राजीव रंजन झा :
पिछले अंक के राग बाजारी में मैंने यह प्रश्न रखा था कि सेंसेक्स के लिए कितनी गुंजाइश है 20,000 से आगे जाने की?
मैंने तब लिखा था कि ‘अगर सेंसेक्स के नजरिये से देखें तो 19,685 के ऊपर टिकने पर, और निफ्टी के नजरिये से देखें तो 5,900-5,920 के ऊपर टिकने पर बाजार की मजबूती और आगे बढ़ती दिखेगी।’ तब मैंने 5,970-6,000 के दायरे में बाधा होने की बात कही थी, पर साथ में लिखा था कि ‘निफ्टी 6,000 के ऊपर जाने पर 6,229-5,566 की संरचना में 80% वापसी के स्तर 6,097 को अगला लक्ष्य माना जा सकता है।’
जुलाई के दूसरे हफ्ते में निफ्टी 5,900 के ऊपर निकलने के बाद ही बाजार में जोश आता दिखा। इस जोश में निफ्टी ने 23 जुलाई को 6,093 तक चढ़ा, यानी इसने 6,097 के लक्ष्य को छू लिया। वहीं सेंसेक्स तो 20,000 के ठीक-ठाक ऊपर 20,351 तक चढ़ गया। लेकिन इसके बाद बाजार के लिए ऊपरी स्तरों पर टिकना मुश्किल हो गया।
पिछले अंक में एक आकलन यह भी था कि निफ्टी अगर 6,000 के ऊपर निकल जाये तो 6,300 के आसपास का भी लक्ष्य बन सकता है। इस लक्ष्य का आधार यह था कि अप्रैल-मई की 750 अंक की उछाल को दोहराते हुए अगर यह 5,566 की ताजा तलहटी से फिर 750 अंक की तेजी पकड़े तो 6,300 का लक्ष्य बनेगा। पर निफ्टी इस लक्ष्य की ओर जाने के बदले 6,093 तक ही जाकर पलट गया। यह एक तरह से स्पष्ट संकेत था कि बाजार में अधिक ऊपरी स्तरों को छूने का दमखम अभी नहीं है। इसका यह भी मतलब था कि आने वाले दिनों में भी किसी उछाल को शक की नजर से ही देखा जाये।
निफ्टी ने जब 6,093 के इस शिखर से गिरना शुरू किया तो सरपट गिरता ही चला गया। तीखी गिरावट के बाद जुलाई के अंत में बाजार ने जरा सँभलने के संकेत दिये। लेकिन छह अगस्त को यह जून की तलहटी 5,566 से नीचे टूटा। अगले ही दिन सात अगस्त को यह अप्रैल की तलहटी 5,477 के एकदम करीब 5,487 तक गिर गया। इस गिरावट में निफ्टी ने अप्रैल की तलहटी 5,477 और जून की तलहटी 5566 को मिलाती रुझान रेखा का भी सम्मान नहीं किया, जो 5,600 के कुछ ऊपर सहारा दे सकती थी। इसके अलावा, अप्रैल की तलहटी 5,477 से मई के शिखर 6,229 तक की उछाल की 80% वापसी भी 5,626 पर थी। लेकिन इसका सहारा एक-दो दिनों से ज्यादा नहीं टिका।
लेकिन अब निफ्टी अप्रैल की तलहटी के ठीक ऊपर खड़ा है। एक तरह से इसने अप्रैल-मई की उछाल की पूरी 100% वापसी कर ली है। क्या यह और नीचे फिसलेगा, या इन्हीं स्तरों पर सहारा लेकर पलटेगा? अगर यह पलटा भी तो यहाँ से आने वाली उछाल ज्यादा दमदार या टिकाऊ होने पर संदेह बना रहेगा।
अगर आने वाले दिनों में निफ्टी 5,487 से नीचे न जाये और मौजूदा स्तरों से सँभलता दिखे तो इसके लिए सबसे पहली चुनौती 5,630 को पार करना होगा, जो 6,093 से 5,487 तक की गिरावट की 23.6% वापसी का स्तर है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि 5,477-6,229 की उछाल की 80% वापसी 5,627 पर है। अगर यह 5,630 पार करे तो इसके बाद 6,093-5,487 की 38% वापसी यानी 5,718 और फिर 5,764 पर नजर रहेगी। दरअसल कुछ ठीक-ठाक बढ़त पाने के लिए जरूरी होगा कि यह 5,764 के ऊपर निकले, जो अप्रैल-मई की 5,477-6,229 की उछाल की 61.8% वापसी का स्तर है। लेकिन इसके आगे जाने पर भी निफ्टी के लिए कड़ी बाधाओं का सिलसिला खत्म नहीं होगा।
