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मुश्किल से बचाया पैसा, अब लगायें कहाँ!

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Category: सितंबर 2013

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :

हर बार ऐसा लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था का भयावह दौर अब खत्म होने वाला है, पर ताजा प्रमुख आर्थिक आँकड़े देख कर यह स्थिति और भयावह लगती है।

साल 2009 में लगता था कि 2011 तक अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जायेगी, लेकिन 2011 से अब तक अर्थव्यवस्था और बदतर हालत में पहुँच गयी है। रही-सही कसर रुपये के गिरते मूल्य ने पूरी कर दी, जिससे अर्थव्यवस्था से अनभिज्ञ जनता पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बारंबार वृद्धि से सजग हो गयी है। आर्थिक तंगहाली का सबसे बुरा असर देश की बचत क्षमता पर पड़ा है। देश में काफी अरसे बाद बचत दर में गिरावट दर्ज हुई है। भारतीयों की बचत की प्रवृति से ही यह देश अन्य आर्थिक संकटों को झेलने में समर्थ रहा है। लेकिन सुरक्षा का यह अभेद्य कवच अब टूटता नजर आ रहा है। महँगाई की विष-बेल ने आम आदमी की बचत क्षमता को डस लिया है। वहीं बचत को सुरक्षित बनाये रखने का बड़ा सवाल भी उनके समक्ष पैदा हो गया।
अधिक प्रतिफल देने वाले विकल्पों, जैसे शेयर और म्यूचुअल फंडों का प्रदर्शन पिछले तीन-चार सालों से निराशाजनक रहा है। इनका प्रतिफल बैंकों की सावधि जमा ब्याज दरों से भी कम रहा है। भूसंपदा बाजार में भी निवेश की स्थिति उत्साहजनक नहीं है। पिछले छह-आठ महीनों में इसकी दशा और बदतर हुई है। नये भूमि अधिग्रहण कानून के पारित होने के बाद विशेषज्ञों के बड़े वर्ग का मत था कि इससे भूमि अधिग्रहण की लागत बढऩे और प्रक्रिया के जटिल होने के कारण व्यावसायिक और आवासीय इकाइयों की कीमतें बढ़ सकती हैं। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले तीन महीनों में आवासीय भूसंपदा बाजार में प्रतिफल या तो नकारात्मक है या शून्य। मौजूदा तिमाही में अनबिकी आवासीय इकाइयों का क्षेत्रफल 70 करोड़ वर्ग फुट हो गया है, जो पिछली तिमाही से 5.40 करोड़ वर्ग फुट ज्यादा है।
देश के सभी प्रमुख शहरों में अधिक ब्याज दरों, अत्यधिक कीमतों और आय की अनिश्चितता के चलते आवासीय इकाइयों की माँग में तेज गिरावट दर्ज हुई है। भूसंपदा बाजार का स्वर्ग समझे जाने वाले नोएडा और गुडग़ाँव जैसी जगहों में फ्लैटों की कीमतों में 10% तक गिरावट देखने में आयी है।
सोने की कीमतों में पिछले तीन सालों में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है और प्रतिफल का औसत सर्वाधिक रहा है। लेकिन मौजूदा तेजी अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें बढऩे के कारण नहीं, बल्कि कमजोर होते रुपये, शुल्क और आपूर्ति संबंधी रुकावटों के चलते है। आर्थिक जगत में अनिश्चितता और अस्थिरता की धुंध छँटते ही सोने की कीमतें मौजूदा स्तरों से गिरना तय है। इस दृष्टि से सोने में निवेश का जोखिम सबसे ज्यादा है। सही मायने में यह क्षेत्र सट्टेबाजों, जमाखोरों और काला धन रखने वालों के लिए ही रह गया है।
देश की सामाजिक-आर्थिक बनावट ऐसी है कि बिना बचत के यहाँ जीवन निर्वाह असंभव है। पिछले कई सालों से आर्थिक अनिश्चिता, अस्थिरता, महँगाई और आर्थिक मंदी से देश में अधिकांश जनता के लिए बचत कर पाना दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। उससे भी कहीं ज्यादा कठिन है बचत के मूल्य को बचाये रखना। देश में बचत दर गिरने से निवेश के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ रही है। रुपये के मूल्य में भारी गिरावट और चालू खाते का घाटा बेकाबू होने का यह एक बड़ा कारण है।
इन तमाम विषम परिस्थितियों में अहम सवाल यही उठता है कि बचत का निवेश करने के सुरक्षित ठिकाने क्या हैं? अपनी बचत का निवेश कहाँ करना चाहिए, यह मूलत: आपकी जोखिम सहने की शक्ति पर निर्भर करता है। आज भी देश के 50% से ज्यादा बचतकर्ता जोखिम लेने से डरते हैं। उनके लिए आज भी बैंकों की सावधि जमा, सरकारी बॉण्ड और डाकघर की बचत योजनाएँ सबसे सुरक्षित निवेश स्थल हैं। कॉर्पोरेट एफडी यानी कंपनियों की सावधि जमा, उनके ऋण प्रपत्र आदि विकल्पों के बारे में लोगों की जानकारी न के बराबर है। उनके बीच जाने की कोई मुकम्मल कोशिश कॉर्पोरेट जगत ने भी नहीं की है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज निवेश के विकल्प, सूचनाएँ, विश्लेषण और नाना प्रकार की विशेष सलाह पहले से कई गुना ज्यादा हैं। लेकिन इनमें से 99% का मुख्य ध्यान घंटे दो घंटे, ज्यादा-से-ज्यादा एक दिन के लिए ही सीमित है। बिडंबना है कि 2008 के वित्तीय संकट के समय से ही ऐसी विशेष सलाहें विफल रही हैं। नतीजतन आज साख और भविष्य का स्पष्ट अनुमान लगा पाने का संकट गहरा है। हमारी आमुख कथा मौजूदा दौर में निवेश के सुरक्षित विकल्प तलाशने में मददगार साबित होगी। हमारा यह प्रयास कारगर साबित हुआ या नहीं, इसके लिए आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)

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