सुशांत शेखर :
कहते हैं संपत्ति में किया गया निवेश हमेशा फायदा ही देता है।
यह निवेश आपके लिए नियमित आमदनी का बेहतरीन स्रोत बन सकता है। संपत्ति से नियमित कमाई का सबसे आसान और सहज तरीका है, संपत्ति को किराये पर देना। अगर मकान या वाणिज्यिक संपत्ति अच्छे स्थान पर है तो आपको बढिय़ा किराया मिल सकता है।
आमतौर पर मकान की कीमत का 4-5% तक सालाना किराया मिल सकता है। अगर संपत्ति का मूल्य 50 लाख रुपये है तो सालाना दो से ढाई लाख रुपये बतौर किराया मिल सकता है। किराये की रकम स्थान के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकती है।
किराये से आमदनी में टैक्स के फायदे भी जुड़े हैं। आयकर कानून के मुताबिक किराये से कमाई पर 30% की मानक कटौती मिलती है। मतलब किराये से होने वाली कमाई का 70% ही आपकी करयोग्य आय में जुड़ेगा।
किरायेदार का चुनाव
मकान किराये पर देते समय सबसे पहला सवाल यही उठता है कि किरायेदार कौन होगा। आप अपना मकान किसी व्यक्ति या किसी कंपनी या संस्थान को किराये पर दे सकते हैं। आप किसी प्रॉपर्टी डीलर के जरिये किरायेदार तलाश सकते हैं, या चाहें तो वेबसाइटों पर विज्ञापन देकर भी किरायेदार ढूंढ सकते हैं। अगर आप डीलर के जरिये किरायेदार चुनते हैं तो आपको 15 दिन से लेकर एक महीने का किराया बतौर ब्रोकरेज देना होगा। वहीं अगर वेबसाइट पर विज्ञापन से किरायेदार तलाशते हैं तो न आपको और न किरायेदार को ब्रोकरेज देनी पड़ेगी।
दस्तावेजों की औपचारिकता
आप चाहे किसी व्यक्ति को अपना मकान किराये पर दें या किसी कंपनी को, पर मकान किराये पर देने से पहले किरायेदार के बारे में कुछ बुनियादी जानकारी जुटाना बेहद जरूरी है। किरायेदार कोई व्यक्ति है तो उसकी पहचान से जुड़े दस्तावेज जरूर लें। साथ ही उसका पुलिस से सत्यापन कराना भी जरूरी है।
किरायेदार की पृष्ठभूमि की जाँच कर लेने के कई फायदे हैं। सबसे पहले तो यह पता लग जाता है कि संभावित किरायेदार संपत्ति देने के लिए उचित व्यक्ति/कंपनी है।
किराया समझौता (रेंट एग्रीमेंट) जरूरी
मकान किराये पर देते समय किराया समझौता (रेंट एग्रीमेंट) करना बड़ा जरूरी है। अगर किसी व्यक्ति को मकान किराये पर देते हैं तो अमूमन रेंट एग्रीमेंट 11 महीने के लिए बनवाया जाता है। वहीं किसी कंपनी को मकान किराये पर देते समय लीज एग्रीमेंट बनता है, कई सालों के लिए बनवाया जाता है। रेंट या लीज एग्रीमेंट में किराये की शर्तें बिल्कुल साफ तौर पर लिखी होनी चाहिए। आपसी सहमति से ये तय कर लें कि अगर रेंट एग्रीमेंट को आगे बढ़ाया जाना है तो कितने फीसदी किराया बढ़ाया जाना है।
रेंट एग्रीमेंट में जमानत राशि (सिक्योरिटी) का उल्लेख करें। किरायेदार संपत्ति छोड़ते समय इस रकम पर दावा करेगा। आप समझौते में मरम्मत, रखरखाव और संपत्ति को होने वाले नुकसान के बारे में शर्तों को भी शामिल करें। समझौते की सभी शर्तों पर बारीक नजर रखें। किरायेदार को संपत्ति सौंपने से पहले सभी कागजी काम पूरे हो जाने चाहिए। यह भी सुनिश्चित करें कि इस समझौते पर सभी संबंधित पक्षों और गवाह के हस्ताक्षर हों।
नोटरी से समझौता बनवाने के बाद उसे अदालत में पंजीकृत जरूर करायें। अदालत में इसका पंजीकरण कराने से किरायेदार रखने के बाद होने वाली बहुत सी संभावित परेशानियों से बचा जा सकता है। हालाँकि अदालत में पंजीकरण कराने पर आपको शुल्क चुकाना पड़ता है, लेकिन बाद में होने वाली परेशानियों से बचने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
अपने दस्तावेज भी दुरुस्त रखें
अपने मकान या वाणिज्यिक संपत्ति को किराये पर देने से पहले आप अपने दस्तावेज दुरुस्त रखें। अगर फ्लैट किराये पर दे रहे हों तो ऑक्युपेशन सर्टिफिकेट और टाइटल डीड समेत सभी दस्तावेज ठीक होने चाहिए।
मकान मालिक को यह पक्का करना चाहिए कि उनके नाम का साफ तौर पर संपत्ति के दस्तावेजों में जिक्र हो। इससे भविष्य में विवाद की स्थिति में काफी मदद मिलेगी। भविष्य में विवाद होने की सूरत में यह बेहतर सबूत के रूप में काम करता है।
एक सामान्य मकान मालिक को मकान किराये पर देने से पहले किरायेदारों के व्यवहार से झिझक और कभी-कभी डर भी होता है। लेकिन अगर आपने मकान किराये पर देने से पहले प्रक्रिया का ठीक तरह से पालन किया है। और आपके अपने दस्तावेज भी दुरुस्त हैं तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है। वैसे भी इन दिनों मकान मालिकों और किरायेदारों से जुड़े विवाद सिविल अदालतों के बजाए विशेष अदालतों में चलते हैं, जिससे इस तरह के विवादों में फैसले पहले से कहीं जल्दी आते हैं।
किराये से और कमाई कैसे ?
अगर किराये से मिलने वाली रकम की आपको तत्काल जरूरत नहीं है तो आप इसे सुनिश्चित रिटर्न वाले माध्यमों में निवेश कर सकते हैं। मसलन आप किराये की रकम की बैंक में आवर्ती जमा या रेकरिंग डिपॉजिट (आरडी) खुलवा सकते हैं। आरडी पर आपको सालाना 8% से 9.5% फीसदी तक का ब्याज मिल सकता है।
यही नहीं, अगर आप अपने किरायेदार से पगड़ी या कहें जमानत के तौर पर कोई रकम लेते हैं तो उसे भी समझौते की अवधि तक के लिए बैंक के मियादी जमा (एफडी) में लगा सकते हैं। इससे आपको ब्याज से अतिरिक्त कमाई हो सकती है। लेकिन याद रखें कि ब्याज से होने वाली कमाई आपकी आय में जुड़ेगी और तय सीमा के मुताबिक आयकर देना होगा।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)