ध्यान दें कि 5,477-6,229 की 50% वापसी 5,853 पर है। इसके पास ही 200 दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) 5,850 पर है। वहीं 50 एसएमए अब 200 एसएमए को काटते हुए इसके नीचे आ गया है और अभी 5,825 पर है। इन दोनों का यह नकारात्मक कटान (क्रॉसओवर) निश्चित रूप से चिंताजनक है और बाजार में बड़ी गिरावट के अंदेशे पैदा करता है। इसलिए जब तक निफ्टी इन दोनों को पार करके इनके ऊपर टिकता न दिखे, तब तक ज्यादा बड़ी उम्मीदें लगाना ठीक नहीं होगा।
इन सब बातों को मिला कर देखें तो मोटी बात यह निकल रही है कि यहाँ से एक वापस उछाल की संभावना बन सकती है, लेकिन 5,830-5,850 के दायरे में कई बाधाओं का गुच्छा बन रहा है। इसलिए जब निफ्टी इन स्तरों के पास जाये तो काफी सावधान रहें।
एक दिलचस्प बात यह है कि जहाँ निफ्टी ने अप्रैल की तलहटी को लगभग छू लिया है, वहीं सेंसेक्स ने अप्रैल-मई की 18,144-20,444 की उछाल की 80% वापसी के स्तर 18,604 पर ही सहारा लेने की कोशिश की है। इसके लिए ऊपर अब 61.8% वापसी यानी 19,023 पर पहली प्रमुख बाधा रहेगी।
लेकिन सेंसेक्स के लिए ज्यादा मजबूत बाधा-क्षेत्र बन रहा है 19,294 से 19,566 के बीच। अप्रैल-मई की उछाल की 50% वापसी 19,294 पर है और उसके तुरंत बाद इसका 200 एसएमए 19,333 पर है। इसके बाद 50 एसएमए 19,390 पर है। अगर यह सब पार हो सके तो अप्रैल-जून की उछाल की 38.2% वापसी 19,566 पर है। मोटे तौर पर 19,300-19,500 के दायरे से ऊपर जा पाना आसान नहीं होगा।
ध्यान दें कि इस साल की शुरुआत में सेंसेक्स ने जनवरी में 20,204 का शिखर बनाया, फिर मई में 20,444 का शिखर बनाया और उसके बाद जुलाई में यह 20,351 तक जाने के बाद पलट गया। निफ्टी के चार्ट पर जनवरी में 6112, मई में 6,229 और अब जुलाई में 6,093 के शिखर बने हैं। गौरतलब है कि इनके ये शिखर जनवरी 2008 के ऐतिहासिक शिखर और उसके बाद नवंबर 2010 के शिखर के काफी करीबी दायरे में बने हैं।
इसका मोटा मतलब यह है कि अभी जनवरी 2008 के ऐतिहासिक शिखर को पार कर पाने वाली स्थितियाँ नहीं हैं। इसलिए अगर आने वाले महीनों में भी अगर निफ्टी 6,000-6,100 के ऊपर गया तो उन ऊपरी स्तरों पर बिकवाली का दबाव उभरने का काफी खतरा होगा। अगर सेंसेक्स के मई 2013 के शिखर 20,444 और जुलाई 2013 के शिखर 20,351 को देखें तो ये काफी करीब हैं और एक तरह से दोहरे शिखर (डबल टॉप) की संरचना बना रहे हैं। इससे भी बाजार में कमजोरी का ही संकेत मिलता है।
पिछले कई अंकों में मैंने सेंसेक्स और निफ्टी के साप्ताहिक चार्ट पर बन रही चढ़ती पट्टियों (चैनल) को सामने रखा है। अब तक ऐसा लग रहा था कि दोनों की पट्टियाँ कुछ अलग तरह से बन रही हैं। लेकिन निफ्टी के साप्ताहिक चार्ट की ताजा स्थिति देख कर ऐसा लग रहा है कि इसकी पट्टी को नये ढंग से देखने की जरूरत है। लिहाजा इस बार मैंने निफ्टी की यह पट्टी खींचते समय दिसंबर 2011 की तलहटी 4,531 और जून 2012 की तलहटी 4,770 को मिलाने पर ध्यान दिया है। पहले इस पट्टी को खींचते समय मैं नवंबर 2011 और फरवरी 2012 के शिखरों को मिलाने से शुरुआत कर रहा था। इस संशोधन के बाद सेंसेक्स और निफ्टी की पट्टियाँ लगभग एक जैसी दिख रही हैं।
