डों की यील्ड अपने ऊपरी स्तरों के आसपास है और कुछ की यील्ड तो 10% के आसपास है। वर्तमान स्थितियों में सरकारी बांडों में निवेश करने का यह उचित समय है। किसी बॉण्ड की यील्ड टू मैच्योरिटी उसके निवेशक को परिपक्वता के समय मिलने वाले लाभ की दर है। रुपये की गिरावट थामने के लिए रिजर्व बैंक के उपायों के कारण बॉण्डों की कीमतें काफी गिर गयी हैं और इसी वजह से इन बॉण्डों की यील्ड टू मैच्योरिटी बढ़ गयी है।
निवेशक सरकारी बॉण्ड लेने के लिए रिजर्व बैंक से अधिकृत प्राइमरी डीलरों के पास जा सकते हैं। इन प्राइमरी डीलरों की सूची रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इन डीलरों के साथ खाता खोल कर सरकारी बॉण्डों को खरीदा जा सकता है। इनके लिए अलग से डीमैट खाता खोलने की जरूरत नहीं है।
सरकारी बॉण्डों पर जोखिम शून्य होता है और इनमें पूँजी लगाने से निवेशकों को लंबी अवधि तक लगातार बेहतर लाभ मिलने की गारंटी हो जाती है। हालाँकि, जो निवेशक इन सरकारी बॉण्डों में परिपक्वता अवधि तक बने रहना चाहते हैं, यह विकल्प उन्हीं के लिए बेहतर है। सरकारी बॉण्ड विभिन्न परिपक्वता अवधि, जैसे तीन महीने, छह महीने, एक साल, दो साल, पाँच साल, दस साल आदि के लिए उपलब्ध होते हैं। लेकिन निवेशकों यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सरकारी बॉण्ड में निवेश कर-मुक्त नहीं है।
कर-मुक्त (टैक्स फ्री) बॉण्ड
सुरक्षित निवेश विकल्प की तलाश में लगे निवेशक विभिन्न कंपनियों के कर-मुक्त बॉण्डों को भी चुन सकते हैं। हालाँकि इन्हें खरीदने पर निवेश राशि पर तो कर छूट नहीं मिलती, लेकिन इनसे मिलने वाला ब्याज कर-मुक्त होता है। ये बॉण्ड एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होते हैं, पर इनमें इतनी तरलता (लिक्विडिटी) नहीं होती। यदि निवेशक इनमें सौदे करते हैं तो इन पर शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। यह विकल्प उन निवेशकों के लिए बेहतर है, जिन्होंने ईपीएफ या पीपीएफ में अधिक निवेश नहीं किया है।
निवेशकों को यह भी ध्यान देना चाहिए कि इनमें काफी लंबी अवधि तक निवेश बनाये रखना पड़ता है। जानकारों के अनुसार, भले ही सेकेंडरी बाजार में इनकी बिक्री का विकल्प मौजूद है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि परिपक्वता अवधि से पहले इन्हें बेच देने पर निवेशक को लाभ ही होगा। निवेशक यह सोच-समझ कर ही इनमें निवेश करें कि परिपक्वता की पूरी अवधि तक इनमें बने रहना पड़ सकता है। इनमें निवेश करने से पहले निवेशकों को रेटिंग एजेंसियों की ओर से इनको दी गयी रेटिंग पर भी अवश्य ध्यान देना चाहिए।
अभी रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (आरईसी) का टैक्स फ्री बांड इश्यू 23 सितंबर तक खुला हुआ है। इसे इक्रा, क्रिसिल और केयर तीनों ही रेटिंग एजेंसियों ने इसके लिए एएए रेटिंग दी है। इसमें निवेश की न्यूनतम राशि है 5,000 रुपये। आरईसी की ओर से 10, 15 और 20 सालों की अवधि के बॉण्ड जारी किये जा रहे हैं, जिन पर क्रमश: सालाना 8.26%, 8.71% और 8.62% की दर से ब्याज मिलेगा।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)