अमिष मुंशी, पीएमएस प्रमुख, टाटा एएमसी :
अगर बीते एक साल का प्रदर्शन देखें तो बाजार बहुत ध्रुवीकृत है।
यहाँ तक कि सेंसेक्स में भी दिखता है कि कुछ गिने-चुने शेयर ऊपर जा रहे हैं। ऐसे में जो विविध (डाइवर्सिफाइड) श्रेणी के म्यूचुअल फंड हैं, उनके प्रदर्शन पर असर पड़ता है। दरअसल इस श्रेणी के फंडों का निवेश आम तौर पर 40-50 शेयरों में होता है। सूचकांक में भारी हिस्सेदारी रखने वाले कुछ चुनिंदा शेयर ऊपर चढ़ते रहते हैं। जैसे आईटीसी की सूचकांक में हिस्सेदारी 11.5-12% के आसपास है। फंडों के सामने तो ये सीमा है कि वे किसी एक शेयर में 10% से ज्यादा निवेश नहीं कर सकते। इसके चलते भी फंडों का प्रदर्शन सूचकांक से पीछे रह जाता है।
साल 2008-2009 से यही स्थिति चल रही है। बाजार का जो हिस्सा महँगा है, वही ऊपर बना रहता है और बाकी के बाजार पर बिल्कुल विश्वास ही नहीं है। वैश्विक संकट शुरू होने के बाद से ही केवल रक्षात्मक चरित्र बन गया है। जिन कंपनियों के पास ज्यादा नकदी है, जिनका आरओआई ज्यादा है, जिनकी आय का अनुमान लगाने में दिक्कत नहीं है, जहाँ कर्ज नहीं है या बहुत कम है, उन्हीं शेयरों पर जोर है और उन्हीं के पीई अनुपात बढ़ते जा रहे हैं।
जहाँ तक इक्विटी और ऋण (डेट) फंडों के बीच चुनाव का सवाल है, एक निवेशक को अपना उद्देश्य बहुत साफ रखना चाहिए। उसे पूँजीगत लाभ के लिए इक्विटी में निवेश करना चाहिए और नियत आय (फिक्स्ड इन्कम) के लिए ऋण फंडों में।
अगर आप 2003-04 से पहले की भी स्थिति देखें, जब शेयर बाजार में तेजी का पहला दौर चला था उसके दो साल पहले आपके सामने 6-8% डिविडेंड यील्ड वाले शेयर पड़े थे, सेंसेक्स 3000 पर था और लोग उस शेयर बाजार को देख भी नहीं रहे थे। उस समय सबको नियत आय वाले निवेश में जाना था, क्योंकि उस समय ऐसे निवेश पर शानदार लाभ मिल रहा था। लोग नियत आय वाले निवेश में भी पूँजीगत लाभ की सोच लेकर चलने लगे थे। जब लोग इन दोनों के बीच घालमेल करने लगते हैं, तभी दिक्कत होती है।
दूसरी बात यह है कि ऋण फंडों के निवेशक घाटा हो सकने के बारे में मानसिक रूप से तैयार ही नहीं होता है। उन्हें लगता है कि ऋण में निवेश पर मेरी पूँजी तो एकदम सुरक्षित रहेगी और ऊपर से कुछ जरूर मिलेगा। जब भी इसमें कुछ नुकसान दिखने लगता है तो वह हड़बड़ा जाता है। दूसरी ओर इक्विटी में निवेश करने वाला व्यक्ति कम-से-कम इतना समझ कर चलता है कि उसके निवेश पर घाटा भी हो सकता है। वह छोटी अवधि में घाटे का जोखिम उठाने के लिए तैयार रहता है। ऋण बाजार के निवेशक घाटे के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं रहते। वास्तव में ऋण फंडों में भी उतार-चढ़ाव आ सकता है।
अभी इक्विटी फंडों के निवेशकों को मेरी सलाह रहेगी कि वे अपनी नियमित निवेश योजनाओं (एसआईपी) को जारी रखें। कोई भी बाजार में निवेश का सबसे सही समय नहीं समझ सकता। अर्थव्यवस्था में चुनौतियाँ तो आती ही रहती हैं। अभी मूल्यांकन ठीक चल रहे हैं। निवेशकों को अभी विविध श्रेणी के इक्विटी फंडों में ही रहना चाहिए। करीब तीन-चार महीनों के बाद अगर रुपये में स्थिरता लौटे और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर स्थिति ज्यादा स्पष्ट हो तो उस समय अच्छे प्रबंधन वाले मँझोले फंडों पर ध्यान देना चाहिए। दरअसल मँझोले शेयरों के मूल्यांकन का फर्क काफी बढ़ गया है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)