सेंसेक्स के चार्ट पर आप देख सकते हैं कि इसकी पट्टी की निचली रेखा अभी 18,000 के पास है। यही नहीं, 200 हफ्तों का एसएमए भी इसके पास ही 18,058 पर है। अभी इसने जून 2013 की तलहटी 18,467 को नहीं तोड़ा है। यह स्तर टूटते ही बड़ा स्वाभाविक होगा कि सेंसेक्स लगभग 18,000 तक फिसल जाये और इस पट्टी की निचली रेखा छू ले।
लेकिन निफ्टी अपनी इस पट्टी की निचली रेखा और 200 हफ्तों के एसएमए 5,437 के ज्यादा करीब आ चुका है। यह जून की तलहटी को पहले ही तोड़ चुका है और अप्रैल की तलहटी को छू चुका है। ऐसे में यह इस पट्टी की निचली रेखा के पास यानी 5,400 तक कभी भी फिसल सकता है। ऐसे में संभव है कि निफ्टी कुछ समय के लिए इस पट्टी के नीचे भी चला जाये। लेकिन बड़ी चिंता तब होगी, जब सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही अपनी-अपनी इन पट्टियों के नीचे फिसल जायें और इनके नीचे टिकते नजर आयें। ऐसा होना बाजार के लिए खतरे की घंटी बजने जैसा होगा।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2008 की तलहटी 2,253 और दिसंबर 2011 की तलहटी 4,531 को मिलाने वाली रुझान रेखा को काट कर निफ्टी पहले ही एक बड़ी चेतावनी दे चुका है। यह रुझान रेखा बीते डेढ़ सालों में अच्छा सहारा देती रही है। इस रेखा को मासिक चार्ट पर ज्यादा अच्छी तरह देखा जा सकता है। ध्यान दें कि जून 2013 की तलहटी 5,566 भी ठीक इसी रेखा पर टिकी थी। मासिक चार्ट पर खींची यह रुझान रेखा साप्ताहिक चार्ट पर बनी पट्टी की निचली रेखा से काफी हद तक मेल खाती है। लेकिन कोण में जरा-सा फर्क हो जाने के कारण मासिक चार्ट की यह रुझान रेखा अभी 5,700 के कुछ ऊपर है।
इस रेखा के नीचे जाने के चलते यह आशंका बनती है कि निफ्टी अक्टूबर 2008 से नवंबर 2010 तक की 2253-6339 की पूरी उछाल की 23.6% वापसी यानी 5374 तक लुढ़क सकता है। पिछले पाँच सालों से चल रही रुझान रेखा कटने पर इतना झटका तो लग ही सकता है। ध्यान दें कि साप्ताहिक चार्ट पर बनी पट्टी की निचली रेखा और 200 हफ्तों का मूविंग एवरेज इसके आसपास हैं।
मैंने पिछले अंक में भी लिखा था कि 'जून के अंतिम हफ्ते की तलहटी 5,566 के नीचे फिर से लौटने पर 4,531 (दिसंबर 2011 की तलहटी) से 6,229 (मई 2013 का शिखर) तक की उछाल की 50% वापसी यानी 5,380 तक गिरने की आशंका बन जायेगी। इसके नीचे 61.8% वापसी का अगला पड़ाव 5,180 का होगा।’
इन सब बातों को मिला कर देखें तो 5,370-5,430 के दायरे में निफ्टी को अच्छा सहारा मिलने की गुंजाइश बनती है। इसे मध्यम अवधि के लिहाज से मजबूत सहारा माना जा सकता है।
सेंसेक्स के लिए मैंने लिखा था कि ‘18,467 के नीचे फिसलने पर दिसंबर 2011 की तलहटी 15,136 से मई 2013 के शिखर 20,444 की 50% वापसी 17790 और 61.8% वापसी यानी 17,164 अगले महत्वपूर्ण पड़ाव होंगे।’ इसकी साप्ताहिक पट्टी की निचली रेखा और 200 हफ्तों के मूविंग एवरेज को भी साथ में मिला कर देखें तो लगभग 17,800-18,000 के दायरे में अच्छा सहारा होगा।
