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अनिश्चितता के भँवर में एनएसईएल

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Category: अगस्त 2013

सुशांत शेखर और बृजेश श्रीवास्तव :

मार्च 2001 में कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज के डिफॉल्ट के बाद नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) भुगतान संकट में फँसने वाला पहला एक्सचेंज बन गया है।

इसने पहले एक अगस्त 2013 से फिजिकल डिलीवरी से संबंधित सभी कॉन्ट्रैक्ट बंद कर दिये और छह अगस्त को ई-सीरीज कॉन्ट्रैक्ट भी बंद कर दिये। हजारों करोड़ रुपये की देनदारी के बीच एनएसईएल का भविष्य अधर में लटक गया है।
एनएसईएल पर निवेशकों के करीब 6,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। एनएसईएल को यह रकम 24 कंपनियों से वसूल करके 200 से ज्यादा ब्रोकरों को चुकानी है। इन ब्रोकरों के साथ जुड़े करीब 8,000 छोटे निवेशकों की रकम फँस गयी है। साथ ही बड़े ब्रोकरों की अपनी रकम भी एक्सचेंज में फँसी है।
कमोडिटी क्षेत्र के नियामक फारवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) और ब्रोकरों के दबाव में फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन और प्रमोटर जिग्नेश शाह ने पाँच अगस्त को संवाददाताओं से बातचीत में निवेशकों को भरोसा दिलाया कि उनका पूरा भुगतान चरणबद्ध ढंग से किया जायेगा। अगर भुगतान में देरी होती है, तो उस पर 16% का ब्याज दिया जायेगा।
जिग्नेश शाह की कंपनी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज की एनएसईएल में 99% हिस्सेदारी है। ऐसे में सरकार चाहती है कि जिग्नेश शाह निवेशकों की रकम सदस्य कंपनियों से वसूल करने और निवेशकों को लौटाने की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लें। एनएसईएल ने सरकार के निर्देश के मुताबिक एक एस्क्रो खाता खोल दिया है और उसमें आयी रकम से सबसे पहले छोटे निवेशकों को भुगतान किया जायेगा।
गौरतलब है कि एनएसईएल ने 31 जुलाई को जारी सर्कुलर के जरिये ई-सीरीज के कॉन्ट्रैक्टों को छोड़ कर अन्य कॉन्ट्रैक्टों के कारोबार को अगले निर्देश तक के लिए निलंबित कर दिया था। तब बताया गया कि एनएसईएल 15 दिनों के बाद नया सेटलमेंट कैलेंडर जारी करेगा। इस खबर के चलते एक अगस्त को फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के शेयरों में बेतहाशा गिरावट आयी।
हालाँकि फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज का दावा है कि एनएसईएल में उसकी कोई देनदारी नहीं है। एमसीएक्स ने भी स्पष्टीकरण दिया है कि एनएसईएल की घटनाओं का उसके कार्य संचालन और वित्तीय स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस बीच सरकार ने एफएमसी को मामले की जाँच का आदेश दे दिया है। शेयर बाजार के नियामक सेबी ने भी अपनी जाँच शुरू कर दी है।
क्यों आयी डिफॉल्ट की नौबत
एनएसईएल को हाजिर (स्पॉट) बाजार के एक्सचेंज की मान्यता दी गयी थी। लेकिन आरोप है कि एक्सचेंज ने वायदा कारोबार शुरू कर दिया था। एक्सचेंज ने 20-25 दिनों (कुछ लोगों के मुताबिक 40 दिनों तक भी) के वायदा कारोबार तक की इजाजत दे दी थी। साथ ही एक्सचेंज के पास ट्रेडर के पास रखे वास्तविक माल (स्टॉक) की जाँच की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी।
नतीजतन कारोबारी जम कर शॉर्ट सेल यानी माल न होने पर भी बिकवाली कर रहे थे। वे 20-25 दिन में भाव घटने पर दोबारा खरीद लेते थे। जिन 24 बकायेदारों के नाम सामने आये हैं, उनमें से कुछ का नेटवर्थ महज कुछ लाख रुपये है, मगर उन पर सैकड़ों करोड़ रुपये बकाया हैं।
एनएसईएल को शॉर्ट सेल की मंजूरी नहीं थी। साथ ही निपटान (सेटलमेंट) टी+11 के आधार पर होने का नियम तय किया गया था। शॉर्ट सेल की शिकायतों की एफएमसी ने जाँच की और जुलाई में एक्सचेंज से टी+25 के बदले टी+11 यानी 11 दिनों में निपटान का नियम मानने को कहा। एफएमसी ने एक्सचेंज से टी+25 के सारे कॉन्ट्रैक्ट रद्द करके नये कॉन्ट्रैक्ट पर रोक लगा दी। डिफॉल्ट की नौबत यहीं से शुरू हुई। सेटलमेंट के दिन अचानक घटने से शॉर्ट सेलिंग करने वालों को भुगतान की दिक्कत होने लगी। एनएसईएल ने संकट को समझते हुए 31 जुलाई को ई-सीरीज को छोड़ कर सारे कॉन्ट्रैक्ट निलंबित कर दिये।
हालाँकि एनएसईएल शॉर्ट सेलिंग की बात नहीं मानता। समूह के अधिकारियों का तर्क है कि स्पॉट एक्सचेंज में सौदे वेयरहाउस रसीदों के आधार पर होते हैं। इन रसीदों का मालिकाना हक उन सामानों का मालिकाना हक रखने के बराबर है। जब किसी के पास वेयरहाउस रसीद है तो शॉर्ट करने का सवाल कहाँ पैदा होता है? शॉर्टिंग सौदा तो तभी होता है जब उसके पास डिलीवरी नहीं हो। अगर कोई अपने पास मौजूद डिलीवरी से ज्यादा बेचे तब कह सकते हैं कि आप शॉर्ट कर रहे हैं।
अनौपचारिक बातचीत में उनका कहना है कि यह संकट पे-इन रुकने के चलते पैदा हुआ। उनके शब्दों में, अगर किसी एक्सचेंज को कह दिया जाये कि आप पे-इन नहीं ले सकते, लेकिन आपको कल ही पे-आउट करना है तो एक्सचेंज को सौदे रोक देने पड़ेंगे। इसलिए एनएसईएल ने कहा कि हम 15 दिन के लिए सौदे रोक देंगे। अगर किसी बैंक से कहा जाये कि आपने जिन लोगों को कर्ज दिया है वे कब वापस करेंगे ये तो पता नहीं, लेकिन आपके पास जितने लोगों का पैसा जमा है उन सबको आप कल सुबह पैसे वापस कर दें। कोई बैंक ऐसा नहीं कर पायेगा।
एनएसईएल में भुगतान संकट के लिए सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती। एनएसईएल के साथ नियमन की अस्पष्टता हमेशा से रही है। इसका नियमन कमोडिटी नियामक एफएमसी के पास न होकर सीधे उपभोक्ता मामले के मंत्रालय के पास था। हालाँकि अब एनएसईएल की भुगतान प्रक्रिया की निगरानी एफएमसी कर रहा है। लेकिन सरकार ने साफ संकेत दिये हैं कि एफएमसी को ही स्पॉट एक्सचेंजों का नियामक बनाया जा सकता है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)

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