आरबीआई ने 80:20 योजनाओं पर जो रोक लगायी है, उसके दायरे में ज्यादा बिल्डर नहीं आते हैं।
केवल 3-4% डेवलपरों ने ही बैंकों से इस तरह के गठबंधन किये थे। अब कंस्ट्रक्शन लिंक्ड भुगतान ही ज्यादा होता है। आम्रपाली की कोई परियोजना 80:20 वाली नहीं है। साल 2006-07 के बाद से हमारी ऐसी कोई योजना नहीं रही। मुंबई और पुणे जैसे बाजारों में ये योजनाएँ ज्यादा प्रचलित हो रही थीं।
आरबीआई का यह कदम एकदम सही है। निर्माण का सारा पैसा शुरू में लेने के बदले बिल्डर के पास नकदी किस्तों में आना ठीक है। लेकिन ऐसी योजनाएँ लाने के पीछे किसी डेवलपर का मकसद सस्ती लागत पर पूँजी जुटाना होता है।
भूमि अधिग्रहण बिल में बहुत जटिल प्रक्रिया बतायी गयी है, जिससे लागत बढ़ेगी। पुनर्वास के प्रावधानों और और अधिग्रहण के मूल्य, दोनों का असर पड़ेगा। अधिग्रहण की प्रक्रिया में 80% सहमति किसी भी गाँव में मिलना मुश्किल लगता है। दूसरे, सामाजिक प्रभाव का कोई मापदंड नहीं है। डेवलपर के लिए इस कानून का असर यही होगा कि सरकार से डेवलपर को मिलने वाली भूमि बहुत महँगी हो जायेगी। भूमि की कीमत कम-से-कम 50% बढऩे के आसार हैं। उसके हिसाब से मकानों की कीमत में 15-20% का फर्क आ जायेगा।
अनिल कुमार शर्मा, सीएमडी, आम्रपाली समूह
आरबीआई के कदम से ग्राहकों की सुरक्षा होगी
शोभित अग्रवाल, एमडी, जेएलएल इंडिया
आरबीआई ने इस बात पर ध्यान दिया है कि बहुत से बैंक और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की ओर से 80:20 या 75:25 योजना के रूप में ऐसे आवास ऋण (होम लोन) उत्पाद पेश किये गये हैं, जिनमें कर्जदाता, डेवलपर और संपत्ति के खरीदार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता होता है। ऐसी योजनाओं के खिलाफ आरबीआई के कदम का मुख्य आधार यह है कि इन योजनाओं में उपभोक्ताओं पर पडऩे वाले वित्तीय असर को बारीक अक्षरों में दिये गये विवरणों में बताया जाता है और बहुत-से उपभोक्ता उन पर गौर नहीं कर पाते हैं।
आरबीआई का यह कदम संपत्ति खरीदने वाले उन उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने का प्रयास है, ऐसी योजनाओं के लंबी अवधि के वित्तीय परिणामों के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं। यह कदम निश्चित रूप से भारत में जमीन-जायदाद क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से है। साथ ही यह कदम इस क्षेत्र को पूँजी उपलब्ध कराने वाले वित्तीय संस्थानों की सुरक्षा के लिए भी है।
पाश्र्वनाथ की 75:25 योजना में सबवेंशन नहीं
डॉ. सुनीत सचर, सीनियर वीपी, पाश्र्वनाथ डेवलपर्स
अभी जो 80:20 योजनाएँ चल रही हैं, वे सबवेंशन योजनाएँ हैं, लेकिन हमने जो 75:25 योजना चलायी वह सबवेंशन योजना नहीं है। हमारी योजना में ग्राहक को 25% शुरुआती भुगतान करना होता है, लेकिन इसमें कर्ज लेने की कोई जरूरत नहीं होती। आरबीआई का जो निर्देश है, वह उन योजनाओं के बारे में है जिनमें कर्ज लिया जाता है और बैंक भी एक पक्ष बनते हैं। जो मनाही की गयी है, वह भी डाउनपेमेंट यानी एकमुश्त भुगतान को लेकर है। कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड यानी निर्माण से जुड़े कर्ज के लिए बैंक अब भी मना नहीं कर रहे।
आरबीआई का यह कदम डेवलपरों के लिए अच्छा नहीं है और इससे उनका कामकाज मुश्किल हो सकता है। लेकिन यह कदम ग्राहकों के पक्ष में है और उनके हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)