डोलती अर्थव्यवस्था और टूटते रुपये के बीच निवेश के सुरक्षित ठिकानों की तलाश
बाजार में कर्ज और नकदी की उपलब्धता में कमी, ऊँची ब्याज दरों, डॉलर के मुकाबले रुपये की बढ़ती कमजोरी और विभिन्न परियोजनाओं में निवेश के मोर्चे पर देरी से देश की अर्थव्यवस्था ठहर सी गयी है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की ओर से 30 अगस्त को जारी किये गये आँकड़ों के अनुसार कारोबारी साल 2013-14 की पहली तिमाही के दौरान देश की आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी बढऩे की दर महज 4.4% रही है, जो पिछले चार सालों में सबसे कम है। इस दौरान खनन और निर्माण क्षेत्र में खासी गिरावट दर्ज की गयी है। इस बीच महँगाई भी बढ़ती दिख रही है। जुलाई 2013 में थोक महँगाई दर (डब्ल्यूपीआई) बढ़ कर 5.79% हो गयी। इससे पिछले महीने जून 2013 में यह 4.86% रही थी। यही नहीं, जुलाई में खाद्य महँगाई की दर 11.91% रही है, जबकि जून में यह 9.74% रही थी। ईंधन की कीमत में बढ़ोतरी को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले महीनों में महँगाई दर में ठोस कमी आने की उम्मीद नहीं है।
भारतीय मुद्रा का हाल भी कम बुरा नहीं है और पिछले तीन महीनों में यह 12% से अधिक टूट चुकी है। हालाँकि इन दिनों सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बना हुआ है, लेकिन सबसे अधिक मार रुपये को ही पड़ती दिख रही है। हर नये दिन के साथ भारतीय मुद्रा में लगातार गिरावट आती जा रही है और यह नित नये निचले स्तर बना रहा है। 28 अगस्त को डॉलर के मुकाबले रुपया 68.८० के स्तर तक फिसल गया जो इसका अब तक का सबसे निचला स्तर है। इधर चालू खाते का घाटा (विदेशी मुद्रा के देश में आने और देश से बाहर जाने के बीच का अंतर) भी मुसीबत बना हुआ है। गौरतलब है कि कारोबारी साल 2012-13 में देश का चालू खाते का घाटा 88.2 अरब डॉलर के ऐतिहासिक ऊपरी स्तरों पर पहुँच गया था। हालाँकि, सरकार को यह उम्मीद है कि कारोबारी साल 2013-14 में वह चालू खाते के घाटे को 70 अरब डॉलर तक सीमित रख सकेगी। लेकिन ऐसा करना उसके लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। इन सबके बीच व्यापार घाटे में बढ़ोतरी के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। कारोबारी साल 2012-13 के दौरान देश का व्यापार घाटा बढ़ कर 191.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। इस अवधि में देश का कुल आयात 491.9 अरब अमेरिकी डॉलर और इसका कुल निर्यात 300.3 अरब अमेरिकी डॉलर का रहा।
एफआईआई बिकवाली ने निकाला दम
भारत में घरेलू मोर्चे पर इन सभी स्थितियों और अमेरिका में फेडरल रिजर्व की ओर से बॉण्डों की खरीदारी के कार्यक्रम या प्रोत्साहन पैकेज (क्यूई 3) को क्रमश: रोके जाने की संभावना की चर्चाओं के बीच विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारत जैसे उभरते बाजारों से अपनी पूँजी बाहर निकालते दिख रहे हैं। एफआईआई पिछले तीन महीनों से शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। अगस्त 2013 में इन्होंने लगभग 6,200 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की, जबकि जुलाई 2013 में इनकी ओर से 7,120 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की गयी थी। इससे पहले जून 2013 में एफआईआई ने 9,319 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की थी।
हालाँकि लगातार पिछले कई महीनों तक शुद्ध बिकवाल बने रहने के बाद घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने अगस्त में हल्की शुद्ध खरीदारी जरूर की है। इसके बावजूद 28 अगस्त 2013 को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 5,119 के निचले स्तर तक फिसल गया। गौरतलब है कि 23 जुलाई 2013 को निफ्टी ने ऊपर की ओर 6,093 का स्तर छुआ था। 28 अगस्त 2013 को ही बैंक निफ्टी 8,367 के स्तर तक फिसल गया। ध्यान रहे कि मई 2013 में ही यह 13,414 के ऊपरी स्तरों तक पहुँच गया था।
बैंक शेयर टूटे, आईटी और रक्षात्मक शेयरों पर बढ़ा जोर