इन सारी बातों का सार-संक्षेप क्या निकलता है? मोटी बात यह है कि अभी 5,400 के ऊपर टिकना निफ्टी के लिए काफी अहम है। अगर निफ्टी 5,400 के नीचे नहीं फिसला तो वापस उछाल की उम्मीद रहेगी। लेकिन ऐसी वापस उछाल शायद 5,850 के आसपास ही अटक जाये। अगर यह उछाल 6,000 तक चली भी जाये तो एक बार फिर 6,000 के ऊपर सावधानी बरतने की ही सलाह रहेगी। वहीं दूसरी ओर निफ्टी का 5,400 के नीचे निर्णायक रूप से जाना बाजार के लिए काफी खतरनाक होगा। ध्यान रखें कि 2,253-6,339 की पूरी उछाल की वापसी में 23.6% का स्तर यानी 5,374 टूटने के बाद 38.2% वापसी का अगला पड़ाव 4,778 पर आता है।
सरकार के कदमों से जोश क्यों नहीं जगता शेयर बाजार में
वित्त मंत्री पी चिदंबरम शायद हैरान होंगे कि आजकल आर्थिक सुधार की घोषणाओं की हवा से शेयर बाजार के जोश का गुब्बारा फूलता क्यों नहीं! सरकार ने 16 जुलाई की शाम को 13 क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों ढील देने का फैसला किया था। उसके अगले दिन शेयर बाजार ने इन घोषणाओं को जरा भी भाव नहीं दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक अगस्त को इन घोषणाओं पर मुहर लगा दी। साथ में खुदरा एफडीआई की शर्तों में कुछ नयी ढील भी दी। एफडीआई के अलावा इंडियन ऑयल में 10% सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश का फैसला भी किया गया। लेकिन अगले दिन सुबह बाजार हल्की-फुल्की बढ़त के साथ खुलने के चंद मिनटों के अंदर थोड़ा सपाट थोड़ा लाल हो गया।
आर्थिक सुधारों के रास्ते पर आगे बढऩे के सरकार के इन संकेतों को बाजार नजरअंदाज क्यों कर रहा है? कारण स्पष्ट है। आगे बढ़ कर कहीं पहुँचने के लिए समय भी तो चाहिए! वह समय अब इस सरकार के पास कहाँ बचा है? बाजार इस बात को भी स्पष्ट देख रहा है कि सरकार अब आर्थिक स्थिति सँभालने के कहीं ज्यादा राजनीतिक स्थिति सँभालने की तैयारियों में लगी है। इसलिए भले ही अगले लोकसभा चुनाव समय पर ही होने की बातें कही जा रही हों, लेकिन बाजार समय से पहले चुनाव की आशंका को भी एकदम नजरअंदाज नहीं कर सकता।
पिछले साल सितंबर में ही केंद्र सरकार ने खुदरा एफडीआई का रास्ता खोलने की घोषणा की थी। लेकिन इस खुले रास्ते पर कदम बढ़ाने के लिए कोई विदेशी कंपनी अपने डॉलरों की थैली लेकर आगे नहीं आयी। दरअसल उस समय भी यह बात स्पष्ट थी कि सरकार के इन कदमों से डॉलरों की कोई बरसात नहीं होने वाली। मेरा मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद अगली सरकार की नीति स्पष्ट होने से पहले कोई विदेशी कंपनी इस बारे में बड़े फैसले नहीं करेगी। दूसरी बात ये है कि खुदरा एफडीआई को राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर बनाया है और अब तक कांग्रेस-शासित राज्यों के अलावा कहीं और इसका रास्ता खुलता नहीं दिख रहा।
अर्थव्यवस्था के इंजन को फिर से गति देने के लिए सरकार अटकी पड़ी बड़ी परियोजनाओं की बाधाएँ दूर करने के मसले पर कोई सार्थक नतीजा नहीं दे पायी है। अगर सरकार पिछले साल सितंबर में अपनी नींद से जग गयी थी तो अब तक इस मोर्चे पर कुछ तो नतीजे दिखने चाहिए थे। ऐसे में उद्योग जगत और शेयर बाजार ने सरकार के मौजूदा कार्यकाल से अब कोई उम्मीद लगाना छोड़ दिया है। इसी खीझ में उद्योग जगत के कुछ दिग्गज कह चुके हैं कि इससे तो अच्छा है कि सरकार अब तुरंत चुनाव करा दे।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)