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तकनीकी विश्लेषण का बेहतरीन औजार है बोलिंगर बैंड

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Category: अगस्त 2013

विवेक के नेगी, निदेशक, फिनेथिक वेल्थ सर्विसेस :

बोलिंगर बैंड तकनीकी नजरिये से सौदे करने का एक औजार है, जिसे जॉन बोलिंगर ने 1980 की शुरुआत में बनाया था।

बोलिंगर बैंड एक संकेतक है, जिससे निवेशक एक खास समय के दौरान उतार-चढ़ाव और कीमतों के स्तर की तुलना कर सकते हैं। यह मूविंग एवरेज यानी चर औसत के इस्तेमाल से बना उन्नत औजार है।
मूविंग एवरेज की अपनी सीमाएँ हैं। बोलिंगर बैंड इनके साथ-साथ शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव के पहलू को भी शामिल करके इन सीमाओं का समाधान करता है। किसी मूविंग एवरेज के ऊपर या नीचे एक निश्चित प्रतिशत तय करने के बजाय बोलिंगर बैंड की गणना बंद भावों के आधार पर किसी मूविंग एवरेज के ऊपर और नीचे मानक विचलन (स्टैंडर्ड डेविएशन) के आधार पर की जाती है। इन्हें इस सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है कि जब उतार-चढ़ाव कम होता है तो बोलिंगर बैंड संकरे होते हैं और जब उतार-चढ़ाव ज्यादा होने पर वे फैल जाते हैं। इसके विभिन्न स्तरों की गणना का सूत्र यह है -
2 मध्यम बैंड = 20 दिनों का मूविंग एवरेज
2 ऊपरी बैंड = मध्यम बैंड + 2 मानक विचलन
2 निचला बैंड = मध्यम बैंड - 2 मानक विचलन
माना जाता है कि 20 दिनों का मूविंग एवरेज छोटी अवधि में महत्वपूर्ण समर्थन या बाधा स्तर का काम करता है। इसलिए हमने 20 दिनों के मूविंग एवरेज को आधार के तौर पर इस्तेमाल किया है। बहुत-से विश्लेषक अपनी पसंद के आधार पर 10, 14 या 26 दिन वगैरह के मूविंग एवरेज को पैमाना बनाते हैं।
मानक विचलन बाजार के उतार-चढ़ाव का अच्छा संकेत देते हैं। मानक विचलन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि इन बैंड यानी धारियों में कीमतों में बदलाव के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया होगी। साथ ही इनसे उतार-चढ़ाव ज्यादा और कम होने की अवधि का पता चल सकेगा। कीमतें तेजी से ऊपर या नीचे होने पर उतार-चढ़ाव बढऩे से ये बैंड ज्यादा चौड़े होंगे।
जब बैंड संकरे हो जाते हैं तो कीमतों में आगे तेज बदलाव आने की प्रवृत्ति बनती है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि जब कीमतें एक छोटे दायरे में रहती हैं और उतार-चढ़ाव कम रहता है तो माँग और आपूर्ति में एक अच्छा संतुलन रहता है।
बैंड का संकुचन हमेशा हाल के बीते समय की चाल के संदर्भ में होता है। इसीलिए बोलिंगर बैंड इस संकुचन प्रक्रिया को साफ तौर पर देखने में मदद करते हैं। इनसे हमें यह भी संकेत मिलता है कि नयी चाल (ब्रेकआउट) कब आ सकती है, क्योंकि नयी चाल किसी भी दिशा में बढऩे पर वे फैलने लगते हैं।
अगर कीमत ऊपरी बैंड या धारी के ऊपर चलने लगती है तो यह तब तक मजबूती का संकेत होता है, जब तक कि वह मध्यम बैंड के नीचे बंद न हो। इसका मतलब यह है कि अगर कीमत बीच की मूविंग एवरेज रेखा के ऊपर बनी हुई है और कई बार ऊपरी बैंड को भी पार कर चुकी हैं तो इसे लगातार तेजी के रुझान का संकेत माना जा सकता है। कारोबारी मध्यम बैंड के नीचे घाटा काटने का स्तर तय करके सौदे बनाये रख सकते हैं। निचले बैंड के मामले में इसका उलटा होता है। अगर शेयर निचले बैंड से टकरा रहा है और मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने में नाकाम रहता है तो यह उस शेयर में कमजोरी जारी रहने का संकेत हैं। ऐसे में वह शेयर मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने तक बिकवाली सौदों में बना रहा जा सकता है।
जब कीमतें बैंड के बाहर चली जाती हैं तो माना जाता है कि वही रुझान जारी है। अगर कीमत ऊपरी बैंड से नीचे आने लगती है और निचले बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी नीचे बंद होती है तो रुझान पलट सकता है। दूसरी ओर अगर भाव निचले बैंड से चढऩा शुरू करे और ऊपरी बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी ऊपर बंद हो तो इसे गिरावट का रुझान पलटना कह सकते हैं।
अलग-अलग विश्लेषक अपने विश्लेषण को सही साबित करने के लिए अलग-अलग मानदंडों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में निवेशकों को मेरी सलाह है कि वे अपनी रणनीति के मुताबिक बाजार में सौदे करने से पहले उनका कागज पर परीक्षण कर लें। मतलब यह कि कुछ समय तक उसी रणनीति के आधार वास्तविक सौदे करने के बदले काल्पनिक सौदे करके कागज पर लिखते रहें और अंत में देखें कि क्या परिणाम आ रहा है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)

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