बाजार में हाल में आयी इस गिरावट में बैंकिंग क्षेत्र के शेयरों पर सबसे अधिक मार पड़ी है। दो सितंबर तक के आँकड़ों के अनुसार पिछले 30 दिनों में बैंक निफ्टी में 8.75% फिसलन दर्ज की गयी है, जबकि एनएसई के निफ्टी में 3.33% की कमजोरी आयी है। इस दौरान केनरा बैंक में 24.75%, पीएनबी में 23.3%, यस बैंक में 22%, बैंक ऑफ इंडिया में 21.9%, यूनियन बैंक में 19.6%, ऐक्सिस बैंक में 16% और एसबीआई में 11.4% की गिरावट आयी है। ऐसी स्थिति में वैल्युएशंस के लिहाज से बैंकिंग क्षेत्र के शेयर खासे आकर्षक लगने लगे हैं। लेकिन अधिकांश बैंकों के एनपीए डूबे कर्ज और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता संबंधी चिंताओं की वजह से निवेशक इन शेयरों में हाथ डालने में हिचकिचा रहे हैं।
डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट के इस माहौल में आईटी क्षेत्र के शेयर निवेशकों को ज्यादा सुरक्षित लग रहे हैं। इस क्षेत्र के काफी शेयर (जैसे इन्फोसिस, माइंडट्री, टेक महिंद्रा, एचसीएल टेक, टीसीएस आदि) अपने 52 हफ्तों के ऊँचे स्तरों के आसपास चल रहे हैं। पिछले 30 दिनों में सीएनएक्स आईटी में 7.83% तेजी आयी है। इस दौरान टीसीएस के शेयर में 13.3%, एचसीएल टेक में 10.8%, हेक्सावेयर में 10.6%, टेक महिंद्रा में 10.4% और इन्फोसिस में 3.88% की तेजी दर्ज की गयी है। लेकिन समस्या यह है कि इन शेयरों में यह तेजी किसी बुनियादी वजह से नहीं आयी है। ऐसा नहीं है कि रातों-रात इनके बुनियादी कारक बदल गये हैं। इसलिए इन शेयरों में निवेश करना भी कम जोखिम भरा नहीं है।
इन शेयरों में इस तेजी की एकमात्र वजह डॉलर के मुकाबले रुपये में आयी हुई गिरावट को माना जा रहा है। ऐसे में यदि डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूती मिलने लगी तो हालात बदल सकते हैं और आईटी क्षेत्र के शेयरों में बिकवाली शुरू हो सकती है।
अब जरा उन क्षेत्रों पर भी नजर डाल लें, जिन्हें रक्षात्मक (डिफेंसिव) कहा जाता है। पिछले 30 दिनों के दौरान जहाँ निफ्टी में 3.33% की कमजोरी आयी है, वहीं सीएनएक्स एफएमसीजी सूचकांक में इसी अवधि में 3.73% की गिरावट दर्ज की गयी है। इस अवधि में आईटीसी, जुबिलैंट फूड, इमामी, जीएसके कंज्यूमर और टाटा ग्लोबल के शेयरों में 5-10% की कमजोरी देखी गयी है। हालाँकि इस दौरान ब्रिटानिया, मैरिको और हिंदुस्तान यूनिलीवर में 3-4% की तेजी आयी है।
ग्लोब कैपिटल के पीएमएस प्रमुख के. के. मित्तल का मानना है कि पिछले दिनों आयी गिरावट के बावजूद इस क्षेत्र के अधिकांश शेयरों के मूल्यांकन अब भी काफी ऊँचे हैं। ऐसे में इन स्तरों पर हिंदुस्तान यूनिलीवर और आईटीसी जैसे शेयरों से दूर रहना ही बेहतर है। मित्तल के अनुसार इन स्तरों पर पेंट उद्योग के शेयरों पर दाँव लगाया जा सकता है।
सीएनएक्स फार्मा सूचकांक में पिछले 30 दिनों में 0.86% की गिरावट आयी है। लेकिन इसी दौरान कैडिला हेल्थकेयर में 11.7%, ग्लेनमार्क में 10.3%, सन फार्मा में 6.4% और ल्युपिन में 6.2% कमजोरी दर्ज की गयी है। हालाँकि इसी बीच रैनबैक्सी में 49.7% की जबरदस्त तेजी आयी है। डिविस लैब में 6.4% और सिप्ला में 4.1% की तेजी दिखी। जानकारों का मानना है कि विदेशी मुद्रा के नुकसान (फॉरेक्स लॉस), नियमन के मोर्चे पर समस्याओं और विदेशी बाजारों में उत्पादों के अनुमोदन में देरी जैसी वजहों से इन शेयरों के प्रदर्शन में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। मित्तल के अनुसार फार्मा क्षेत्र में इन स्तरों पर चुनिंदा खरीदारी शुरू की जा सकती है। लेकिन इस क्षेत्र में उन शेयरों का चुनाव बेहतर हो सकता है, जिनका कारोबार निर्यात-आधारित है। मित्तल यह याद दिलाना नहीं भूलते कि जो लोग खरीदारी करने की सोच रहे हैं, वे किश्तों में खरीदारी करें, एकमुश्त नहीं।
हालाँकि पिछले तीन-चार सत्रों में निफ्टी 5,118 के स्तरों से उछलते हुए 5,551 तक पहुँच चुका है, लेकिन निवेशक बाजार की चाल को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। जानकारों का मानना है कि यदि रुपये में फिर कमजोरी दिखी और विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से बिकवाली बढ़ी तो निफ्टी में 5,000 का स्तर भी टूट सकता है। मित्तल के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में आयी तेजी को पुलबैक रैली यानी वापस उछाल की तेजी के तौर पर देखना अधिक सही होगा, क्योंकि अनिश्चितताओं का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)